एक लड़की का सपना नदी सा होता है
बहना चाहती है नदी सी
इतराती इठलाती सी
बेरोक टोक दुर्गम घाटियों से लेकर समतल मैदानों तक
बिखेरती चलती है हरा रंग अपने आस पास
और सोखती जाती है काला रंग
वही सपना जब एक ग़रीब की आँखों में जन्मता है
तो आग सा होता है
और उस आग से
ज़िंदगी के चारों ओर फैले घने कोहरे को
उड़ा देना चाहता है भाप की तरह
जला देना चाहता है सारे जुल्म ओ सितम
एक अमीर का सपना होता है
दूध दूह लेने वाली मशीन सा
जिसमें न ममत्व का स्पर्श
न भावनाएं न दिल न जिगर
वो आदमी की जिंदगी को केवल दूहना और दूहना चाहता है
दरअस्ल सपने
बिलकुल पानी जैसे होते हैं
जिनकी अपनी कोई शक्ल सूरत या आकार नहीं होता
बस जिस आँख में जन्म लेते हैं
उसकी तासीर से हो जाते हैं।
(गूगल से साभार) |
No comments:
Post a Comment