Thursday, 31 December 2020

विदा_साल_2020_1

 

स्मृतियां दृश्य होती हैं। दृश्य जितने पास होते हैं उतने ही स्पष्ट और ज़्यादा स्पेस घेरने वाले होते हैं। समय जैसे जैसे उन्हें दूर लेता जाता है, दृश्य धुंधले और छोटे होते जाते हैं और अंततः अनंत में विलीन हो जाते हैं। लेकिन कुछ दृश्यों के साथ ध्वनि भी होती है। दृश्य भले ही धुंधले या विलीन हो जाएं पर ध्वनियां मद्धिम नहीं पड़ती। वे समय की सीमाओं से टकरा बार बार लौटती हैं। वे अनुगूंजें हमेशा सुनाई पड़ती हैं। ये दीगर बात है उनमें से कुछ अनुगूंज संगीत सी मधुर,रेशम सी मुलायम,कपास सी छुईमुई,ओस सी पवित्र होती हैं तो कुछ सांझ सी उदास,रात सी निष्ठुर,अट्टाहास सी भयानक होती हैं।

-------------------


No comments:

Post a Comment

अकारज_22

उ से विरल होते गरम दिन रुचते। मैं सघन होती सर्द रातों में रमता। उसे चटकती धूप सुहाती। मुझे मद्धिम रोशनी। लेकिन इन तमाम असंगतियां के बीच एक स...