Sunday 30 July 2023

हरजीत सिंह:मुझसे फिर मिल

 



         र शहर का एक साहित्यिक आभामंडल होता है। उस आभामंडल में तमाम सितारे होते हैं जो आंखों को चकाचौंध से भर देते हैं। लेकिन जब आप उस चकाचौंध को पार कर कुछ गहरे जाते हैं तो कुछ मद्धिम शीतल प्रकाश लिए ऐसे सितारे होते हैं जो आत्मा को दीप्त कर देते है। विस्मय से भर देते हैं। प्रेम और करुणा से सराबोर कर देते हैं

  देहरादून की अदबी जमात के प्रमुख सितारों की चकाचोंध  के पार भी दो ऐसे ही  सितारों का एक युग्म है जिसका प्रकाश आंखों को नहीं बल्कि दिल को प्रकाशमान करता है। ये युग्म  अवधेश और हरजीत का है। 

देहरादूनी अदबी जमात की हंसी के बीच किसी बच्चे की किलकारी गर आपको सुनाई दे तो आप समझ जाइए ये हरजीत है। उस जमात से कोई संगीत की उदास सी धुन सुनाई दे तो समझ लीजिए ये हरजीत है। उस जमात की सदा में कोई सदा दोस्त की सी लगे तो समझो वो हरजीत है।

कोई भी शास्त्रीय  गायन तानपुरे के बिना कहां पूरा होता है। कितना ही सिद्धहस्त गायक क्यों ना हो। तानपुरा गायक को वे अवकाश देता है जो उसकी लय को बनाए रखने के लिए सबसे जरूरी होते हैं। वो गैप्स को,अंतरालों को भरता है। वो बिना लाइमलाइट में आए महत्वपूर्ण काम करता है। दरअसल हरजीत देहरादून के साहित्यिक जमात के संगीत का तानपुरा है।

रजीत की कहानी आपको विस्मित भी करती है और करुणा से भर देती है। पेशे से  बढ़ईगिरी करने वाला ये शायर बहुमुखी प्रतिभा का धनी था। अभावों के बीच भी वो उम्दा शेर कहता,खूबसूरत कैलीग्राफी करता, बेहतरीन कोलाज बनाता,कमाल की फोटोग्राफी करता। वो शास्त्रीय संगीता का दीवाना था और फक्कड़ यायावर। जितना अधिक भटकाव उसके स्वभाव में था, उसकी शायरी उतनी ही सधी हुई थी।


म जानते हैं भारतीय किस कदर उत्सवधर्मी होते हैं। अभावों से उपजा दुख इस कदर उनकी रगों में बहता है कि वे दुखों को भी सेलिब्रेट करने लग जाते हैं। क्या वजह है कि उजली पूर्णिमा के साथ अंधेरी अमावस्या का भी उसी उत्साह से उत्सव मनाते हैं। हरजीत भी ऐसा ही था। दुनियादारी के पेचोखम से नावाफ़िक वो अपने अभावों का सुखों की तरह ही उत्सव मनाता। टूटी छत से चिड़िया को घर के अंदर आते देख वो कहता है-


"आई चिड़िया तो मैंने जाना/

मेरे कमरे में आसमान भी था"। 


ससे ज़्यादा आशा और उम्मीदों से भरा हरजीत के अलावा कौन हो सकता था।

सके भीतर एक बच्चे सा साफ शफ्फाक मन वास करता। तभी तो वो कठोर काष्ठ को सजीव खिलौनों का रूप दे देता। वो कहता-


"गेंद, गोली,गुलेल के दिन थे/

दिन अगर थे तो खेल के दिन थे"।


वो प्रेम से भरा रहता। जब वो प्रेम से उमगता तो कहता- 


"हम तुझे इतना प्यार करते हैं/

हम तेरी फ़िक्र ही नहीं करते"


से साथ पसंद था। दोस्ती पसंद थी। जिसको उसकी दोस्ती नसीब हुई वो कितने खुशकिस्मत थे। वो एक जगह लिखता है-


"आप हमसे मिलें तो ज़मी पर मिलें

ये तकल्लुफ़ की दुनिया मचानों की है"


क ऐसा ही दोस्त है नवीन कुमार नैथानी। वो युग्म में एक तीसरा आयाम जोड़ता है। वो अवधेश और हरजीत के साथ मिलकर दोस्ती की त्रयी बनाता है। कभी उससे मिलिए और हरजीत का ज़िक्र भर कर दीजिए। उसकी आंखों में हर्ष और विषाद एक साथ उतर आते हैं। वो किस्सों पर किस्से कहे जाता है। वो बताता है हरजीत विचारधाराओं के पचड़े में कभी नहीं पड़ा। एक बार जब उसकी ग़ज़लों को वाम सिद्ध किया जाने लगा तो उसने अपनी वही रचनाएं धर्मयुग में छपवाकर उसका प्रतिवाद किया। 

गर हरजीत की दोस्ती के चलते उसके दोस्त खुशनसीब थे तो हरजीत भी कम खुशनसीब कहां था। उसे ऐसे दोस्त मिले जो उसके जाने के बाद भी उसे हमेशा दिल में बसाए हैं। उनकी एक दोस्त हैं तेजी ग्रोवर। उन्होंने हरजीत के सारे दोस्तों को,उसके चाहने वालों को एकत्रित किया। फिर उन सबसे हरजीत की यादों को, उसके लिखे को बटोर कर एक किताब की शक्ल दे दी।  नाम है 'मुझसे फिर मिल'।

रअसल ये हरजीत को उसके चाहने वालों से,नए पाठकों से और दुनिया जहान से मिलवाने का सच्चा सा उपक्रम है। उसकी यादों को जिलाए रखने का एक बेहद संजीदा प्रयास है।

समें हरजीत के दो पूर्व प्रकाशित संग्रह 'ये पेड़ हरे हैं' और 'एक पुल' के अलावा एक अप्रकाशित संग्रह 'खेल' और तमाम अप्रकाशित गज़लें शामिल की गई। इसके अलावा उनके कई दोस्तों व अन्य लोगों के हरजीत के बारे आत्मीय उद्गार हैं और दो आलेख भी। 

नमें से एक शानदार संस्मरणात्मक आलेख सुप्रसिद्द चित्रकार लेखक जगजीत निशात का है 'हरजीत और उसका 'हरजीत' बनना'। इसमें निशात हरजीत को हरजीत बनाने के प्रक्रिया की पड़ताल ही नहीं करते बल्कि देहरादून के उसके समकालीन सांस्कृतिक माहौल को भी बखूबी उद्घाटित करते चलते हैं। 

क और संस्मरणात्मक आलेख ज्ञान प्रकाश विवेक का है। ये आलेख बहुत ही मार्मिक बन पड़ा है। वे लिखते हैं- 'हरजीत से मिलना किसी बहुत अच्छे मौसम से मिलने जैसा था.वह खुद किसी पेड़ जैसा था-किसी दरख़्त जैसा..... एक ऐसा दरख़्त,जिसके पत्तों पर आसमान आराम कर रहा हो,जिसकी शाखों में ज़िंदगी के संघर्ष  जुड़े हों और जड़ों में कई जोड़ी पांव हों जो उसमें आवारगी और घुमक्कड़ी का अहसास पैदा करते हों.... उसमें बेचैनियों की खुशबू थी,जज़्बात की तरलता थी। उसे अपने सबसे विकट समय में भी मुस्कुराते देखना चकित करता था"। 

वो अपने समय का बेहतरीन ग़ज़लकार था जो बेहद संवेदनशील और संवेगों से भरा था और ग़ज़ल के क्षेत्र में नया मुहावरा गढ़ रहा था। ज्ञान प्रकाश आगे लिखते हैं "हिंदी ग़ज़ल  के कूड़े में अपनी अलग पहचान कराने वाला संवेदनशील,मैच्योर और समझदार ग़ज़लकार था।"

रजीत का प्रकृति से अद्भुत जुड़ाव था। उसके पहले ही संग्रह का नाम 'ये हरे पेड़ हैं' है। वो लिखता है-


"कश्तियाँ डूब भी जाएं तो मरने वालों में

होश जब तक रहे साहिल का गुमाँ रहता है

ये हरे पेड़ हैं इनको ना जलाओ लोगों

इनके जलाने से बहुत रोज़ धुंआ रहता है"


क जगह वो लिखता है-


"हरी ज़मीन पे तूने इमारतें बो दी

मिलेगी ताज़ा हवा पत्थरों में कहाँ"


या फिर


"ज़िंदा चेहरे भी बदल जाते हैं तस्वीरों में

पेड़ मरते हैं तो ढल जाते हैं शहतीरों में"


र फिर ऐसे हरे पेड़ के शैदाई को प्रकाशन संस्थान  संभावना प्रकाशन की इससे खूबसूरत श्रद्धांजलि और क्या हो सकती है कि इस किताब को छापने में उसने पेड़ों को नष्ट नहीं किया। किताब को गन्ने की खोई से बने कागज़ पर छापा।

ब देहरादून में महसूस होने वाला सबसे बड़ा मलाल और कमी उस महबूब शायर से ना मिल पाना है। लेकिन आप उसे यहां महसूस कर सकते हैं। यहां के साहित्यिक माहौल में वो एक अहसास सा उपस्थित रहता है।

 र ये भी कि मेरे तईं देहरादून की तमाम पहचानों में एक बड़ी पहचान हरजीत भी है। उसको जानने के बाद जब भी देहरादून जाएंगे उसकी याद तो आएगी ही और होठों बरबस गुनगुना उठेंगे कि-


"ढूंढते फिरते हैं हम उस शख़्स का पता

जिससे हों इस शहर के माहौल की बातें बहुत।"


और हरजीत आपके कानों में आकर चुपके से कहेगा -


"सोचता हूँ कहां गए वो दोनों

मेरी साइकिल वो मेरा देहरादून"




Thursday 20 July 2023

टेनिस:एक युग का अवसान/एक युग का आगाज़



              बात 2022 की लाल मिट्टी पर खेली जाने वाली मेड्रिड ओपन प्रतियोगिता की है। इसमें एक 19 साल का नौजवान जर्मनी के एलेक्जेंडर ज्वेरेव को हराकर प्रतियोगिता जीत रहा था। क्वार्टर फाइनल में उसने राफेल नडाल को और सेमीफाइनल में नोवाक जोकोविच को हराया था।

 टेनिस इतिहास में इससे ख़ूबसूरत और क्या हो सकता था कि एक टीनएजर राफा और नोवाक को हराकर ये प्रतियोगिता जीत रहा था।

ये टीनएजर कोई और नहीं स्पेन का कार्लोस अलकराज था।

रअसल ये जीत एक नए उगते सूरज की मानिंद थी। जिसका नरम मुलायम प्रकाश बरगद के पेड़ों की घनी छाया को चीरकर टेनिस के नए भविष्य का संकेत दे रहा था। वो टीनएजर बता रहा था कि वो एक ऐसा महत्वाकांक्षी और सक्षम बिरवा है कि वट वृक्ष सरीखे नोवाक और राफा के अनुभव और काबिलियत की सघन छाया के नीचे भी सरवाइव कर सकता है। 

सके चार महीने बाद फ्लशिंग मीडोज के आर्थर ऐश स्टेडियम पर कैस्पर रड को हराकर अपना पहला यूएन ओपन ग्रैंड स्लैम जीतकर वो टीनएजर अपने पॉइंट को प्रूव कर रहा था। पूरा स्टेडियम 'ओले ओले ओले कार्लोस' से गूंज रहा था। ये टेनिस का भविष्य का थीम सांग बनने जा रहा था।

र विंबलडन तक आते आते उस बिरवे का कद काफी बढ़ गया था। अब वो अपना आकार बनाने लगा था। उसकी जड़ें ज़मीन में कुछ और गहरे धंस रहीं थीं। सुबह का नरम मुलायम सूरज आसमान में और ऊपर हो आया था। उसका प्रकाश अब इतना तेज हो गया था कि दुनिया की आंखे चौंधियाने लगी थीं।

विम्बलडन 2023 का फाइनल उम्मीद के अनुरूप   नोवाक और उस अलकराज के बीच ही खेला ही गया। 

ये मैच केवल एक फाइनल मैच भर नहीं था,बल्कि ये विरुद्धों का द्वंद था। ये दो अलग व्यक्तित्व,दो अलग खेल शैलियों,दो अलग समयों के बीच का द्वंद्व भी था। यहां अनुभव जोश के मुकाबिल था। नया पुराने के सामने था। ये अपने अपने अस्तित्व की रक्षा का मसला था। पुराना अपनी जड़ें और मजबूती से जमाए रखने की कोशिश में था और नया था कि पुराने को उखाड़ फेंकना चाहता  था।

मैदान पर पहले नंबर दो नोवाक आए और उनके पीछे नंबर एक अलकराज। 35 साल के नोवाक का अनुभवी चेहरा बाल सुलभ मुस्कुराहट से चमक रहा था,तो बीस साल के युवा अलकराज का बालसुलभ चेहरा विश्वास और गंभीरता से प्रदीप्त था। 

नोवाक साल की पहली दो ग्रैंड स्लैम प्रतियोगिता जीतकर यहां आए थे।उनके हिस्से अब तक कुल 23 ग्रैंड स्लैम आ चुकी थीं। ये उनकी सबसे प्रिय और अनुकूल सतह थी। वे अनुभव का टोकरा अपने साथ लिए थे। वे यहां 07 बार जीत चुके थे। इसके विपरीत अलकराज की ये पसंदीदा सतह नहीं थी। लेकिन वे नंबर एक टेनिस खिलाड़ी का तमगा अपने सीने से लगाए थे। जोश उनमें हिलोरें ले रहा था और प्रतिभा उनमें कूट कूट कर भरी थी।

मुकाबला शुरू हुआ। नोवाक ने शानदार शुरुआत की। पहला सेट 6-1 से अपने नाम किया। लगा ये मैच नोवाक के लिए 'केक वॉक' होने जा रहा है। वे संख्या 24 की तरफ दौड़ते दिखे। लेकिन कार्लोस की यही काबिलियत है कि वे कोई भी दबाव अपने ऊपर बनने नहीं देते। फिर चाहे ग्रैंड स्लैम फाइनल खेलने का दबाव हो या सामने नोवाक सरीखा कोई लीजेंड हो। अगले सेट में ज़ोरदार संघर्ष हुआ। टाईब्रेक अंततः अलकराज ने  8-6 से जीत लिया। अब मैच में जान आ गयी थी। नोवाक यहां थोड़े थके दिखे और अगला सेट वे आसानी  से 1-6 से हार गए। अब लगा कि मैच एकतरफा कार्लोस के पक्ष में हो चला है। तभी नोवाक अपनी फॉर्म में लौट आए और अगला सेट 6-3 से जीत कर मैच अत्यधिक रोमांचक बना दिया। अंतिम और निर्णायक सेट में नोवाक के दूसरे सर्विस गेम में कार्लोस ने नोवाक की सर्विस ब्रेक की। गुस्से में  आकर नोवाक ने नेट पोल पर मारकर अपना रैकेट तोड़ दिया। दरअसल नोवाक उसी समय हार गए थे। ये उनकी निराशा थी। मन ही मन हार जाने का संकेत। वही हुआ भी। अलकराज ने अंततः सेट 6-4 से जीतकर कैरियर का दूसरा ग्रैंड स्लैम अपने नाम कर लिया।

ये फाइनल कितना संघर्षपूर्ण और इंटेंस था,इसे इस बात से समझा जा सकता है कि तीसरे सेट का चौथा गेम लगभग 26 मिनट चला जिसमें कुल 13 ड्यूस हुए और 32 पॉइंट बने। नोवाक की सर्विस गेम को अलकराज ने जीता। ये मैच लगभग 5 घंटे तक चला। नोवाक के 166 के मुकाबले अलकराज ने कुल 168 अंक जीते। इस बात से भी अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि मैच कितना करीबी था और संघर्षपूर्ण भी।

स मैच में शानदार टेनिस खेला गया। बुलेट की तेजी सी सर्विस,शानदार ग्राउंड स्ट्रोक्, एंगुलर फोरहैंड स्ट्रोक्स,वॉली,ड्राप शॉट्स,बैक हैंड स्लैश,क्या कुछ नहीं था इस मैच में।

ये एक ऐसा मैच था जिसे दो पीढ़ियों की टकराहट के सबसे शानदार उदाहरण के रूप में हमेशा याद रखा जाएगा।

2003 से लेकर 2022 तक के 20 साल के सफर में विम्बलडन का खिताब 'फेबुलस फोर' के अलावा कोई और नहीं जीत सका था। ये अलकराज ही हैं जिसने 20 सालों के 'फेबुलस फोर'के विम्बलडन पर उनके वर्चस्व को समाप्त किया। 

जो भी हो जोकोविच अपनी हार में भी ग्रेसफुल थे। उन्होंने मैच पश्चात ऑन कोर्ट इंटरव्यू में अलकराज की खूब तारीफ की। उन्होंने कहा 20 साल की उम्र में दबाव झेलने की उनकी ताकत सराहनीय है। और क्रोशियन कोच इवान लूबिसिक की उस बात की ताईद भी की कि अलकराज में स्वयं उनके यानी नोवाक,फेडरर और राफा की खूबियों का मिश्रण है।

 पिछले सालों में 'फेबुलस फोर' ने, या कहें कि 'बिग थ्री' ने इतनी शानदार टेनिस  खेली  कि उन्होंने ज्वेरेव, सितसिपास,थिएम,मेदवेदेव जैसे खिलाड़ियों की पूरी एक पीढ़ी को लगभग खत्म कर दिया। उन्हें अपनी छाया से बाहर आने ही नहीं दिया। लेकिन उसके बाद की पीढ़ी के खिलाड़ियों-कैस्पर रड,रुन, बेरेटिनी,आगर अलिसिमे  से पार पा पाना मुश्किल होगा। हालांकि अभी भी नोवाक की फिटनेस शानदार है। उनमें बहुत टेनिस बाकी है। उन्हें अभी खारिज़ कतई नहीं किया जा सकता।

ये अलकराज की स्वप्न सरीखी यात्रा पूरी दुनिया अपनी खुली आँखों से देख रही है। ऐसी ना जाने कितनी स्वप्निल सफलताएं अभी उनके हाथ आने वाली हैं ये तो भविष्य ही बताएगा।

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भी तो बस कार्लोस अलकराज को उनके दूसरे ग्रैंड स्लैम की बधाई।


Thursday 6 July 2023

अकारज_19

 


उस दिन किशोर प्रेमी युगल को देखते हुए उसने कहा 'आजकल का प्रेम भी कोई प्रेम होता है! आज प्रेम,कल ब्रेकअप। प्रेम तो हमारे ज़माने में होता था।'

मैंने उसकी ओर शरारत भरी दृष्टि से देखा और पूछा 'तुम्हारा ज़माना!'

उसने भी शरारतन कहा 'हाँ, तुम्हारे बैलगाड़ी वाले समय के बाद साइकिल वाला ज़माना।'

मेरे ओंठ मुस्कुराहट से फैल गए। मैंने फिर पूछा 'और कैसा था वो तुम्हारा साइकल वाला ज़माना!'

'हमारा ज़माना आज के मल्टीप्लेक्स,मोबाइल,ओटीटी,बाइक वाला फटाफट इंस्टा ज़माना थोड़े ही ना था। वो तो रेडियो वाला 'हौले हौले चलो रे बालमा' वाला ज़माना था।' कहते कहते उसकी आवाज़ अतीत में धंस गईं और आंखें यादों से चमक उठीं।

उसकी बात को आगे बढ़ाते हुए मैं खुद अतीत में गहरे उतर आया था। मैंने कहा 'यानि तुम्हारे  समय का प्रेम धीमे धीमे सींझते हुए परिपक्व होता था। जैसे गांवों में हारे पर धीमी धीमी आंच में पकती दाल या औटता हुआ दूध।'

उसने उत्साह से भरते हुए कहा 'और क्या ! तब प्रेम खतो-किताबत से धीमे धीमे परवान चढ़ता था। क्या समय हुआ करता था वो भी। क्या प्रेम पत्र लिखे जाते थे उन दिनों। दरअसल वो समय ही 'प्रेम पत्रों' का समय था।'

फिर उसने बाल सुलभ उत्सुकता से पूछा 'तुम्हें याद है तुमने अपने पहले पत्र में क्या लिखा था?'

अब यादें अतीत के गलियारे तय करने लगीं। और फिर यादों ने उन शब्दों को अतीत की भूलभुलैया से ढूंढ निकाला। मैंने कहा 'हां वो एक लाइन की पाती थी- 'लिखे जो खत तुझे'

उसने खिलखिलाकर कहा 'और उसके बाद तुम तीन दिन कॉलेज नहीं आए थे।'

मैंने ठहाका लगाया 'तुम्हारी याददाश्त कमाल है।'

'और तुम्हें वो वाली चिठ्ठी भी याद है ना जो तुमने घर जाते हुए लिखी थी।' उसने फिर पूछा।

यादें एक बार फिर छटपटाईं और स्थिर हो गईं। मैंने मुस्कुराते हुए कहा 'वो भी वन लाइनर ही था कि 'तुम भी खत लिखना'।'

अब शरारत उसकी आँखों से उतर कर उसके ओंठों पर ठहर गई। उसने शोखी से पूछा - 'तो खत आया क्या!' इसमें  सवाल कम उत्तर अधिक था।

मैंने कहा 'हां उसमें बस इतना ही लिखा था- 'इन दिनों यहां बादल खूब बरस रहे हैं। और आंखें भी।'

वो फिर अतीत में डूब गई। एक बार प्रेम फिर आंखों से बरसने लगा। वो प्रेम की नमी से गल चुकी थी। 'तो तुमने जवाब भेजा!' उसने तरल हुई रेशम सी आवाज़ में पूछा।

 मैंने यादों के हवाले से कहा 'केवल एक शब्द लिखा था '....तुम्हारा'

वो जवाब सुन खिलखिला उठी कि पास के खिले फूलों का रंग कुछ और गहरा हो उठा। पत्तियां कुछ और हरी हो गईं। चिड़िया कुछ और चहक उठीं। घास के तिनको पर ठहरी ओस की बूंदें उसकी ऊष्मा से सुध बुध खोकर अपना अस्तित्व ही खो बैठी। सूरज कुछ और तेजस्वी हो उठा और सुबह कुछ और जवान। 

उसके स्वर में बरसों से ठहरी जिज्ञासा मुखर हो आई - 'ये तुम्हारे 'प्रेम पत्र' वन लाइनर क्यूं होते थे।'

'उन दिनों मौन अधिक वाचाल जो होता था।अनलिखा ही सब कह जो देता था।' मैंने  हँसते हुए कहा।

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अब पूछने को कुछ बाकी रहा भी हो तो पूछा ना गया। शब्दों ने मौन जो धारण कर लिया था। 

 मौन के बीच एक धड़कता दिल 'पाती' हुआ जाता था, दूसरा 'कलम'। कलम से शब्द शब्द प्रेम पाती पर रिसता जाता।

उधर मौन था कि 'कलम' से लिखी जा रही इस 'प्रेम पाती' को बांच रहा था। 

और 

और यादों की आंख से निकले आंसू थे कि अतीत की पीठ को भिगो भिगो जाते थे।



ये हार भारतीय क्रिकेट का 'माराकांजो' है।

आप चाहे जितना कहें कि खेल खेल होते हैं और खेल में हार जीत लगी रहती है। इसमें खुशी कैसी और ग़म कैसा। लेकिन सच ये हैं कि अपनी टीम की जीत आपको ...