Sunday 25 August 2019

हौंसलों की ये उड़ान बरकरार रहे


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भारतीय समाज की एक बहुत ही सुस्थापित परंपरा है किसी भी विशेष अवसर अपने निकटस्थ लोगों को स्वर्णाभूषण भेंट करने की। और आज जब अपनी माँ के जन्मदिन पर पुसरला वेंकट सिंधु   विश्व विजेता बनकर अपनी मेहनत से अर्जित सोने के तमगे को मां के माथे सजा रहीं थीं तो किसी खिलाड़ी द्वारा मां को दी गई इससे खूबसूरत
भेंट और कुछ नहीं हो सकती थी।
  
स्विट्ज़रलैंड की खूबसूरत वादियों में  बसे बासेल शहर में सिंधु जब विश्व बैडमिंटन चैंपियनशिप के फाइनल में जापान की नोजोमी ओकुहारा को 21-7 और 21-7  हरा रही थीं तो हौंसलों,संघर्ष,लगन,परिश्रम और प्रतिभा से लिखी जा रही एक लंबी कथा की अनेक उपकथाओं में से सबसे महत्वपूर्ण उपकथा का एक खूबसूरत उपसंहार लिख रही थीं। दरअसल ये उपकथा 2017 में ग्लासगो में शुरू हुई थी और वाया नानजिंग बासेल पहुंची थी। और इस खूबसूरत उपसंहार के लिए राइन नदी के किनारे बसे बासेल जैसी खूबसूरत जगह से बेहतर जगह और कौन सी हो सकती थी।

2017 की विश्व चैंपियनशिप ग्लासगो में हुई थी और फाइनल सिंधु और ओकुहारा के बीच खेला गया था। ये ऐतिहासिक और अद्भुत मैच था। 111 मिनट चला ये मैच अब तक का सबसे लंबा मैच था जिसमें बैडमिंटन खेल अपनी संपूर्णता में उपस्थित था। इसमें दोनों खिलाड़ियों के कौशल,प्रतिभा,क्षमता,तकनीक,स्टेमिना,धैर्य का श्रेष्ठ निदर्शन था। उस मैच में एक रैली 73 शॉट्स की थी। इतने शॉट्स में तो कई बार पूरा गेम ही खत्म हो जाता है। एक अन्य रैली 53 शॉट्स की थी। उस मैच का स्कोर ओकुहारा के पक्ष में था 21-19,20-22 और 22-20। तकनीकी रूप से वहां ओकुहारा जीती ज़रूर थीं,लेकिन अगर आप स्कोर पर एक नज़र डालें तो समझ आएगा कि दरअसल ये एक अनिर्णीत संघर्ष था जिसे आगे जाकर खत्म होना था। उसके बाद 2018 में नानजिंग एक बार फिर सिंधु  कारोलिना मारन से फाइनल में हार गईं। और तब 2019 में बासेल आया। यहां का फाइनल 2017 के ग्लास्गो के फाइनल का रेप्लिका था। पुसरला वेंकट सिंधु और नोजोमी ओकुहारा के मध्य। ये मैच बिल्कुल वहीं से शुरू हुआ जहां ग्लास्गो में खत्म हुआ था या यूं कहें अनिर्णीत छूटा था। यहां पहले ही पॉइंट के लिए 22 शॉट्स की रैली हुई। ये अंक जीता ओकुहारा ने। लगा यहां भी ग्लास्गो दोहराया जाने वाला है। लेकिन सिंधु कुछ और ही तय करके आईं थीं। ओकुहारा को अगला अंक जीतने के लिए 8 अंकों तक इंतज़ार करना पड़ा। तब स्कोर हुआ 8-2 और उसके बाद 16-4 और फिर 21-7 सिंधु के पक्ष में। दूसरे गेम की कहानी भी अलग नहीं थी।दूसरा गेम भी 21-7 से जीत कर सिंधु ने  बताया कि मैच कैसे खत्म किया जाता है।5 फुट 11 इंच लंबी सिंधु ने अपने कद की भांति खेल के स्तर को भी इतना ऊंचा उठा दिया कि प्रतिपक्षी एकदम बौना होकर रह गया। सिंधु ने पूरे मैच में बहुत ही आक्रामक खेला। उन्होंने ओकुहारा को डीप थर्ड में खिलाया और बीच कोर्ट से पूरे खेल को नियंत्रित किया। ओकुहारा ने नेट पर सिंधु की कमज़ोरी का फायदा उठाने की कोशिश की। पर सिंधु ने नेट पर भी कोई मौका प्रतिद्वंदी को नहीं दिया। और अपने तमगे के  रुपहले रंग को सुनहरे रंग में तब्दील कर दिया। ये 2017 के अनिर्णीत मैच का निर्णायक अंत था। 

दरअसल खेल में या तो आप अपनी मेहनत से दक्षता अर्जित करते हैं या आपमें जन्मजात प्रतिभा होती है। अर्जित दक्षता वाले खिलाड़ी के प्रदर्शन में एक निरंतरता रहती है।उसके प्रदर्शन में ऊंच नीच कम रहती है। लेकिन जन्मजात प्रतिभावान खिलाड़ी के प्रदर्शन निरंतरता की कमी होती है। सिंधु एक ऐसी ही प्रातिभावान खिलाड़ी हैं। वे अक्सर शानदार प्रदर्शन करते करते अचानक से महत्वपूर्ण मौके पर चूक जातीं।
लेकिन इस समय वे खेल के चर्मोत्कर्ष पर हैं।आपको याद होगा इससे पहले इंडोनेशिया ओपन के क्वार्टर फाइनल में ओकुहारा को 21-14,21-7 से और सेमी फाइनल में चेन यू फेई को 21-19,21-10 से रौंद दिया था,हालांकि वे फाइनल में यामुगुची से हार गई। जो शानदार प्रदर्शन उन्होंने इंडोनेशिया में किया था वो उन्होंने यहां जारी रखा। यहां सेमी फाइनल में चेन युफेई को 21-7,21-14 से और फाइनल में ओकुहारा को 21-7,21-7 से निर्ममता से रौंद डाला।

दरअसल ये सिंधु की प्रतिभा का विस्फोट है जिसमें चीन और जापान की इस खेल में बादशाहत,महानऔर समृद्ध परंपरा और दर्प चूर चूर होकर बिखर गया और धूल धुसरित हो गया। और उसके विध्वंस पर भारतीय बैडमिंटन के  नए युग का आरंभ होगा। और बासेल और स्विट्जरलैंड के लिए सिर्फ इतना ही कि उन्होंने ये सोचा और समझा कि सिंधु के पास रुपहला रंग पहले से बहुतायत में है और खुद उनके यहां भी पहाड़ों पर बर्फ की चादर पर पसरा रुपहला रंग भी बहुतायत में है तो क्यों ना उस रुपहली चादर पर सूर्य की किरणों से जो सुनहरा रंग छिटका छिटका फिरता है,उसे बटोर कर अपने इस खूबसूरत मेहमान को भेंटकर विदा किया जाय।
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सिंधु को ये अविस्मरणीय जीत मुबारक!

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