ये समय है शब्दों की सत्ता का
शब्द हैं आग और पानी एक साथ
शब्द हैं प्यार और घृणा
शब्द हैं शांति और हिंसा
शब्द हैं उम्मीद और नाउम्मीदी
शब्द है विनाश और विकास
शब्द हो सकते हैं कोरे आश्वासन
या झूठी दिलासा
शब्द वायदे भी हैं
और हैं बहाने भी
वैसे तो शब्द हैं हर हक़ीक़त ज़िंदगी की
फिर भी एक सीमा पर आकर ठिठक जाती है उसकी सत्ता
दरअसल शब्द नहीं बन सकते रोटी
शब्दों से नहीं भरते पेट
वे नहीं बुझा सकते
पेट की आग !