Thursday, 29 October 2015

तासीर




एक लड़की का सपना नदी सा होता है
बहना चाहती है नदी सी
इतराती इठलाती सी
बेरोक टोक दुर्गम घाटियों से लेकर समतल मैदानों तक
बिखेरती चलती है हरा रंग अपने आस पास
और सोखती जाती है काला रंग                                      

वही सपना जब एक ग़रीब की आँखों में जन्मता है 
तो आग सा होता है
और उस आग से 
ज़िंदगी के चारों ओर फैले घने कोहरे को 
उड़ा देना चाहता है भाप की तरह  
जला देना चाहता है सारे जुल्म ओ सितम 


एक अमीर का सपना होता है
दूध दूह लेने वाली मशीन सा
जिसमें न ममत्व का स्पर्श 
न भावनाएं न दिल न जिगर
वो आदमी की जिंदगी को केवल दूहना और दूहना चाहता है

दरअस्ल सपने
बिलकुल पानी जैसे होते हैं
जिनकी अपनी कोई शक्ल सूरत या आकार नहीं होता
बस जिस आँख में जन्म लेते हैं
उसकी तासीर से हो जाते हैं।
(गूगल से साभार)

इस पतझड़



1.
इस पतझड़
तेरी याद
झर रही हैं
सूखते पत्तों की तरह
बस एक चिंगारी काफ़ी है
तेरे दीदार की
शोला भड़काने को।

2.
इस पतझड़
तेरी याद से
कुरेदे हुए कुछ ज़ख्म
सूख रहे हैं
और कुछ ख्म हरे हो रहे हैं
तेरी बिसरी यादों से। 

Saturday, 3 October 2015

प्रेम


प्रेम 
मन में समाया 
ठहरा 
और चला गया। 

नहीं बचा कुछ भी 

कोई याद 
कोई सपना  
कोई उम्मीद 
कोई बिछोह 
कोई दुःख 
कोई अवसाद 
कोई राग द्वेष 
कुछ भी तो नहीं।

फिर इक दिन पता चला 

इक टुकड़ा प्रेम बचा रह गया 
मन में किसी फाँस की तरह 
इक बूँद प्रेम बचा रह गया
घास पर ओस की तरह
इक पल प्रेम बचा रह गया
कहीं ठहरे हुए समय की तरह।  
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राकेश ढौंडियाल

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