Thursday 14 January 2021

कितनी पारदर्शी होती हैं स्मृतियां

 बचपन की सबसे प्रिय और खूबसूरत चीजों में रंगबिरंगे कंचे हुआ करते थे जो अलग अलग जेबों में भरे रहते थे किसी ख़ज़ाने की तरह।

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और आज उम्र के इस पड़ाव पर दिल में समय के अलग अलग कालखंडों की जेबों में ना जाने कितनी स्मृतियां रंग बिरंगे कंचों सी बिखरी पड़ी हैं।

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कि कोई स्मृति समय के वितान पर फैली विस्मृतियों की घास के किसी तिनके पर ओस की बूंद सी आ टपकती और फिर देर तलक अतीत की एक सुबह को भिगो देती है।

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कि कोई स्मृति का नन्ही गौरैय्या सी दिल की बालकनी में आ फुदकती है और फिर देर तलक अतीत की एक दोपहरी को अपनी मधुर चहचहाहट से भर देती है।

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कि कोई स्मृति मन के आसमान पर चांद सा उदित हो जाती और देर तलक अतीत की किसी रात को रोशनी से भर जाती है।

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कि एक भोर ढेर सारी स्मृतियां मन के जंगल में उगे पेड़ से पारिजात के फूलों सी झर झर जातीं हैं और अपनी महक से अतीत की धरती को मदहोश कर देतीं है।

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स्मृतियां कितने रंग,रूप,आकार लिए खूबसूरत कंचों सी समय की जेबों में भरी होती हैं।

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कितनी पारदर्शी होती हैं ना स्मृतियां। देखा जा सकता है समय के पार। जिया जा सकता है जिया हुआ जीवन  कई कई बार।

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