Saturday, 20 September 2025


थलेटिक्स सभी खेलों का मूल है। उसकी तमाम स्पर्धाएं दर्शकों को रोमांच और आनंद से भर देती हैं। कुछ कम तो कुछ ज्यादा। और कहीं उसकी किसी स्पर्धा को कोई असाधारण साधक मिल जाए तो वो स्पर्धा दर्शकों को अनिर्वचनीय आनन्द से भर देती है। मसलन पोल वोल्ट स्पर्धा को जब आर्मंड गुस्ताव  'मोंडो' डुप्लांटिस जैसा साधक मिल जाए तो क्या ही कहा जा सकता है। केवल एथलेटिक्स ही नहीं बल्कि खेलों में रुचि रखने वाला हर खेल प्रेमी इस बात से सहमत होगा कि डुप्लांटिस पोल वोल्ट के अद्भुत साधक हैं। एक असाधारण एथलीट। वे अपनी काबिलियत से जब जब अपनी स्पर्धा को छू भर देते हैं,तो स्वतः ही श्रेष्ठता के नए मानदंड स्थापित होने लगते हैं।


सा ही कुछ बीते सोमवार टोक्यो में घटित हो रहा था। वे टोक्यो के नेशनल स्टेडियम में आयोजित विश्व एथलेटिक्स प्रतियोगिता की पोल वोल्ट स्पर्धा में 6.30 मीटर ऊंची छलांग लगाकर कुल 14वीं बार और साल 2025 का अपना चौथा विश्व रिकॉर्ड बेहतर बनाकर एक अनोखे काम को अंजाम दे रहे थे। इस दफ़ा उनके बार की ऊंचाई पिछली दफ़ा से एक सेंटीमीटर अधिक थी। 

र कमाल ये कि इस कारनामे के सम्मान में बिल्कुल ऐसा ही वाकअ टोक्यो से हजारों मील दूर स्वीडन के शहर अवेस्ता में घट रहा था। इस शहर के लोगों ने भी 14वीं बार नगर के डाला हॉर्स चौक पर स्थापित पोल वोल्ट बार को थोड़ा और ऊंचा किया। एक सेंटीमीटर ऊंचा। दरअसल ये दुनिया के महानतम और सर्वश्रेष्ठ पोल वॉल्टर डुप्लांटिस का उनकी मां के गृहनगर अवेस्ता के निवासियों द्वारा अपने चहेते  पोल वॉल्टर के सम्मान का अनोखा तरीका था।


 ये साल 2020 था। उस साल तोरुन पोलैंड में आयोजित यूरोपियन इनडोर प्रतियोगिता में डुप्लांटिस ने पहली बार 6.17 मीटर पार कर इस स्पर्धा का नया रिकॉर्ड बनाया था। उस समय तक अवेस्ता नगर के निवासियों ने तय किया कि वे अपनी विश्व प्रसिद्ध 11 मीटर ऊंची काष्ठ की डाला घोड़े की मूर्ति वाले चौक पर एक पोल वोल्ट बार स्थापित करेंगे जिसकी ऊंचाई डुप्लांटिस के रिकॉर्ड के बराबर होगी। उसके बाद वे जब भी अपने विश्व रिकॉर्ड को बेहतर करते हैं,डाला घोड़े वाले इस चौक पर स्थापित इस पोल वोल्ट बार की ऊंचाई उतनी ही बढ़ती जाती है, जितना डुप्लांटिस रिकॉर्ड की बढ़ोतरी करते हैं।

2020 में रेनॉड लैविल्लेनी का 6.16 मीटर के पुराने रिकॉर्ड को तोड़ने के बाद से, मोंडो ने 14 बार विश्व रिकॉर्ड को बेहतर ही नहीं किया बल्कि उन्होंने 49 प्रतियोगिताओं में लगातार जीत हासिल की है और अजेय रहे हैं। उन्होंने लगातार इनडोर और आउटडोर चैंपियनशिप में लगातार आठ वैश्विक खिताब जीते। वह दो बार के ओलंपिक चैंपियन, तीन बार के विश्व आउटडोर चैंपियन और तीन बार के विश्व इनडोर चैंपियन हैं। डुप्लांटिस इतिहास के उन गिने-चुने एथलीटों में से एक हैं जिन्होंने युवा, जूनियर और सीनियर स्तर पर विश्व चैंपियनशिप खिताब जीते हैं। वे अभी केवल 25 वर्ष के हैं और अविश्वसनीय तरीके से जीत रहे हैं तथा विश्व रिकॉर्ड बना रहे हैं। 

रअसल पोल वोल्ट का नशा उनकी रगों में बह रहा था। सन 1999 में अमेरिका के लुइसियाना प्रांत के लाफ़ायेत शहर में जन्मे डुप्लांटिस के पिता ग्रेग डुप्लांटिस पूर्व पोल वॉल्टर हैं जिनका व्यक्तिगत सर्वश्रेष्ठ 5.80 मीटर है, जबकि उनकी  माँ हेलेना हेप्टाथलीट और वॉलीबॉल खिलाड़ी हैं।

नकी असाधारण सफलता का श्रेय उनके माता पिता को जाता है, जो उनके कोच भी हैं। डुप्लांटिस स्प्रिंट रेसर हैं और सौ मीटर के धावक भी। उनके कोच माता पिता ने डुप्लांटिस की गति को तकनीक से लैस किया। दरअसल गति डुप्लांटिस का सबसे बड़ा हथियार है। जिस प्रयास में उन्होंने टोक्यो में पिछले रविवार 6.30 मीटर का विश्व रिकॉर्ड बनाया उस प्रयास में जमीन छोड़ने से ठीक पहले उनकी गति 22 मील प्रति घंटा थी। इसके अलावा वे अपेक्षाकृत कम लचीले पोल का प्रयोग करते हैं ताकि वे कुछ अतिरिक्त उछल पा सकें। ऐसा माना जाता है उनकी इस सफलता के पीछे प्यूमा शू कंपनी द्वारा खास उनके लिए डिजाइन किए जूते  'द क्ला' भी एक कारक हैं।

र डुप्लांटिस पोल वोल्ट यानी बांस कूद के अकेले साधक नहीं हैं। पोल वोल्ट का कोई भी इतिहास सर्गेई बुबका का उल्लेख किए बिना पूरा नहीं हो सकता। दरअसल पोल वोल्ट का समूचा इतिहास इन्हीं दो पोल वॉल्टर के कारनामों का रोमांचक और उत्तेजक इतिहास भर है। एक से इस स्पर्धा का इतिहास शुरू होता है और दूसरे पर आकर ठहर जाता है। एक इसका अतीत,दूसरा वर्तमान।


र्गेई बुबका का जन्म सन 1963 में यूक्रेन के शहर लुहांस्क में हुआ। यूं तो वे स्प्रिंट रेसर और लांग जंपर भी थे लेकिन उन्हें चैंपियन एथलीट बनाया पोल वोल्ट ने। ये साल 1983 था, जब केवल 19 साल की उम्र में हेलसिंकी फिनलैंड में आयोजित विश्व एथलेटिक्स प्रतियोगिता में उन्होंने पोल वोल्ट का स्वर्ण पदक जीता। इस जीत के साथ वे प्रसिद्धि के ऐसे रथ पर सवार हुए जिसे कभी ना रुकना था ना थकना।

न्होंने अपना पहला विश्व रिकॉर्ड 1984 में चेकोस्लोवाकिया के शहर ब्रातिस्लावा में बनाया जब उन्होंने 5.85 मीटर की ऊंचाई पार की। वे लगातार 6 बार विश्व एथलेटिक्स चैंपियनशिप के विजेता रहे। 1985 में छह मीटर और फिर 1991 में 20 फीट (6.10 मीटर) पार करने वाले वे पहले पोल वॉल्टर थे। उन्होंने अपने करियर में कुल 35 बार विश्व रिकॉर्ड को बेहतर किया। उनके द्वारा 1993 में बनाया गया 6.15 मीटर का इनडोर और 1994 में 6.14 मीटर का आउटडोर रिकॉर्ड उस समय तक अजेय रहा जब तक कि रेनॉड लैविल्लेनी ने फरवरी 2014 में 6.16 मीटर पार कर तोड़ नहीं दिया।

लेकिन अपनी तमाम प्रतिभा के बावजूद चार प्रयासों में केवल एक ओलंपिक स्वर्ण पदक जीत सके 1988 के सियोल ओलंपिक में। 1984 के लॉस एंजिल्स ओलंपिक के सोवियत बहिष्कार के कारण के कारण वे ओलंपिक में भाग नहीं ले सके जबकि वे उस समय विश्व रिकॉर्डधारी थे। 1992 के बार्सिलोना ओलंपिक में वे आश्चर्यजनक रूप से 5.70 मीटर की छलांग लगाने में असफल रहे। 1996 के अटलांटा ओलंपिक में एड़ी की चोट के कारण हटना पड़ा। और अंततः 2000 के सिडनी ओलंपिक में  पुनः 5.70 मीटर की छलांग लगाने के तीन असफल प्रयास के बाद क्वालीफाई नहीं कर सके। नियति का विधान कुछ ऐसा ही रचा गया।

बुबका ने सन 2001 में जब सक्रिय खेल जीवन से विदा ली हुए तो उस समय उनकी उपलब्धियों में छह विश्व चैम्पियनशिप खिताब, चार विश्व इंडोर चैम्पियनशिप खिताब, यूरोपीय चैम्पियनशिप में एक स्वर्ण और यूरोपीय इंडोर चैम्पियनशिप में एक अन्य स्वर्ण पदक शामिल थे।

खिर उनकी इस असाधारण सफलता का राज क्या था। वे पोल को सामान्यतः पकड़े जाने वाले स्थान से कहीं अधिक ऊपर से पकड़ते थे। ये तकनीक उन्हें अतिरिक्त लाभ पहुंचाती। लेकिन ये तभी संभव हो सकता है जब खिलाड़ी में शक्ति,गति और शरीर में लचीलापन हो और बुबका में कमाल की गति,ताकत और किसी जिम्नास्ट सरीखा लचीलापन था। इतना ही नहीं बुबका को एक ऐसा गुरु मिला जिन्होंने उनकी क्षमता और योग्यता को तराश कर उन्हें कोहिनूर हीरा सरीखा बना दिया। ये गुरु थे विताली पेत्रोव। वो असाधारण कोच थे जिन्होंने सर्गेई बुबका, येलेना इसिनबायेवा और ग्यूसेप गिबिलिस्को जैसे दिग्गज पोल वॉल्टर्स को प्रशिक्षित किया था। ये तीनों विश्व चैंपियन थे और पहले दो ने ना केवल ओलंपिक स्वर्ण पदक जीते बल्कि विश्व रिकॉर्ड भी स्थापित किए ।

2001 में संन्यास लेते समय बुबका ने अपने संबोधन में कहा था "कभी-कभी, जब मैं अपने किए पर विचार करता हूं, तो मुझे लगता है कि मैंने एथलेटिक्स के इतिहास में योगदान दिया है।" ये ना तो आत्म श्लाघा थी और ना अतिशयोक्ति। ये वक्तव्य एक यथार्थ था। निःसंदेह बुबका ने मानवीय क्षमता के नए प्रतिमान गढ़े थे।

लेकिन प्रतिमान रूढ़ नहीं होते। देश काल के साथ साथ बदलते जाते हैं। बुबका द्वारा बनाए गए प्रतिमानों को ध्वस्त होना था और वे हुए। एक समय लगता था बुबका अजेय हैं। लेकिन फिर आए डुप्लांटिस।

बुबका ने शुरुआत 5.85 मीटर से की और उसे  6.14 तक लेकर आए। उन्होंने रिकॉर्ड को कुल मिलाकर 29 सेंटीमीटर बेहतर किया। डुप्लांटिस 6.17 मीटर को  6.30 मीटर तक ले आए हैं। अभी तक 13 सेंटीमीटर बेहतर कर चुके हैं।

तो यक्ष प्रश्न यही कि बुबका की विरासत को डुप्लांटिस कहां तक ले जायेंगे। डुप्लांटिस की प्रतिभा कहने को मजबूर करती है आकाश को छू लेने की कोशिश करते डुप्लांटिस के लिए इस खेल में 'आकाश ही सीमा' है।

पोल वोल्ट के इतिहास के सर्गेई बुबका और अर्मांडा डुप्लांटिस दो ऐसे नक्षत्र हैं जिनकी प्रतिभा और हैरतअंगेज कारनामों की चमक से बाकी की चमक फीकी पड़ जाती है। आकाश नापने के इनके प्रयासों की गाथा में बाकी सभी पोल वॉल्टर उस गाथा में उन दो से छूटे स्पेस और अंतरालों को भरने के निमित्त मात्र हैं।


Tuesday, 9 September 2025

एशियाई चैंपियन

 


देश में क्रिकेट खेल के 'धर्म' बन जाने के इस काल में भी हमारी उम्र के कुछ ऐसे लोग होंगे जो हॉकी को लेकर आज भी उतने ही नास्टेल्जिक होंगे जितने किसी समय में वे हॉकी के दीवाने रहे होंगे।  निश्चित ही इन लोगों की 1983 में क्रिकेट विश्व कप जीतने की स्मृति से कहीं अधिक गहरी और स्थाई स्मृति 1975 में भारतीय हॉकी टीम की विश्व कप की जीत की होगी। कपिल देव के बेंसन हेजेज कप को सर से ऊपर उठाए वाले चित्र से कहीं जीवंत तस्वीर हॉकी विश्व कप उठाए कप्तान और संसार के अपने समय के सर्वश्रेष्ठ सेंटर हॉफ अजितपाल सिंह की तस्वीर होगी। उनकी स्मृति में जितना कपिल द्वारा अविश्वसनीय तरीके से पकड़ा गया रिचर्ड्स का कैच कौंधता होगा उससे अधिक असलम शेर खान का ताबीज चूमकर पेनाल्टी से किया गया गोल कौंधता होगा। ये सब वही लोग होंगे जिन्हें जितने कपिल, मोहिंदर, यशपाल, किरमानी, पाटिल जैसे खिलाड़ियों के बल्ले और गेंद से कारनामें भाते होंगे, उससे कहीं ज्यादा उनकी स्मृति आशिक कुमार, बी पी गोविंदा,असलम शेर खान,अजितपाल सिंह, माइकल किंडो,सुरजीत सिंह जैसे खिलाड़ियों की मैदान पर चपलता और स्टिक वर्क की खूबसूरती जगह घेरती होगी।

लेकिन मैदान पर भारतीय हॉकी के इतने खूबसूरत दृश्य विरल हो चले। यहां से भारतीय हॉकी की यात्रा शिखर से रसातल की और यात्रा  है। 

1975 के बाद हॉकी केवल एस्ट्रो टर्फ पर खेला गया। उसके बाद की हॉकी की कहानी एस्ट्रो टर्फ,नियमों में परिवर्त्तन, ऑफ साइड के नियम की समाप्ति, कलात्मकता को ताकत और गति द्वारा रिप्लेस करने और भारत व पूरे एशिया की हॉकी की अधोगति की कहानी है। भारत के लिए 1928 ओलंपिक स्वर्ण से शुरू हुआ एक चक्र 2008 में पूर्ण होता है जब वो ओलंपिक के लिए अहर्ता भी प्राप्त नहीं कर सका था।

 ब से ही तमाम लोगों के साथ इन लोगों की ये इच्छा रही होगी कि एक बार फिर भारत का हॉकी में वही जलवा कायम हो,मैदान में हॉकी का वही जादू चले जो सन 1975 के बाद शनै शनै छीज रहा था। लेकिन उस समय से ही भारतीय हॉकी ने नई हॉकी से तादात्म्य स्थापित करने का प्रयास भी शुरू कर दिए थे। और खुद को उसके अनुरूप ढालने के धीरे धीरे परिणाम आने शुरू हुए। 2020 टोक्यो और 2024 पेरिस में भारतीय टीम द्वारा जीते गए कांस्य पदक शिखर की ओर बढ़ती भारतीय हॉकी के महत्वपूर्ण पड़ाव हैं।

र अभी हाल ही में राजगीर में आयोजित एशियाई चैंपियनशिप में भारत की शानदार जीत इस बात की ताईद करती है। फाइनल में पिछले विजेता दक्षिण कोरिया के ऊपर 4-1 की बड़ी जीत बताती है है कि क्रेग फुल्टन के निर्देशन में टीम की दिशा और दशा दोनों एकदम सही है। 

स प्रतियोगिता में भारत ने धीमी लेकिन सधी शुरुआत की। पहले ग्रुप मैच में चीन को 4-3 से और उसके बाद जापान को 2-1 से हराया। उसके बाद तीसरे मैच में कजाकिस्तान को 15-0 से रौंद दिया।  उसके बाद सुपर फोर में भी पहले मैच में दक्षिण कोरिया से 2-2 से ड्रॉ खेला। यहां से टीम इंडिया ने गति पकड़ी और शानदार खेल दिखाया। अगले ही मैच में मलेशिया की मजबूत टीम को 4-1 से हराया। लेकिन अंतिम मैच में चीना के विरुद्ध सबसे बढ़िया खेला और ग्रुप राउंड में जिस चीन से बमुश्किल जीता था उसे 7-1 से हरा दिया और फाइनल में प्रवेश किया।

फाइनल में उसका मुकाबला पिछ्ले चैंपियन दक्षिण कोरिया से था। यहां पर जो टीम इंडिया का दांव पर था वो था आगामी विश्व चैंपियनशिप सीधे प्रवेश था। उसने कोरिया को शानदार खेल से सभी क्षेत्रों में पीछे छोड़ा और आसानी से 4-1 से हराकर चौथी बार चैंपियन बना।

भारत के खेल में गति,स्किल और पावर का शानदार समावेश था। टीम का मैदान के भीतर कॉर्डिनेशन शानदार था। निःसंदेह ये जीत उत्साहवर्धक है और शिखर की ओर एक मजबूत व दमदार कदम भी। हॉकी के स्वर्णिम अतीत के प्रति नास्टेल्जिया में जीने वालों के लिए भारतीय टीम की जीत और खिलाड़ियों के उठे हाथों से बड़ी आश्वस्ति और क्या हो सकती है।

मुबारक टीम इंडिया।



Tuesday, 2 September 2025

प्रो कबड्डी लीग 2025_2 देवांक दलाल और मूंछ उमेठने का नया स्वैग

 



'प्रो कबड्डी लीग' के सीजन 11 के सर्वश्रेष्ठ रेडर देवांक दलाल ने सीजन 12 की शुरुआत ठीक वहां से की है,जहां उन्होंने सीजन 11 खत्म किया था।

बीती रात सीजन 12 का छठा मैच पिछले साल की चैंपियन 'हरियाणा स्टीलर्स' और 'बंगाल वॉरियर्स' के बीच था,जो इन दोनों ही टीमों का इस सीजन का पहला मैच था। इस मैच में वॉरियर्स ने स्टीलर्स को 54-44 अंकों से हरा दिया। इस मैच में वॉरियर्स के कप्तान देवांक दलाल ने शानदार 21 अंक बनाए। 

 दो साल पहले सर में लगी जानलेवा चोट से उबर कर पिछले सीजन में 'पटना पायरेट्स' की तरफ से खेलते हुए देवांक ने कुल 25 मैचों में 301 अनेक बनाए थे जिसमें 18 सुपर टेन थे, जो एक रिकॉर्ड है। उनका प्रति मैच औसत 12 अंकों का था। तमिल थलाइवा के खिलाफ एक मैच में उन्होंने 25 अंक अर्जित किए थे।

निःसंदेह वे एक शानदार रेडर हैं। लम्बा कद और शारीरिक सौष्ठव उनकी रेड को मारक बनाता है। जबकि उनकी गति और चपलता उसे धार देती है। और उनका संयमित एटीट्यूड उनकी रेड बेहद सफल बनाता है।

पहले ही मैच में शानदार प्रदर्शन दिखता है कि वे इस सीजन भी अपना जलवा दिखाने को तैयार हैं। वे इस साल के सबसे मंहगे भारतीय खिलाड़ी है जिन्हें इस सीजन 2.20 करोड़ मिले हैं। इसी साल फरवरी में उन्होंने दिल्ली में आयोजित 71वीं राष्ट्रीय कबड्डी चैंपियनशिप सेना को जिताने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और इस प्रतियोगिता के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी खिलाड़ी घोषित किए गए।

फिलहाल वे प्रो कबड्डी लीग के 12वें संस्करण के नए सेंसेशन हैं। और क्रिकेट के गब्बर की तरह मूछें उमेठना नया स्वैग।

प्रो कबड्डी लीग 2025_1



इसमें कोई शक नहीं है कि आईपीएल के बाद प्रो कबड्डी लीग भारत की दूसरी सबसे सफल लीग है। लीग ने गाँव जवार के इस खेल को ना केवल खूब लोकप्रिय बनाया है, बल्कि उसे ग्लैमरस भी बनाया है। सबसे बड़ी बात खिलाड़ियों के पास अच्छा पैसा भी आया है। इस साल की ऑक्शन के हीरो ईरान के शादलू हैं जिन्हें गुजरात जायंट्स  ने 2.23 करोड़ में खरीदा है,जबकि देवांक दलाल को बंगाल वॉरियर्स ने 2.20 करोड़ में खरीदा है। शादलू को लगातार तीसरे साल दो करोड़ से ज्यादा मिला है। वैसे इस बार रिकॉर्ड 10 खिलाड़ियों को एक करोड़ से अधिक मिले हैं।


इंग्लिश प्रीमियर लीग और प्रो कबड्डी लीग दोनों हॉटस्टार पर लाइव दिखाई जा रही है। अगर इसके आंकड़ों को लोकप्रियता का कोई पैमाना माने, तो इस समय लाइव चल रहे चार प्रीमियर लीग मैच के कुल दर्शक 7 लाख 31हजार हैं जबकि यूपी योद्धा और तेलुगु टाइटंस के बीच प्रो के मैच के दर्शक इस समय 24 लाख हैं।


ए थलेटिक्स सभी खेलों का मूल है। उसकी तमाम स्पर्धाएं दर्शकों को रोमांच और आनंद से भर देती हैं। कुछ कम तो कुछ ज्यादा। और कहीं उसकी किसी स्पर्ध...