Friday, 17 August 2018

भारतीय क्रिकेट टीम की जीत के 'शिखर पुरुष'











भारतीय क्रिकेट टीम की जीत के 'शिखर पुरुष' 
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ये क्या ही संयोग है कि भारतीय क्रिकेट टीम की जीत के 'शिखर पुरुष' अजित वाडेकर ऐन उस समय दिवंगत होते हैं जिस समय भारतीय क्रिकेट टीम इंग्लैंड में मेज़बान टीम से बुरी तरह परास्त हो रही होती है।उस समय उनके मन में उनके अपनी कप्तानी के दोनों ऐतिहासिक दौरों की याद ताज़ा हो रही होगी। पहला वो  दौरा जिसमें उन्होंने इंग्लैंड को उसकी धरती पर पहली बार हराया था 1971 में  या फिर 1974 का दौरा जब टीम 3-0  से बुरी तरह हारी थी। वो दौरा जो 'समर ऑफ़ 42'के नाम से बेहतर जाना जाता है क्यूंकि इसी दौरे में भारतीय टीम ने अब तक का टेस्ट मैच का न्यूनतम स्कोर का रेकार्ड बनाया था और जिसके बाद उन्होंने संन्यास ले लिया  था।वे चाहे जो सोच रहे हो उनका दिल जार जार रो रहा होगा। ये कि ऐतिहासिक जीत के 47 साल बाद ये दुर्दशा या 44 साल बाद भी वो ही दुर्दशा।

 वाडेकर ने कुल 37 टेस्ट खेले जिसमें उन्होंने 2113 रन बनाए।उनके  नाम केवल एक शतक है न्यूज़ीलैंड के खिलाफ 143 रन। वे एक दिवसीय टीम के पहले कप्तान थे। उन्होंने कुल दो एकदिवसीय मैच खेले। ये आँकड़े बहुत प्रभावी नहीं लगते। दरअसल  बहुत बार आंकड़े सही स्थिति नहीं दिखा पाते। वाडेकर के आंकड़े भी यही करते हैं। भारतीय क्रिकेट में उनकी महत्ता बहुत अधिक है। उनका दाय अतुलनीय है। दरअसल वे भारतीय क्रिकेट टीम की जीत के अग्रणी पुरुष हैं। वे पहले कप्तान थे जिन्होंने सबसे फिसड्डी टीम को जीतना सिखाया,अपने पर भरोसा करना सिखाया।वे लगातार तीन सीरीज जीतने वाले पहले कप्तान थे। दो विदेशी धरती पर और घरेलु। 1971 में चयनकर्ता समिति के अध्यक्ष विजय मर्चेंट के निर्णायक मत की बदौलत वे मसूर अली खान पटौदी को हटाकर भारतीय टीम के कप्तान चुने गए। उन्होंने उस चयन को साबित किया। पहले क्रिकेट के सार्वकालिक महान खिलाड़ी गैरी सोबर्स के नेतृत्व वाली वेस्टइंडीज की टीम को हराया और उसके बाद इंग्लैंड को इंग्लैंड की धरती पर हराया। वे यहीं नहीं रुके। उसके बाद इंग्लैंड को घरेलू सीरीज में हरा कर लगातार तीन सीरीज जीतने वाले पहले खिलाड़ी बने।1971 की जीत भारतीय क्रिकेट टीम की जीत एक मानक जीत थी एक लाइट हाउस की तरह जिसने आगे की  सभी जीत के लिए उत्प्रेरक का काम किया। यकीन मानिये 1983 की टीम की स्मृतियों में ये जीत भी बड़ी उत्प्रेरक के रूप में काम कर रही होगी और ये भी कि 1971 की जीत 1983 की जीत से किसी भी मायने में कम नहीं। 
अब जब भारत की टीम  सीरीज का निर्णायक और महत्वपूर्ण तीसरा टेस्ट खेलने जा रही है,इस सीरीज में जीत ही अजित वाडेकर को सच्ची श्रद्धांजलि होगी। अजित वाडेकर की स्मृतियों को नमन।   

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