आपके पास हजारों तमगे हो सकते हैं,पर कोई एक तमगा आपके गले में शोभायमान नहीं होता है। हजारों जीत आपके खाते में होती हैं, पर कोई एक जीत आपके हाथों से फिसल फिसल जाती है। और वो एक छूटा तमगा,वो बाकी रही एक जीत आपकी सबसे बड़ी चाहना बन जाती है,उम्र भर की सारी उपलब्धियों पर भारी पड़ती जाती है। अंततः उस तमगे,उस जीत को पाने की इच्छा एक ऑब्सेस बन जाती है। सिर्फ उसके लिए नहीं, बल्कि उसके चाहने वालों के लिए भी।
दुनिया का कोई ऐसा तमगा नहीं था जो मेसी के पास नहीं था। यहां तक कि उनके पास आठ 'बैलेन डी ओर' खिताब थे। पर विश्व कप नहीं था। फिर 2022 का साल आया। रियाल मेड्रिड ने यूरोपियन कप का,जिसे अब चैम्पियंस ट्रॉफी के नाम से जाना जाता है,अपना नौवां खिताब 2002 में जीता था। उसे दसवां खिताब जीतने में 12 साल लगे। जब साल 2014 आया। सचिन ने अपने जीवन में सब कुछ पाया। यहां तक कि उनके पास शतकों का भी शतक था। वे क्रिकेट के भगवान भी कहाने लगे। लेकिन उनके पास कोई विश्व कप खिताब नहीं था। तब साल 2011 आया। आखिर विराट के पास क्या नहीं था सिवाय आईपीएल ट्रॉफी के। तब साल 2025 आया।
एक है दक्षिण अफ्रीका की क्रिकेट टीम। रंगभेद के कारण प्रतिबंध के बाद 1991 में उसने अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में वापसी की। वापसी के बाद उन्होंने लगातार शानदार क्रिकेट खेली। क्या नहीं था उस टीम के पास। माइक प्रॉक्टर जैसे खिलाड़ी की लीगेसी। जैक्स कैलिस जैसे ऑल राउंडर। एलेन डोनाल्ड और शॉन पोलक जैसे बॉलर। और जॉन्टी रॉड्स जैसा फील्डर। एक कॉमनवेल्थ ट्रॉफी और एक चैंपियंस ट्रॉफी के। और ये बात साल 1998 की है। लेकिन उन्हें हमेशा मलाल रहा कि उनके पास कोई आईसीसी की विश्व चैंपियनशिप नहीं है। वे कोई विश्व कप नहीं जीत पाए हालांकि इस दौरान वे एकदिवसीय अंतर्राष्ट्रीय विश्व कप में पांच बार सेमीफाइनल तक पहुंचे। वे 2024 में टी - 20 विश्व कप के फाइनल में पहुंचे। लेकिन पिछले 27 सालों से एक अदद ट्रॉफी के लिए तरसते रहे। तब साल 2025 आया।
लंदन के लॉर्ड्स मैदान पर आईसीसी टेस्ट चैंपियनशिप के फाइनल में दक्षिण अफ्रीका ने क्रिकेट की दुनिया के सबसे बड़ी धुरंधर टीम ऑस्ट्रेलिया को पांच विकेट से हरा कर अपना चिर प्रतीक्षित सपने को साकार किया। वे टेस्ट चैंपियन बने। पहली बार उन्होंने आईसीसी की विश्व चैंपियनशिप जीती। क्रिकेट के सबसे मौलिक और कठिन फॉर्म के चैंपियन। ये जीत कोई तुक्का नहीं थी। ये बहुत कन्विंसिंग जीत थी। उसने ये जीत लॉर्ड्स के मैदान पर 282 रनों के लक्ष्य का पीछा करके हासिल की थी। लॉर्ड्स का दूसरा सबसे बड़ा लक्ष्य जिसे चेज करते हुए यहां जीत हासिल की थी।
वे लॉर्ड्स में लगातार आठ जीतों के आत्मविश्वास के साथ आए थे। लेकिन संभावित चैंपियन ऑस्ट्रेलिया ही माना जा रहा था। पहली पारी में ऑस्ट्रेलिया को 212 रनों पर आउट किया तो लगा कि दक्षिण अफ्रीका मैच में है। पर ये बढ़त उस समय खत्म हो गई जब वे 138 रनों पर आउट हुए। गेंदबाजों ने फिर वापसी कराई और ऑस्ट्रेलिया को दूसरी पारी में भी 207 रनों पर समेट दिया। लेकिन पहली पारी की बढ़त के बूते ऑस्ट्रेलिया ने दक्षिण अफ्रीका को 282 रनों का लक्ष्य दिया। ये कोई आसान लक्ष्य नहीं था। इस मैदान पर इससे पहले केवल एक बार इससे बड़ा लक्ष्य सफलतापूर्वक चेज किया गया था। ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ भी इससे पहले केवल चार बार इससे बड़े लक्ष्य को सफलतापूर्वक चेज किया गया था। लेकिन दक्षिण अफ्रीका ने ये कर दिखाया।
ये एक टीम की जीत थी जिसमें बवूमा ने टीम को आगे आकर बेहतरीन नेतृत्व दिया। मारक्रम ने शानदार बल्लेबाजी और रबादा ने शानदार गेंदबाजी से अपना योगदान किया। बाकी सब खिलाड़ियों ने भी अपने थोड़े थोड़े लेकिन महत्वपूर्ण योगदान से टीम की अविस्मरणीय जीत की नींव रखी।
ये एक ऐसी जीत थी जिसने दक्षिण अफ्रीका की पिछली सभी हार के घावों पर मलहम लगाया होगा। उसकी पिछली सभी असफलताओं से मिले दर्द को सुकून दिया होगा।
और इस अविस्मरणीय जीत के सबसे बड़े नायक थे उसके कप्तान तेंबा बवूमा। उन्होंने आगे बढ़कर टीम का नेतृत्व किया और अपनी जिम्मेदारी को निभाया। पहली पारी में 36 और दूसरी पारी में 66 रन बनाए। दूसरी पारी में उनके पैर में क्रैंप था। उसके बावजूद वे खेलें। पूरे जीवट और उत्साह से। दर्द सहते हुए। वे जानते थे सफलता कठिनाइयों के रास्ते ही आती है। सफल होने के लिए दर्द से गुजरना ही पड़ता है। वे जानते थे नेतृत्व की जिम्मेदारी। वे जानते थे सेनानायक के नेतृत्व का महत्व। वे कोच के मना करने पर भी मैदान में गए और पिच पर डटे रहे। उन्होंने करीब सवा तीन घंटे पिच पर बिताए। मार्करम के साथ एक शानदार साझेदारी की। उन्होंने अपनी टीम की पारी बिल्टअप किया और बाकी काम मारक्रम ने शानदार 136 रनों की पारी खेलकर व अन्य खिलाड़ियों ने पूरा किया।
ये उनकी कप्तान के रूप में लगातार आठवीं और कुल नौवीं टेस्ट जीत थी।
बवूमा अब दुनिया के सबसे सफल कप्तानों में से एक है। अपने करियर के पहले दस टेस्ट मैचों की कप्तानी में अपराजेय और दुनिया के सफलतम कप्तान। नौ जीत और एक ड्रॉ। उन्होंने इंग्लैंड की धरती पर उसके कप्तान पर्सी चेपमैन के सौ साल पुराने रिकॉर्ड को तोड़ा। उन्होंने सिद्ध किया उनमें असाधारण नेतृत्व क्षमता है और 'कोटा कप्तान' का टैग बेमानी बनाया। ये उन लोगों को भी उनका अपनी शैली में जवाब था जिन्होंने उनके कप्तान बनने के विरोध में टीम छोड़ दी थी।
इस जीत के बाद पांच फुट चार इंच के इस छोटे कद के खिलाड़ी ने अपना कद दक्षिण अफ्रीका के क्रिकेट इतिहास में इतना ऊंचा कर लिया कि हर किसी को उनका कद नापने के लिए सर को उठाकर देखना होगा। इस जीत ने उनको अपने रंग और कद के कारण मिले सारे अपमान और आलोचनाओं से मन के भीतर भरे स्याह अंधेरे की जगह सम्मान और आत्मगौरव की रोशनी से जगमगा दिया होगा। निःसंदेह वे अब 'एक अश्वेत क्रिकेटर' के बजाय एक महान क्रिकेटर के रूप में पहचाने जाएंगे,जैसा कि जीत के बाद बवूमा ने कहा कि 'मुझे अब सिर्फ एक अश्वेत अफ्रीकी क्रिकेटर के रूप में नहीं,बल्कि एक ऐसे व्यक्ति के रूप में याद किया जाए जिसने कुछ ऐसा हासिल किया है जिसे देश बहुत ज्यादा चाहता था। ये कुछ वैसा है जो मुझे सीना तानकर चलने के लिए प्रेरित करेगा और मुझे उम्मीद है ये देश को प्रेरित करेगा।'
वे बता रहे थे 'उनका नाम तेंबा उनकी नानी ने रखा जिसका मतलब होता है 'उम्मीद'।' उन्होंने बताया कि नानी ने ये नाम 'इस उम्मीद में कि वे अपने समुदाय की उम्मीद बनेंगे,अपने देश की उम्मीद बनेंगे।' उन्होंने अपनी नानी की उस उम्मीद को नाउम्मीदी में नहीं बदलने दिया। उन्होंने पूरे देश की उम्मीद की लौ बनकर अपने देशवासियों के दिलों को रोशन कर दिया।
क्या ही विधि का विधान था कि जिन क्रिकेट विशेषज्ञों ने उन्हें खारिज किया था और उनकी योग्यता पर संदेह किया था, उन्हीं में से एक इंग्लैंड के पूर्व कप्तान नासिर हुसैन जीत के बाद उनसे सवाल कर रहे थे।
दक्षिण अफ्रीका की ये जीत देर से जरूर आई। पर ये है उतनी ही महत्वपूर्ण। कुछ जीत सिर्फ आंकड़ों की दृष्टि से ही महत्वपूर्ण नहीं होती,बल्कि अपने अंतर्निहित प्रभावों की वजह से भी महत्वपूर्ण होती है। ये एक ऐसी ही जीत है।
टीम अफ्रीका को जीत मुबारक।
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