क्लासरूम में
कभी ख़त्म ना होने वाली
हमारी बातों के बीच
वो अनकहा
और पलास के सिंदूरी दहकते फूलों से लदे पेड़ों के नीचे टहलते हुए
हमारी लम्बी खामोशियों के बीच
बहुत कुछ कहा गया
सीनेट हाल के कॉरीडोर में तैरती हमारी फुसफुसाहटें
और चबूतरे पर बैठकर गाये गीतों की हमारी गुनगुनाहटें
आनंद भवन के सीढ़ीनुमा लॉन पर
गूंजती हमारी खिलखिलाहटों से
मिलकर बनी
गुलाब के अनगिनत रंगों की मौज़ूदगी में
अनजाने लोगों के होठों पर तैरती रहस्यमयी मुस्कान
और उनकी आँखों की चमक से
साहस पाती हमारी कहानी
बन चुकी थी प्रतिरोध का दस्तावेज
जिसे जाना था संगम की ओर
मिलन के लिए
पर पता नहीं
क्या हुआ
क्यों बहक गए तुम्हारे कदम
और चल पड़े कंपनी बाग़ की तरफ
जहाँ ब्रिटेन की महारानी की तरह
तुम्हें करनी थी घोषणा
एक युग के अंत की
ताकि सध सके तिज़ारत का बड़ा मुक़ाम।
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