ये एक गहरी सर्द सुबह थी।
वो अब भी सोई हुई थी।
मैंने हौले से उसे छुआ और कहा
'चाय'
उनींदी सी अधखुली आंखों से उसने मेरी देखा।
फिर बोली 'तुम्हारी चाय पर सारी नींद वारी'
मैंने प्रश्नवाचक नज़रों से देखा। वो ऐसा कहती रही थी। गर्मियों भर गुनगुना नींबू पानी पीते हुए भी कुछ ऐसा ही कहती थी।
उसकी आँखों सुकून की मुलायमियत से भर उठी थी। वो कह रही थी 'तुम्हारी हर चीज पर ज़िंदगी कुर्बान जो मुझे मेरे होने का अहसास कराती है'
अब उसने मेरा हाथ अपनी ओर खींचा और अपने सर के नीचे रख कर आंखें बंद कर ली।
उसके चेहरे पर असीम निश्चिंतता पसर गई थी। चेहरा सुकून की रोशनी से दमक उठा था।
समय था कि मानो ठहर गया।
खिड़की से झांकता सूरज था
कि शर्म से लाल हो चला।
पक्षी थे
कि प्यार से गुनगुनाने लगे।
शबनम की बूंदें थी
कि प्यार की ऊष्मा से पिघलने लगीं।
चाय का प्याला था
कि उसके होंठों के स्पर्श के लिए बेचैन हो चला।
और दो दिल थे
कि अरमान उनमें मचलने लगे।
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