रोज़ सुबह मन में बहती है एक नदी
उगता है एक पेड़
चहचहाती हैं चिड़ियाँ
कई सारे जानवर भी हो जाते है सक्रिय
पर इनकी सुगबुगाहट से जाग जाता है दिमाग में सोया आदमी
चिड़चिड़ाता है
पसंद नहीं ये सब उसे
वो करने लगता है विचार
धीरे धीरे बढ़ता जाता है ताप उसके विचारों का
तब सूख जाती है नदी
झुलस जाते है पेड़
भाग खड़े होते है सारे पशु पक्षी
रोज़ ऐसे ही जीतता जाता है अंदर का आदमी
लंबा होता जाता है इंतज़ार
कि कब हारेगा ये आदमी
कल कल बहेगी नदी
हरियाएगा पेड़
चहकेगे पक्षी
पूरी शिद्दत से सक्रिय होंगे जानवर
और मैं बन जाऊंगा आदमी।
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