Tuesday 24 October 2023

सरदार ऑफ स्पिन



हमारी स्मृतियां सिर्फ देखी गई चीजों से ही नहीं बनती बल्कि पढ़ी गई और सुनी गई चीजों से भी बनती हैं। हम उस पीढ़ी के लोग हैं जब हम बाल्यावस्था से किशोरावस्था की और बढ़ रहे थे,तब टीवी नहीं आया था और रेडियो का जलवा आज के मोबाइल फोन से भी बड़ा हुआ करता था।

उस समय भी तमाम इवेंट्स और खेलों का सजीव प्रसारण होता था। टीवी पर नहीं बल्कि रेडियो पर।   हम रेडियो की कमेंट्री सुनते हुए बड़े हो रहे थे। और ये रेडियो की कमेंट्री का स्वर्णकाल था।

वो समय जसदेव सिंह,स्कन्द गुप्त,मनीष देब और सुशील दोषी जैसे शानदार कमेंटेटरों का समय था जो माइक्रोफोन के जरिए खेल मैदान के दृश्यों का हूबहू चित्र अपनी आवाज की कूंची से सुदूर बैठे  श्रोताओं के मन मष्तिष्क में उकेर देते थे। 

 समय रेडियो के माध्यम से बने चित्र और स्मृतियां आज भी इतनी चमकीली और उजली हैं कि उनके सामने निकट अतीत में दृश्य माध्यमों से बने चित्र फीके और धुंधले प्रतीत होते हैं। मसलन 1975 में विश्व कप हॉकी में जीत या 1983 में क्रिकेट विश्व कप में जीत की स्मृतियां 2007 और 2011 की जीत की स्मृतियों से गहरी और उजली हैं।

ऐसी ही अमिट स्मृतियाँ उस समय के खेल जगत की तमाम हस्तियों की भी हैं। उन दिनों एक त्रयी हुआ करती थी भारतीय स्पिनरों की जिन्होंने गेंदबाजी की स्पिन विधा की नई परिभाषा गढ़ी थी और उसको अनंतिम ऊँचाईयों पर पहुँचाया था। इस त्रयी का निर्माण इरापल्ली प्रसन्ना,चंद्रशेखर और बिशन सिंह बेदी करते थे। और इससे जुड़कर वेंकट राघवन इसे चौकड़ी में तब्दील कर दिया करते थे।


अब जब बिशन पाजी के इस दुनिया को अलविदा कहे जाने की खबरें आ रही हैं,तो मन यादों के गलियारे में अपने फन के एक ऐसे फनकार की छवियों को ढूंढ रहा है,जो अपने फन का उस्ताद था। ऐसा उस्ताद जिसकी बराबरी उस समय दुनिया में कोई ना कर पाता था। एक ऐसा फनकार जिसकी उंगलियों में जादू था। ऐसा जादूगर जो गेंद को इस तरह घुमाता कि दुनिया का बड़े से बड़ा बल्लेबाज़ नाच जाता। एक ऐसा करामाती जो अपनी गेंदों को ऐसी उड़ान देता कि दिग्गज से दिग्गज बल्लेबाज का विकेट उड़ जाता।

 आज मन में अलग अलग रंग के और खास तौर पर गुलाबी और आसमानी रंग के पटके पहने बिशन पाजी की असंख्य छवियाँ बन बिगड़ रही हैं। वे बाएं हाथ के ऑर्थोडॉक्स लेग स्पिनर थे जिन्होंने 1966 से 1979 तक भारत के लिए 67 टेस्ट मैच खेले और 266 विकेट लिए। साथ ही 22 टेस्ट मैचों में कप्तानी भी की। उन्होंने प्रथम श्रेणी में 1560 विकेट लिए जो किसी भी भारतीय द्वारा लिए गए सर्वाधिक विकेट हैं।

1986 में बिशन सिंह बेदी के बारे में डी जे रत्नागर 'बार्कलेज वर्ल्ड ऑफ क्रिकेट' में लिख रहे थे कि उनकी 'गेंदबाजी बेहद खूबसूरत और ग्रेसफुल थी जिसमें चतुराई और कलात्मकता दोनों एक साथ समाई थी।' उनका बॉलिङ्ग एक्शन इतना लयात्मक होता जैसे किसी सिद्धहस्त वायलिन वादक का स्ट्रिंग पर बो को साधना। वे इतनी सहजता और कलात्मकता के साथ बॉलिंग करते कि उन्हें बॉलिङ्ग करते देखना ट्रीट होता। ठीक वैसे जैसे किसी आर्केस्ट्रा में सैकड़ों वायलिन वादकों का एक लय में वायलिन साधना।

वे क्लासिक खब्बू लेग स्पिनर थे। उनका अपनी गेंदबाजी पर अद्भुत नियंत्रण था। वे लगातार एक स्पॉट पर गेंद फेंक सकते थे और ओवर दर ओवर मेडन रख सकते रहे। वे लांस गिब्स के बाद टेस्ट क्रिकेट के सबसे किफायती गेंदबाज थे। 1975 के विश्व कप में ईस्ट अफ्रीका के विरुद्ध भारत की पहली ओडीआई जीत थी। उसमें बिशन पाजी का गेंदबाजी विश्लेषण था-12 ओवर,08 मेडन,06 रन और 01 विकेट।

दरअसल वे सर्वश्रेष्ठ शास्त्रीय लेग स्पिनर थे। और वे लेग स्पिन विधा के दिलीप कुमार ठहरते हैं। ना उससे कम ना उससे ज़्यादा। जिस तरह चाहे कितने ही शाहरुख खान आ जाएं,दिलीप साहब नहीं हो सकते। ठीक उसी तरह चाहे जितने शेन वार्न या कुंबले आ जाएं,बिशन पाजी नहीं बन सकते। कोई भी उनसे बेहतर या खराब हो सकता है, लेकिन बिशन पाजी नहीं हो सकता। बिशन बेदी दुनिया में अपनी तरह का एक हुआ और एक ही रहेगा।

क्लासिक अर्थों में वे लेग स्पिन के मोहम्मद रफी थे। रफी साहब के पक्के सुरों की तरह उनकी गेंदबाजी होती। जो अपनी लेंथ से ज़रा भी इधर उधर ना होती। हां उनकी आर्मर गेंद  लय के बीच मुरकियों की तरह होती जो उनकी गेंदबाजी को एक अतिरिक्त ऊंचाई देती।

जिस तरह उनकी गेंदबाजी धारदार होती उसी तरह उनका व्यक्त्वि भी धारदार था। वे बहुत मुखर और स्पष्ट वक्ता थे और हमेशा न्याय के पक्ष में खड़े होते। वे हर बात पर अपनी स्पष्ट राय रखते और उसे बिना किसी लाग लपेट के व्यक्त करते। उन्होंने श्रीलंका के महान स्पिनर मुरलीधरन चकर कहा और मुरलीधरन की मानहानि की धमकी के बाद भी अपनी बात पर कायम रहे। उनका स्पष्ट मानना था कि 'गेंदबाजी में चकिंग सट्टेबाजी और फिक्सिंग से भी ज़्यादा खतरनाक' है।

भले ही वे असफल रहे हों लेकिन उन्होंने दिल्ली क्रिकेट प्रशासन को सुधारने का भरसक प्रयास किया और राजनीतिक लोगों से दूर रखने का प्रयास भी। उन्होंने फिरोजशाह कोटला का नामकरण एक राजनीतिज्ञ के नाम पर रखे जाने के विरोध में उस स्टेडियम के एक प्रमुख स्टैंड को अपना नाम नहीं देने दिया।

वे टी20 फॉरमेट के हमेशा आलोचक रहे और आईपीएल के भी। आईपीएल की ऑक्शन के वे हमेशा विरोधी रहे और उसमें खिलाड़ियों की नीलामी की तुलना उन्होंने घोड़ों की नीलामी से की।

उनका ये स्पष्ट मानना था कि क्रिकेट का खेल और उसका सम्मान हार जीत से ऊपर है। फिर चाहे 1976 के वेस्टइंडीज दौरे के चौथे टेस्ट मैच में वेस्टइंडीज के तेज गेंदबाजों की खतरनाक गेंदबाजी के विरोध में अपने खिलाड़ियों की सुरक्षा के मद्देनजर पारी की घोषणा करना हो, 1976-77 के इंग्लैंड के भारत दौरे में जॉन लीवर पर वैसलीन प्रयोग के आरोप हो या फिर 1978 में पाकिस्तान दौरे में अंपायरों के पक्षपात पूर्ण रैवैय पर टीम को वापस बुला लेने का निर्णय हो।

दरअसल एक खिलाड़ी के रूप में महान,एक लेग स्पिनर के रूप में सर्वश्रेष्ठ, एक व्यक्ति के रूप में मुखर और स्पष्टवक्ता जिनका व्यक्तिगत जीवन  बहुत ही बिंदास और मनमौजी था जो शराब,खाना और ठहाकों के मेल से बना था।

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जिसने भी जन्म लिया उसकी मृत्यु अवश्यम्भावी है। लेकिन कुछ मृत्यु आपको गहरे अवसाद से भर देती हैं। लेकिन बिशन पाजी जैसा व्यक्तित्व भले ही भौतिक रूप से हमारे बीच न रहे उनकी यादें हमेशा हमारे जेहन में बनी रहेगी।

हां इस फानी दुनिया से बिशन पाजी को अलविदा कहना ही है। तो अलविदा पाजी।

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