तेरी सांसें
सर्द रातों में
शोला बन
देह में कुछ पिघलाती रहीं
तेरी छुअन
तपती दोपहर में भी
बर्फ़ की मानिंद
मन में कुछ जमाती रही
ज़िंदगी बस यूँ ही
पिघलते और जमते
रफ्ता रफ्ता गुज़रती गई।
पिछले शुक्रवार को राकेश ढौंढियाल सर आकाशवाणी के अपने लंबे शानदार करियर का समापन कर रहे थे। वे सेवानिवृत हो रहे थे। कोई एक संस्था और उस...
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