स्वप्न
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सुनो
तुम
देखना एक दिन
उधेड़ दूंगा तुम्हारे दुखों की सिवन को
और बिखेर दूंगा उन्हें कर चिंदी चिंदी सा
खुशियों को सजा दूंगा गहनों सा
तुम्हारी आत्मा पर टांक दूंगा
अपने जज़्बातों को सितारों सा
भर दूंगा तुम्हे प्रेम से
कि तुम महका करोगी कस्तूरी सा
कि बिछ जाएगा प्रेम हमारे दरम्यां
पर्वत पर बर्फ की चादर सा
या फ़ैल जाएगा वनों की हरियाली सा
कभी बहेगा नदी के नीर सा
तो बरसेगा सावन की घटाओं सा
गर झरा तो
झरेगा हरसिंगार के फूलों सा
और दौड़ेगा धमनियों में लहू सा
कि अपने अहसासात के हर्फ़ों से
रच दूंगा एक प्रेम महाकाव्य
जिसे पढ़ेंगे
निर्जन वन प्रांतर में
बिछा के धरती
और ओढ़ के आसमाँ
जोगन जोगी सा
कि उतर आएंगे किसी किताब के सफे पर
बन के
किसी किस्से कहानी के
हिस्से सा।
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ये किस्से कहानी क्या सच में सच होते होंगे !
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