Tuesday, 17 June 2025

एक जीत जो कुछ अलहदा है

 


आपके पास हजारों तमगे हो सकते हैं,पर कोई एक तमगा आपके गले में शोभायमान नहीं होता है। हजारों जीत आपके खाते में होती हैं, पर कोई एक जीत आपके हाथों से फिसल फिसल जाती है। और वो एक छूटा तमगा,वो बाकी रही एक जीत आपकी सबसे बड़ी चाहना बन जाती है,उम्र भर की सारी उपलब्धियों पर भारी पड़ती जाती है। अंततः उस तमगे,उस जीत को पाने की इच्छा एक ऑब्सेस बन जाती है। सिर्फ उसके लिए नहीं, बल्कि उसके चाहने वालों के लिए भी।

दुनिया का कोई ऐसा तमगा नहीं था जो मेसी के पास नहीं था। यहां तक कि उनके पास आठ 'बैलेन डी ओर' खिताब थे। पर विश्व कप नहीं था। फिर 2022 का साल आया। रियाल मेड्रिड ने यूरोपियन कप का,जिसे अब चैम्पियंस ट्रॉफी के नाम से जाना जाता है,अपना नौवां खिताब 2002 में जीता था। उसे  दसवां खिताब जीतने में 12 साल लगे। जब साल 2014 आया। सचिन ने अपने जीवन में सब कुछ पाया। यहां तक कि उनके पास  शतकों का भी शतक था। वे क्रिकेट के भगवान भी कहाने लगे। लेकिन उनके पास कोई विश्व कप खिताब नहीं था। तब साल 2011 आया। आखिर विराट के पास क्या नहीं था सिवाय आईपीएल ट्रॉफी के। तब साल 2025 आया। 

एक है दक्षिण अफ्रीका की क्रिकेट टीम। रंगभेद के  कारण प्रतिबंध के बाद 1991 में उसने अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में वापसी की। वापसी के बाद उन्होंने लगातार शानदार क्रिकेट खेली। क्या नहीं था उस टीम के पास। माइक प्रॉक्टर जैसे खिलाड़ी की लीगेसी। जैक्स कैलिस जैसे ऑल राउंडर। एलेन डोनाल्ड और शॉन पोलक जैसे बॉलर। और जॉन्टी रॉड्स जैसा फील्डर।  एक कॉमनवेल्थ ट्रॉफी और एक चैंपियंस ट्रॉफी के। और ये बात साल 1998 की है। लेकिन उन्हें हमेशा मलाल रहा कि उनके पास कोई आईसीसी की विश्व चैंपियनशिप नहीं है। वे कोई विश्व कप नहीं जीत पाए हालांकि इस दौरान वे एकदिवसीय अंतर्राष्ट्रीय विश्व कप में पांच बार सेमीफाइनल तक पहुंचे। वे 2024 में टी - 20 विश्व कप के फाइनल में पहुंचे। लेकिन पिछले 27 सालों से एक अदद ट्रॉफी के लिए तरसते रहे। तब साल 2025 आया।

लंदन के लॉर्ड्स मैदान पर आईसीसी टेस्ट चैंपियनशिप के फाइनल में दक्षिण अफ्रीका ने क्रिकेट की दुनिया के सबसे बड़ी धुरंधर टीम ऑस्ट्रेलिया को पांच विकेट से हरा कर अपना चिर प्रतीक्षित सपने को साकार किया। वे टेस्ट चैंपियन बने। पहली बार उन्होंने आईसीसी की विश्व चैंपियनशिप जीती। क्रिकेट के सबसे मौलिक और कठिन फॉर्म के चैंपियन। ये जीत कोई तुक्का नहीं थी। ये बहुत कन्विंसिंग जीत थी। उसने  ये जीत लॉर्ड्स के मैदान पर 282 रनों के लक्ष्य का पीछा करके हासिल की थी। लॉर्ड्स का दूसरा सबसे बड़ा लक्ष्य जिसे चेज करते हुए यहां जीत हासिल की थी। 

वे लॉर्ड्स में लगातार आठ जीतों के आत्मविश्वास के साथ आए थे। लेकिन संभावित चैंपियन ऑस्ट्रेलिया ही माना जा रहा था। पहली पारी में ऑस्ट्रेलिया को 212 रनों पर आउट किया तो लगा कि दक्षिण अफ्रीका मैच में है। पर ये बढ़त उस समय खत्म हो गई जब वे 138 रनों पर आउट हुए। गेंदबाजों ने फिर वापसी कराई और ऑस्ट्रेलिया को दूसरी पारी में भी 207 रनों पर समेट दिया। लेकिन पहली पारी की बढ़त के बूते ऑस्ट्रेलिया ने दक्षिण अफ्रीका को 282 रनों का लक्ष्य दिया। ये कोई आसान लक्ष्य नहीं था। इस मैदान पर इससे पहले केवल एक बार इससे बड़ा लक्ष्य सफलतापूर्वक चेज किया गया था। ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ भी इससे पहले केवल चार बार इससे बड़े लक्ष्य को सफलतापूर्वक चेज किया गया था। लेकिन दक्षिण अफ्रीका ने ये कर दिखाया।

ये एक टीम की जीत थी जिसमें बवूमा ने टीम को आगे आकर बेहतरीन नेतृत्व दिया। मारक्रम ने शानदार बल्लेबाजी और रबादा ने शानदार गेंदबाजी से अपना योगदान किया। बाकी सब खिलाड़ियों ने भी अपने थोड़े थोड़े लेकिन महत्वपूर्ण योगदान से टीम की अविस्मरणीय जीत की नींव रखी।

ये एक ऐसी जीत थी जिसने दक्षिण अफ्रीका की पिछली सभी हार के घावों पर मलहम लगाया होगा। उसकी पिछली सभी असफलताओं से मिले दर्द को सुकून दिया होगा।


और इस अविस्मरणीय जीत के सबसे बड़े नायक थे उसके कप्तान तेंबा बवूमा। उन्होंने आगे बढ़कर टीम का नेतृत्व किया और अपनी जिम्मेदारी को निभाया। पहली पारी में 36 और दूसरी पारी में 66 रन बनाए। दूसरी पारी में उनके पैर में क्रैंप था। उसके बावजूद वे खेलें। पूरे जीवट और उत्साह से। दर्द सहते हुए। वे जानते थे सफलता कठिनाइयों के रास्ते ही आती है। सफल होने के लिए दर्द से गुजरना ही पड़ता है। वे जानते थे नेतृत्व की जिम्मेदारी। वे जानते थे सेनानायक के नेतृत्व का महत्व। वे कोच के मना करने पर भी मैदान में गए और पिच पर डटे रहे। उन्होंने करीब सवा तीन घंटे पिच पर बिताए। मार्करम के साथ एक शानदार साझेदारी की। उन्होंने अपनी टीम की पारी बिल्टअप किया और बाकी काम मारक्रम ने शानदार 136 रनों की पारी खेलकर व अन्य खिलाड़ियों ने पूरा किया।

ये उनकी कप्तान के रूप में लगातार आठवीं और कुल नौवीं टेस्ट जीत थी। 

बवूमा अब दुनिया के सबसे सफल कप्तानों में से एक है। अपने करियर के पहले दस टेस्ट मैचों की कप्तानी में अपराजेय और दुनिया के सफलतम कप्तान। नौ जीत और एक ड्रॉ। उन्होंने  इंग्लैंड की धरती पर उसके कप्तान पर्सी चेपमैन के सौ साल पुराने रिकॉर्ड को तोड़ा। उन्होंने सिद्ध किया उनमें असाधारण नेतृत्व क्षमता है और 'कोटा कप्तान' का टैग बेमानी बनाया। ये उन लोगों को भी उनका अपनी शैली में जवाब था जिन्होंने उनके कप्तान बनने के विरोध में टीम छोड़ दी थी।

इस जीत के बाद पांच फुट चार इंच के इस छोटे कद के खिलाड़ी ने अपना कद दक्षिण अफ्रीका के क्रिकेट इतिहास में इतना ऊंचा कर लिया कि हर किसी को उनका कद नापने के लिए सर को उठाकर देखना होगा। इस जीत ने उनको अपने रंग और कद के कारण मिले सारे अपमान और आलोचनाओं से मन के भीतर भरे स्याह अंधेरे की जगह सम्मान और आत्मगौरव की रोशनी से जगमगा दिया होगा। निःसंदेह वे अब 'एक अश्वेत क्रिकेटर' के बजाय एक महान क्रिकेटर के रूप में पहचाने जाएंगे,जैसा कि जीत के बाद बवूमा ने कहा कि 'मुझे अब सिर्फ एक अश्वेत अफ्रीकी क्रिकेटर के रूप में नहीं,बल्कि एक ऐसे व्यक्ति के रूप में याद किया जाए जिसने कुछ ऐसा हासिल किया है जिसे देश बहुत ज्यादा चाहता था। ये कुछ वैसा है जो मुझे सीना तानकर चलने के लिए प्रेरित करेगा और मुझे उम्मीद है ये देश को प्रेरित करेगा।'

वे बता रहे थे 'उनका नाम तेंबा उनकी नानी ने रखा जिसका मतलब होता है 'उम्मीद'।' उन्होंने बताया कि नानी ने ये नाम 'इस उम्मीद में कि वे अपने समुदाय की उम्मीद बनेंगे,अपने देश की उम्मीद बनेंगे।' उन्होंने अपनी नानी की उस उम्मीद को नाउम्मीदी में नहीं बदलने दिया। उन्होंने पूरे देश की उम्मीद की लौ बनकर अपने देशवासियों के दिलों को रोशन कर दिया।

क्या ही विधि का विधान था कि जिन क्रिकेट विशेषज्ञों ने उन्हें खारिज किया था और उनकी योग्यता पर संदेह किया था, उन्हीं में से एक इंग्लैंड के पूर्व कप्तान नासिर हुसैन जीत के बाद उनसे सवाल कर रहे थे।

दक्षिण अफ्रीका की ये जीत देर से जरूर आई। पर ये है उतनी ही महत्वपूर्ण। कुछ जीत सिर्फ आंकड़ों की दृष्टि से ही महत्वपूर्ण नहीं होती,बल्कि अपने अंतर्निहित प्रभावों की वजह से भी महत्वपूर्ण होती है। ये एक ऐसी ही जीत है।

टीम अफ्रीका को जीत मुबारक।

Sunday, 15 June 2025

गेट वेल सून सोनम

 



पत्रकार लेखक विपिन धनकड़ का सद्य प्रकाशित उपन्यास ' गेट वेल सून सोनम ' अभी पढ़कर अभी समाप्त किया है। ये उनकी दूसरी पुस्तक है। इससे पहले उनके रोचक अनुभवों व संस्मरणों पर एक पुस्तक 'हाउस हसबैंड ऑन ड्यूटी' आ चुकी है। 

विपिन एक ऐसे परिवेश से आते हैं जहां  कृषि भूमि का मालिक होना सबसे गौरवपूर्ण माना जाता है और खेती करना सबसे बड़ा और सुगम जीविकोपार्जन का साधन। उससे इतर पुलिस या सेना में भर्ती को लेकर भी जहां खासा रोमान होता है। उनके पास ये दोनों रास्ते सहज ही सुलभ थे। लेकिन वे पारंपरिक सोच से हटकर अपने लिए पत्रकारिता का रास्ता चुनते हैं। ये एक साहसिक निर्णय था। इससे ज्यादा साहसिक निर्णय वे तब लेते हैं जब 17 साल के जमे जमाए पत्रकारिता के करियर को छोड़ स्वतंत्र लेखन को अपनाते हैं। सिर्फ इतना ही नहीं वे पत्नी को नौकरी करने और खुद के लिए 'हाउस हसबैंड'  की भूमिका चुनने का निर्णय लेते है। भारतीय समाज के पर्याप्त प्रगतिशील हो जाने के बावजूद ये अपने आप में एक साहसिक निर्णय कहा जा सकता है। 

वे हाउस हसबैंड बनने के अपने इस  निर्णय को ना केवल उजागर करते हैं,बल्कि एक हाउस हसबैंड की भूमिका को निभाने के दौरान के अनुभवों को बहुत ही ईमानदारी से कलमबद्ध करते हैं और दुनिया से साझा करते हैं।

 ये भूमिका इसलिए कि किसी भी लेखक के लिए लीक से हटकर और अधिक प्रासंगिक विषयों पर लेखन का साहस और अपने अनुभवों का ईमानदारी से अंकन उसके लेखन को प्रामाणिक बनाता है और बेहतर भी। साहस और ईमानदारी अच्छे लेखन के जरूरी गुण की तरह है। विपिन में और उनके लेखक में ये गुण खूब हैं।

स उपन्यास के केंद्र में हमारे आस पास का  चिकित्सा परिदृश्य है। पिछले 50 सालों में  चिकित्सा परिदृश्य में बहुत ज्यादा परिवर्तन आया है। जैसे-जैसे उपभोक्तावादी संस्कृति हावी होती चली गई,वैसे वैसे चिकित्सा क्षेत्र एक बाजार में तब्दील होता गया जिसमें मरीज एक व्यक्ति ना रह कर ग्राहक बन गया और चिकित्सा सुविधाएं उपभोक्ता वस्तु। डॉक्टर और मरीज के बीच का जो एक मानवीय सूत्र था वो बाजार की शक्तियों के दबाव टूट गया और उन दोनों के बीच का संवेदनशील रिश्ता क्षीण होता चला गया। वे संबंध विशुद्ध रूप से क्रेता और विक्रेता के संबंधों में बदलते गए जिसमें मुख्य भूमिका उपयोगिता और मुनाफे की है। सेवा भाव का विलोप होता चला गया। 

स उपन्यास के प्राक्कथन में जाने माने अनुवादक,लेखक,संपादक प्रभात सिंह सर इसको चिह्नते हुए लिखते हैं 'गुज़रे ज़माने के एमबीबीएस डॉक्टर मर्ज़ का इलाज तो खैर करते ही थे,हाथ में शिफ़ा होने के बाद भी उनका मानवीय चेहरा  हमेशा नुमायां रहता था,उनकी हिदायतों पर अमल ना करने वाले मरीज़ डांट भी खाते थे। बच्चों और बड़ों के इलाज के लिए अमूमन एक ही डॉक्टर के आसरे रहते थे। विशेषज्ञता वाले इस दौर में,तमाम तरह की उपलब्धियों के बीच डॉक्टर का इंसानी चेहरा कहीं छूट गया क्यों लगता है।' 

रअसल ये उपन्यास चिकित्सा क्षेत्र की तमाम तरह की उपलब्धियों और तरक्की के बीच छूट गए इस मानवीय चेहरे को पहचानने की कोशिश है। उसको शिनाख्त करने की कयावद है। छोटी सी सही,लेकिन एक महत्वपूर्ण कोशिश। 

ज के बहुत ही विडंबनापूर्ण और चुनौती भरे समय में  चिकित्सा क्षेत्र की चालबाजियां,चालाकियां,शोषण के नित रोज ईजाद होते तरीके, सारी कमियां और दुर्गुण तो बहुत लाउड हैं। सिस्टम की सारी कठोरताएं बहुत आसानी से पहचानी जा सकती हैं। उन्हें चिह्नित किया जा सकता है। आज की असल जरूरत ही उस कोमलता को छूने की है जो इनके पीछे अभी भी मौजूद है। उसे पहचानने की जरूरत है जो मानवीयता अभी भी सांस ले रही है।

ज के नकारात्मकता के इस वातावरण में सकारात्मक चीजों को हाइलाइट करना कहीं अधिक जरूरी है। विपिन का ये उपन्यास उस जरूरत को पूरा करने का एक प्रयास है।

स्पतालों में बाजार और मुनाफे से इतर एक पूरा  जीवन भी सांस लेता रहता है। रोजमर्रा का जीवन। आम आदमी का जीवन। उस स्थान के जीवन के समानांतर जहां वो अस्पताल स्थित है। अपने सारे दुख सुख के साथ। अपनी जिजीविषा से उम्मीद पाता हुआ। जिसमें शामिल हैं बीमार,उनके तीमारदार,नर्स,गार्ड,वार्ड बॉय,कैंटीन कर्मी,डॉक्टर और उसका स्टाफ तो है ही।

स उपन्यास के दो भाग है। पहले भाग में नायिका सोनम के बीमार होने के पर अस्पताल में भर्ती होने से लेकर ठीक होकर वापस घर जाने की कथा और दूसरे भाग में ऑपरेशन के लिए पुनः भर्ती होने से लेकर ठीक होकर वापस घर जाने तक। पहले में केवल अस्पताल और उसका जीवन है। दूसरे भाग में अस्पताल के जीवन के साथ-साथ  फ्लैशबैक में नायक नायिका की प्रेम कहानी भी चलती रहती है।

स उपन्यास की एक खूबी ये भी है कि इसमें वे सारे पात्र स्पेस पाते हैं जो बहुत सामान्य हैं और कहन में छूट जाते हैं या उपेक्षित रह जाते हैं,जैसे नर्सेज,वार्ड बॉय,गार्ड आदि। क्योंकि  विपिन एक पत्रकार हैं,वे विवरण प्रमाणिक देते हैं। निःसंदेह उपन्यास में अस्पताल के अंदर और बाहर के जीवन का बहुत सुंदर और सजीव चित्रण है। तमाम जगहें ऐसी हैं जो मन में कहीं अटकी रह जाती हैं। एक जगह वे लिखते हैं। 'चाय उनके लिए सिर्फ एक पेय पदार्थ ना होकर यादों का एक गुलदस्ता थी। जिसमें सुख दुख के फूल जड़े थे।' 


लेकिन ऐसा नहीं है कि इस पेशे से जुड़े स्याह पक्ष इसमें नहीं ही हैं। हैं, लेकिन संकेतों में। शुरू में ही नायिका को बेड खाली होते हुए भी मिलने में परेशानी का एक प्रसंग आता है जो साफ तौर पर बड़े अस्पतालों का मरीज को लूटने और उनकी  असंवेदनशीलता का साफ संकेत है। अनावश्यक टेस्ट कराने,लापरवाही,लूट खसोट,असंवेदनशीलता, सभी के तो संकेत हैं। वे एक जगह लिखते हैं 'अस्पताल में बीमारी के साथ बिल भी चिंता का विषय है।' एक अन्य जगह वे लिखते हैं अस्पताल में पेड़ों के पैसे हैं। जिधर देखो लटके हैं और बरस रहे हैं। नर्स,डॉक्टर,स्टाफ दिन - पैसे उठाने में लगे हैं। जितने बेड पर मरीज,उतने पेड़। हिलाओ और उठाओ।' किसी और जगह लिखते हैं ' काम के घंटे ज्यादा और सैलरी कम होना एक वैश्विक समस्या बन चुकी है और अस्पताल भी ऐसा करके मरीजों को बीमार बना रहे हैं।' 

कुल मिलाकर उपन्यास पठनीय बन पड़ा है। उसकी भाषा में रवानी है। शुरू करने के बाद एक बार में पढ़े बिना नहीं रहा जा सकता। निःसंदेह विपिन संभावनाओं से भरे लेखक हैं। लिखना उनका पैशन है। निकट भविष्य में उससे कुछ और बेहतर किताबों की उम्मीद की जा सकती है।

फिलहाल इस उम्दा उपन्यास के लिए लेखक को बधाई।

Tuesday, 10 June 2025

नेक्स्ट जेन चैंपियन: अल्कराज





बीते रविवार को हुए फ्रेंच ओपन के पुरुष वर्ग के फ़ाइनल मैच के बाद की एक वीडियो वायरल हो रही है। इस वीडियो में विजेता कार्लोस अल्कराज सेंटर कोर्ट पर बॉल किड्स के साथ जीत का जश्न मनाते दिख रहे हैं। वे भालू जैसी चाल में किशोरों के समूह के पास आते हैं,उनसे मिलते हैं,उनके साथ उछलते कूदते हैं,गाते हैं,और खुशी से चिल्लाते हैं। खुशी उन सब के चेहरे से छलक छलक जाती हैं। 22 साल का युवा उन किशोरों के साथ किशोर बन जाता है। उसका चेहरा उतना ही निर्दोष,निश्छल और मासूम है जितना उन सब किशोरों का है। जितना किसी बालक का हो सकता है।

से और उसकी बाल सुलभ खुशी देखकर ये अंदाजा ही नहीं लगाया जा सकता है,ये वही युवा है जिसने अभी अभी एक ग्रैंड स्लैम खिताब जीता है। साढ़े पांच घंटों के मैराथन संघर्ष के बाद। उनके चेहरे पर थकान या कोई शिकन नहीं है। लगता नहीं उन्होंने कुछ ऐसा किया है जो टेनिस के इतिहास में कभी-कभी हुआ करता है। कुछ ऐसा जिसे अब हमेशा के लिए इतिहास के सफ़ों पर दर्ज़ कर लिया गया है।

सा होता है। जब कोई ऐसा काम होता जो अकल्पनीय होता है,अद्भुत होता है,अविश्वसनीय होता है,तो करने वाला असामान्य रूप से इतना सामान्य हो जाता है कि मानो कुछ घटा ही नहीं है। अल्कराज के साथ कुछ ऐसा ही घट रहा था।

याद कीजिए 2022 के ऑस्ट्रेलियन ओपन का फाइनल। राफा ने दो सेट से पिछड़ने के बावजूद 05 घंटे  24 मिनट के कड़े संघर्ष के बाद डेनिल मेदवेदेव को हराकर अपना 21 वाँ ग्रैंड स्लैम जीता था। जब मेदवेदेव ने उनसे पूछा था 'क्या वे थके हैं'। इसका जवाब राफा पांच घंटे चौबीस मिनट का मैच खेलने के बाद लाकर्स रूम के जिम में वर्कआउट करके दे रहे थे। और मेदवेदेव उन्हें 'इनसेन' बता रहे थे। 'इनसेन' अल्कराज उन्हीं       'इनसेन' राफा के मुरीद हैं। वे राफ़ा के सच्चे अनुयाई खिलाड़ी हैं। वे उनकी तरह ही 22 साल की उम्र में अपना पांचवां ग्रैंड स्लैम जीत रहे थे।

रअसल ये फ्रेंच ओपन 2025 का फाइनल इटली के 23 वर्षीय यानिक सिनर और स्पेन के 22 वर्षीय कार्लोस अल्कराज के बीच खेला जाना था। नई पीढ़ी के टेनिस खिलाड़ियों में सबसे प्रतिभावान और होनहार खिलाड़ी हैं। विश्व नम्बर एक और विश्व नम्बर दो। अल्कराज के पास चार और सिनर के पास तीन ग्रैंड स्लैम हैं। हर टेनिस प्रेमी को इतना पता है कि जब भी ये दोनों कोर्ट में आमने-सामने होते हैं तो टेनिस का स्तर बहुत ऊंचा हो जाता है और संघर्ष बहुत तीव्र व सघन। इस फाइनल में भी सबको ऐसी ही उम्मीद थी। और उन्हें निराश नहीं होना था।

सिनर की अल्कराज पर सबसे बड़ी बढ़त उसकी तेज गति की सर्विस है, तो अलकराज की सिनर पर बढ़त अद्भुत गति से गेंद का पीछा करने की क्षमता और ड्रॉप शॉट्स हैं,जो लाल मिट्टी की धीमी सतह पर और भी मारक हो जाते हैं। सिनर जितने शांत होते हैं और संयम के साथ खेलते हैं अल्कराज उतने ही वाचालता और अधीरता के साथ। दरअसल उन दोनों के बीच का मुकाबला पानी और आग का मुकाबला है।

मैच का पहला गेम 12 मिनट चला जिसमें 05 ड्यूस थे। अंततः सिनर अपनी सर्विस होल्ड करने सफल रहे। इस गेम ने ही मैच की टोन सेट कर दी थी। ये आभास होने लगा था कि मैच बड़ा होने जा रहा है। संघर्ष बहुत कड़ा और सघन था। दसवें गेम में अल्कराज की सर्विस ब्रेक हुई और पहला सेट सिनर ने 6-4 से जीत लिया। अब संघर्ष और कठिन हुआ। अगला सेट टाईब्रेक में गया। लेकिन ये सेट भी सिनर ने 7-6(7-3) से जीत लिया। पहले दो सेटों में सिनर इतना तेज़ खेल रहे थे कि उन्होंने अल्कराज को खुलकर खेलने नहीं दिया। वे अपने ड्रॉप शॉट ठीक से नहीं खेल पाए। लेकिन उन्हें बहुत देर तक उन्हें बांधकर नहीं रखा जा सकता था। शेर को कहीं बांधा जा सकता है क्या।

तीसरे सेट के पहले ही गेम में सिनर की सर्विस ब्रेक कर अल्कराज ने अपने इरादे जाहिर कर दिए और सेट 6-4 से जीत लिया। लेकिन सिनर मैच खत्म करने की जल्दी में थे। चौथे सेट में उन्होंने 5-3 गेम और अल्कराज की सर्विस पर 40- 00 अंकों की बढ़त ले ली। सिनर के पास तीन चैंपियनशिप प्वाइंट थे। मैच लगभग खत्म था। इटली में सिनर के विजेता होने का जश्न होने भी लगा था। लेकिन इसके बाद जो कुछ हुआ वो एक अजूबा था। खेलों के मैदान पर ऐसे चमत्कार होते हैं। यहां भी हुआ। बहुत से वे लोग भी शायद विश्वास नहीं कर पा रहे होंगे जो सशरीर सेंटर कोर्ट पर उपस्थित थे। अब अल्कराज ने तीन मैच प्वाइंट ही नहीं बचाए बल्कि अगले दोनों सेट जीत कर चैंपियनशिप भी जीत ली। अंतिम स्कोर अल्कराज के पक्ष में था 4- 6,6- 7(4- 7),6- 4,7- 6(7- 3),7-6(10- 2)।


पां
च घंटे और उनतीस मिनट के बाद टेनिस खेल और उसके संघर्ष,उसकी प्रतिद्वंदिता पर लंबी अद्भुत गाथा लिखी जा चुकी थी। ये फ्रेंच ओपन फाइनल की सबसे लंबी गाथा भी थी। एक ऐसी गाथा जिसे साइकोड्रामा कहा गया। दरअसल ये एक साथ कॉमेडी भी थी और ट्रेजेडी भी। ट्रेजिक सिनर। कॉमिक अल्कराज। आखिर इन दोनों में किसी एक को थोड़े ही ना चुना जा सकता है। आप एक साथ दुखी भी हो सकते थे और खुश भी हो सकते थे। एक आंख से खुशी के आंसू बहा सकते थे और दूसरी से दुख के।

टेनिस के इस मैदान पर बीते समय में हमने कुछ महान प्रतिद्वंदिताएं देखी हैं- इवान लैंडल बनाम मेट्स विलेंडर, ब्योर्न बोर्ग बनाम गुलेर्मो विलास जॉन मैकेनरो बनाम आंद्रे अगासी,नडाल बनाम फेडरर,जोकोविच बनाम राफेल नडाल। और अब इस क्रम में एक नई प्रतिद्वंदिता की नींव रखी गई है। ये यानिक सिनर बनाम कार्लोस अल्कराज है।

मने  21 वीं सदी के पहले क्वार्टर में बिग थ्री को देखा है। बिग थ्री - फेडरर, राफा,नोल। उनके टेनिस खेल को देखा है। उनकी महान प्रतिद्वंदियों को देखा है। मैच दर मैच रिकॉर्ड्स को टूटते देखा है। रिकॉर्ड्स को बनते देखा है। टेनिस के खेल को अनंत ऊंचाइयों तक पहुंचते देखा है। अब समय बदल रहा है। पुराने स्मृतियों का हिस्सा बनते जा रहे हैं और नए आंखों में तारे बनकर जगह बनाने लगे हैं। ये उस नई पीढ़ी के खिलाड़ियों के बीच का पहला फाइनल था जो सन दो हजार के बाद इस दुनिया में आए। जिन्होंने टेनिस के खूबसूरत खेल को खेलना चुना। जिन्होंने उस खेल को और खूबसूरत बनाने की ओर अपने कदम बढ़ाना चुना।

यूं तो रिकॉर्ड बुक, आंकड़े और स्कोर बताते हैं कि इस मैच के विजेता स्पेन के कार्लोस अल्कराज हैं। लेकिन इन आंकड़ों के पार्श्व में लिखी इबारत बताती है और जैसा रोजर फेडरर कहते हैं कि 'इस मैच के तीन-तीन विजेता हैं - अल्कराज,सिनर और टेनिस का खेल'।

ये मैच टेनिस खेल का एक मैच भर नहीं था बल्कि एक बहुत ही खूबसूरत सिंफनी थी जो आने वाले बहुत सालों तक कानों में रस घोलती रहेगी। इन दोनों के स्ट्रोकों से निकली इस सिंफनी की हर बीट दिलोदिमाग में मीठी मीठी दस्तक देती रहेगी।

ये मैच बिग थ्री युग के अवसान की एलीजी है,उसका शोकगीत है,उसका मर्सिया है। ये जाने वाले युग का खूबसूरत विदाई गीत है और नए युग के आरम्भ का उदघोष भी है। ये मैच एक ऐसा खूबसूरत नगमा है जिसे टेनिस खेल को चाहने वाले अनंत समय तक गुनगुनाते रहेंगे।

बधाई अलकराज। धन्यवाद सिनर।



Sunday, 8 June 2025

कोको गॉफ:लाल बजरी की नई क्वीन

 


ये पेरिस के रोला गैरों मैदान का सेंटर कोर्ट फिलिप कार्टियर है। उसने इस साल के फ्रेंच ओपन के पहले ही दिन अपने सबसे प्रिय और चहेते खिलाड़ी राफेल नडाल को एक शानदार विदाई दी है। उस के बाद से वो कुछ उदास है। उसने शायद मन ही मन ये सोचा होगा कि किसी से कितना भी प्रेम क्यों ना हो जाए,पुरानों को छोड़कर जाना ही होता है। वे चले ही जाते हैं। उनसे क्या मुरव्वत रखनी। शायद इसीलिए उसने उसी दिन ये तय कर लिया होगा कि उसे इस बार एक नई चैंपियन चाहिए। और ईश्वर से मिलकर उसने कुछ ऐसा ही विधान किया कि जीते कोई भी,उसे इस बार एक नई चैंपियन मिले। उसे नई चैंपियन मिली।

सने ये भी निश्चित किया होगा कि चैंपियनशिप वाला अंतिम मुकाबला दिलचस्प हो और संघर्ष भरा भी। दो प्रतिद्वंदियों में कमाल का कंट्रास्ट था। उनमें से एक अश्वेत ,एक श्वेत। एक सुदूर पश्चिम से, एक पूरब से । एक अमेरिका के फ्लोरिडा से,एक बेलारूस के मिंक्स से। कोई पांच हजार मील की दूरी। एक 21वर्षीया अपनी खेल उम्र के उरूज पर,एक  27 साला खेल उम्र की ढलान के प्रारंभिक बिंदु पर। एक की किटी में केवल एक ग्रैंड स्लैम खिताब,एक के पास तीन तीन।

वे दो बालाएं अपने अपने सपनों को पूरा करने की जद्दोजहद में एक बार फिर आमने सामने खड़ी थीं। इस बार सपनों के शहर पेरिस में। कठिन और खूबसूरत द्वंदों के मैदान रोला गैरों में। रोलां गैरों के  ऐतिहासिक सेंटर कोर्ट फिलिप कार्टियर पर। एक थीं कोको गॉफ। एक थीं एरीना सबलेंका।

नके बीच भिन्नता चाहे जितनी हो पर संघर्ष का कारण और उस संघर्ष के लिए जरूरी हथियार दोनों के पास समान थे। उनका लक्ष्य एक था- जीत। वे दोनों ही पहली बार फ्रेंच ओपन जीतना चाहती थी। वे दोनों ही सुजाने लेंग्लेन ट्रॉफी को दोनों हाथों से  कसकर पकड़ना चाहती थीं। 

वे दोनों ही आक्रामक और पावर गेम में महारत रखने वालीं थीं। दोनों के पास शक्तिशाली फोरहैंड ग्राउंडट्रोक थे। दोनों ही हार्डकोर्ट की विशेषज्ञ खिलाड़ी थीं। दोनों ही लाल मिट्टी पर असहज महसूस करती हुई। लेकिन दोनों ही यहां की परिस्थितियों से अनुकूलन करती हुई।

 स कोर्ट की धीमी और अधिक उछाल से मिलने वाले अतिरिक्त समय को दोनों ने ही शक्तिशाली फोरहैंड ग्राउंड स्ट्रोक्स को और अधिक शक्तिशाली बनाने के लिए प्रयोग किया। दोनों ने दिखाया कि वे यहां अब तक सहज हो चुकी हैं। दोनों बिना कोई सेट खोए फाइनल तक जो पहुंची थीं। सबालेंका ने सेमीफाइनल में यहां की तीन बार की चैंपियन और लगातार 26 मैच जीतने वाली इगा स्वियातेक के विजय अभियान को विराम दिया तो कोको गॉफ ने वाइल्ड कार्ड से प्रवेश पाने वाली लुईस बोइसन के स्वर्णिम सफर पर पूर्ण विराम लगाया।

फाइनल जीतकर उन दोनों के ही पास खेल के बीते समय की एक घटना को दोहराने और एक की पुनरावृति रोकने का अवसर था। 

कीनन कोको गॉफ 2022 के फ्रेंच ओपन के फाइनल को पलटना चाहती रही होगी जिसमें उन्हें इगा स्वीयातेक ने सीधे सेटों में बेतरह हरा दिया था। बल्कि वे चाहती रही होगी कि वे 2023 के यूएस ओपन के फाइनल को दोहराएं। वहां वे सबालेंका से पहला सेट हारकर दूसरे सेट में एक के मुकाबले चार गेम से पीछे थीं और मुकाबला हारने वाली ही थीं कि उन्होंने वापसी की और मैच जीतकर अपना पहला और एकमात्र ग्रैंडस्लैम जीता था। निःसंदेह सबालेंका की चाहना कोको गॉफ की कामना से एकदम उलट रही होंगी। और अतीत की इन स्मृतियों ने उनके बीच होने वाले संघर्ष को धार दी होगी।

तो मुकाबला बराबरी का होना तय था। हुआ भी। दोनों समान प्रतिभाशाली,आक्रामक पॉवरगेम से लैस। दोनों अब तक हुए दस मुकाबलों में से पांच पांच की बराबरी पर।

दोनों ने सेंटर कोर्ट में विश्वास भरे अंदाज में प्रवेश किया। एरीना सबालेंका नाइके के डस्टी कैक्टस यानी ग्रे ग्रीन कलर के स्पोर्ट्स आउटफिट में थी जिसमें गहरे लाल और सफेद रंग की डिटेलिंग थी। जबकि कोको गॉफ ने न्यू बैलेंस की मार्बल-पैटर्न वाली नीले-ग्रे रंग की ड्रेस में प्रवेश किया। उन दोनों के आउटफिट सेंटर कोर्ट की लाल मिट्टी के बैकड्रॉप के कंट्रास्ट में बेहतरीन लग रहीं थीं। वे आउटफिट खेल के रोमांच में ग्लैमर का तड़का लगा रहे थे। दरअसल ये खेल मैदान में बाजार की उपस्थिति थी और उसका महत्व भी। लेकिन इस ग्लैमर को कुछ ही देर में खेल के रोमांच में तब्दील हो जाना था।

बालेंका ने एक बार फिर शानदार शुरुआत की। उन्होंने दो बार कोको की सर्विस ब्रेक की और 4-1 की बढ़त के ली। लेकिन ये बढ़त ज्यादा देर कायम ना रह सकी। सबालेंका ने धैर्य खो दिया जबकि कोको गॉफ ने बनाए रखा। स्कोर 4-4 हुआ फिर 6- 6। टाईब्रेक किसी तरह 7-5 से सबालेंका ने जीता। कोको ने पहल सेट जरूर गंवाया पर अपना संयम और धैर्य बनाए रखा। यही जीत की चाभी थी। यही जीत का मंत्र था। यही जीत का सूत्र था। सबालेंका ने ये सबक याद नहीं रखा,कोको गॉफ ने रखा। कठिन समय को धैर्य और संयम की पतवार के सहारे ही पार किया जा सकता है।

बालेंका बार बार अधीर हुई जाती थीं और बार बार अनफ़ोर्स्ड एरर यानी बेजा गलती करती जातीं। दूसरे सेट में कोको गॉफ ने इसका फायदा उठाया और तीन बार सर्विस ब्रेक कर सेट आसानी से 6-2 से जीत लिया। तीसरे सेट में एक बार फिर जोरदार संघर्ष देखने को मिला। दोनों ने एक दूसरे की सर्विस ब्रेक की। लेकिन सबालेंका अपनी बेजा गलतियों पर नियंत्रण अभी भी नहीं रख पा रही थीं। वे तीसर सेट 6-4 से हार गई। अब वे केवल सेट ही नहीं हार रही थीं, बल्कि मैच और चैंपियनशिप भी हार रही थीं।

प्रतिभा और योग्यता में दोनों समान थीं। बस अंतर ये था कि सबालेंका ने अपना संयम और धैर्य खो दिया,वे अधीर हो हो जातीं और बेजा गलतियां करती जातींं। उन्होंने पूरे मैच के दौरान 70 अनफ़ोर्स्ड एरर कीं। दूसरी और कोको गॉफ ने अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रखा। शांत चित्त से खेली और केवल 32 बेजा गलतियां कीं। जीत हार के लिए यही 70 और 32 का आंकड़ा जिम्मेदार था। जिस मानसिक दृढ़ता को कभी कोको की कमजोरी माना जाता था, उसी मानसिक दृढ़ता के कारण वे जीतीं। 

फिलवक्त,पेरिस में फ्रेंच ओपन की एक नई मल्लिका का उदय हो चुका था। ये कोको गॉफ थीं।

जीत के बाद उन्होंने अपने बैग से कागज का एक टुकड़ा निकाला जो पूरा का पूरा बार बार लिखे गए एक वाक्य से भरा था ' मैं 2025 का फ्रेंच ओपन जीतूंगी'। ये उन्होंने फाइनल से पहली रात को लिखा था और इसकी प्रेरणा अपने ही देशवासी एथलीट पेरिस ओलंपिक में 200 मीटर के स्वर्ण पदक विजेता थॉमस से मिली थी। इस बात से पता चलता है कि वे अपनी जीत के प्रति कितनी गंभीर थीं।

गर आप स्मृति पर थोड़ा जोर डालेंगे तो आपको लगेगा कि ये तो 2013 के फ्रेंच ओपन के फाइनल का रेप्लिका है। इस फाइनल में अमेरिका की सेरेना विलियम्स के मुक़ाबिल रूस की मारिया शारापोवा थीं। सेरेना ने शारापोवा को हरा दिया था। 12 साल बाद फिर से वही दोहराया जा रहा था। बस संघर्ष कुछ अधिक सघन हो गया था।

कोको गॉफ जीतते ही लाल मिट्टी से एकाकार हुईं। फिर उठीं। अगले ही पल फिर घुटनों के बल बैठ गईं। दोनों हाथों से लाल मिट्टी को छुआ। मानो वे उसकी तासीर को महसूस कर रही हों। मानो उसके प्रति अपनी जीत के लिए कृतज्ञता जाहिर कर रही हों। उनकी आँखें छलछला रही थीं।

कुछ देर बाद वे अपनी चिरपरिचित काले रंग की लेदर जैकेट में दो बार की पूर्व चैंपियन जस्टिन हेनन से सुजान लेंग्लेन ट्रॉफी ग्रहण कर रहीं थीं और उनकी प्रतिद्वंदी सबालेंका उनके बारे में कह रही थीं

'तुम इसे डिजर्व करती हो,तुम बेहद परिश्रमी हो, एक योद्धा हो।'

वे काली जैकेट में एक चैंपियन की आभा से परिपूर्ण लग रही थीं। एक योद्धा के माफिक जँच रही थीं। 

र इस कोलाहल के पार्श्व में कोको गॉफ जैज़ संगीत की बजती कोई मधुर करुण धुन को महसूस कर रही थीं।

फ्रेंच ओपन की नई चैंपियन को बधाई।

Saturday, 7 June 2025

फरगाना का जश्न

 


क्रिकेट का फटाफट स्वरूप उत्तेजना और मजा तो उत्पन्न कर सकता है,पर खेल का वास्तविक आनन्द प्रदान नहीं कर सकता। विश्व कप या देशों की द्विपक्षीय श्रृंखलाएं तो फिर भी रुचि उत्पन्न कर सकती हैं,पर आईपीएल कतई नहीं। 

इसीलिए जिस समय अपना सबसे पसंदीदा  खिलाड़ी 18 साल के एक सपने को पूरा करने की जद्दोजहद में था,अपन की रुचि उसे देखने के बनिस्बत एक छोटी लेकिन महत्वपूर्ण खेल प्रतियोगिता में थी। और कमाल ये कि भारतीय टीम ने निराश नहीं किया।

फरगाना नाम कितने लोग जानते हैं, ये तो पता नहीं,लेकिन इतिहास के जानकार भी और शायद बाबर में रुचि रखने वाले जरूर जानते होंगे कि ये बाबर की पैतृक रियासत थी और इसी से होते हुए एक दिन बाबर ने दिल्ली पर कब्जा कर लिया था। तो उस दिन इसी फ़रगाना शहर में भारतीय खिलाड़ी  वॉलीबॉल के कोर्ट में शानदार खेल दिखा रहे थे और महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल कर रहे थे।

इस शहर में तीन जून को सेंट्रल एशियन वॉलीबॉल एसोसिएशन नेशंस लीग के सेमीफाइनल्स खेले जा रहे थे। ऐन उस दिन जब बेंगलुरु और विराट कोहली 18 साल में अपना पहला आईपीएल खिताब जीत रहे थे, भारतीय पुरुष वॉलीबॉल टीम कजाकिस्तान की टीम को रोमांचक मैच में दो के मुकाबले तीन सेटों से हराकर इस प्रतियोगिता के फाइनल में प्रवेश कर रही थी। 114 मिनट तक पांच सेटों तक चलने वाला ये मैच भारत ने 26-24,19-25,23-25,25-21,15-13 से जीता।

इस मैच के हीरो रहे सुरेश कुमार चीरा जिन्होंने कुल 26 अंकों का योगदान दिया। उन्होंने शानदार ऑफेंस के साथ साथ शानदार डिफेंस का भी प्रदर्शन किया। इसके अलावा जॉन जोझेफ इनाथु, विनीथ कुमार, जेरोम विनीथ और कप्तान असवाल राय ने भी शानदार खेल दिखाया।

लेकिन भारत ने उससे भी महत्वपूर्ण मैच 02 जून को खेला। उस दिन उसने दो बार के चैंपियन पाकिस्तान को सीधे तीन सेटों में 25-13,25-15,25-23 से हरा दिया। इस मैच में भारत ने शुरुआत में मैच कितने सेट कर दी और नेट पर आक्रामक खेल से पाकिस्तान को बैकफुट पर धकेल दिया। भारत की और से इस मैच में जे विनीत चार्ल्स और अश्वाल राय ने बेहतरीन खेल दिखाया।पाकिस्तान की टीम केवल तीसरे सेट में संघर्ष कर सकी। लेकिन उस समय तक देर हो चुकी थी। पाकिस्तान की टीम अधिक ऊंची रैंकिंग वाली टीम थी। ये जीत इसलिए भी उल्लेखनीय है कि दो साल पहले इसी प्रतियोगिता में भारत को उसने तीन सीधे सेटों में हरा दिया था। 

लेकिन चार जून को खेले गए फाइनल में भारतीय टीम अपनी लय बरकरार नहीं रख पाई और एशिया की नंबर दो टीम ईरान से तीन सीधे सेटों में    17-25,20-25,19-25 से हार गई। 

इस प्रतियोगिता में पहली बार भारत ने की पदक जीता था।  इस सफलता में भारत के मुख्य कोच सर्बिया के ड्रैगन मिहेलोविक का भी योगदान है जिनके नेतृत्व में टीम संगठित हाे रही है। 

इससे पहले दो साल पहले चीन के हांगजू में हुए एशियाई खेलों में भी भारत ने शानदार प्रदर्शन किया था। यहां पर भारतीय टीम ने छठा स्थान प्राप्त किया था और इस सफर में उसने दो बार की चैंपियन दक्षिण कोरिया और एक बार की कांस्य पदक विजेता चीनी ताइपे की टीम को भी हराया था। इससे चार साल पहले एशियाई खेलों में भारतीय टीम को 12वाँ स्थान मिला था।

पिछले दो सालों में दो प्रतियोगिताओं में बेहतरीन प्रदर्शन से भारतीय वॉलीबॉल टीम ने ये दिखाया कि वो एक क्षमतावान टीम है और भविष्य के चैंपियन की संभावना उसमें छिपी है। 

लेकिन दिक्कत ये है भारतीय टीम को वो स्वस्थ वातावरण नहीं मिल पा रहा है जिसकी जरूरत एक चैंपियन टीम को होती है। इस समय भारतीय वॉलीबॉल संघ निलंबित है और वॉलीबॉल प्रशासन

भारतीय ओलंपिक संघ द्वारा निर्मित तदर्थ समिति के हाथों में है। वॉलीबॉल संघ में पदाधिकारियों के अहम और स्वार्थों की लड़ाई में अंततः नुकसान खेल का ही हो रहा है।

Tuesday, 3 June 2025

द ग्रेट राफा

 


राफेल नडाल टेनिस के सार्वकालिक महानतम खिलाड़ियों में से एक हैं। महानतम इसलिए नहीं कि आंकड़े इस कथन की दरयाफ्त करते हैं बल्कि इसलिए भी कि वे टेनिस खेल को इस कदर प्रभावित करते है कि उनका नाम टेनिस खेल का पर्याय बन जाता है।

वे खेल में प्रतिद्वंदिता की नई परिभाषा गढ़ते हैं,संघर्ष के नए पैमाने और सफलता के नए प्रतिमान। 22 ग्रैंड स्लैम और दो ओलंपिक गोल्ड सहित 92 एकल खिताब ही उनकी असाधारण उपलब्धियों से बड़ी उपलब्धि अपने असाधारण खेल से अपने चाहने वाले लाखों करोड़ों प्रशंसकों का जीत लेना था जिनके लिए वे टेनिस के सबसे बड़े खिलाड़ी हैं। जिनके दिलों पर ही  उनकी असाधारण सफलताओं के चरण चिह्न ठीक वैसे ही अंकित हैं जैसे  फिलिप कार्टियर एरीना के सेंटर कोर्ट पर अंकित हैं।

वे बड़े विजेता ही नहीं बल्कि महान प्रतिद्वंदी भी थे। उन्होंने अपने खेल से सिर्फ अपने लिए सफलता ही अर्जित नहीं की बल्कि अपने प्रतिद्वंदियों के खेल की सीमाओं को भी अन्यतम विस्तार दिया। उन्होंने केवल 22 ग्रैंड स्लैम भर नहीं जीते बल्कि 08 ग्रैंड स्लैम फाइनल हारे भी।

राफा पर पहली बार 2014 में लिखा था। उसके बाद से लगातार लिखना हुआ और अब तक कुल दस पोस्ट लिखी गई। उनसे होकर गुजरना दरअसल उनके खेल को पुनः पुनः देखना है। उनकी हार की कसक और जीत की खुशी को महसूस करना है। उनके रैकेट और बॉल के मिलन से निकले संगीत को सुनना है।

03 जून को अपने चैंपियन का जन्मदिन है। चैंपियन को जन्मदिन मुबारक।


1.


10 जून 2014, फ्रेंच ओपन

ये आंसू भी अजीब शै हैं। ख़ुशी में छलक जाते हैं और ग़म में बहने लगते हैं। 8 जून को रोलाँ गैरों की लाल मिट्टी पर समकालीन लॉन टेनिस के इतिहास के दो महान खिलाड़ी फ्रेंच ओपन का फ़ाइनल मैच खेलने

उतरे होंगे तो ना तो जोकोविच को और ना राफा को ये पता होगा कि उनकी आँख से आँसू छलकेंगे या बहेंगे। वे दोनों तो अपना अपना नाम खेल इतिहास में लिखने आए थे। यदि जोकोविच चारों ग्रैंड स्लैम जीतने वाले सात महान खिलाड़ियों की लिस्ट को और बड़ा करना चाहते थे तो नडाल निश्चित ही रोलाँ गैरों पर जीत की सूची  को कुछ और लम्बा करने की चाहत लिए मैदान में उतरे होंगे। साढ़े तीन घंटे बीतते बीतते राफ़ा हाथ में मस्केटियर ट्रॉफी उठाए थे। ट्रॉफी से चिपकी उँगलियों पर लगे टेप उनकी असाध्य परिश्रम की कहानी बयाँ कर कर रहे थे और उनके भीतर सफलता के असीम आनंद से फूटे स्रोते की कुछ बूंदे आँखों से  छलक छलक बाहर आ जाती थी। आँखों से छलका ये पानी खारा नहीं शहद जैसा मीठा था जिसे  राफा ही नहीं बल्कि उन जैसी सफलता पाने वाला हर शख़्स जानता होगा। कुछ क्षणों बाद जोको की आँख भी नम थीं ठीक राफा की तरह। फ़र्क इतना सा था कि इस पानी में सारे समन्दरों का खारापन सिमट  आया था जो उनके ग़म को डूबने नहीं देता था बल्कि फिर फिर दिल से उबार उबार कर चेहरे पर ले आता था।  सच में अजीब शै है ये आँसू। 


2.


14 मई 2017, मैड्रिड ओपन

यूँ कहने को तो ये मैच साल भर चलने वाले एटीपी मास्टर्स टूर्नामेंट्स में से एक और साल के दूसरे ग्रैंड स्लैम फ्रेंच ओपन से ऐन पहले होने वाले मेड्रिड ओपन टेनिस प्रतियोगिता का रूटीन सेमीफाइनल मैच भर था।  उस लिहाज़ से कोई बड़ा मैच नहीं था। लेकिन किसी मैच को बड़ा कोई इवेंट नहीं बल्कि प्रतिद्वंदी खिलाड़ियों का कद और उनकी प्रतिद्वंदिता की इंटेंसिटी बनाती है। कल मेड्रिड ओपन का पहला सेमीफाइनल मैच हमारे समय के दो महान खिलाड़ियों नोवाक जोकोविच और राफेल नडाल के बीच था। दरअसल ये इन दोनों के बीच होने वाला 50वां मैच था जो टेनिस इतिहास में ओपन युग का किन्ही दो खिलाड़ियों की आपसी प्रतिद्वंदिता के मैचों का पहला पचासा था।आधुनिक टेनिस का इतिहास फेबुलस फोर का इतिहास है और उनके बीच प्रतिद्वंदिता का इतिहास है। ये चारों मिलकर 48 ग्रैंड स्लैम ख़िताब जीत चुके हैं। हमारे समय की टेनिस पर इन चारों के प्रभुत्व का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि पहली चार प्रतिद्वंद्विताएं आपस में इन चारों के नाम हैं यानी जोकोविच बनाम नडाल 50 मैच,जोकोविच बनाम फेडरर 45 मैच,फेडरर बनाम नडाल 37 मैच,जोकोविच बनाम मरे 36 मैच। तब जाकर पांचवें नम्बर पर इवान लैंडल बनाम मैकनरो (36 मैच) की प्रतिद्वंदिता आती है। 

इन चार 'फेबुलस फोर 'को पसंद करने के अपने अपने कारण हो सकते हैं। पहले आप इन चारों के रंग रूप,कद काठी,चहरे मोहरे,उनके अंदाज़,मैदान पर उनके व्यवहार को ध्यान से देखिए। जहां फेडरर,मरे और जोकोविच अभिजात्य से लगते हैं वहीं नडाल अकेले ऐसे हैं जो मध्यम वर्ग के प्रतीत होते हैं। अब चारों के खेलने की शैली को बूझिए। पहले तीनों को कृत्रिम तेज सतह रास आती हैं। ये तीनों तेज सर्व एंड वॉली के पॉवर गेम में अपने को कम्फर्टेबल महसूस करते हैं। वे खेल के दौरान पूरी प्रोसीडिंग पर नियंत्रण रखने में माहिर हैं। इन तीनों को ही धीमी सतह रास नहीं आती। तभी तो फेडरर 18 और जोकोविच अपने 13 ग्रैंड स्लैम में से धीमी मिट्टी की सतह वाले फ्रेंच ओपन को केवल बमुश्किल एक एक बार जीत पाए हैं। जबकि मरे को अभी इसे जीतना बाकी है। इसके विपरीत नडाल को धीमी सतह रास आती है। वे बेसलाइन से टॉप स्पिन से प्रतिद्वंदी को छकाते हैं। फील्ड में हद से ज़्यादा चपल दीखते हैं और ज़्यादा भागदौड़ भी। वे मिट्टी की सतह पर लगभग अपराजेय हैं। उन्होंने अपने 14 ग्रैंड स्लैम खिताबों में से 9 फ्रेंच ओपन की लाल बजरी वाली सतह पर जीते हैं। शायद अपनी पूरी आभा में मध्यम वर्ग के से प्रतीत होने के कारण ही वे ज़मीन के अधिक करीब प्रतीत होते हैं और शायद मिट्टी भी उनको ज़्यादा अपना समझती है और खुद पर उनको अपराजेय बना देती है। और अपनी इसी मध्यमवर्गीय आभा मंडल के कारण अधिक आकर्षित करते हैं और ज़्यादा अपने लगते हैं।                                   

फिलहाल जोकोविच के विरुद्ध अपने इस ऐतिहासिक 50वे मैच में उन्होंने शानदार खेल दिखाया और सीधे सेटों में 6-2 ,6-4 से हरा कर 2014 में फ्रेंच ओपन के बाद से लगातार सात मैचों के हारने के क्रम को ही नही तोड़ा बल्कि इस साल मिट्टी की सतह पर अपने रिकार्ड को 14-0 कर इस सात मिट्टी की सतह पर तीसरे खिताब को जीतने की तरफ मज़बूती से कदम बढ़ा दिए हैं।  इस समय वे अपनी पुरानी लय में  लौट चुके हैं। जोकोविच के खिलाफ नडाल किस तरह हावी थे ये इस बात से जाना जा सकता है कि पहले सेट के चार गेम में जोकोविच केवल चार पॉइंट जीत सके।                 

जिस तरह नडाल खेल रहे हैं और जिस तरह की फॉर्म में वे हैं यकीन मानिए 11 जून को रोलां गैरों के मैदान पर एक नया इतिहास लिखा जा रहा होगा। वे कोई एक ग्रैंड स्लैम को दो अंकों में जीतने वाले पहले खिलाड़ी बन रहे होंगे औरपूरी दुनिया उन्हें अपने असाध्य श्रम के बूते दोनों हाथों के बीच फंसी 'कूप दे मस्केटियर'ट्रॉफी को अपने होठों से चूमते देख रही होगी।  

 कम ऑन राफा !


3.


10 जून 2017। फ्रेंच ओपन

आज रविवार की शाम फ्रांस के खूबसूरत शहर पेरिस के रोलां गैरों के फिलिप कार्टियर सेंटर कोर्ट की लाल मिट्टी पर जब राफेल नडाल अपने प्रतिद्वंदी स्टेनिलास वारविंका को मिट्टी की सतह पर टेनिस खेलने का सबक सिखाते हुए 6-2,6-3,6-1 से जीत दर्ज़ कर रहे थे तो वे केवल अपना दसवां फ्रेंच ओपन खिताब ही नहीं जीत रहे थे बल्कि 16 वीं शताब्दी के महान स्पेनिश  लेखक और संगीतकार विंसेंट एस्पिनल की तरह ही एक खूबसूरत 'डेसिमा' कविता लिख रहे थे जिसे एस्पिनल की कविताओं और संगीत की तरह ही उनके देश वासी लम्बे समय तक गुनगुनाते रहेंगे।डेसिमा के दस पंक्तियों वाले स्टेंज़ा को उन्होंने 2005 में लिखना शुरू किया और 2017 में पूरा किया। ओपन एरा में कोई भी ग्रैंड स्लैम 10 बार जीतने वाले वे पहले खिलाड़ी हैं। इस साल के शुरू में जब ऑस्ट्रेलियन ओपन का नडाल और फेडरर के बीच जो फाइनल मैच खेला गया वो केवल फाइनल मैच भर नहीं था बल्कि आधुनिक टेनिस इतिहास के पहले और दूसरे पायदान को निर्धारित करने वाला मैच भी था और उस क्लासिक मैच में फेडरर ने बाज़ी मारी थी। लेकिन आज नडाल ने बताया कि वे भी नम्बर दो नहीं हैं।हाँ सतह का फ़र्क़ हो सकता है। मिट्टी की सतह पर वे सार्वकालिक महानतम हैं इसमें किसी तरह का कोई शक नहीं किया जा सकता है। ये परफेक्ट 10 था-'ला डेसिमा'।इतना भर नहीं पहले मोंटो कार्लो और बार्सेलोना के क्ले कोर्ट पर और अब यहाँ पर दसवां खिताब जीत कर 'ट्रिपल टेन' पूरा किया।                     

यहां पर याद कीजिये रियाल मेड्रिड फ़ुटबाल क्लब के दसवें यूरोपियन कप को जीतने के उसके ऑब्सेशन को कि 'ला डेसिमा' फ्रेज़ उसके इस ऑब्सेशन का समनार्थी बन गया था। उसने यूरोपियन कप जिसे अब चैम्पियंस लीग के नाम से जाना जाता है,नौवीं बार 2002 में जीता था। उसके बाद उसे 12 सालों तक प्रतीक्षा करनी पडी थी। तब जाकर 2014 में रियाल मेड्रिड की टीम अपना दसवां खिताब जीत सकी थी। लेकिन नडाल को केवल दो वर्ष लगे। 

नडाल ने अपना नौवा खिताब 2014 में जीता था। उसके बाद के दो वर्ष चोटों और ख़राब फॉर्म के रहे। एक बारगी लगाने लगा था कि उनकी वापसी की संभावनाएं ख़त्म हो गई हैं।लेकिन उन्होंने चैम्पियन की तरह वापसी की।इस साल वे चोट से उबरे और साल के पहले ही ग्रैंड स्लैम ऑस्ट्रेलियन ओपन के फाइनल में पहुँच कर अपनी फॉर्म की वापसी की घोषणा कर दी थी।और फिर मिट्टी की सतह पर तो वे लगभग अपराजेय से थे। वे इस पूरे सीजन में केवल एक मैच हारे रोम मास्टर्स के फाइनल में डोमिनिक थिएम से। 

 फ्रेंच ओपन में उनकी जीत क्ले कोर्ट पर उनकी श्रेष्ठता को प्रदर्शित करती है। उन्होंने इस पूरी प्रतियोगिता में एक भी सेट नहीं हारा। इस प्रतियोगिता में उन्होंने ऐसा तीसरी बार किया।सेमीफइनल में थिएम को सीधे सेटों में हराया जिसने नोवाक को हरा कर सेमीफाइनल में प्रवेश किया था और इस प्रतियोगिता से ऐन पहले रोम मास्टर्स के फाइनल में नडाल को हराया था। वारविंका से फाइनल में कड़े संघर्ष की उम्मीद की जा रही थी। इस पूरी प्रतियोगिता में वारविंका भी ज़बरदस्त फॉर्म में थे। उनके पक्ष में कई बातें थी। उनमें गज़ब का स्टेमिना है जो इस समय किसी टेनिस खिलाड़ी के पास नहीं है। 30 डिग्री तापमान में खेलने के लिए वे शारीरिक रूप से सबसे अधिक सक्षम थे। उन्होंने अब तक के तीनों ग्रैंड स्लैम फाइनल जीते थे। और इस बार उन्हें नडाल की चौथी वरीयता के मुक़ाबले तीसरी वरीयता दी गई थी।उनका सबसे शक्तिशाली अस्त्र उनके ज़बरदस्त फोरहैंड शॉट्स थे जिसे वे इस बार बहुत शानदार तरीके से लगा रहे थे। दूसरी और नडाल की भी सबसे बड़ी ताक़त उनके फोरहैंड शॉट्स ही थे।वे दोनों एक दूसरे को फोरहैंड शॉट्स खेलने से नहीं रोक सकते थे। ऐसे में ज़रूरी था कि वे अपने प्रतिद्वंदी को फोरहैंड शॉट्स को पोजीशन ना करने दें। आज नडाल ऐसा करने में सफल रहे। उन्होंने शानदार सर्विस की और इतने ज़बरदस्त क्रॉसकोर्ट और डाउन द लाइन फोरहैंड शॉट्स लगाए कि वारविंका अपने शॉट्स तो दूर की बात थी खुद को भी पोजीशन नहीं कर पाए।               

 दरअसल ये एकतरफ़ा फाइनल था जिसमें एक महान स्पेनिश खिलाड़ी बाल और रैकेट से लाल मिट्टी पर शानदार डेसिमा की रचना कर वहां बैठे हज़ारों दर्शकों को सुना रहा था।खुद उनका प्रतिद्वंदी मंत्र मुग्ध सा उन्हें सुन और देख रहा था और वो था कि टेनिस जगत में एक असाधारण इतिहास लिख रहा था।  


4.


12 जून 2018, फ्रेंच ओपन

कई बार किसी व्यक्तित्व और उसकी उपलब्धियों के लिए बड़े शब्द भी अपूर्ण से लगने लगते हैं। जब आप राफेल नडाल को 'किंग ऑफ़ क्ले' कहकर सम्बोधित करते हो तो किंग शब्द ही छोटा महसूस होने लगता है।खेल की दुनिया में और खासकर टेनिस की दुनिया में 'राफा' और 'क्ले' एक दूसरे के पूरक हैं। एक है तो दूसरा है। एक के बिना मानो दूसरे का कोई अस्तित्व ही नहीं।  मोंटे कार्लो से लेकर पेरिस के रोलां गैरों तक लाल /भूरी मिट्टी पर खेल का जो साम्राज्य है,दरअसल राफेल नडाल उसके चक्रवर्ती सम्राट है। एक ऐसा अपराजेय सम्राट जिसकी कीर्ति चारों दिशाओं में फ़ैली है और जिसने अपनी इस कीर्ति को अनंत समय तक बनाये रखने के लिए एक अश्वमेध यज्ञ शुरू किया हुआ है। इस यज्ञ का अश्व यानी उनका खेल निर्मुक्त निर्द्वन्द समय की सीमाओं को लाँघता चला जा रहा है जिसे बांधने की शक्ति या हुनर किसी में है ही नहीं।                       

11 फ्रेंच ओपन,11मोंटे कार्लो ओपन,11 बार्सेलोना,8 रोम मास्टर्स और डेविस कप के क्ले पर खेले हर मैच में जीत। ये आंकड़े अपने आप में अविश्वसनीय लगते हैं। फ्रेंच में उनका रिकॉर्ड 86-2  का है यानी यहां खेले 86 में से केवल 2 मैच हारे। इस रविवार जब वे फिलिप कार्टियर कोर्ट में डोमिनिक थिएम के खिलाफ फाइनल खेलने उतरे तो ये उम्मीद थी कि ये एक ज़ोरदार मुक़ाबला होगा क्योंकि पिछले दो सालों में क्ले कोर्ट में जिस खिलाड़ी से दो बार हारे वो और कोई नहीं थीएम ही थे। पिछले साल रोम मास्टर्स में और इस बार मेड्रिड ओपन में। लेकिन अपने 11वे फ्रेंच आपने ग्रैंड स्लैम के लिए उन्होंने थीएम को 6-4,6-3,6-2 से लगभग रौंद ही डाला। 

स्पेन एक ऐसा देश है जिसमें एक लाख से भी ज़्यादा क्ले कोर्ट हैं।वे बचपन से उस पर खेलते आये हैं। आखिर मिट्टी पर खेल नडाल के खून में जो है। वे उस मिट्टी के कण कण से वाक़िफ़ हैं।वे उसमें और मिट्टी उनमे रच बस गयी है। इसीलिए उसके मिज़ाज़ को उनसे बेहतर कौन समझ सकता है। उसका व्यवहार ही उन्हें और उनके खेल को रास आता है। मिट्टी की सतह पर घास या कृत्रिम सतह की तुलना में रूक कर थोड़ा धीमी आती है। जिससे उनकी चपलता और फुर्ती को गेंद पर नियंत्रण बनाने में आसानी होती है और उसके बाद वे अपने ट्रेडमार्क मारक टॉप स्पिन फोरहैंड शॉट खेलते हैं। टॉप स्पिन गेंद टप्पा खाने के बाद तेजी से आगे की ओर स्किट करती है और थोड़ा ज़्यादा ऊंची भी आती है जिसका कोई जवाब विपक्षी खिलाड़ी के पास नहीं होता। वे ना गेंद को और ना खेल को नियंत्रित कर पाते हैं। लाल सतह पर राफा के नियंत्रण को इस तथ्य से समझा जा सकता है कि 17 और 18  में फ्रेंच ओपन में केवल एक सेट खोया इस साल के क्वार्टर फाइनल में स्वार्त्ज़मान के खिलाफ। दरअसल उनका खेल इतना लयबद्ध होता है मानो अपने इस कभी ना ख़त्म होने वाले अश्वमेध यज्ञ में मंत्रोचार कर रहे हों। उनके खेल की आभा सूरज की तरह इतनी दीप्त होती है कि उसकी रोशनी में बाकी कुछ नहीं सूझता।  

    

5.


10 जून 2019, फ्रेंच ओपन

राफेल नडाल के 12 वीं बार 'कूप डी मस्केटीएर' ट्रॉफी जीतने के बाद उनसे हारने वाले युवा थिएम कह रहे थे 'राफा हमारे खेल के लीजेंड हैं और ये (12बार फ्रेंच ओपन जीतना) अवास्तविक(unreal) है , तो राफा को  मस्केटीएर ट्रॉफी प्रदान करने के बाद रॉड लेबर ने ट्वीट किया कि 'ये विश्वास से परे(beyond belief) है।' दरअसल राफा का उस समय वहां होना ही अपने आप मे अविश्वास से परे होना था। वे पीले रंग की टी शर्ट पहने थे। जैसे ही जीते तो पीठ के बल कोर्ट पर लेट गए।और वे जब उठे तो लाल मिट्टी उनकी पीली शर्त पर लिपटी थी। उस समय राफा अस्त होने से ठीक पहले के सूर्य के समान लग रहे थे जिसकी स्वर्णिम आभा दिन भर की ओजपूर्ण परिश्रम के कारण रक्तिम आभा में बदल जाती है। उस रक्तिम आभा वाले सूर्य को उस मैदान में खड़े देखना वास्तव में अविश्वसनीय था जिसके खेल के प्रकाश में टेनिस खेल के आकाश के सारे तारे छुप जाते हैं। बिला शक वे 'किंग ऑफ क्ले' है,मिट्टी की सतह के खेल साम्राज्य के चक्रवर्ती सम्राट जिसकी जीत के अश्वमेध अश्व को पकड़ने की हिम्मत ना तो फेडरर और जोकोविच जैसे पुराने यशश्वी सम्राटों में है और ना थिएम,सितसिपास और ज्वेरेव जैसे युवा राजकुमारों में। ऐसा प्रतीत होता है कि फिलिप कार्टियर मैदान की लाल मिट्टी से उनका इतना  आत्मीय लगाव है की वो भी उनके रक्त की तरह उनमें अतिशय उत्साह की ऑक्सीजन से युक्त कर राफा को अपराजेय बना देती है। भले ही रियल मेड्रिड मेरी सबसे नापसंद टीम रही हो पर उनका एक फ्रेज तो अपने सबसे पसंदीदा खिलाड़ी के लिए उधार लिया ही जा सकता है।दरअसल वे टेनिस के 'गैलेक्टिको' हैं। सबसे अलग। सबसे सुपर।

राफा को फ्रेंच ओपन की 12वीं और ग्रैंड स्लैम की कुल 18वीं जीत की बहुत मुबारक।


6.


11सितंबर 2019, यू इस ओपन

रविवार की रात को न्यूयॉर्क के आर्थर ऐश स्टेडियम में  33 साल के राफेल नडाल और उनसे 10 साल छोटे 23 साल के डेनिल मेडवेदेव जब यूएस ओपन के फाइनल में आमने सामने थे तो ये केवल एक फाइनल मैच भर नहीं था बल्कि समय के दो अंतरालों के बीच द्वंद था,बीतते जाते और और आने वाले के बीच रस्साकशी थी, पुराने और नए के बीच संघर्ष था,दरअसल ये अनुभव और युवा जोश के बीच का महासंग्राम था। आने वाले नए के पास पर्याप्त समय होने से उपजी बेपरवाही तो है पर स्वयं को स्थापित करने की आतुरता भी है लेकिन बीतते जाते पुराने में मुट्ठी से समय रेत की तरह फिसलते जाने के अहसास से उपजी अधीरता है। उसमें बीतते समय के साथ चीज़ों को दोनों हाथों से समेटते जाने की लालसा है और वो हर चीज़ को पूरे जोश और जूनून से समेट लेने की  चाहना है,लालसा है। दरअसल  एक खिलाड़ी के जीवन में 30 साल की उम्र एक ऐसी विभाजक रेखा है जहां से उसकी ढलान शुरू हो जाती है। और तब खिलाड़ी के भीतर शीघ्रातिशीघ्र बहुत कुछ सिद्ध करने का एक आग्रह पैदा होता है। कुछ खिलाड़ियों के भीतर का ये आग्रह आग बन जाती है और तब राफेल नडाल और रोजर फेडरर और हां जोकोविच जैसे खिलाड़ी खेल दुनिया को मिलते हैं।

जोकोविच(32साल),राफा(33साल)और फेडरर(38साल) तीनों ने मिलकर इस शताब्दी के 19 सालों में 55 ग्रेंड स्लैम अपने नाम किये हैं और इनमें से 13 खिताब 30 साल की उम्र के बाद। पिछले 12 ग्रैंड स्लैम इन तीनों ने ही जीते। इन 12 फाइनल मुक़ाबलों में केवल चार बार 1990 के बाद जन्मे खिलाड़ी फाइनल में चुनौती देने में सक्षम हुए पर हर बार उन्हें मुँह की खानी पड़ी। दरअसल इन तीनों खिलाड़ियों की प्रतिभा और अनुभव का आभामंडल इतना प्रकाशवान है कि जो भी उनकी तरफ नज़र भरकर देखता है उसकी आंखें इस कदर चुंधिया जाती हैं कि उसे कोई रास्ता ही नहीं सूझता और असफलता के बियावान में भटक जाता है।

तो बात कल के मैच की। ये फाइनल ग्रैंड स्लैम के सबसे शानदार मैचों में एक था। 4 घंटे 52 मिनट चले इस मैच की अवधि ही इस संघर्ष की तीव्रता और गहनता का वक्तव्य है। ये यूएस ओपन के फाइनल का दूसरा दूसरा सबसे लंबा मैच था। मेडवेदेव ने पहले ही गेम में ब्रेक पॉइंट लेकर अपने इरादे ज़ाहिर कर दिए थे और तीसरे गेम में राफा की सर्विस ब्रेक भी कर दी। लेकिन अगले ही गेम में राफा ने मेडवेदेव की सर्विस ब्रेक कर दी तो लगा कि दर्शकों को कैसा शानदार मैच मिलने जा रहा है। हालांकि जब राफा ने पहले दो सेट जीत लिए तो लगा कि यहां भी कनाडा ओपन की कहानी दोहराई जाने वाली है जहाँ राफा ने फाइनल में मेडवेदेव को 6-3,6-0 से हरा दिया था। मैच समाप्ति के पश्चात इंटरव्यू में मेडवेदेव ने कहा कि कि इस स्टेज (दो सेट से पिछड़ने के बाद)पर आकर वे रनर्स अप स्पीच के बारे में सोचने लगे थे।यानी उस समय उन्हें लग गया था कि अब उनके पास कुछ खोने के लिए कुछ नहीं है और शायद इस निश्चिंतता ने ही उनके खेल को एक उचांई की और ले जाने में मदद की होगी और अगले दो सेट उन्होंने जीतकर बताया कि एक महीने के अंदर सेंट लॉरेंस नदी से लेकर हडसन नदी तक बहुत पानी बह चुका है और अब अब वे वो नहीं रहे जो मांट्रियल में थे।वे बेहतर तैयारी के साथ और हार्डकोर्ट पर 22-2 के इस साल के सबसे सफल खिलाड़ी के रूप में फ्लशिंग मीडोज पहुंचे थे। तभी तो 5वें और अंतिम सेट में 5-2 से पिछड़ने के बाद भी उन्होंने हार नही मानी और 5-4 के स्कोर के बाद 10वें गेम में ब्रेक पॉइंट लेकर स्कोर 5-5 कर ही दिया था कि राफा का अनुभव काम आया और अभी तक एकदम बराबरी को अपने पक्ष में मोड़ दिया। अंततः राफा ने 7-5,6-3,5-7,4-6,6-4 से मैच जीतकर एक इतिहास की निर्मिति की। हां इस मैच ने पुराने को बताया कि नए का आगमन बस कुछ समय का फेर है तो पुराने ने नए से कहा देखा पुराने को खारिज किया जाना कितना कठिन होता है।

जो भी हो 33 वर्ष की उम्र में राफा की 19वीं ग्रैंड स्लैम जीत अविस्मरणीय है जो फेडरर की सर्वाधिक 20 जीतों से एक कम है। जिस तरह से राफा अभी खेल रहे हैं आने वाले समय में वे कई और ग्रैंड स्लैम जीतने वाले हैं,ये तय है। दरअसल उन्होंने अपने खेल में समयानुरूप परिवर्तन किए हैं। समय की शानदार शिड्यूलिंग की है। और चोटों से उबर कर शानदार वापसी की है। 

जो भी हो राफा, फेडरर और जोकोविच ऐसे विशाल वटवृक्ष हैं जिन्होंने अपनी प्रतिभा और अनुभव की छांव से पूरे टेनिस जगत को इस तरह से घेर रखा है कि नवोदित खिलाड़ियों को उनकी छाया से बाहर आने और स्वयं को मजबूत दरख़्त बनाने में  लंबी जद्दोजहद करनी पड़ेगी।

फिलहाल तो राफा को 19वीं जीत मुबारक और ये भी कि जीत की संख्या की ये बाली (टीन)उम्र खत्म होने को है और इस संख्या को युवावस्था में पहुंचाने की अग्रिम शुभकामनाएं कबूल हों।


7. 


12 अक्टूबर 2020, फ्रेंच ओपन

खबर: फिलिप कार्टियर मैदान पर आज स्पेन के राफेल नडाल ने सर्बिया के नोवाक जोकोविच को 6-0,6-2,7-5 से हराकर फ्रेंच ओपन के पुरुष एकल का खिताब जीत लिया। ये उनका रिकॉर्ड 13वां फ्रेंच ओपन खिताब था। उन्होंने कुल 20 ग्रैंड स्लैम खिताब जीत कर  रोजर फेडरर की बराबरी कर ली है।

प्रतिक्रिया: असाधारण,अविश्वसनीय,अद्भुत,बेजोड़,

किंग ऑफ क्ले, आदि आदि आदि आदि।

विश्लेषण: आज राफा फ्रेंच ओपन के पुरुष एकल फाइनल मैच के तीसरे सेट में 6-5 के स्कोर पर 12वें गेम में चैंपियनशिप के लिए सर्व कर रहे थे। उन्होंने पहले तीन अंक जीते। अब उनके पास तीन चैंपियनशिप अंक थे। उसके बाद उन्होंने शानदार ऐस लगाया और घुटनों के बल बैठ गए। ये अद्भुत जीत का शानदार समापन था। वे टेनिस इतिहास में अपना नाम दर्ज़ करा चुके थे। वे एक ऐसा  कार्य कर चुके थे जो अब 'ना भूतो ना भविष्यति' की श्रेणी में आ चुका है।

याद कीजिए 1973 में एक फ़िल्म आई थी 'बारूद'। उसमें एक गीत था 'समुंदर समुंदर, यहां से वहां तक,ये मौजों की चादर बिछी आसमान तक, मेरे मेहरबां,मेरी हद है कहाँ तक,कहाँ तक।' इन पंक्तियों को राफेल नडाल की जीत से जोड़कर देखिए और उनसे पूछिए कि रोलां गैरों के इस समुंदर में उनकी जीत की हद है कहां तक,कहां तक। और इसका एक ही जवाब मिलेगा रोलां गैरों का पूरा समंदर ही उनकी जीत की हद है। 

आप उनकी जीत के लिए चाहे किसी भी विशेषण का प्रयोग कर लें,पर वो अपर्याप्त लगेगा। 2005 में फिलिप कार्टियर कोर्ट पर 19 साल की उम्र में उन्होंने पहली जीत हासिल की थी। और आज 2020 तक 15 सालों में 13वीं जीत। 13 फाइनल और 13 जीत। कुल मिलाकर रोलां गैरों में 100वीं जीत और क्ले कोर्ट पर 60 खिताब। वे 'किंग ऑफ क्ले'यूं ही थोड़े ही कहलाते हैं। पर क्या ये विशेषण उनकी महत्ता को सही अर्थों में अभिव्यक्ति देता है। शायद नहीं ना। 

प्राचीन भारतीय राज्य व्यवस्था में चक्रवर्ती सम्राट की संकल्पना है जो अपनी संप्रभुता सिद्ध करने के लिए प्रतिवर्ष अश्वमेध यज्ञ करता। अब इस रूपक को नडाल की जीत के  संदर्भ में देखिए। रोलां गैरों नडाल का अपना साम्राज्य है जिस पर प्रभुसत्ता सिद्ध करने के लिए वे साल दर साल आते और अपने खेल का अश्वमेध यज्ञ सम्पन्न करते हैं। तमाम छोटे बड़े राजा से लेकर सम्राट तक मस्केटियर ट्रॉफी रूपी अश्व को पकड़ने का असफल प्रयास करते। नडाल के अद्भुत खेल के प्रताप के आगे हर किसी की आभा फीकी पड़ जाती। दरअसल वे 'क्ले के चक्रवर्ती सम्राट' हैं।

और अगर किसी को इस बारे में कोई संदेह हो तो इस साल की प्रतियोगिता में उनके खेल पर एक नज़र भर डाल लें। बिना कोई सेट खोए ग्रैंड स्लैम खिताब जीतने का ये कारनामा टेनिस इतिहास में सिर्फ चौथी बार हुआ है। 34 साल की उम्र में राफेल ने 19 साल के जोश और ताकत से लबरेज सिनर से लेकर 33 साल के अनुभवी, विश्व के नम्बर एक खिलाड़ी चैंपियन खिलाड़ी नोवाक तक को बहुत ही आसान से और कन्विनसिंगली हराया। 

आज तो वे गज़ब की फॉर्म में थे। एक सच्चे चैंपियन की तरह। आत्मविश्वास और उत्साह से लबरेज। पूरे मैच में एक बार भी ऐसा नहीं लगा कि वे चैंपियन नहीं बनेंगे,बल्कि कहें तो पूरी प्रतियोगिता में। यूं तो आज दोनों ही खिलाड़ी जीतकर नया इतिहास बनाने को बेताब थे। अगर नोवाक जीतते तो ओपन इरा में वे पहले ऐसे खिलाड़ी होते जिसने चारों ग्रैंड स्लैम कम से कम दो बार जीते हों। और उनके ग्रैंड स्लैम की संख्या 18 हो जाती और वे नडाल और फेडरर के और करीब आकर गोट(सार्वकालिक महान खिलाड़ी) की रेस को ओर करीबी और रोचक बना देते। तो दूसरे ओर नडाल जीतते तो कोई एक प्रतियोगिता 13 बार जीतकर एक असाधारण रिकॉर्ड बनाते और अपनी ग्रैंड स्लैम की संख्या फेडरर के बराबर 20 तक पहुंचा देते। सफलता नडाल के हाथ लगी।

मैच का पहला ही गेम ड्यूस में गया और नोवाक की सर्विस ब्रेक हुई। अगला गेम भी ड्यूस में गया और राफेल ने तीन ब्रेक पॉइंट बचाए और 2-0 की बढ़त ले ली। अपनी सर्विस बचाते हुए नोवाक की अगली दोनों सर्विस भी ब्रेक की और पहला सेट 6-0 से जीतकर बताया कि क्ले के असली चैंपियन वे ही हैं और ये भी कि यहां फाइनल में उनका अजेय रहने का रिकॉर्ड बरकरार ही रहना है। हांलांकि  6-0 के स्कोर से ये नहीं समझना चाहिए कि राफा बहुत आसानी से जीते। दरअसल इसमें जोरदार संघर्ष हुआ और सेट कुल 45 मिनट में समाप्त हुआ। औसतन साढ़े सात मिनट प्रति गेम समय लगा। नोवाक अच्छा खेल रहे थे लेकिन एक तो राफा आज अपने सर्वश्रेष्ठ रंग में थे तो दूसरी और नोवाक ने अनफोर्स्ड एरर (बेजा गलतियां) बहुत ज़्यादा की। अगले सेट की भी कहानी पहले जैसे ही रही और दो सर्विस ब्रेक के साथ  नडाल ने दूसरा सेट भी 6-2 से जीत लिया। और जब तीसरे सेट में दूसरी सर्विस ब्रेक कर 3-1 की बढ़त ले ली तो लगा नडाल की जीत की अब औपचारिकता बाकी है। तभी नोवाक कुछ रंग में आए और ना केवल अपनी सर्विस बचाई बल्कि नडाल की सर्विस ब्रेक कर 3-3 की बराबरी की। अब लगा मैच अभी बाकी है। पर  5-5 के स्कोर पर नडाल ने फिर नोवाक की सर्विस ब्रेक की और 6-5 चैंपियनशिप के लिए चैंपियन की तरह सर्विस की और शानदार ऐस से मैच समाप्त किया।

आज नडाल अपनी शानदार फॉर्म में थे। उन्होंने जिस शानदार खेल की शुरुआत पहले दौर के मैच में इ. गेरासिमोव को हराकर की थी,वो आज चरम पर था। वे आत्मविश्वास से भरे थे। उन्होंने न्यूनतम बेजा गलती की। उनकी कोर्ट की कवरेज अविश्वसनीय थी। हर बॉल तक आसानी से पहुंच जाते और असाधारण  रिटर्न्स कर बार बार नोवाक को हैरत में डाल देते। यहां ध्यान देने वाली बात ये है कि इस बार परिस्थितियां नडाल के प्रतिकूल थीं। एक तो खचाखच दर्शकों से भरे स्टैंड्स नहीं थे। दूसरे इस बार ये प्रतियोगिता मई-जून के बजाय अक्टूबर में हो रही थी जब ठंडा काफी ज्यादा होती है। ऊपर से इस बार नई गेंद का इस्तेमाल किया गया जो पहले की तुलना में थोड़ी भारी थीं। भारी मौसम और भारी गेंद से गेंद का स्पिन होना बहुत कठिन था और ये बात राफेल के प्रतिकूल जा रही थी और इसीलिए गेंद बदलने पर प्रारंभ में ही राफा ने अप्रसन्नता ज़ाहिर  कर दी थी। लेकिन वो चैंपियन ही क्या जो विपरीत परिस्थितियों में खेल को एक अलग स्तर पर ना ले जाए। नडाल ऐसे ही चैंपियन खिलाड़ी हैं। उनकी आज कोर्ट कवरेज तो असाधारण थी ही। साथ ही उन्होंने शानदार ड्राप शॉट खेले और टॉपस्पिन लॉब शॉट भी खेले जिससे ना केवल उन्हें अपनी पोजीशन में आने का अतिरिक्त समय मिलता बल्कि नोवाक को रिटर्न करने में भी परेशानी होती। उन्होंने आज शानदार फोरहैंड वॉली लगाई। उन्हें बैकहैंड पर आई गेंद को भी फोरहैंड की  पोजीशन में आकर विनर लगाते देखना दर्शनीय था। 

निसन्देह आज वे अपने सर्वश्रेठ रंग में थे। आखिर जब वे इस लाल मिट्टी पर खेलने आते हैं तो क्या हो जाता है उन्हें। दरअसल वे इस प्रायद्वीप में बचपन से रहे हैं,पले हैं,बढ़े हैं और इसी मिट्टी पर खेलते हुए बड़े हुए हैं। इसका ज़र्रा ज़र्रा उनके कदमों की आहट पहचानता है, वे राफा के  पसीने की खुशबू से सुवासित हो उठते हैं। वे राफा के कदमों में बिछ बिछ जाते हैं और उनके कदमों को अद्भुत गति देते हैं। और फिर वे इतने गतिशील और लयबद्ध हो जाते हैं कि लगता है वे अपने रैकेट और बॉल से खेल नहीं रहे हैं बल्कि कोई कविता रच रहे हैं। स्पेनिश भाषा में कविता की एक फॉर्म है 'डेसिमा' जिसे 16वीं सदी के महान स्पेनिश लेखक और संगीतकार विंसेंट एस्पिनल ने विकसित किया था। इसमें 10 पंक्तियों के स्टेन्ज़ा होते हैं। अपनी जीत से लिखी जा रही 'डेसिमा' (कविता) का पहला स्टेन्ज़ा उन्होंने 2017 में वारविन्का को हराकर 10वां फ्रेंच ओपन खिताब जीतकर पूरा किया था और आज 13वें  फ्रेंच ओपन के साथ 20वां  ग्रैंड स्लैम जीत कर अपनी डेसिमा (कविता ) का दूसरा स्टेन्ज़ा पूरा किया है।

यहां पर याद कीजिये रियाल मेड्रिड फ़ुटबाल क्लब के दसवें यूरोपियन कप को जीतने के उसके ऑब्सेशन को कि 'ला डेसिमा' फ्रेज़ उसके इस ऑब्सेशन का समनार्थी बन गया था। उसने यूरोपियन कप जिसे अब चैम्पियंस लीग के नाम से जाना जाता है,नौवीं बार 2002 में जीता था। उसके बाद उसे 12 सालों तक प्रतीक्षा करनी पडी थी। तब जाकर 2014 में रियाल मेड्रिड की टीम अपना दसवां खिताब जीत सकी थी। लेकिन नडाल ने तो लगभग इस अवधि में दो 'ला डेसिमा' रच दिए।

दरअसल आज नडाल के रूप में एक महान स्पेनिश खिलाड़ी कोर्ट के भीतर एक  एकतरफ़ा फाइनल मैच में बाल और रैकेट से लाल मिट्टी पर शानदार डेसिमा की रचना कर दुनिया को सुना रहा था जिसे खुद उनका प्रतिद्वंदी भी मंत्र मुग्ध सा सुन और देख रहा था ।

और ,और इस तरह राफा था कि टेनिस जगत का एक असाधारण इतिहास लिख रहा था।

राफा को 20वां ग्रैंड स्लैम बहुत मुबारक हो


8.


01 फरवरी 2022,ऑस्ट्रेलियन ओपन

आज मेलबोर्न क्लब के पुरुष एकल फाइनल के बाद हारने वाले खिलाड़ी डेनिल मेदवेदेव अपने प्रतिद्वंद्वी राफा के लिए लिए कह रहे थे 'इनसेन'और वो उन्हें बता रहे थे 'अमेजिंग चैंपियन'। वे बता रहे थे कि उन्होंने मैच के बाद राफा से पूछा कि 'क्या वे थके हैं'। पांच घंटे चौबीस मिनट का मैच खेलने के बाद राफा लाकर्स रूम के जिम में वर्कआउट कर रहे थे। वे अद्भुत हैं। वे असाधारण हैं। महानतम हैं। वे ऑस्ट्रेलिया ओपन 2022 के चैंपियन हैं। वे 21 ग्रैंड स्लैम विजेता हैं। दरअसल कई बार किसी को वर्णित करने के लिए आपके पास शब्द नहीं होते। सारी संज्ञाएँ और विशेषण छोटे लगने  लगते हैं। राफेल नडाल ऐसे ही खिलाड़ी हैं।

कुछ खिलाड़ी अपने खेल को उन ऊंचाइयों पर पहुंचा देते हैं जहां खिलाड़ी और खेल एक दूसरे का पर्याय बन जाते हैं। राफा का मतलब टेनिस है। राफा का मतलब जीत है। वे जीत को इतना आसान बना देते हैं कि जीत केवल एक नंबर बन कर रह जाती है। ऑस्ट्रेलिया ओपन 2022 के दौरान सिर्फ और सिर्फ एक नंबर की चर्चा थी। नंबर 21 की। राफा इस नंबर को पाना चाहते थे और मेदवेदेव उनके रास्ते में सबसे बड़ा अवरोध थे। उनके देशवासी पूर्व नंबर एक येवगेनी कफेलनीकोव ट्वीट कर कह रहे थे 'आप चाहे या ना चाहे तीनों(राफा/फेड/नोवाक) 20 पर ही रहने वाले हैं क्योंकि अब यहां मेदवेदेव हैं।' दरअसल वे राफा को आंकने में चूक कर रहे थे। 

कहावत है 'मौका हर किसी को मिलता है।' राफा,नोवाक और राफा तीनों 20 ग्रैंड स्लैम खिताब के साथ टाई पर थे। तीनों को 21 पर आने का मौका मिला। पर उस मौके को उपलब्धि में तब्दील केवल राफा कर सके। उनमें ये सलाहियत थी। काबिलियत थी। 2019 के विम्बलडन फाइनल में फेडरर के पास नोवाक के विरुद्ध दो मैच पॉइंट थे लेकिन निर्णायक टाई ब्रेक में हार गए। नोवाक ने फेड को 21वें नंबर पर जाने से रोक दिया। उसके बाद 2021 के यू एस ओपन में ये मौका नोवाक के पास था। वे साल के पहले तीन ग्रैंड स्लैम जीतकर विजय रथ पर सवार थे। पर उन्हें मेदवेदेव ने नोवाक को 21 पर जाने से रोक दिया। आज ये मौका राफा को मिला और उन्होंने मौके को हाथ से जाने नहीं दिया। उन्होंने एक इतिहास रच दिया।

वे 'गोट'की रेस में फिलहाल आगे निकल गए हैं। हालांकि अभी रेस खत्म नहीं है। नोवाक की वापसी होनी अभी बाकी है। लेकिन राफा ने मेलबर्न जीतकर बताया कि वे 21 पर नहीं रुकने वाले हैं। अब उनके पैरों तले उनकी अपनी ज़मीन लाल मिट्टी का अपना रोलां गैरों जो होना है। वे  सभी ग्रैंड स्लैम को कम से कम दो बार जीतने वाले रॉय इमर्सन, रॉड लेवर और नोवाक के बाद चौथे और ओपन इरा के दूसरे खिलाड़ी बन गए हैं। अब तक ये प्लस नोवाक के पास था।

आज का पुरुष एकल फाइनल मैच किसी ग्रैंड स्लैम का एक फाइनल मैच भर नहीं था। विश्व नंबर दो रूस के डेनिल मेदवेदेव और विश्व नंबर छह स्पेन के राफेल नडाल दोनों टेनिस खेल के नए इतिहास की निर्मिति के लिए खेल रहे थे। दो में से एक इतिहास लिखा जाना था और दूसरे को इतिहास की बात हो जाना था। अगर राफा जीतते तो सर्वाधिक 21 ग्रैंड स्लैम जीतने टेनिस के महानतम खिलाड़ी होते और मेदवेदेव जीतते तो अपने कैरियर के बैक टू बैक पहले दो ग्रैंड स्लैम जीतने वाले खिलाड़ी ओपन इरा के पहले खिलाड़ी होते। राफा ने जीतकर अपने सपने को इतिहास बना दिया और मेदवेदेव का सपना हार के बाद इतिहास की बात हो गया।

लेकिन एक मैच जिसे एक इतिहास रचना था खुद इतिहास में दर्ज हो गया। दरअसल इस मैच को बिल्कुल ऐसा ही होना चाहिए था जैसा ये हुआ। एक असाधारण मैच जिसका एक एक पल रोमांच के चरम को छू रहा था। जिसमें पल पल,अंक दर अंक संभावनाएं बन बिगड़ रही थीं। 

इस मैच के शुरुआत लगभग वैसी ही थी जैसी कल महिला एकल फाइनल की थी। उसका अंत भी वैसा ही था। लेकिन आगाज़ और अंत के बीच के अंतराल ने इसे अविस्मरणीय मैच में बदल दिया। बार्टी की तरह राफा दर्शकों के फेवरिट थे। राफा भी बार्टी की तरह अब तक पहले चार मुकाबलों में मेदवेदेव से 3-1 से  आगे थे और ये भी कि आखिरी मैच राफा मेदवेदेव से हारे थे। और ये मैच अंततः राफा जीते।

दोनों ही खिलाड़ी मानसिक रूप से सुदृढ और शारीरिक रूप से मजबूत थे। दोनों समान स्ट्रोक्स खेलने वाले थे। दोनों ही बेसलाइन के खिलाड़ी थे। लेकिन मेदवेदेव के पास रॉकेट गति की सर्विस प्लस थी तो राफा के पास हैवी टॉप स्पिन फोरहैंड प्लस था। दोनों ने इस इसे दिखाया भी। मेदवेदेव ने राफा के 02 के मुकाबले 23 ऐस लगाए तो राफा ने शानदार टॉप स्पिन फोरहैंड लगाए। शुरुआत में मेदवेदेव शानदार फॉर्म में दिखे और राफा ऑफ कलर। मेदवेदेव शानदार सर्विस कर रहे थे और स्ट्रोक्स लगा रहे थे तो दूसरी और राफ़ा ज़रूरत से अधिक बेज़ा गलतियां कर रहे थे। मेदवेदेव आसानी से अपनी सर्विस होल्ड कर पा रहे थे और राफा को अपनी सर्विस को बनाए रखने के लिए खासी मशक्कत करनी पड़ रही थी। जल्द ही राफा   की सर्विस ब्रेक हुई और पहला सेट मेदवेदेव आसानी से 6-2 से जीत लिया। दूसरा सेट फहले का उलट था। दोनों ने एक दूसरे की दो-दो सर्विस ब्रेक की। सेट टाई ब्रेक में मेदवेदेव ने 7-6(7-5) से जीत लिया। अब लगने लगा कि राफा की हार कुछ समय की बात भर है। इसके बाद तीसरे सेट में 3-3 कई बराबरी के के बाद राफा 0-40 से पीछे थे और राफा की हार में कोई शक नही रह गया था। लेकिन राफा किसी और मिट्टी के बने हैं। यहां से उनके पास खोने को कुछ नहीं रह गया था। अब उन्होंने अपने खेल के स्तर को इतना ऊंचा उठाया जिसे मेदवेदेव छू नहीं सके। उन्होंने ना केवल तीन ब्रेक पॉइंट बचाये बल्कि वो गेम जीता और अगले गेम में मेदवेदेव की सर्विस ब्रेक कर सेट 6-4 से जीत लिया। अब मैच का रुख बदल चुका था। अब मेदवेदेव के कंधे झुकने लगे। दो सेट से पिछड़ने के बाद राफा ने अगले तीन सेट जीतकर लगभग असंभव को संभव कर दिखाया। उन्होंने 2-6,6-7(5-7),6-4,6-4,7-5 से ये मैच जीत लिया। 

दो सेट पिछड़ने के बाद मैच जीतने का ये ऐसा कारनामा था जो इससे पहले ऑस्ट्रेलिया ओपन के फाइनल में पहले कभी नहीं हुआ था। दरअसल इस मैच में दोनों खिलाड़ियों ने अलग अंदाज से शुरू किया और अलग अंदाज से खत्म। शुरू में राफा बहुत खराब और मेदवेदेव सबसे अच्छा खेल रहे थे। धीरे धीरे राफा अपने खेल के स्तर को ऊंचाइयों पर ले गए। जैसे जैसे राफा अच्छा खेल रहे थे वैसे वैसे मेदवेदेव के खेल का स्तर नीचे जा रहा था। पहले मेदवेदेव अपनी सर्विस आसानी से होल्ड कर रहे थे और राफा के सर्विस गेम ज़्यादा समय ले रहे थे। लेकिन मैच जैसे जैसे मैच आगे बढ़ रहा था इसका उलट होने लगा।

ऑस्ट्रेलियाई समाज दरअसल एक खुला समाज है। ये अपेक्षाकृत नया समाज है जिसे बाहर के लोगों ने आकर निर्मित किया। शायद इसलिए उनका अपनी परम्पराओं के प्रति उस तरह का आग्रह नहीं है जैसा यूरोपीय समाज में है। वे अमेरिकी समाज के अधिक करीब हैं। उनका नए के प्रति विशेष आग्रह है। शायद यही कारण रहा हो  कि मेलबोर्न ओपन जो कभी घास पर होता था, अब कृत्रिम सतह पर होने लगा है। ऐसा ही यूएस ओपन में भी हुआ। जबकि फ्रेंच और विम्बलडन आज भी घास और मिट्टी पर होते हैं। इस हिसाब से आज मेलबोर्न के रॉड लेवर एरीना को पुराने के ऊपर नए को तरजीह देनी थी। पर हुआ इसके उलट। उन्होंने पुराने का साथ दिया। 

ये ओल्ड ज़ेन और नेक्स्ट जेन के बीच मुकाबला था। ये शक्ति का अनुभव से मुकाबला था। ये जोश का धैर्य से मुकाबला था। ये 35 साल के राफा का 25 साल के मेदवेदेव का मुकाबला था। जिस समय 8-9 साल के मेदवेदेव अभ्यास के दौरान फेड और राफा के साथ खेलने के सपने देखते थे उस समय वे दोनों ग्रैंड स्लैम जीतकर शोहरत के आसमान पर उड़ान भरने लगे थे। 

नए और पुराने का द्वंद्व हमेशा रहता है। पुराना जाता है और नया आता है। नया पुराने को रिप्लेस कर देता है। लेकिन नए को ये जगह हासिल करनी होती है। उसे अपनी काबिलियत साबित करती होती है। पुराना अपना अस्तित्व बनाए रखने के लिए कड़ा संघर्ष करता है। आज रॉड लेवर एरीना ने सिद्ध किया पुराने को विदा कहने का समय अभी नहीं हुआ है। 

आज की जीत दरअसल शक्ति पर अनुभव की, जोश पर धैर्य की,नए पर पुराने की जीत है। ये राफा की मेदवेदेव पर जीत है। ये जीत कहती है कि राफा अभी चुके नहीं हैं। अभी नोवाक और राफा का समय खत्म नहीं हुआ।

चैंपियनों के चैंपियन राफा को ये जीत मुबारक।


9.


05 जून 2022, पेरिस                               


खबर

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ये 28 मई 2022 का दिन था। पेरिस के स्टेडियम फ्रांस में चैंपियंस ट्रॉफी का फाइनल लिवरपूल और रियाल मेड्रिड के बीच खेला जा रहा था। उस मैच में रियाल ने लिवरपूल को  1-0 से हराकर 14 वीं बार चैंपियंस ट्रॉफी जीती थी। रियाल राफेल नडाल की पसंदीदा टीम है और उस दिन राफा अपनी पसंदीदा टीम का समर्थन करने के लिए वो मैच देख रहे थे। ठीक आठ दिन बाद अपनी पसंदीदा टीम की तरह वे भी 14वीं बार मस्केटियर ट्रॉफी जीत रहे थे। संयोग ऐसे ही होते हैं।

आज शाम रोलां गैरों के फिलिप कार्टियर अरीना में  36 वर्षीय राफेल नडाल अपने से 13 साल छोटे 23 वर्षीय नॉर्वे के कैस्पर रड को बहुत आसानी से 6-3,6-3,6-0 से हराकर अपना 22वां ग्रैंड स्लैम खिताब जीत रहे थे। रड अपना पहला ग्रैंड स्लैम फाइनल खेल रहे थे। वे राफा की टेनिस अकादमी के पूर्व छात्र थे। यानी ये गुरु शिष्य के बीच मुकाबला था। और गुरु ने बताया कि गुरु गुरु ही होता है।

इस साल जब जनवरी में राफा ऑस्ट्रेलियाई ओपन खेल रहे थे तो 21 नंबर की चर्चा सबसे ज़्यादा थी। उन्होंने वो नंबर अविश्वसनीय ढंग से प्राप्त किया। लेकिन इस बार 22 से ज़्यादा 14 नंबर महत्वपूर्ण था। 2005 में उन्होंने पहला फ्रेंच ओपन जीता था और वे ग्रैंड स्लैम जीतने वाले सबसे कम उम्र के खिलाड़ी थे। इन 18 सालों में वे 14वां फ्रेंच ओपन जीत रहे थे तो वे सबसे अधिक उम्र फ्रेंच ओपन जीतने वाले खिलाड़ी बन रहे थे। ये अविश्वसनीय है। लेकिन महान खिलाड़ी वही होता है जो असंभव को इतना आसान बना देता है कि अविश्वसनीय उपलब्धि भी साधारण प्रतीत होने लगती है। 

दरअसल एक प्रतियोगिता को 18 में से 14 बार जीतना  उन्हें टेनिस का 'गोट'नहीं बनाई बल्कि सम्पूर्ण खेल जगत का 'गोट'भी बनाती है। ये असाधारण उपलब्धि है।

दरअसल लाल मिट्टी पर राफा खेलते नहीं बल्कि वे अपने खेल से किसी राग की बंदिश रचते है,कोई प्रेम में पगा पत्र लिखते है,जादू का कोई खेल दिखाते है और आप हैं कि उसके खेल के सम्मोहन में पड़ जाते हैं। 

आज राफा पर क्या लिखना बल्कि राफा को लिखना है। एक पत्र। राफा के नाम।


पाती

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प्रिय राफा,

 मैं जानता हूँ कि तुम 'मस्केटियर ट्रॉफी' के अनन्य प्रेम में हो। और मैं तुम्हारे खेल के प्रेम में आपादमस्तक डूबा हूँ।

शायद तुम जानते हो प्रेम में दो चीजें सबसे अनोखी और ज़रूरी होती हैं जिनकी वजह से प्रेम में सघनता और तरलता दोनों एक साथ बनी रहती है? 

एक प्रतीक्षा! 

और दूसरा प्रेम पत्र!

प्रेम में प्रतीक्षाएँ होती हैं। और खूब होती हैं। प्रतीक्षाएँ बेचैनियां पैदा करती हैं। और इन बेचैनियों में अलग सुख है। अपने यथार्थ को तसव्वुर में जीने का सुख। लोग जो प्रेम में हैं,वो समझते हैं कि तसव्वुर में जीना यथार्थ को कितना बेहतर,कोमल और खूबसूरत बना देता है। ये प्रेम को घनीभूत करता। सघन बनाता है।

और प्रेम में पत्र भावनाओं की अभिव्यक्ति को उड़ान देता है। प्रेम में पत्र मन की अंतरतम भावनाओं को जुबान देता है। पत्र जिसमें भावनाएं किसी नदी की तरह बह निकलती हैं, बारिश की तरह बरसने लगती हैं,खुशबू की तरह महकने लगती हैं,धूप की तरह चमकने लगती हैं। पत्र जो अंतर्मन को भिगो भिगो  देता है। प्रेम में पत्र प्रेम को सूखने से बचाते हैं। उसे बदरंग होने से बचाते हैं। दरअसल 'प्रेम पत्र' प्रेम को तरल बनाये रखते हैं।

हम जानते हैं , तुम चाहे दुनिया के किसी भी कोने में खेलते रहो, किसी भी मैदान पर अपने खेल सेसम्मोहित करते रहो, तुम प्रतीक्षारत रहते ही हो कि कब वो घड़ी आए कि तुम रोलां गैरों की लाल मिट्टी पर अपने प्रेम के सुर छेड़ सको,'मस्केटियर' को रिझा सको और उसका स्पर्श पा सको। अपने हाथों में उठाकर अपने अंक में समेट सको, उसको चूम सको,उसके प्रेम में रो सको,अपने आंसुओं से बहे प्रेम से उसे सराबोर कर सको। कितनी खूबसूरत होती है ना ऐसी प्रतीक्षाएं। तुमसे बेहतर और कौन जान सकता है।

और फिर प्रतीक्षा खत्म होती है। तुम किसी पागल दीवाने से रोलां गैरों चले आते हो, अपने रैकेट और बॉल से लाल माटी पर एक ऐसा खूबसूरत प्रेम में पगा पत्र लिखते हो कि उसे बांचने 'मस्केटियर' किसी दीवानी सी तुम्हारे पास चली आती है। यूं उसे  रिझाने तो ना जाने कितने चले आते हैं। पर तुम सा संगीत कौन छेड़ पाता है। तुम सा पत्र लिखने  की सलाहियत किसी में कहां आ पाती है। तुम सा प्रेमी कौन हो पाता है। साल दर साल यही चला होता चला आता है। हैं ना।

तुम्हारी तरह हम भी साल भर प्रतीक्षारत रहते हैं।  तुम्हारे खेल को जीने की प्रतीक्षा में, लाल मिट्टी पर तुम्हारे खेल के जादू से सम्मोहित होने प्रतीक्षा में, तुम्हारे रैकेट से निकले संगीत को सुनने की प्रतीक्षा में, तुम्हारे प्रेम पत्र को पढ़ने की प्रतीक्षा में, 'मस्केटियर' को तुम्हारे हाथों में देखने की प्रतीक्षा में,उसके मिलन से निकले खुशी के आंसुओं में डूब जाने की प्रतीक्षा में,तुम्हें उसे चूमता हुए देखने की प्रतीक्षा में। ये तुम्हारी जीत की गंध इतनी मादक होती है ना कि साल भर मदहोशी बनी रहती है।

तुम साल दर साल आते हो और एक प्रेम पत्र लिख जाते हो। तो तुम्हारे खेल के प्रेम में पड़कर इस बार मैंने भी एक चिट्ठी तुम्हारे नाम लिखी है। जानते हो पहली बार बचपन में पहले क्रश को लिखा था 'तुम बहुत ख़ूबसूरत हो'। दूसरी बार, जवानी में प्रेमिका को लिखा 'तुम मुझे खत लिखना'। तीसरा,जीवन के तीसरे पहर तुम्हारे खेल की दीवानगी में,तुम्हारे नाम 'तुम सा कोई नहीं'।

पर इस बार ये दीवानगी चार शब्दों में कहां समा पाएगी। और इस लंबी पाती में भी कहाँ समा पाएगी भला।

तुम जानते हो कितने ही लोग दुनिया भर में कितनी कितनी जगहों पर जाते हैं किसी खास मकसद से। राहुल सांकृत्यायन खोए ज्ञान को खोजने के लिए दुनिया भर की यात्रा करते हैं। असगर वजाहत अपनी जड़ों को खोजने और पांच सौ साल पहले भारत आए अपने पूर्वजों के निशान ढूंढने ईरान के दुर्गम इलाकों की यात्रा करते है। अमृत लाल बेगड़ भक्ति भाव से नर्मदा के सौंदर्य लोक में अवगाहन करने के लिए नर्मदा परिक्रमा करते हैं। ओमा शर्मा अपने अनन्य प्रेरणा स्रोत और गुरु स्टीफेन स्वाइग की आत्मा को महसूसने को ऑस्ट्रिया के चप्पे चप्पे को छान मारते हैं। मानव कौल खुद को ढूंढने यूरोप की खाक छानते हैं। उधर अनिल यादव पूर्वोत्तर भारत को पूर्वोत्तर भारत में खोजने में बरसों बिता देते हैं। एक अकेली लड़की अनुराधा बेनीवाल 'एकला चलो' की तर्ज़ पर बिना संसाधनों के यूरोप भर में भटकती है और  दुनिया भर की लड़कियों से घुमक्कड़ बन जाने का आह्वान करती है। 

जानते हो राफा ऐसे ही मैं भी दुनिया भर की अनेकानेक जगहों पर जाना चाहता हूँ,उन्हें महसूसना चाहता हूँ।  मैं हिसार की उन गलियों को देखना चाहता हूँ जिनमें साइना ने सारे बंधनों को तोड़कर आकाश में उन्मुक्त उड़ान सीखी।  पयोली की मिट्टी को छूकर धन्य होना चाहता हूँ जिसने उषा के पैरों को असीमित गति और शक्ति भरी। मणिपुर के गांव कंगथेई की उस हवा को महसूस करना चाहता हूँ जिसमें मैरी कॉम के मुक्कों को फौलादी ताकत मिली। मैं पाकिस्तान में लाहौर के उस ट्रैक को अपनी आंखों से देखने का सुख चाहता हूँ जहां मिल्खा 'उड़न सिख' बने थे।  

और इंग्लैंड में लॉर्ड्स के मैदान के पवेलियन में भी तो एक बार बैठना बनता है जिसमें 1983 जीत ने भारत में एक खेल को धर्म बना दिया और कुआलालंपुर के मरडेका स्टेडियम का एक चक्कर लगाकर दो आँसू भी तो बहाने हैं जहां भारत के राष्ट्रीय खेल हॉकी का सितारा अंतिम बार चमका। 

और जर्मनी में बर्लिन के ओलंपिक स्टेडियम जाकर एक बार गर्व करना चाहता हूँ जहां ध्यानचंद ने हिटलर के ऑफर को ठुकराया था।

मैं अर्जेंटीना के सांता फे प्रान्त में पारणा नदी के पश्चिमी तट के उस सौंदर्य को निहारना चाहता हूँ जहां मेस्सी और रोजुक्के कि प्रेम कथा ने जन्म लिया और अर्जेंटीना के शहर लानुस को भी तो देखे बिना कैसे रहा जाएगा जहां माराडोना जैसा खिलाड़ी जन्म लेता है। ब्राजील के साओ पाउलो प्रांत के कस्बे बोरु में चाय की चुस्कियों के साथ महसूस करना चाहता हूँ कि कैसे चाय की दुकान पर काम करते हुए पेले ने फुटबॉल के गुर सीखे और दुनिया का महानतम फुटबॉलर बना। और अमेरिका के कैलिफोर्निया के जंगलों में जाकर एक बार ज़ार ज़ार रोकर कोबे को श्रद्धांजलि देना चाहता हूँ।

दिल मे ऐसी ही हज़ारों ख्वाहिश हैं जिन्हें पूरा होना है। पर जानते हो राफा अगर ये ख्वाहिश ना भी पूरी हों तो बस एक ही ख्वाहिश रहेगी फ्रांस के शहर पेरिस को देखने की। इसलिए नहीं कि सीन नदी के किनारे बसा पेरिस दुनिया का सबसे सुंदर शहर है,कि वो दुनिया की फैशन राजधानी है,कि रोमन सभ्यता की विरासत के सबसे खूबसूरत अवशेष इस शहर में हैं,बल्कि इसलिए कि ये दो 'लिविंग लीजेंड' का शहर है। ये मेस्सी शहर है, राफा का शहर है। इस शहर में 'पार्क द प्रिंसेस'है इस शहर में 'रोलां गैरों' है। और इन दो जादू घरों में अनंत काल तक के लिए दो जादूगरों के जादू के तिलिस्म में खो जाने की ख्वाइश से इतर और कोई क्या ख्वाईश हो सकती है।

 और ये भी कि अगर इन दोनों में भी किसी एक को चुनना हो तो 'फिलिप कार्टियर अरीना' से खूबसूरत चयन क्या हो सकता है। फिलिप कार्टियर अरीना, मैं और तुम्हारे खेल का जादू। इससे बेहतर दुनिया में और क्या हो सकता है।

विंसेंट नवार्रो अपरिसिओ हो जाने की चाहत के अलावा और क्या चाहा जा सकता है।

नवार्रो, सुपर फैन नवार्रो। जानते हो ना। वही नवार्रो जो स्पेनिश फुटबॉल क्लब वेलेंसिया का अनोखा फ़ैन था। वेलेंसिया क्लब का मेम्बर नंबर 18,  जो  साठ के दशक से अपनी मृत्यु तक लगातार वेलेंसिया के हर मैच में उपस्थित रहा था। सबसे बड़ी बात तो यह कि 54 साल की उम्र में दृष्टिहीन हो जाने के बावजूद  उसने वेलेंसिया का कोई भी मैच नहीं छोड़ा। वेलेंसिया के घरेलू मैदान मेस्तला स्टेडियम के ट्रिब्यूना सेंट्रल सेक्शन की 15वीं पंक्ति की सीट न.164 पर बैठकर अपनी दृष्टिहीनता के बावजूद स्टेडियम के वातावरण और बेटे के आंखों देखे हाल से हर मैच का आनंद लेता। 2017 में वेलेंसिया के उसकी मृत्यु हुई।और तब क्लब ने उसके सम्मान में 2019 में उसकी उस सीट पर उसकी कांसे की मूर्ति स्थापित कर दी।

 दस मार्च 2020 को चैंपियंस लीग के प्री क्वार्टर फ़ाइनल मैच के दूसरे चरण के मैच में वेलेंसिया क्लब अतलांता क्लब को अपने घरेलू मैदान मेस्तला स्टेडियम में होस्ट किया। कोरोना के कारण ये मैच बिना दर्शकों के आयोजित करने का निर्णय लिया गया। लेकिन यह कैसे संभव हो सकता था कि मेस्तला स्टेडियम में नवार्रो उपस्थित न हो. सेंट्रल ट्रिब्यूना सेक्शन की 15वीं पंक्ति की सीट नंबर 164 पर वेलेंसिया टीम का अनोखा दीवाना नवार्रो  इस बार भी बैठा था। सच में क्या ही कमाल है उस मैच का नवार्रो एकमात्र दर्शक था, जो अकेले किसी राजा की तरह उस मैच का आनंद ले रहा था।

मैं भी नवार्रो की तरह एकांत में उस अद्भुत संगीत का आनंद लेना चाहता जो तुम अपने खेल से रचते हो। जब तुम लाल बजरी पर लय में खेलते हो तो वो किसी राग की बंदिश से कम कहाँ होता है। ऐसी बंदिश जिसके सम्मोहन में एक बार बंध जाएं तो फिर कभी मुक्त ही ना होना चाहें। कितनी बंदिशें तुमने उस अरीना में बिखरे दी है जो अब हमेशा के लिए रोलां गैरों में कोने कोने में व्याप गयी होंगी जिन्हें आने वाले अनंत काल तक सुना जा सकता है।

इस बार तुम यहाँ आये तो आये। आगे शायद तुम ना आ पाओ। समय हाथों से फिसल जो रहा है। जब तुम कहते हो कि 22वां खिताब कुर्बान करके तुम नया पैर लेना चाहोगे तो समझ में आता है तुम्हारी चोटों का क्या हाल है।

तुम्हें तुम्हारा ये प्यार मुबारक। ये जीत मुबारक।

राफा तुम खिलाड़ी कहां तुम तो कमाल हो।

                                     तुम्हारा प्रशंसक।


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25 मई,2025,फ्रेंच ओपन पहला दिन



दुनिया भर के खेल मैदान दुनिया की सबसे खूबसूरत जगहों में से होते हैं। घोर प्रतिद्वंदिताओं और भीषण संघर्षों के वातावरण में भी इन मैदानों में सद्भाव, मैत्री और प्रेम की भीनी भीनी खुशबू जो फैली रहती है। ये खेल मैदान ही होते हैं जहां हर जीत के बाद भी गले मिलने के दृश्य नमूदार होते हैं और हर हार के बाद भी। आंखें सबकी बहती हैं जीत में भी,हार में भी। और फिर ये मैदान  प्रेम के शहर पेरिस का हो,तो बात ही अलग है।

हां,ये पिछले रविवार की ही तो बात है। दिवस का अवसान होने को है। और साथ ही एक कहानी का समापन भी। एक प्रेम कहानी का। एक मैदान से उसके सबसे बड़े चैंपियन की जुदाई की कहानी का। शायद तभी पेरिस के रोलां गैरों के फिलिप कार्टियर एरीना के सेंटर कोर्ट की लाल मिट्टी शर्म ओ हया से थोड़ी ज्यादा ही लाल हुई जाती है। उत्साह और खुशी से उसकी चमक थोड़ी और ज्यादा हुई जाती है और विछोह की उदासी से थोड़ी थोड़ी नम  भी हुई जाती है। आज उसे कुछ ऐसे दृश्य उद्भूत जो करने हैं, जो लोगों की स्मृति में अनंत काल के लिए अंकित हो जाने हैं। उसे आज इस मैदान के सबसे बड़े विजेता को आखिरी बार होस्ट करना है। ये विजेता कोई और नहीं, फ्रेंच ओपन के चौदह बार के विजेता राफेल नडाल हैं।

एक के बाद एक दृश्य बन मिट रहे हैं। इन्हीं एक फ्रेम में राफा बीच कोर्ट में खड़े हैं। वे इंतजार कर रहे हैं। इसी बीच उनके तीन प्रतिद्वंदी मैदान में प्रवेश करते हैं। ये कोई और नहीं रोजर फेडरर,नोवाक जोकोविच और एंडी मरे हैं। कोर्ट में उनके सबसे बड़े प्रतिद्वंदी। टेनिस के महानतम खिलाड़ी। वे खिलाड़ी जिनके विरुद्ध खेलते हुए संघर्ष के नए प्रतिमान रचे गए। सफलता के नए पैमाने स्थापित हुए। टेनिस खेल को नई ऊंचाइयां मिली। और उस खेल का  इतिहास ही नए सिरे से लिखा गया। लेकिन आज वे संघर्ष के लिए नहीं आए थे। वे आते हैं और आते ही बारी बारी से राफा को गले लगाते हैं। आंखें सबकी नम हो आती हैं और वातावरण कुछ कुछ गीला। प्रेम,मैत्री और सौहार्द्र से वातावरण महक महक जाता है। उसके बाद राफा अंपायरों और ग्राउंड स्टाफ से मिलते हैं और अंत में, अपने दो साल के बेटे को गोद में लेते हुए धीरे धीरे कदमों से कोर्ट से बाहर चले जाते हैं। 

नाटक का पर्दा गिर गया है। एक युग का समापन हो रहा है। किरदार चला जाता है। बाकी कुछ रह जाता है तो एक उदास जाल। कुछ फीकी सी सफेद चूने की लाइने। नम लाल मिट्टी। एक इलेक्ट्रॉनिक बोर्ड। और,और एक सफेद रंग की आयताकार पट्टिका। जिस पर अंकित हैं राफा के पदचिह्न, उनका नाम, 14 का अंक, जीती गई 14 ट्राफियों का विवरण और ट्रॉफी कूप  डी मस्केटियर का चित्र भी। उसकी स्मृति को उसके चाहने वालों के ही नहीं बल्कि उनसे ईर्ष्या करने वालों के मन में भी हमेशा के लिए जीवित रखने के लिए। 

उद्घोषक उद्घोषणा कर रहा है ' आपके पदचिह्न सदैव यहां रहेंगे।' 

इस साल के फ्रेंच ओपन के पहले दिन इस कोर्ट के सबसे बड़े खिलाड़ी को एक शानदार विदाई से नवाजा जा रहा है। ये स्पेन के राफेल नडाल हैं। 

लेकिन ऐसे दृश्य ना तो पहले थे और ना ही अंतिम होंगे। याद कीजिए साल 2022 के 24 सितंबर के दिन को। उस दिन लंदन के प्रसिद्ध विंबलडन मैदान में लेवर कप के आखिरी मैच को खेल कर रोजर फेडरर विदा हो रहे थे। उनके दो सबसे बड़े प्रतिद्वंदी राफा और नोवाक के साथ साथ खुद रोजर की आँखें बह रही थीं। और उनके वे दोनों प्रतिद्वंदी उनको अपने काँधे बिठाए मैदान से विदा किए जाते थे। 

लंदन अतीत था। वहां फेडरर थे। पेरिस वर्तमान है। यहां राफा हैं। भविष्य शायद मेलबर्न हो और उसके किरदार नोवाक। 

आखिर वो क्या बात है जो राफा को एक बड़ा और बहुत बड़ा खिलाड़ी बनाती है और उतना ही लोकप्रिय भी।

किसी खिलाड़ी की इमेज केवल खेल मैदान के अंदर उसके खेल भर से नहीं बनती। ये बनती है उसके खेल और खेल मैदान के बाहर उसके आचार विचार और व्यवहार से । ये बनती है उसके संपूर्ण व्यक्तित्व से। 

राफा टेनिस के महान खिलाड़ी हैं। इसमें कोई संदेह नहीं। बहुतों के लिए तो वे टेनिस के सार्वकालिक महानतम खिलाड़ी हैं। उनके हिस्से 22 ग्रैंड स्लैम खिताब हैं। नोवाक से दो कम और फेडरर से दो ज्यादा। नोवाक के अलावा सिर्फ वे ही हैं जिन्होंने दो बार ग्रैंड स्लैम पूरा किया। दोनों के पास ही गोल्डन ग्रैंड स्लैम हैं यानी ग्रैंड स्लैम के साथ ओलंपिक गोल्ड भी। लेकिन राफ़ा अकेले हैं जिनके पास एकल और युगल दोनों ओलंपिक गोल्ड हैं। 

लेकिन खेल में उनका सबसे बड़ा प्लस किसी एक खेल सतह पर उनका प्रभुत्व। जैसा डॉमिनेंस उनका मिट्टी वाली सतह पर है, वैसा किसी का भी किसी भी सतह पर नहीं है। वे 14 बार फ्रेंच ओपन जीतते हैं। वे यहां 116 में से 112 मैच जीते हैं और केवल चार बार हारे हैं। इतना ही नहीं उन्होंने फ्रेंच ओपन के अलावा 12 बार्सिलोना ओपन,11 मोंटे कार्लो और 10 रोम ओपन खिताब जीते। क्ले कोर्ट पर उनको अजेय बनाती है उनकी टॉप स्पिन की कला। उनके फोरहैंड शॉट्स 4000 आरपीएम से भी ज्यादा गति से स्पिन होते हैं। ये गति अविश्वसनीय थी। इससे उन्हें उछाल भी अधिक मिलती जिसे विपक्षी संभालने में असमर्थ होते। और वे अजेय प्रतीत होते।

लेकिन जितना कूल वे खेल मैदान में रहते हैं उससे कहीं अधिक कूल मैदान के बाहर होते हैं। यहां तक कि फेडरर को भी कभी कभी निराशा में रैकेट पटकते हुए देखा जा  सकता है,लेकिन राफा को कभी नहीं। वे खेल मैदान में अपने शानदार खेल से खेल प्रेमियों का दिल जीतते हैं तो मैदान के बाहर अपने डिसेंट व्यवहार से अपने प्रशंसकों का दिल।

 इस शताब्दी के पहले 25 वर्ष नोवाक,राफा और फेडरर की त्रयी के डॉमिनेंस के हैं। इनमें से फेडरर और नोवाक दो विपरीत ध्रुवों के नाम हैं। फेडरर बहुत ही नफासत वाले खिलाड़ी हैं। दर्शकों और मीडिया के सबसे चहेते। उनका हावभाव,व्यवहार ही नहीं बल्कि पूरा खेल नफासत भरा है। वे एलीट खेल के प्रतिनिधि खिलाड़ी हैं। इसके उलट नोवाक  जोकोविच इस खेल के मास का प्रतिनिधि चेहरा हैं। अंतिम समय तक संघर्ष करने का जज्बा, ख़ांटी व्यवहार,गुस्सैल,मीडिया और टेनिस जगत के विलेन की तरह। लेकिन असाधारण खेल प्रतिभा और उपलब्धियां ऐसी कि उसके आगे हर कोई नतमस्तक।

राफा उन दोनों के बीच कहीं ठहरते हैं। उन दोनों में संतुलन साधते। उन दोनों की विशेषताओं को अपने में समाहित करते। वे फेडरर की तरह खेल और व्यवहार में नफासत से भरे, लेकिन संघर्ष करने और अंतिम समय तक हार ना मानने वाला जज्बा लिए,बहुत ही विनीत और 'डाउन टू अर्थ ' व्यक्तित्व वाले।  एलीट और मास दोनों तत्वों को एक साथ साधते हुए।

12 साल की उम्र तक वे एक साथ फुटबॉल और टेनिस खेलते हैं। एक एलीट खेल और दूसरा मास का खेल। उनके खेल में फुटबॉल की ताकत और गति है और टेनिस की नफासत भी। वे नफासत के खेल टेनिस को चुनते हैं लेकिन उसमें फुटबॉल की गति और ताकत का समावेश करा देते हैं। वे संतुलन साधने में सिद्धहस्त हैं। खेल में भी और व्यवहार में भी। वे मूलतः रक्षात्मक खिलाड़ी हैं लेकिन आक्रमण में करने में भी उस्ताद। 

वे लेफ्टी थे। ये उनके खेल का सबसे बड़ा आकर्षण था। खेल चाहे कोई भी हो लेफ्टी को खेलते देखना सबसे बड़ा ट्रीट है। उसमें गजब का सौंदर्य होता है। एलिगेंस होता है। नफासत होती है। राफा के खेल में भी सब कुछ है। राफा का लेफ्टी होना उनकी अतिरिक्त विशेषता है जो उनके खेल को ज्यादा खूबसूरत और आकर्षक बनाती है। 

तो अब,जब राफा कोर्ट में नहीं होंगे तो यकीन मानिए टेनिस खेल वैसा बिल्कुल नहीं रह जायेगा जैसा उनके कोर्ट में उपस्थित होने से होता था। 

'मर्सी राफा'। खेल को इतना खूबसूरत और आकर्षक बनाने के लिए।

एक जीत जो कुछ अलहदा है

  आपके पास हजारों तमगे हो सकते हैं,पर कोई एक तमगा आपके गले में शोभायमान नहीं होता है। हजारों जीत आपके खाते में होती हैं, पर कोई एक जीत आपके...