Thursday, 10 July 2014

फुटबॉल विश्व कप 2014_6



              8 जुलाई 2014 को बेलो होरिज़ोंटा का एस्टोडिया  मिनिराओ 1950 में रियो डी जेनेरो के एस्टोडिया मरकाना की तरह  एक ऐसा कब्रगाह बन रहा था जिसमें ब्राज़ील की उम्मीदें,गर्व तथा फुटबॉल सभी कुछ दफ़न हो हो रहा था और जिसे ब्राज़ीलवासी  ही नहीं बल्कि ब्राज़ील फुटबॉल को चाहने वाले लाखों करोड़ों फुटबॉल प्रेमी असहाय से डबडबाई आंखो से देख रहे थे । जब मिरोस्लाव क्लोस वर्ल्ड कप फाइनल्स का अपना 16वां और मैच का 2सरा गोल कर रहे थे तो वे केवल ब्राज़ील के रोनाल्डो के वर्ल्ड कप फाइनल्स में सर्वाधिक 15 गोल करने का रिकॉर्ड ही नहीं तोड़ रहे थे बल्कि लाखों ब्राज़िलियों का दिल भी तोड़ रहे थे और उनका अपनी मेज़बानी में 6वीं बार विश्व कप जीतने का सुन्दर सलोना सपना भी चकनाचूर कर रहे थे। नेमार उस समय बिस्तर पर लेटे इस अंत्येष्टि क्रिया को देख रहे होंगे तो उनका दिल तार तार हो उस घडी को कोस रहा होगा जब वे चोटिल हुए थे।  इधर जर्मनी की टीम गोलों की बरसात कर रही थी और उधर ब्राज़ीलवासी आसुओं की झड़ी लगा रहे थे।  शायद इसीलिये ईश्वर ने ये विधान रचा कि अटलांटिक महासागर के अलनीनो फैक्टर के प्रभाव से हिन्द महासागर के देशों में इस बार कम मानसूनी वर्षा होंगी क्योंकि उस पानी की ज़रूरत ब्राज़ीलवासियों को आंसू बहाने में अधिक जो होनी थी।
                              दरअसल ब्राज़ील की ये शर्मनाक पराजय विकसित यूरोपियन दर्प के सामने विकासशील अस्मिता का चूर चूर हो जाना था। ठीक वैसे ही जैसे 15वीं शताब्दी में और उसके बाद के समय में यूरोपीय देशों ने अपनी संगठित सेनाओं के बल पर तमाम देसी राज्यों की कमजोरी का फायदा उठा उनकी अस्मिता को तहस नहस कर उनपर लम्बे समय तक कब्ज़ा जमाए रक्खा। ये पराजय एक संगठित सेना  के सामने नेतृत्व विहीन सेना द्वारा आत्मसमर्पण था। यदि आप अपनी स्मृति के घोड़े दौड़ाएंगे तो आपको याद आएगा  कि नेमार के बिना ब्राज़ील की टीम इतिहास में उल्लिखित सेनाओं जैसी प्रतीत हो रही थी जो पूरी तरह राजा की वीरता  और उसके युद्ध कौशल पर निर्भर होती थी। जब तक राजा युद्ध  मैदान में अपना पराक्रम दिखाता रहता तब तक उसकी सेना भी लड़ती रह्ती और सफ़लता प्राप्त करती रहती। ऐसे में सेना की सारी ख़ामियां छुपी रहतीं। लेकिन राजा के खेत रहते ही सेना में भगदड सी मच जाती। नेतृत्त्व विहीन सेना बिना किसी योजना के  और तेजी से आक्रमण तो करती पर अपनी सुरक्षा का कोई ध्यान ना रखती। फलस्वरूप दुश्मन आसानी से कमजोर रक्षण का फ़ायदा उठाकर सेना को तहस नहस कर किला फतह कर लेता। ब्राज़ील की टीम ने ऐसा ही किया। नेमार जब तक टीम में थे वे अपने दम पर टीम को जिताते रहे और टीम की ऱक्षा पंक्ति की सारी कमी छुपी रहीं। लेकिन जैसे ही उनका हीरो नेमार घायल हो मैदान से रूख़सत हुआ टीम छितर बितर हो गई। उसने आक्रमण में कोई कमी नहीं छोड़ी। जर्मनी के टारगेट पर 12 शॉट के मुक़ाबिल ब्राज़ील ने  13 शॉट लगाए। पर नेतृत्व विहीन टीम ने घबराहट में रक्षण को पूरी तरह वल्नरेबल बना दिया और करारी शिकश्त खाई।
                ब्राज़ील टीम की पराजय का मंचन भले ही 8 जुलाई को एस्टोडिया  मिनिराओ में हुआ हो पर इसकी पटकथा 4 जुलाई को फोर्टेलिज़ा में कोलंबिया के ख़िलाफ खेले गए क्वार्टर फाइनल मैच के 86वें मिनट में उस समय लिख दी गयी थी जब कोलंबिया के जुआन कमिलो जुनिगा ने नेमार के घुटने में चोट मारी थी। 1950 में रिओ डी जनेरो  मरकाना में उरुग्वे के हाथों पराजय का दर्द आज 64 साल बाद भी ब्राज़ीलवासियों को सालता है। आप समझ सकते हैं कि इस जख्म को ठीक होने में शायद सदियां ग़ुज़र जाएं।

1 comment:

  1. Main to abhi bhi ro raha hun. Ghaon mein namak chhirke diya jaise :)

    ReplyDelete

अकारज_22

उ से विरल होते गरम दिन रुचते। मैं सघन होती सर्द रातों में रमता। उसे चटकती धूप सुहाती। मुझे मद्धिम रोशनी। लेकिन इन तमाम असंगतियां के बीच एक स...