भले ही आप गंभीर अध्येता ना हों लेकिन आप किताबों को देखना पसंद करते हैं, उन्हें छूना चाहते हैं और उनसे उठती महक को अपने भीतर भर लेना चाहते हैं तो ये पर्याप्त कारण है आपको पुस्तकों के महासागर विश्व पुस्तक मेले में कम से कम एक बार डूबने उतराने को प्रेरित करने के लिए। आज 5 बजे दिल्ली और 6 बजे पुस्तक मेले में। सोचा था कुछ मोती उस महासागर से चुन लिए जाएं। लेकिन ये बहुत कठिन कार्य है। बहुत अनुभव की ज़रूरत होती है। हम तो उसमें छलांग लगाते ही बूड़ने लगे। लगे हाथ पैर मारने। लगा मोती चुनने के चक्कर में कूड़ा करकट ना बांध लाएं। भला हो रमाकान्त भाई का। उन्होंने डूबते को तिनका क्या ट्यूब थमा दिया। फिलहाल ढेर सारी किताब ले ली है पर देह ही देश,एक बटा दो ना ले पाने का दुख है।
किताबों के बारे में मेरी और पत्नी के विचार समान हैं। मुझे लगता है कि किताबों को प्रेमिका की तरह नहीं बल्कि पत्नी की तरह बरतना होता है। उसे समय देना होता है,गहराई से समझना और आत्मसात करना होता है और जब आप ऐसा कर पाते हैं तो वो ज़िन्दगी भर आपके साथ होती हैआपकी मार्गदर्शक के रूप में। और पत्नी को लगता है किताबें सौतन होती हैं। पत्नी के हिस्से का बहुत सा समय उधर जो चला जाता है। तो इस बार कुछ और सौतनें साथ हो ली हैं।
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