Sunday 19 January 2020

सादियो माने:खेल का सबसे खूबसूरत चेहरा


2019 के विश्व के सर्वश्रेष्ठ फुटबॉल खिलाड़ी का ख़िताब 'बैलन डि ओर' मैस्सी ने रिकॉर्ड छठी बार जीता। यहां महत्वपूर्ण बात ये है कि उन्होंने अपना वोट लिवरपूल के फॉरवर्ड सादिओ माने को दिया था। सादिओ माने इस वोटिंग में मैस्सी,वर्जिल वैन डिक और क्रिस्टियानो के बाद चौथे नंबर पर आए थे और तब मैस्सी ने कहा था कि 'ये शर्मनाक है कि माने चौथे स्थान पर हैं।' और ऐसा मानने वाले वे अकेले नहीं हैं। चेल्सी के पूर्व खिलाड़ी और सेनेगल की राष्ट्रीय टीम के साथी खिलाड़ी देम्बा बा मानते हैं कि इस साल के 'बैलन डी ओर' खिताब के सही हक़दार मैस्सी नहीं सादिओ माने थे। तो  न्यू कैसल के पूर्व खिलाड़ी और सेनेगल टीम के एक ओर साथी खिलाड़ी पपिस सिसे कहते हैं कि उनमें दुनिया का सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी बनने का माद्दा है। और जब आठ जनवरी को 2019 के लिए उन्हें उनके क्लब के साथी खिलाड़ी मिस्र के मो. सालेह और मैनचेस्टर सिटी के अल्जीरियाई खिलाड़ी रियाद महरेज़ से आगे सर्वश्रेष्ठ अफ्रीकी फुटबॉलर का खिताब मिला तो प्रकारान्तर से ये मैस्सी या देम्बा बे की बात की ही ताईद हो रही थी।

सादिओ माने इस समय सेनेगल की राष्ट्रीय टीम के कप्तान हैं और इंग्लिश प्रीमियर लीग में लीवरपूल से खेलते हैं। इस साल उनकी उपलब्धियां बेजोड़ रही हैं। उन्होंने अपने देश सेनेगल की टीम को  2019 में अफ्रीका कप के फाइनल तक पहुँचाया। फिर उन्होंने 30 साल बाद लीवरपूल को चैंपियंस  लीग का खिताब दिलाया और उसके बाद यूएफा सुपर कप और फीफा क्लब वर्ल्ड कप भी। इस तरह लीवरपूल पहला इंग्लिश क्लब बना जिसने ये तीनों प्रतियोगिताएं एक साथ जीती। साथ ही उन्होंने साल 2019 के लिए मोहम्मद सालेह और पिअर एमेरिक के साथ प्रीमियर लीग गोल्डन बूट का खिताब भी जीता।  पिछले सीजन उन्होंने प्रीमियर  लीग में 22 गोल किए और कुल मिलाकर 36 गोल। ये पोएटिक जस्टिस था कि जिस माने के पास बचपन में जूते नहीं थे और वे नंगे पैर फुटबॉल खेलते थे उन्हें अब गोल्डन बूट से नवाज़ा जा रहा था और लिवरपूल की यूनिफार्म प्रायोजित करने वाली कंपनी न्यू बैलेंस उनके सम्मान में उनके लिए एक विशेष जूता 'फुरोन वी 6' कस्टमाइज़ कर रही है।

10 अप्रैल 1992 में अफ्रीकी देश सेनेगल के दक्षिणी भाग में स्थित सेधिओ  शहर के छोटे से गांव बम्बली में जन्मे सादिओ माने ने अपना प्रोफेशनल कैरियर 19 वर्ष की उम्र में फ्रेंच क्लब मेट्ज़ से आरम्भ किया था। लेकिन एक साल बाद ही 2012 में वे ऑस्ट्रियन क्लब रेड बुल साल्जबर्ग में शामिल हुए। दो सीजन बाद 2014 में उनका ट्रांसफर इंग्लिश क्लब साउथम्प्टन में हो गया। लेकिन शायद ये उनकी मंज़िल नहीं थी। और तब आया 2016 का साल। इस साल उन्होंने लिवरपूल से अनुबंध किया और पहली बार सुर्ख लाल रंग की जर्सी पहनी। वे अत्यंत अभावों और गरीबी में पले बढ़े और फुटबॉल खेलना सीखा। वे संघर्षों की आंच में तपकर ढले लोहा हैं और उनके भीतर सर्वश्रेष्ठ बनने की एक कभी ना बुझने वाली आग है। भीतर की इस आग के लिए सुर्ख़ लाल जर्सी से बेहतर बाहरी आवरण और क्या हो सकता था।

14 अगस्त 2016 को आर्सेनल के विरुद्ध लिवरपूल के लिए उन्होंने अपना पहला गोल किया। ये एक शानदार शुरुआत थी। इस गोल को लिवरपूल के लिए खेलने वाले खिलाड़ियों द्वारा क्लब के लिए किए गए सबसे बेहतरीन चुनिंदा पहले गोल में से एक है। उस मैच में दोनों टीमें 3-3 के स्कोर पर थीं। तब माने ने दाएं विंग में गेंद अपने कब्जे में की,दो डिफेंडरों को चकमा दिया,विंग से अंदर की ओर आए और अपने बांए पैर से गेंद गोल के बांए ऊपरी हिस्से में टांग दी। इस गोल ने लिवरपूल को 4-3 से जीत दिलाई। इस शुरुआत के बाद से उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। और वे कोच जार्गन क्लोप की रणनीति के अनिवार्य अंग बन गए।

वे एक सम्पूर्ण खिलाड़ी माने जाते हैं जो दोनों पैरों और सिर से गोल करने में सक्षम है। वे बहुत शानदार ड्रिब्लिंग करते हैं किसी स्प्रिंटर की तरह ।उनको खेलते हुए देखिए। वे पूरी तन्मयता और एकाग्र होकर खेलते हैं और अपना सब कुछ झोंक देते हैं। उनके खेल की निर्मिति उनकी अपनी कठिन परिस्थितियों से ही नहीं बल्कि अफ्रीका की कठिन परिस्थितियों से भी हुई है। उनके माता पिता इतने निर्धन थे कि वे पढ़ने तक नहीं जा सके और उनके अंकल ने उन्हें सपोर्ट किया और वे खेल सके। उनका परिवार ही नहीं बल्कि अफ्रीकी देश विश्व में सबसे निर्धन देश हैं। वे लंबे समय तक यूरोपीय देशों के उपनिवेश रहे और इस कदर उनका शोषण हुआ कि उससे वे आज तक नहीं उबर सके। फिर वहां की जटिल जातीय  संरचना ने इस पूरे भूभाग को निरंतर चलने वाले विश्व के सबसे कठिन गृहयुद्धों में धकेल दिया। इन कठिन युद्धों  और साथ ही कठिन भौगोलिक स्थितियों के मध्य यहां के लोगों को अपना अस्तित्व बनाए रखने और अस्मिता की रक्षा के लिए घनघोर संघर्ष करना पड़ता है। इसीलिए यहां के लोगों में गजब का जुझारूपन होता है। आसानी से हार ना मानना,अंतिम समय तक संघर्ष करना और जीतने के लिए अपना सब कुछ झोंक देना उनकी ज़िंदगी में सफलता का एकमात्र सूत्र है। बेहद कठिन और विपरीत परिस्थितियों में भी सर्वाइव करने और जीने की लालसा यहां के लोगों की ही नहीं बल्कि खिलाड़ियों की भी निर्मिति करती है फिर वे चाहे एथलीट हों या फुटबॉलर। स्वयं सादिओ माने इसी जिजीविषा की उपज हैं।
कुछ खिलाड़ी अपने खेल से बड़े होते हैं और कुछ खिलाड़ी अपने खेल के साथ साथ खेल से इतर कारणों से भी महान होते हैं। सादिओ माने जितने बड़े खिलाड़ी हैं उतने ही उम्दा इंसान भी हैं। वे बेहद विनम्र खिलाड़ी माने जाते हैं। ये उन जैसे खिलाड़ी की विशेषता हो सकती थी कि अपने इतने ऊंचे कद के बावजूद उनकी निगाहें ज़मीन की तरफ बनी रहती हैं और आसमान में उड़ते हुए भी वे अपनी जड़ों को ज़मीन से उखड़ने नहीं देते हैं। दरअसल सादिओ माने की प्रसिद्धि सिर्फ उनके खेल से ही नहीं बल्कि उनके एक बेहद उम्दा और ज़हीन इंसान होने से भी है। विनम्र इतने कि वे अपने साथियों के ड्रिंक्स ले जा सकते हैं या फिर किसी मस्जिद में टॉयलेट भी साफ कर सकते हैं या फिर प्रति सप्ताह डेढ़ लाख डॉलर कमाई होने के बावजूद टूटे स्क्रीन वाले फोन का इस्तेमाल करते रह सकते हैं और ये भी कि वे लिवरपूल की तीन सौ जर्सियाँ खरीदकर अपने गांव बम्बली के फुटबॉल प्रेमियों के लिए भेज सकते हैं। अफ्रीकी फुटबॉलर ऑफ द ईयर के सम्मान को प्राप्त करते हुए अपने भाषण में वे कहते हैं कि 'आप सभी सम्मानित लोगों के समक्ष भाषण देने के बनिस्बत मैदान में फुटबॉल खेलना मेरे लिए कहीं अधिक सहज है'। वे जितने अपने खेल के लिए जाने जाते हैं उससे कहीं अधिक अपनी चैरिटी के लिए जाने जाते हैं। वे अपने गांव बम्बली में एक स्कूल का,एक अस्पताल का और एक मस्ज़िद का निर्माण करवा रहे हैं। इसके लिए उन्होंने ढाई लाख डॉलर से ज़्यादा का दान दिया है। उनके व्यक्तित्व के इस उम्दा पक्ष का प्रमाण उनका वो खूबसूरत बयान है जो 13 अक्टूबर 2019 को घाना के न्यूज़ पोर्टल एनसेमवोहा डॉट कॉम ने छापा है कि 'दस फेरारी,डायमंड की बीस घड़ियां या दो हवाई जहाज मुझे क्यों चाहिए,ये मेरे या दुनिया के लिए किस काम के....(एक समय था)जब मैं भूखा था,मुझे खेतों में काम करना पड़ता था,मैंने बहुत खराब समय देखा,मैंने नंगे पांव फुटबॉल खेला,मैं पढ़ नहीं पाया और बहुत सी चीजों से वंचित रहा, लेकिन आज फुटबॉल से जो कुछ मैंने प्राप्त किया उससे अपने लोगों की सहायता कर सकता हूँ.....मैं एक स्टेडियम और विद्यालयों का निर्माण करा रहा हूँ,निर्धन लोगों को कपड़े,जूतेऔर खाना उपलब्ध कराता हूँ।  इसके अतिरिक्त क्षेत्र के अत्यंत निर्धन लोगों को प्रतिमाह 70 यूरो देता हूँ ताकि उनके घर की आर्थिक स्थिति सुधर सके....मुझे आलीशान घर,कारों और यात्राओं की यहाँ तक कि हवाई जहाजों की कोई आवश्यकता नहीं है। इसके बदले मुझे जो कुछ ज़िन्दगी ने दिया उसमें से कुछ अपने लोगों को उपलब्ध कराना ज़्यादा पसंद करूंगा।'

एक खिलाड़ी का इससे खूबसूरत बयान और क्या हो सकता है। दरअसल खेल केवल खेल भर नहीं होते वे उससे कहीं अधिक जीवन होते हैं। निसंदेह  खेल एक खिलाड़ी को मानवीय सरोकारों से लैस करता है,खिलाड़ी को थोड़ा और अधिक मानुस बनाता हैं। यदि हां तो वो खेल है। अन्यथा वो केवल व्यापार है,तिज़ारत है जो आजकल फैशन में है ही।
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सादियो माने खेल का सबसे खूबसूरत चेहरा हैं।









Tuesday 14 January 2020


भले ही आप गंभीर अध्येता ना हों लेकिन आप किताबों को देखना पसंद करते हैं, उन्हें छूना चाहते हैं और उनसे उठती महक को अपने भीतर भर लेना चाहते हैं तो ये पर्याप्त कारण है आपको पुस्तकों के महासागर विश्व पुस्तक मेले में कम से कम एक बार डूबने उतराने को प्रेरित करने के लिए। आज 5 बजे दिल्ली और 6 बजे पुस्तक मेले में। सोचा था कुछ मोती उस महासागर से चुन लिए जाएं। लेकिन ये बहुत कठिन कार्य है। बहुत अनुभव की ज़रूरत होती है। हम तो उसमें छलांग लगाते ही बूड़ने लगे। लगे हाथ पैर मारने। लगा मोती चुनने के चक्कर में कूड़ा करकट ना बांध लाएं। भला हो रमाकान्त भाई का। उन्होंने डूबते को तिनका क्या ट्यूब थमा दिया। फिलहाल ढेर सारी किताब ले ली है पर देह ही देश,एक बटा दो ना ले पाने का दुख है।

 किताबों के बारे में मेरी और पत्नी के विचार समान हैं। मुझे लगता है कि किताबों को प्रेमिका की तरह नहीं बल्कि पत्नी की तरह बरतना होता है। उसे समय देना होता है,गहराई से समझना और आत्मसात करना होता है और जब आप ऐसा कर पाते हैं तो वो ज़िन्दगी भर आपके साथ होती हैआपकी  मार्गदर्शक के रूप में। और पत्नी को लगता है किताबें सौतन होती हैं। पत्नी के हिस्से का बहुत सा समय उधर जो चला जाता है। तो इस बार कुछ और सौतनें साथ हो ली हैं।

स्मृति शेष पिता

  "चले गए थे वे अकेले एक रहस्यमय जगत में जहां से आज तक लौटकर नहीं आया कोई वह शय्या अभी भी है वह सिरहाना अभी भी है मैं भी हूं तारों-भरे ...