Sunday 29 December 2019

मैरीकॉम बनाम निखत ज़रीन



हमारे जीवन के सद्भावना, मैत्री, प्रेम और सहयोग के सबसे खूबसूरत दृश्य खेल मैदानों से ही आते हैं। क्रिकेट में कतारबद्ध होकर एक दूसरे से हाथ मिलाते खिलाड़ी,बॉक्सिंग और कुश्ती में गले मिलते खिलाड़ी,  फुटबॉल में तो एक कदम और आगे जाकर अपनी जर्सियों की अदला बदली करते खिलाड़ी,यहां तक कि एथेलेटिक्स में भी विजेता को बधाई देते खिलाड़ी। खेल खत्म होने के बाद हाथ मिलाना और गले मिलना सबसे सामान्य लेकिन वांछित दृश्य हैं। खेल के दौरान खिलाड़ियों में, दर्शकों में, प्रशंसकों में प्रतिद्वंदिता और संघर्ष की जो भावना घनीभूत होती है और उसकी वजह से जिस तनाव की व्याप्ति होती है, उसे खत्म करने में या फिर कम से कम उसे कुछ हद तक तरल करने में ये दृश्य सहायक होते हैं। सही अर्थों में यही खेल की वो मूल भावना होती है जिसे हम खेल भावना के नाम से जानते हैं। लेकिन ज़रूरी नहीं हर बार ऐसा ही होता हो। कई बार स्थापित परंपराओं में विचलन होता है, भले ही वो वांछित हो या ना हो। कल राजधानी के इंदिरा  गांधी इंडोर स्टेडियम में एक बार फिर विचलन हुआ। एक बार खेल भावना फिर आहत हुई।

कल यहाँ चीन में होने वाली ओलंपिक क्वालीफाइंग प्रतियोगिता के लिए मुक्केबाजी के ट्रायल मुकाबले चल रहे थे। इन मुकाबलों में सबसे प्रतीक्षित और महत्वपूर्ण मुक़ाबला निसंदेह 51 किलोग्राम वर्ग के फाइनल का था जो दो बहुत ही प्रतिभावान मुक्केबाज़ों के बीच होना था। ये मुकाबला अनुभव का युवा जोश के बीच होना था।ये मुक़ाबला एम सी मेरी कॉम और निखत ज़रीन के बीच होना था।

एक तरफ 36 साल की वेटेरन मुक्केबाज मेरीकॉम थीं जिन्होंने अब तक भारत के लिए विश्व प्रतियोगिताओं में 6 स्वर्ण सहित 8 पदक जीते हैं ।ये विश्व रिकॉर्ड है। आज तक कोई भी मुक्केबाज़ विश्व मुक्केबाज़ी प्रतियोगिता में इतने पदक नहीं  जीत सका है। यहां तक कि मुक्केबाज़ी की नर्सरी और मुक्केबाजों की खदान कहे जाने वाले देश क्यूबा का कोई मुककबाज़ भी इतने पदक नहीं जीत सका है। इन पदकों के अलावा 2012 के ओलंपिक में कांसे का एक पदक,एशियाड में एक  स्वर्ण सहित दो पदक , एशियाई
मुक्केबाज़ी चैंपियनशिप में 5 स्वर्ण सहित 6 पदक  और कॉमनवेल्थ प्रतियोगिता में 1 स्वर्ण पदक जीता है। निसंदेह वे भारत की सबसे महान खिलाडियों में से एक हैं। ये उपलब्धियां इस तथ्य से और भी ज़्यादा चमकदार हो जाती हैं कि वे उत्तर पूर्व के निर्धन किसान परिवार से हैं। ज़िन्दगी के तमाम संघर्षों के बाद वे इस मुकाम पर पहुंची। सबसे बड़ी बात तो ये कि उन्होंने ये उपलब्धियां उस उम्र में  हासिल कीं जिस उम्र में  विवाह के बाद लड़कियां अपनी इच्छाओं को परिवार के लिए कुर्बान कर देती हैं, अपनी उम्मीदों को दादी नानी की तरह मन के ट्रंक की सबसे निचली तहों में किसी भूली बिसरी चीज़ की तरह संभाल कर रख देती है और महत्वाकांक्षाओं को घर के पिछले कमरे में किसी खूंटी पर पुराने कपड़ों की तरह उतार कर टांग देती हैं।

तो दूसरी तरफ युवा 23 साल की निखत ज़रीन थीं जो 2011 की जूनियर विश्व चैंपियन होने के अलावा इसी साल एशियाई बॉक्सिंग प्रतियोगिता में कांसे का पदक जीत चुकी हैं। वे एक ऐसे समाज से आती हैं जहां कई देशों में खेलना तो दूर स्टेडियम में खेल देखने की आज़ादी नहीं है, कई बार इस तरह के प्रतिबंधों का उल्लंघन करने पर सजाए मौत मुक़र्रर कर दी जाती है। कहीं अगर  खेलने की आज़ादी है भी तो सिर तक हिजाब  ढँकने के बाद। लेकिन ये भारतीय समाज और उनके परिवार की आज़ाद ख़्याली और उनकी खुशकिस्मती थी कि वे खेलों में अपने कॅरियर को आगे बढ़ा सकीं। नहीं तो भारत में भी उनके और सानिया मिर्ज़ा के अलावा और कितने नाम हैं जो गिनाए जा सकते हैं। पिछले दिनों जब अन्तर्राष्ट्रीय मुक्केबाज़ी संघ ने महिलाओं के लिए पोशाक पहनने के नियमों में कुछ ढील दी थी तो ज़रीन ने उम्मीद जताई थी कि अब अधिक लड़कियां बॉक्सिंग में आ सकेंगी।

दोनों ही खिलाड़ियों ने महिलाओं के सामने आने वाली मुश्किलों और बाधाओं को कुछ हद खुद झेला होगा और शिद्दत  से महसूसा होगा। उसके प्रति एक आक्रोश भी उनके मन के किसी कोने में ज़रूर ही पनपा होगा और उस आक्रोश को ही उन्होंने अपनी और अपने खेल की  ताकत बनाया होगा। जब भी वे दोनों रिंग में उतरती होंगी तो शायद उन्हें रिंग की वे रस्सियां बंधन नज़र आती होंगी जिन्हें तोड़ने को वे बेताब होती होंगी और ये बेताबी अपने विपक्षी पर जोरदार प्रहार करने की प्रेरणा देती होगी।

पर कल जब वे दोनों रिंग में उतरीं तो शायद जीत के लिए वो आक्रोश और ज़ज़्बा नहीं बल्कि उनके वे 'अहम' उन्हें परिचालित कर रहे होंगे जो पिछले कुछ महीनों के घटनाक्रम  से उपजे थे। तभी ये मुक़ाबला उन ऊंचाइयों  पर नही पहुंच पाया जहां उसे पहुंचना चाहिए था। और शायद इसीलिए ये बॉक्सिंग से ज़्यादा रेसलिंग का मुकाबला होने वाला था। दरअसल हुआ ये था कि कुछ माह पूर्व भारतीय मुक्केबाज़ी संघ ने 51 किलोग्रामम वर्ग में मेरीकॉम के पिछले प्रदर्शन के आधार पर ट्रायल से छूट देकर सीधे चयन कर लिया था। ज़रीन इसी फ्लाईवेट कैटेगरी में खेलती हैं और उन्होंने उनको ट्रायल से छूट देने पर आपत्ति दर्ज कराई। इससे दोनों के बीच रिंग से बाहर तनातनी हो गई। अंततः भारतीय मुक्केबाज़ी संघ मेरीकॉम को भी ट्रायल में शामिल करने का निर्णय किया। उम्मीद के मुताबिक दोनों के बीच फाइनल हुआ जिसमें मेरीकॉम ने ज़रीन को 9-1 अंकों से हरा दिया।

निसंदेह ये मुक़ाबला जीतकर मेरीकॉम ने ट्रायल से छूट के औचित्य को सिद्ध  किया। 36 साल की उम्रमें उनका  ये हौसला और जज़्बा तथा जीत का के ज़ुनून ही उन्हें  विशिष्ट बनाता है। लेकिन इस मुकाबले के दौरान रिंग के अंदर-बाहर जो कुछ हुआ वो कतई वांछित ना था। मुक़ाबला खत्म होने के बाद जब ज़रीन ने परंपरा के अनुसार हाथ मिलाना चाहा तो मेरीकॉम ने हाथ मिलाने से इनकार कर दिया। मेरीकॉम एक बहुत ही परिपक्व खिलाड़ी हैं। मुझे लगता है उन्हें अपनी जूनियर खिलाड़ी के समक्ष अपना बड़प्पन दिखाना चाहिए था भले ही ज़रीन से कितनी भी शिकायतें क्यों ना हों। हाथ मिलाना वो न्यूनतम शिष्टाचार है जिसे दोनों खिलाड़ियों को निभाना चाहिए होता है। ऐसी घटनाओं से केवल खिलाड़ियों के कद पर ही असर नहीं पड़ता,बल्कि प्रशंसक आहत होते हैं,खेल आहत होता हैं,खेल की मूल भावना आहत होती है। उम्मीद की जानी चाहिए कि ये घटना अपवाद भर होगी और इनकी पुनरावृति नहीं ही होगी।











लम्हे जो समय के बहाव में छूट गए

समय ज़िन्दगी से ठीक वैसे ही फिसलता जाता है जैसे मुट्ठी से रेत।आप चाहे जितना भी रोकने का प्रयत्न करें वो अनवरत अबाध गति से बहता जाता है,रोके नही रुकता। लेकिन बहाव कितना भी तेज हो, कितना भी शक्तिशाली हो,उस बहाव से कुछ अंश छूट ही जाते हैं। जैसे मुट्ठी से सारा रेत फिसल जाने के बाद भी हथेली पर रेत के कुछ चमकीले कण रह जाते हैं और वे छुटाए नहीं छूटते, ठीक वैसे ही आदमी के जीवन से समय के फिसलते जाने के बावजूद समय से टूटकर उसके कुछ टुकड़े आत्मा से चिपक जाते हैं। ये ऐसे क्षण होते हैं जो  बिताए नहीं बीतते और नगण्य होने के बावज़ूद आपके अस्तित्व में सफेद,स्याह और ग्रे रंग भरते रहते हैं,वे स्मृतियों के बियाबान में  जुगनुओं की तरह चमकते रहते हैं।

Friday 27 December 2019

फुटबॉल का वो सुनहरा तीर



अभी हाल ही में अर्जेंटीना के एक खेल टीवी चैनल के साक्षात्कार में अर्जेंटीना के डिएगो माराडोना से जब फुटबॉल के सार्वकालिक महानतम खिलाड़ी के बारे में पूछा गया तो वे अपने देशवासी लियोनेस मेस्सी और ब्राज़ील के पेले के साथ स्वयं को भी धता बताते हुए अर्जेंटीना के ही एक अन्य महान खिलाड़ी अल्फ्रेडो डि स्टेफानो का नाम ले रहे थे। उन्होंने कहा कि 'डि स्टेफानो सर्वश्रेष्ठ था। वो किसी भी अन्य खिलाड़ी से बेहतर था,यहां तक की मुझसे भी।' पेले या फिर मेस्सी के समर्थक इस बात से इत्तेफ़ाक़ भले ही ना रखें,पर फुटबॉल के तमाम जानकार माराडोना के इस कथन की ताईद करते मिलेंगे। इंग्लैंड के महान खिलाड़ी बॉबी चार्लटन ने 1957 में रियाल मेड्रिड के गृह मैदान बेर्नाबु में स्टैंड से इस खिलाड़ी को खेलते हुए  देखा था जिसे बाद में उन्होंने शब्दों में बयां किया कि मैं सोच रहा था 'कौन है ये खिलाड़ी,(वो) गोलकीपर से बॉल कलेक्ट करता है,फुल बैक खिलाड़ियों को निर्देश देता है,मैदान में जहां कहीं भी होता है बॉल लेने की स्थिति में होता है। आप मैदान में हो रही हर गतिविधि पर उसका प्रभाव लक्षित कर सकते हो..... मैंने ऐसा कंप्लीट आज तक नहीं देखा.....आप उस पर से नज़र नहीं हटा सकते।' दरअसल ये 'कंप्लीट' शब्द ही है जो स्टेफानो के इस खेल के महानतम आल राउंडर खिलाड़ी होने की एकदम सही व्याख्या करता है क्योंकि बॉबी कह रहे हैं कि वे गोलकीपर से बॉल कलेक्ट करते हैं और फुल बैक खिलाड़ियों को निर्देश देते हैं,जबकी वे सेन्टर फारवर्ड थे।

वे बहुत ही नफीस और ज़हीन खिलाड़ी थे।कभी उनके वीडियो देखिये कितनी रवानगी और प्यार से बॉल को सहलाते हुए धीरे से बॉल को पुश करते और बॉल गोल पोस्ट के भीतर नेट में झूल जाती। वे ऊर्जा के अजस्र स्रोत थे। स्टेमिना का उनमें अक्षय भंडार था। वे मैदान में हर जगह मौज़ूद होते थे। उनके बारे में रियाल मेड्रिड लीजेंड मिगुएल मुनोज़ कहते हैं 'डि स्टिफानो के बारे में सबसे बढ़िया बात ये है कि जब वो आपकी टीम में होते हैं तो आपके पास हर पोजीशन पर दो खिलाड़ी होते हैं।' यही डि स्टिफानो की ख़ासियत थी कि वो हर पोजीशन पर खेल सकते थे और खेलते भी थे।वे 'टोटल' खिलाड़ी थे।उस समय जब कोई खिलाड़ी अपनी पोजीशन को छोड़कर दूसरी पोजीशन पर खेलने की सोच भी नही सकता था,तब वे बीच मैदान में हर पोजीशन पर खेलते थे। भले ही उन्हें 'टोटल फुटबॉल' का व्याख्याता या अग्रगामी ना माना जाता हो पर वे थे वही  जिसके दम पर आगे चलकर 70 के दशक में रिनुस मिचेल और योहान क्रुयफ़ के नेतृत्व में नीदरलैंड की टीम को अपनाना था और इसे अपनाकर 1974 में फुटबॉल विश्व कप फाइनल्स के फाइनल तक पहुंची थी। वे शानदार ड्रिब्लिंग करते थे और इतनी तीव्रता से गोल की तरफ बढ़ते थे कि उन्हें 'सुनहरा तीर' कहा जाने लगा। सुनहरा इसलिए कि उनके बाल सुनहरे थे। वे मैदान के हर कोने में दिखाई देते। सच में,वे बहती हवा से थे जो मैदान के सारे स्पेस को खुद की उपस्थिति से भर देना चाहते थे  मानो उसके ज़र्रे ज़र्रे से गले लग जाना चाहते हों,घास के एक एक तिनके को छू कर महसूसना चाहते हों। वे ज़्यादा से ज़्यादा बॉल के पास पहुंचना चाहते मानो वे बॉल की परछाईं बनाना चाहते हों या फिर बॉल के आशिक भंवरे की तरह हर समय उसका पीछा कर रहे हों। बॉल के पीछे पीछे। जहां बॉल वहां स्टेफानो।

उनकी कीर्ति,उनकी महानता दो वजहों से  हैं। एक,मैदान में उनकी मौज़ूदगी और खेल पर उनका प्रभाव। वे आला दर्ज़े के फारवर्ड तो थे ही। उन्होंने 1944 से 1966 तक के 22 साल के करियर में 1090 मैचों में 789 गोल किये। इनमें से यूरोपियन कप के 59 मैचों में 49 गोल और रियल मेड्रिड केलिए 282 मैचों में 216 गोल शामिल हैं। इस दौरान एक बार अर्जेंटीना लीग में टॉप स्कोरर रहे,दो बार कोलंबिया लीग में और पांच बार ला लीगा में। साथ ही वे डिफेंडर भी थे और सबसे ऊपर बेजोड़ प्लेमेकर। उन्हें खेल की गहरी समझ थी और रणनीति बनाने में उस्तादों के उस्ताद। दो,अपनी विलक्षण खेल प्रतिभा और समझ से रियल मेड्रिड को बुलंदियों पर पहुंचाना। वे रियल से 1953 में 27 वर्ष की उम्र में जुड़े और 1964 तक उससे जुड़े रहे। इन 11 वर्षों में स्टीफानो  ने रियल को ज़मीन से आसमान पर पहुंचा दिया। 1953 में रियल के लिए पहला ही मैच बार्सिलोना के खिलाफ खेला और रियल ने बार्सिलोना को 5-0 से हराया जिसमें स्टीफानो ने हैट्रिक की। ये रियल का यूरोपीय फुटबॉल की महाशक्ति बनने की ओर पहला कदम था। आसमान की बुलंदियों को छूने के लिए पहली परवाज़ थी। रियल की टीम को अब ऐसा कारीगर मिल चुका तो जो उसे तराशकर एक अनमोल हीरा बना देने वाला था। जो टीम अब तक बहुत ही साधारण सी थी और जिसने पिछले 21 वर्षों में ला लीगा का एक भी खिताब नहीं जीता था उसे स्टीफानो ने अगले 11 वर्षों में 8 बार ला लीगा का चैंपियन बनाया। 1953-54 में अपने पहले ही सीजन में रियल के लिए 28 मैचों में  27 गोल किये और  चैंपियन बना दिया। सिर्फ इतना ही नहीं। 1955 में शुरू होने वाले यूरोपियन कप,जिसे अब चैंपियन लीग के नाम से जाना जाता है,का 1955 से 1960 तक लगातार 5 बार चैंपियन भी बनाया और  स्टीफानो ने पांचों बार फाइनल में गोल किए। 1960 में रियल को पहले इंटरकॉन्टिनेंटल कप का विजेता भी बनाया। 1957 और 1959 में दो बार स्टीफानो को 'बैलन डि ओर' खिताब से नवाजा गया और वो एकमात्र खिलाड़ी हैं जिन्हें 1989 में 'सुपर बैलन डी ओर' खिताब दिया गया। 1960 का यूरोपियन कप का फाइनल एनट्रेख्त फ्रेंकफर्ट के बीच ग्लासगो में सवा लाख दर्शकों के सामने खेला गया था। इस मैच में रियल ने फ्रेंकफर्ट को 7-3 से हराया था। इसे रियल के इतिहास का ही सबसे शानदार मैच नहीं गिना जाता  बल्कि फुटबॉल इतिहास के सबसे शानदार मैचों में शुमार किया जाता है। इसमें रियल की तीन गोल स्टीफानो और चार गोल पुस्कस ने किए थे। इस मैच में स्टीफानो की फुटबॉल की समझ,रणनीतिक चातुर्य और खेल कौशल अपने सर्वश्रेष्ठ रूप में उपस्थित था। रियल के इतिहास में स्टीफानो के स्थान और महत्व को क्लब के प्रेसिडेंट फ्लोरेंतिनो पेरेज़ की उस टिप्पणी से समझा जा सकता है जो उन्होंने उन्हें श्रध्दांजलि देते हुए की थी कि 'डी स्टीफानो रियल मेड्रिड हैं। उनकी उपस्थिति उनकी क्लब से बड़ी छवि बनाती है कि इस छवि के आस पास भी कोई नहीं पहुंच  सकता।

स्टीफानो का जन्म ब्यूनस आयर्स में 4 जुलाई 1926 को हुआ था। उसके दादा इटली से अर्जेंटीना आये थे। इसलिए जब उन्होंने वहां  फुटबॉल खेलना शुरू किया तो उसमें दक्षिणी अमेरिका की कलात्मकता और आक्रमण का वो कौशल तो आया ही जो यहां के खिलाड़ियों में स्वाभाविक तौर में होता है और जो पेले,माराडोना और मैस्सी जैसे खिलाड़ी पैदा करती है,लेकिन इन खिलाड़ियों से इतर उसमें उस डिफेंस की वो काबिलियत भी आई जो इटली के खेल की जान है,उसकी पहचान है। वो इटली जो अपने बेजोड़ अभेद्य रक्षण के लिए जाना जाता है। रक्षण जो 'कैटेनेसिओ' यानी 'द चेन ' के नाम से जग प्रसिद्द है। रक्षण जिसने जीनो डॉफ और बुफों जैसे गोलकीपर दिए और फ्रैंको बरेसी,पाओलो माल्दीनी,फैबिओ कैनावरो और चेलिनी जैसे डिफेंडर भी। और इस तरह एक स्टीफानो फुटबॉल को मिलता है जो फुटबॉल जीनियस था,अपनी तरह का अकेला,एक कंप्लीट फुटबॉलर।


उनके जीवन में तमाम ऐसी घटनाएं घटी जो सामान्य नहीं थीं। 1953 में उन्होंने कोलंबिया के क्लब मिलोनेरिस के खिलाड़ी के रूप में यूरोप का दौरा किया। वहां उन्होंने शानदार खेल दिखाया और इतने प्रसिद्ध हो गए कि यूरोप के दो सबसे बड़े क्लब रियल मेड्रिड और बार्सेलोना दोनों ने उन्हें अपने क्लब में लाने के प्रयास शुरू कर दिए। उनका हस्तांतरण सबसे चर्चित और विवादास्पद हस्तांतरणों में से एक है। हुआ यूं कि रियल ने कोलंबिया के मिलोनेरिस के साथ समझौता किया तो बार्सिलोना ने उनके मूल क्लब अर्जेंटीना के रिवर प्लेट के साथ। झगड़ा बढ़ा तो मामला स्पेनिश फुटबॉल फेडरेशन में पहुंचा और अंततः इस बात पर सहमति बनी कि स्टीफानो अगले चार सालों तक बारी बारी से एक एक सीजन दोनों क्लब से खेलेंगे। अंततः बार्सिलोना ने अपना अधिकार छोड़ दिया। लेकिन जब पहले ही मैच में स्टीफानो के तीन गोल की मदद से रियल ने बार्सिलोना को 5-0 से हराया तो उन्हें अहसास हुआ होगा कि उन्होंने क्या खोया था। कहा जाता है स्टीफानो के रियल में ट्रांसफर में स्पेन के तानाशाह जनरल फ्रांको ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी क्योंकि वो रियल का समर्थक था। एक और बात। बात 1963 की। रियल मेड्रिड की टीम दक्षिण अमेरिका के प्री सीजन टूर पर थी। 24 अगस्त को वेनेजुएला के विद्रोही दल आर्म्ड फोर्सेज ऑफ लिबरेशन आर्मी ने राजधानी कराकास से डि स्टीफानो का अपहरण कर लिया। हालांकि दो दिन बाद उन्हें बिना नुकसान पहुंचाए विद्रोहियों ने छोड़ दिया और अगले दिन ही उन्होंने साओ पाओलो के विरुद्ध मैच खेला।  

जिस तरह से अपनी तमाम उपलब्धियों के बावजूद मैस्सी के खाते में ये अपूर्णता दर्ज की जाती है कि वे अर्जेंटीना को विश्व कप नहीं दिला सके,ठीक वैसे ही स्टीफानो के खाते में दर्ज है कि तीन देशों का प्रतिनिधित्व करने के बावज़ूद वे एक भी विश्व कप फाइनल्स में नहीं खेल सके। शायद महान लोगों के जीवन इन अपूर्णताओं के लिए अभिशप्त होते हैं या फिर यूं कहें कि ये अपूर्णताएँ खूबसूरत चांद के धब्बों की तरह हैं जो उनकी महान उपलब्धियों पर नज़र के काले टीकों की तरह हैं या फिर ये अपूर्णताएँ इसलिए भी होती हैं कि अविश्वसनीयता की हद तक पहुंचने वाली इन उपलब्धियों में ये मानवीय रंग भरती  हैं और ये अहसास कराती हैं कि वे हमारे बीच के ही एक खिलाड़ी हैं।








Wednesday 4 December 2019

मेस्सी के प्यार में पड़कर



साल के सर्वश्रेष्ठ फुटबॉल खिलाड़ी के खिताब 'बैलन डी ओर' की घोषणा किए जाने से एक दिन पहले रविवार को लियोनेल मेस्सी एटलेटिको मेड्रिड के विरुद्ध मैच खेल रहे थे। मैच खत्म होने में केवल पांच मिनट शेष रहते दोनों टीमें बिना गोल किए बराबरी पर थी कि मेस्सी ने सुआरेज के साथ मिलकर एक शानदार मूव बनाया। मेस्सी लगभग मध्य रेखा से बॉल ड्रिबल करते हुए  पेनाल्टी बॉक्स तक आए, बॉक्स  के बाहर सुआरेज को पास देकर अपने लिए जगह बनाई, सुआरेज ने पास वापस  मेस्सी को दिया और मेस्सी ने बाएं पैर से गेंद जाल में टांग दी। ये दरअसल ना केवल उनकी टीम बार्सिलोना के लिए विजयी गोल था बल्कि अपनी टीम के लिए उनका 614 वां गोल था। इस  मैच के तुरंत बाद रियल मेड्रिड के महान गोलकीपर और क्रिस्टियानो रोनाल्डो के साथी खिलाड़ी रहे इकेर कैसिलास ट्वीट कर मेस्सी को सर्वकालीन सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी बता रहे थे। प्रकारान्तर से वे शायद ये भविष्यवाणी करना चाह रहे थे कि कल 'बैलन डी ओर' का खिताब मेस्सी को ही मिलने जा रहा है। और फिर अगले दिन इस खिताब के लिए वोटिंग में मेस्सी के बाद दूसरे स्थान पर आने वाले डच खिलाड़ी वर्जिल वान डिक मेस्सी को बधाई देते हुए कह रहे थे "मुझे गर्व है पिछला साल मेरे लिए असाधारण उपलब्धियों वाला रहा , पर दुर्भाग्य ये है कि इस समय मेस्सी जैसे अति मानवीय(unnatural)खिलाड़ी मौजूद हैं।" जब वे ऐसा कह रहे थे तो वे केवल सच्चाई बयां कर रहे थे,अतिशयोक्ति कतई नहीं थी उसमें। निसंदेह मेस्सी हमारे समय के सबसे प्रतिभाशाली खिलाड़ी हैं। हमारे समय के जिन लोगों ने ध्यानचंद या फिर डॉन ब्रेडमैन या फिर पेले को या फिर माइकेल जॉर्डन को सजीव(लाइव) खेलते हुए नहीं देखा है,उन लोगों को मायूस होने की कतई ज़रूरत नहीं है क्योंकि उन्होंने मेस्सी को खेलते हुए देखा है ना। और ऐसा मैं नहीं कह रहा हूँ बल्कि इंग्लैंड के महान फुटबॉल खिलाड़ी गैरी लिनेकर कहते हैं कि "मैं इतना भाग्यशाली हूँ कि अपने ग्रैंड चिल्ड्रन्स को बता पाऊंगा कि मैंने मेस्सी को खेलते हुए देखा है।"

 आखिर मिथक बनते कैसे हैं। यही ना कि उन मिथकीय चरित्र के जीवन में कुछ अविश्वसनीय घटित होता है। 24 जून 1987 को दक्षिण अमेरिकी देश अर्जेंटीना के मध्य प्रान्त सांता फे के मध्यवर्गीय चेतना वाले सबसे बड़े शहर रोसारियो में जन्मे बहुत ही प्रतिभाशाली बालक लियोनेल आंद्रेस मैस्सी को फुटबॉल से प्रेम हो जाता है। परन्तु 10 साल की उम्र होते होते उसे 'ग्रोथ हार्मोन्स डेफिशियेंसी' बीमारी होती है। इसका खर्च ना परिवार उठाने की स्थिति में है और ना आर्थिक मंदी से जूझते देश अर्जेंटीना का कोई फुटबॉल क्लब। तब बार्सिलोना फुटबॉल क्लब के खेल निदेशक कार्ल रिक्सेस उसकी प्रतिभा को पहचानते हैं,उसके साथ अनुबंध करते है और उसके इलाज का प्रबंध  भी। मैस्सी स्पेन आ जाता है। साल था 2000। ये नई सदी की शुरुआत ही नहीं थी बल्कि एक नए मिथक के जन्म लेने की शुरुआत भी थी। मेस्सी में दक्षिण अमेरिकी फुटबॉल की कलात्मकता और एलेगेंस तो जन्मजात थी ही,बस उसमें अब यूरोपीय फुटबॉल की पावर और स्पीड  का ऐसा ब्लेंड हो जाना था जिससे मेस्सी की कलात्मकता में ग़ज़ब की लय और रवानी आ जानी थी और एक सर्वश्रेष्ठ फुटबॉलर का जन्म होना था।
     मेस्सी के इस ब्लेंड को देखना है तो याद कीजिये इस साल मई में खेले गए चैंपियंस ट्रॉफी के सेमीफाइनल के पहले चरण का मैच। बार्सिलोना एफ सी की टीम अपने मैदान कैम्प नोउ में लिवरपूल की टीम को होस्ट कर रही थी। पिछले विश्व कप की असफलता को भुला कर मेस्सी इस सीजन अपने पूरे रंग में आ चुके थे। और अब मैच दर मैच अपना जादू बिखेरा रहे थे। इस मैच से पहले वे इस सीजन 46गोल कर चुके थे। बार्सिलोना को स्पेनिश लीग का खिताब दिला चुके थे। और....और इस मैच में अपने खेल के जादू से पिछले दर्शकों को हिप्नोटाइज़ कर रहे थे और अपने खेल कैरियर का एक और लैंडमार्क स्थापित कर रहे थे। जब 75वें मिनट में अपना पहला और टीम का दूसरा गोल कर रहे थे तो ये अपने क्लब के लिए 599वां गोल था। और उसके बाद 83वें मिनट में मेस्सी का ट्रेडमार्क गोल आया। उनका 600वां गोल दरअसल इससे कम शानदार नहीं ही होना चाहिए था। ये एक फ्री किक थी। वे 35 मीटर दूरी से गोल के लगभग बाएं पोल के सामने से किक ले रहे थे। सामने चार विपक्षी खिलाड़ियों की मजबूत दीवार। गोल पर सबसे महंगे और शानदार गोलकीपर एलिसन मुस्तैद। ये वही एलिसन थे जिन्हें इस वर्ष के सर्वश्रेष्ठ गोलकीपर के लिए याशीन ट्रॉफी मिली है। ये एक असंभव कोण था। लेकिन मेस्सी के लिए नहीं। मेस्सी ने किक ली। बॉल एक तीव्र आर्च बनाती हुए सामने खिलाड़ियों की दीवार के सबसे बाएं खिलाड़ी के ऊपर से गोल पोस्ट के पास जब पहुंची तो एक क्षण को लगा कि बॉल गोलपोस्ट से बाहर। पर ये क्या! बॉल तीक्ष्ण कोण से दांई ओर ड्रिफ्ट हुई और गोल के ऊपरी बाएं कोने से होती हुई जाल में जा धंसी। ये गोल नहीं था। एक खूबसूरत कविता थी जिसे केवल मेस्सी के कलम सरीखे पैर फुटबॉल के शब्दों से विपक्षी गोल के श्यामपट पर लिख सकते थे। दरअसल कोई एक चीज कला और विज्ञान दोनों एक साथ कैसे हो सकती है,इसे मेस्सी के फ्री किक गोलों को देखकर समझा जा सकता है। वे विज्ञान की परफेक्ट एक्यूरेसी के साथ अद्भुत कलात्मकता से अपनी पूर्णता को प्राप्त होते हैं। इस गोल के बाद एक खेल पोर्टल जब ये ट्वीट करता है कि "लिटिल जीनियस डिफाइज लॉजिक" तो आप समझ सकते हैं क्या ही खूबसूरत गोल रहा होगा।और 600 गोल के लैंडमार्क को प्राप्त करने के लिए इससे कम खूबसूरत गोल की दरकार हो सकती है भला। दरअसल यही मेस्सी का जादू है जो सर चढ़ कर बोलता है।
 असाधारण प्रतिभा वो होती है जो किसी सजीव चीज में ही नहीं निर्जीव में भी जान फूंक दे। बैजू बावरा और तानसेन के बारे में कहा जाता है कि वे जब गाते तो वे अपने गायन से दीपक जलास देते   या फिर वर्षा करा देते। ये उनके संगीत और प्रतिभा का कमाल था। ध्यानचंद के बारे में कहा जाता है कि वे इतनी कमाल की ड्रबलिंग किया करते थे कि बॉल हमेशा स्टिक से चिपकी रहती थी। आप इसको यूं भी कह सकते हो कि उनके असाधारण खेल से मंत्रमुग्ध हो वो गेंद ही उनकी स्टिक से अलग ही ना होना चाहती हो या फिर क्रिकेट बॉल डॉन ब्रेडमैन के खेल पर रीझ कर हर बार उनके बल्ले के स्वीट स्पॉट पे आकर उनके बल्ले के उस स्वीट स्पॉट की आवाज पर झूम झूमकर मैदान में चारों और बिखर जाना चाहती हो। और फिर ऐसा क्यों नहीं हो सकता कि फुटबॉल खेल की हर चीज मेस्सी के प्यार में ना पड़ गयी हो। फिर वो गेंद हो या गोल पोस्ट। मैदान की लाइन्स हो या घास या फिर स्वयं मैदान ही क्यों ना हो। और ये सब अपने महबूब की हार पर दुखी और महबूब की जीत पर खुश होते होंगे तो और क्या करते होंगे। याद कीजिए रूस में तातारिस्तान की राजधानी कजान  में खेले गए विश्व कप फुटबॉल का वो प्री क्वार्टर फाइनल मैच जिसमें अर्जेंटीना फ्रांस से हार कर विश्वकप से बाहर हो रहा था। वो शाम जो कयामत की शाम थी जिसमें लोगों ने एक क्लासिक मैच देखा। उन्होंने उम्मीदों के उफान को देखा और उसे बहते हुए भी देखा। लोग अर्जेंटीना को मेस्सी के लिए जीतता देखना चाहते थे तो खुद मेस्सी अर्जेंटीना के लिए जीतना चाहता था। मेस्सी ने अपना सब कुछ झोंक दिया। उसने कुल मिला कर दो असिस्ट किये। लेकिन अर्जेंटीना और जीत के बीच 19 साल का नौजवान एमबापा आ खड़ा हुआ। उसने केवल दो गोल ही नहीं दागे बल्कि एक पेनाल्टी भी अर्जित की। उसकी गति के तूफ़ान में अर्जेंटीना का रक्षण तिनके सा उड़ गया। मेस्सी का अर्जेंटीना 4 के मुकाबले 3 गोल से हार गया। लोगों की उम्मीदें हार गई। हताश निराश मेस्सी मैदान से बाहर निकले तो एक बार भी पीछे मुड़कर नहीं देखा। मानो वे इस असफलता को पलटकर देखना ही नहीं चाहते थे। और तब मेस्सी के प्यार में पड़ी तमाम चीजे दुख में भीग भीग जा रही थीं। निश्चित ही उस दिन बहते  आंसुओं से कज़ान के वातावरण में कुछ ज़्यादा नमी रही होगी,कराहों से हवा में सरसराहट कुछ तेज हुई होगी,हार की तिलमिलाहट से सूरज का ताप कुछ अधिक तीखा रहा होगा,दुःख से सूख कर मैदान की घास कुछ ज़्यादा मटमैली हो गयी होगी और कजान एरीना से बाहर काजिंस्का नदी वोल्गा नदी से गले लग कर जार जार रोई होगी। यकीन मानिए जब  मेस्सी का कोई शॉट गोल पोस्ट मिस करता होगा  तो गोल पोस्ट उस दिशा में ना खिसक पाने का मलाल करता होगा। या फिर जब उसके शॉट्स मैदान से बाहर जा रहे होते है तो ज़रूर लाइन्स मन मसोस कर रह जाती होंगी कि क्यों ना हम थोड़ा सा दांई या बांई ओर खिसक गए। और फिर उन गेंदों का क्या जिनको मेस्सी के पैरों ने छुआ ही नहीं, उन गोलपोस्ट्स का क्या जिनमें मेस्सी गोल नहीं दाग पाए और उन फुटबॉल मैदानों  का क्या जहां मेस्सी ने कभी खेला ही नहीं।
फिलहाल तो मेस्सी के प्यार में पड़े वे सारे फुटबॉल मैदान , वो गेंद, वो गोलपोस्ट्स, वो फिजाएं उल्लास में डूब डूब जा रहे होंगे जो मेस्सी को छठवीं बार 'बैलन डी ओर' जिताने के सहभागी बने और जो उस के भागी नहीं बन सके वे भविष्य में इसके जादू को महसूसने को लालायित हो रहे होंगे।
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मैस्सी को 6 बैलन डी ओर' खिताब जीतने पर बहुत बधाई।

ये हार भारतीय क्रिकेट का 'माराकांजो' है।

आप चाहे जितना कहें कि खेल खेल होते हैं और खेल में हार जीत लगी रहती है। इसमें खुशी कैसी और ग़म कैसा। लेकिन सच ये हैं कि अपनी टीम की जीत आपको ...