भारत और इंग्लैंड के बीच वर्तमान श्रृंखला के दूसरे टेस्ट मैच के अंतिम दिन जब जो रूट और मोईन अली बैटिंग करने क्रीज़ पर आए थे उस समय कम ही लोग ये सोच रहे होंगे कि क्रिकेट के मक्का "लॉर्ड्स" के मैदान पर क्रिकेट के जनक इंग्लैंड का इस तरह मान मर्दन होगा। उनके ऐसा सोचने के पर्याप्त कारण भी थे। भारतीय टीम का रिकॉर्ड ये बता रहा था कि भारत ने इससे पहले 81 साल के इतिहास में जो 16 मैच खेले हैं उनमें से मात्र एक बार 1986 में कपिलदेव के नेतृत्व में जीत हासिल की है। वरना तो बाकी 15 में से 4 ड्रा किये और 11 में हार ही खाई थी। फिर 2011 का दौरा भी लोगों के ज़ेहन में ताज़ा था जिसमें भारत ने बुरी तरह मुँह की खाई थी और चारों टेस्ट हार गई थी। फिर गेंदबाज़ी भारत की कमज़ोर कड़ी है और इस बात पर यकीन कर पाना थोड़ा कठिन था कि भारतीय गेंदबाज 319 रनों से पूर्व इंग्लैंड के 6 विकेट आउट कर पाएंगे।लंच से पूर्व की अंतिम गेंद से पहले तक कल के नॉटआउट बैट्समैन अली और रुट ने अपनी विकेट बचा कर लोगों को ये सोचने के लिए बाध्य भी कर दिया कि कोई नई इबारत नहीं लिखी जाने वाली है। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। युवा भारतीय टीम ने नई इबारत लिख ही डाली। दरअसल 95 रनों से इंग्लैंड की ये हार उसके उन जख्मों पर नमक छिड़के जाने जैसी थी जो जख़्म ऑस्ट्रेलिया और उसके बाद श्रीलंका से हार कर मिले थे।
मैच जीतने के बाद आदरणीय उदय प्रकाश जी ने फेसबुक पर एक पोस्ट लगाई 'एक लगान परदे के बाहर"। लेकिन परदे के बाहर मैदान का ये लगान परदे पर के लगान से भिन्न था। परदे की लगान में आमिर और उनके साथी अंतिम पारी खेल रहे थे जिसमें उनका लगान ही नहीं बल्कि उनका मान सम्मान,पूरा जीवन और उनके इंसान होने का एहसास सभी कुछ दांव पर लगा था। वे कड़ा संघर्ष कर उस चुनौती से पार पाते हैं। और वे ऐसा कर इसलिए पाते हैं कि भारतीय किसान सदियों से इतनी भीषण परिस्थितियों से संघर्ष कर सरवाइव करता रहा है और अपने जीवन को बचाने और अपने वज़ूद को मनवाने का वो संघर्ष,संघर्ष नहीं उसके जीवन में घटित होने वाली क्रिया थी जिसे वो रोज़ ही अंजाम देता आया है। वहां अंग्रेज़ मुँह की खाते हैं। पर अब परिस्थितियां बदल चुकी हैं। अपने मान सम्मान की रक्षा की ज़रुरत अंग्रेज़ों को है। कम से कम क्रिकेट में तो निश्चित ही। पहले बात लॉर्ड्स मैदान की। आख़िरी पारी अँगरेज़ खेल रहे थे। उन्हें लक्ष्य मिला था। सम्मान भी उन्हीं का दांव पर था। होम ऑफ़ क्रिकेट कहे जाने वाले मैदान पर क्रिकेट के जन्मदाता की सम्पूर्ण साख दांव पर थी। अपने मैदान पर अपने लोगों के बीच भारत जैसे देश की टीम जिस पर उसने कई सौ साल राज किया हो वो उसे हरा दे। तो सम्मान किसका दांव पर लगा ? एक और फ़र्क़ था। आमिर की टीम अपना लक्ष्य हासिल करती करती है। पर वास्तविक मैदान पर अंग्रेज़ ऐसा करने में असफल रहते हैं। बस एक ही समानता है अंग्रेज़ दोनों जगह हारते है। घमंड दोनों जगह हारता है। संघर्ष दोनों जगह जीतता है।
बात सिर्फ मैदान तक सीमित नहीं है। भारत अब बड़ी आर्थिक ताक़त है। सिर्फ आर्थिक क्षेत्र में ही नहीं क्रिकेट में भी। बीसीसीआई इस समय क्रिकेट जगत की सबसे बड़ी नियामक संस्था है। क्योंकि भारत में क्रिकेट धर्म बन चुका है ,क्रिकेट का भगवान भी भारत का ही है। भारत में इसकी लोकप्रियता का लाभ उठा कर और कारपोरेट शैली में क्रिकेट का प्रबंधन कर बीसीसीआई सबसे धनवान और इसलिए सबसे शक्तिशाली संस्था बन चुकी है। एक समय था जब क्रिकेट प्रबंधन में इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया की तूती बोलती थी। भारतीय खिलाड़ी हमेशा अपने साथ भेदभाव तथा अन्याय की शिकायत करते थे। आज इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया ये शिकायत करते हैं कि बीसीसीआई अपने शक्तिशाली और अमीर होने का नाज़ायज़ फ़ायदा उठा रहा है। जो भी हो क्रिकेट में भारत का प्रभुत्व और शक्ति का जादू सिर चढ़ कर बोल रहा है। (ये दीगर बात है कि उसने खेल का कितना नुक्सान किया है और इस पर अलग से बहस होनी चाहिए )
इसी समय आदरणीय रमेश उपाध्याय जी ने भी एक पोस्ट लगाई है ब्रिक्स देशों द्वारा विकास बैंक की स्थापना के सम्बन्ध में। इसमें उन्होंने अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा की एक टिप्पणी भी उद्धृत की है 'America must always lead on the world stage. If we don't, no one else will.'दरअसल ये टिप्पणी विकसित देशों के बौखलाहट का,उनके भीतर बढ़ती असुरक्षा का आइना है जिसमें हम आने वाले समय में पश्चिम और विकसित देशों की घटती भूमिका को साफ़ साफ़ देख सकते हैं। निश्चित ही बहुत से देश उन पर उस हद तक निर्भर नहीं रहे जिस हद तक वे चाहते हैं। रियो दे जेनेरो में ब्रिक्स देशों की बैठक में अपना विकास बैंक बनाने के निर्णय और भारत के लॉर्ड्स के मैदान में ऐतिहासिक विजय को और क्रिकेट में भारत बढ़ती ताक़त को ऐसी घटनाओं के रूप में देखा जाना चाहिए जो विकसित पश्चिम के घटते प्रभुत्व को और उन पर विकासशील देशों की कम होती निर्भरता को रेखांकित करती है। फीफा विश्व कप फुटबॉल में ब्राज़ील और अर्जेंटीना की हार से आहत लोगों के लिए भारत की ये जीत राहत की बात होनी चाहिए। भारतीय टीम को इस जीत पर लख लख बधाइयाँ।
इसी समय आदरणीय रमेश उपाध्याय जी ने भी एक पोस्ट लगाई है ब्रिक्स देशों द्वारा विकास बैंक की स्थापना के सम्बन्ध में। इसमें उन्होंने अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा की एक टिप्पणी भी उद्धृत की है 'America must always lead on the world stage. If we don't, no one else will.'दरअसल ये टिप्पणी विकसित देशों के बौखलाहट का,उनके भीतर बढ़ती असुरक्षा का आइना है जिसमें हम आने वाले समय में पश्चिम और विकसित देशों की घटती भूमिका को साफ़ साफ़ देख सकते हैं। निश्चित ही बहुत से देश उन पर उस हद तक निर्भर नहीं रहे जिस हद तक वे चाहते हैं। रियो दे जेनेरो में ब्रिक्स देशों की बैठक में अपना विकास बैंक बनाने के निर्णय और भारत के लॉर्ड्स के मैदान में ऐतिहासिक विजय को और क्रिकेट में भारत बढ़ती ताक़त को ऐसी घटनाओं के रूप में देखा जाना चाहिए जो विकसित पश्चिम के घटते प्रभुत्व को और उन पर विकासशील देशों की कम होती निर्भरता को रेखांकित करती है। फीफा विश्व कप फुटबॉल में ब्राज़ील और अर्जेंटीना की हार से आहत लोगों के लिए भारत की ये जीत राहत की बात होनी चाहिए। भारतीय टीम को इस जीत पर लख लख बधाइयाँ।
28 years we have waited for the victory. Even I was not sure and found Ishant Sharma suddenly devastating with his magic spell. Happy to see the historical moment.
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