मैरी कॉम
विश्व चैंपियनशिप में 1 चांदी और 6 सोने के तमग़े जीतने,अपने मेल काउंटरपार्ट क्यूबा के महानतम मुक्केबाज़ फेलिक्स सवोना की बराबरी करने और एक शानदार बायोपिक अपने खाते में दर्ज़ कराने जैसी असाधारण उपलब्धियों के बाद भी मैरी कॉम आधी आबादी की खेल दुनिया की सानिया या सिंधु या गुट्टा या मिताली या फिर साक्षी या फोगट बहनों जैसी ग्लैमरस आइकॉन नहीं बन पायी हैं। इसका कारण शायद उनकी सहजता,सरलता और साधारण चेहरा मोहरा बाजार और मीडिया के लिए उतना सेलेबल ना होना हो पर अदम्य उत्साह,इच्छा शक्ति,धैर्य,लगन और परिश्रम से बना उनका खूबसूरत सहज और सरल व्यक्तित्व दरअसल भारतीय समाज के आधे हिस्से की खेल दुनिया का सबसे सच्चा और वास्तविक प्रतिनिधि है,उसका है।
उन्होंने 2001 में विश्व प्रतियोगिता में पहला रजत पदक जीता। उसके बाद 2002,2005 2006,2008 के बाद 27 साल की उम्र में 2010 में अपना पाँचवा स्वर्ण पदक जीता। उसके 8 साल बाद अब 2018 में 35 वर्ष की उम्र में अपना छठा सोने का तमगा हासिल कर ये विशिष्ट उपलब्धि हासिल की। इस 18 साल के खेल जीवन में विश्व चैम्पियनशिप के अलावा ओलम्पिक,एशियाड और कॉमनवेल्थ खेलों में भी तमगे हासिल किए। 2002 की विश्व मुक्केबाज़ी चैम्पियनशिप में भाग लेने वाले खिलाड़ियों में वे अकेली हैं जो अभी भी रिंग के भीतर सक्रिय हैं।इतना ही नहीं वे 2020 के ओलम्पिक में भाग लेने के लिए भी आश्वस्त दिखती हैं। ये दिखाता है कि वे किस मिट्टी की बनी हैं।
35 साल की उम्र में तीन बच्चों की माँ होकर भी ये असाधारण उपलब्धि हासिल कर उन्होंने दिखाया कि जिस उम्र में महिलाएं अपने परिवार की खातिर अपनी इच्छाओं और महत्वाकांक्षाओं को पुराने कपड़ों की तरह खूंटी पर टांग देती हैं और अपनी प्रतिभा तथा योग्यता को किसी बक्से में छुपाए गहनों की पोटली की तरह गाढ़े समय के लिए अपने अवचेतन के भीतरी तहों में छुपा देती हैं उस समय भी अपनी इच्छा शक्ति मेहनत और जज़्बे के बुते कोई भी दुनिया जीती जा सकती है।
दरअसल जब वे अपने मजबूत हाथों से प्रहार करती हैं तो वे केवल अपने प्रतिद्वंदी पर ही प्रहार नहीं करती बल्कि अपनी सफलता के रास्ते में आने वाले हर बाधा और चुनौती पर प्रहार करती हैं और उसे भी परास्त करती चलती हैं फिर वो बाधा उम्र की हो समाज की हो या अभावों की हो।विपरीत परिस्थितियों में व्यक्ति उन कठिनाइयों को ही अपनी ताक़त और प्रेरणा बना लेता है। ये संयोग ही है कि उन्होंने अपने लिए रिंग को चुना जिसमे चारों और रस्सियां होती हैं। ये वे बंधन होते हैं जिनसे मुक्केबाज़ बाहर नहीं जा सकता है और निश्चय ही इन रस्सियों को वे अपने जीवन के बंधनों की तरह देखती रही होंगी और उन्हीं को अपनी ताकत बना और उनसे प्रेरणा लेकर उन बंधनों से मुक्त होने के लिए विपक्षी पर ज़ोरदार प्रहार करती होंगी और विजयी होकर निकलती होंगी।
भले ही वे सेलेबल कोहलियों या धोनियों की तरह सेलेबल ना हों भर सही मायने में पंकज आडवाणी और मैरी कॉम जैसे खिलाड़ियों की उपलब्धियां उनसे बीस ही ठहरती हैं।
मैरी कॉम को इस असाधारण उपलब्धि के लिए सलाम!
No comments:
Post a Comment