Sunday 25 September 2022

थम गई चकदाह एक्सप्रेस

 


शहर लंदन भी क्या शहर है। कितना खुशकिस्मत। कितना प्रिविलेज्ड। फुटबॉल का वेम्बले इस शहर में है। टेनिस का विंबलडन इस शहर में है। क्रिकेट का लॉर्ड्स इस शहर में है।

शायद ये इस शहर का आकर्षण ही है कि लंबे समय से अनवरत दौड़ रहीं दो खेल एक्सप्रेस यहां आकर ठहर जाती हैं हमेशा हमेशा के लिए। 

ये साल 2022 है। तारीख़ 24 सितंबर की है। खेल इतिहास में दो सफे लिखे जा रहे हैं। दो खेलों के दो महान खिलाड़ी अपने अपने खेल मैदान को अलविदा कह रहे हैं।

24 साल से निरंतर दौड़ रही टेनिस की 'फ़ेडेक्स'शहर के 'द ओ टू' एरीना में आकर ठहर जाती है।

उधर कोलकाता के ईडन गार्डन से एक क्रिकेट एक्सप्रेस 'चकदा एक्सप्रेस' 20 साल लंबी अनवरत यात्रा कर क्रिकेट के मक्का 'लॉर्ड्स'पहुंचती है और यहां आकर विश्राम की मुद्रा में ठहर जाती है।


महिला क्रिकेट की दुनिया की सबसे सफल और सबसे तेज गेंदबाज झूलन निशित गोस्वामी अपने बेहद सफल और 20 साल लंबे  कॅरियर के समापन की घोषणा करती हैं।

ये बीस साल लंबा जीवन हैरतअंगेज कर देने वाला है। इस दौरान वे 12 टेस्ट मैच, 204 एकदिवसीय मैच और 68 टी20 मैच खेलती हैं। वे एकदिवसीय क्रिकेट में सबसे ज़्यादा विकेट लेने वाली खिलाड़ी हैं। उन्होंने कुल 255 विकेट लिए हैं। दक्षिण अफ्रीका की शबनिम इस्माइल के 191 और ऑस्ट्रेलिया की फ्रिट्ज़पेट्रिक से मीलों आगे। इतना ही नहीं क्रिकेट के सभी फॉर्मेट में कुल मिलाकर सबसे ज़्यादा विकेट लेने वाली खिलाड़ी हैं। उनके नाम कुल 355 अंतरराष्ट्रीय विकेट हैं। उनके बाद कैथरीन ब्रन्ट (329),एलिस पेरी(313)शबनिम इस्माइल(309) और अनीसा मोहम्मद (305)  ही तीन सौ से अधिक विकेट लेने वाली गेंदबाज हैं।

झूलन एक बेहतरीन आल राउंडर खिलाड़ी हैं। मध्यम तेज गति की गेंदबाज और मध्यमक्रम की राइट हैंड बल्लेबाज़। गति उनकी बोलिंग का सबसे बड़ा हथियार है। वे निरंतर 120 किमी की गति से गेंद फेंकती रहीं है। तेज गति और अचूक लेंथ और लाइन उन्हें दुनिया की सबसे सफल गेंदबाज बनाती है।

झूलन साल 2002 में 19 साल की उम्र में चेन्नई में इंग्लैंड के खिलाफ एकदिवसीय मैच से अपने अंतरराष्ट्रीय कॅरियर की शुरुआत करती हैं। तीन महीने बाद इंग्लैंड के विरुद्ध ही वे अपना पहला टी20 मैच खेलती हैं। टेस्ट क्रिकेट का आगाज़ करने के लिए उन्हें चार साल और इंतज़ार करना पड़ता है। लेकिन इसकी शुरुआत भी होती इंग्लैंड के विरुद्ध ही है।

क्या ही संयोग है वे अपने कॅरियर की समाप्ति भी इंग्लैंड के खिलाफ ही मैच से करती हैं। कितनों के भाग्य में कॅरियर की समाप्ति लॉर्ड्स के मैदान में करना लिखा होता है। ये झूलन के भाग्य में था। ये उन्हें मिला नहीं। उन्होंने इसे अर्जित किया है।

भारतीय महिला क्रिकेट टीम इंग्लैंड के दौरे पर है। वो पहले दो मैच जीतकर 2-0 की बढ़त ले चुकी है। ऐसा पिछले 24 सालों में पहली बार हो रहा है।

फिर 24 सितंबर का दिन आता है। भारत इंग्लैंड के विरुद्ध सीरीज का तीसरा मैच होने जा रहा है। भारतीय बालाएं सीरीज जीत चुकी हैं। पर उनकी आंखें नम हैं। उनके हृदय मलिन हैं। लॉर्ड्स की फिजा में नमी उग आई है। सारा वातावरण सीला सीला सा है। उनकी अपनी पूर्व कप्तान, दुनिया की सबसे सफल गेंदबाज आज अंतिम बार जो मैदान पर उनके साथ उतरेगी।

झूलन गोस्वामी इस मैच के बाद क्रिकेट को विदा कह देंगी।

अब अद्भुत दृश्य आकार लेते जाते हैं।

मैच से पहले टॉस हो रहा है। भारतीय कप्तान टॉस के लिए अकेले नहीं जाती। उनके साथ झूलन जा रहीं हैं। इंग्लैंड की कप्तान एमी जोंस सिक्का उछालती हैं और झूलन 'हेड' कहती हैं। टॉस एमी जीतकर क्षेत्र रक्षण चुनती हैं। अब झूलन और एमी हाथ मिलाती हैं। झूलन के बराबर खड़ी हरमनप्रीत की आंखें डबडबा आई हैं।


अब भारतीय टीम बैटिंग कर रही है। भारत के सात विकेट आउट हो चुके हैं। पूजा वस्त्रकार आउट होकर वापस पैवेलियन लौट रही हैं और झूलन मैदान में प्रवेश कर रही हैं। सीमारेखा के अंदर इंग्लैंड की सभी खिलाड़ी दो समानांतर पंक्तियों में खड़ी हैं। वे झूलन को गार्ड ऑफ ऑनर दे रही हैं।

अब भारतीय टीम फील्डिंग के लिए मैदान में जा रही है। भारतीय खिलाड़ी कतारबद्ध खड़ी हैं और झूलन को 'गार्ड ऑफ ऑनर'दे रही हैं। वे झूलन को ऐसे ही पिच तक ले जाती हैं। 

ये इंग्लैंड की पारी का 36वां ओवर है। गेंद झूलन के हाथ में हैं। वे अपनी इस पारी का दसवां और अपने खेल कैरियर की आखिरी 6 गेंद फेंकने वाली हैं। 5 गेंद फेंक चुकी हैं। अब उन्होंने अपनी आखिरी गेंद फेंकी। ये एक डॉट बॉल थी। उनके जीवन की 10005वीं गेंद थी। अब तक किसी और गेंदबाज ने इतनी गेंद नहीं डाली हैं। पर झूलन औरों से जुदा हैं। वे ये कारनामा कर सकती हैं। उन्होंने कर दिखाया है।

आखिरी गेंद फेंकते ही हरमनप्रीत दौड़कर झूलन को बाहों में भर लेती हैं। उनकी आंखों से पानी बरस रहा है। इतने में सारे खिलाड़ी उनसे लिपट गए हैं। आंखें सबकी बरस रहीं हैं।

मैच समाप्त हो गया है। भारत ने ये मैच 16 रनों से जीतकर सीरीज क्लीन स्वीप कर ली है। खिलाड़ियों ने झूलन को कंधों पर उठा लिया है और कंधों पर झूलन को मैदान से बाहर जाए जाते हैं। ऐसी बिदाई झूलन के अलावा बस क्रिकेट के भगवान सचिन को ही नसीब हुई है।

दरअसल लॉर्ड्स के मैदान के ये अद्भुत दृश्य, अपने साथी को ऐसी विदाई, ऐसा सम्मान पाने के दृश्य ऐसे ही नहीं बनते। इसके पीछे घोर संघर्ष,कड़ी मेहनत, अदम्य इच्छाशक्ति और दृढ़ मनोबल की ज़रूरत पड़ती है। झूलन को ये सम्मान यूं ही नही मिल गया। ये उन्होंने अपने लिए अर्जित किया है।

ये सम्मान उनके द्वारा देखे गए सपने और उन सपनों को पूरा करने की उनकी लगन,उनकी कड़ी मेहनत,उनके असाधारण परिश्रम और अदम्य साहस का प्रतिफल है। ये क्रिकेट के लिए उनका जूनून था। टीन ऐज में रोजाना चकदाह से कोलकाता के विवेकानंद स्टेडियम तक का 80 किलोमीटर का फ़ासला झूलन जैसी जीवट की बालिका के बस की बात हो सकती है।

ये झूलन का जूनून, उनकी मेहनत और लगन ही थी कि चकदाह से कोलकाता का सफर चेन्नई से लॉर्ड्स लंदन तक के सफर में तब्दील हो जाता है। कि फुटबॉल की दीवानी एक लड़की विश्व की सबसे सफल गेंदबाज बन जाती है। कि वो अद्भुत सम्मान और अपूर्व प्रेम की हकदार बन जाती है।

झूलन का ये सम्मान दरअसल एक खिलाड़ी भर का सम्मान नहीं है। ये भारतीय महिला क्रिकेट का सम्मान है। झूलन का संघर्ष केवल एक खिलाड़ी का संघर्ष नहीं है,ये भारतीय महिला क्रिकेट का संघर्ष और विजयगाथा है।

भारतीय महिला क्रिकेट का सम्मान पाने और समान दर्जा पाने का संघर्ष पिछली शताब्दी में सत्तर के दशक में शांता रंगास्वामी जैसी ख़िलाडियों के साथ शुरू होता है। 2006 में महिला क्रिकेट का प्रबंधन बीसीसीआई अपने हाथों में ले लेता है। पर महिला खिलाड़ियों का संघर्ष जारी रहता है। उनकी स्थिति किस हद तक दयनीय थी इस बात का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि उन्हें अपनी किट तक के लिए लड़ाई लड़नी होती थी। उन्होंने हार नहीं मानी। अपनी योग्यता से उन्होंने विश्व क्रिकेट में अपनी हैसियत बनाई और वो सम्मान हासिल किया जो 24 सितंबर 2022 को लॉर्ड्स में झूलन को मिला।

झूलन  की असाधारण विदाई और सम्मान केवल झूलन का सम्मान नहीं है,ये भारतीय महिला क्रिकेट का सम्मान है,पूरी आधी आबादी का सम्मान है।

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झूलन को असाधारण क्रिकेट कॅरियर और उपलब्धियों के लिए बधाई और जीवन की नई पारी के लिए शुभकामनाएं।

खेल मैदान से अलविदा झूलन


रुक जाना 'फ़ेडेक्स' का




सुप्रसिद्ध शायर फ़िराक गोरखपुरी साहब ने कभी एक शेर कहा था-

"आने वाली नस्लें तुम पर फ़ख्र करेंगी हम अशरो। 

जब भी उनको ध्यान आएगा तुमने फ़िराक़ को  देखा है। "

भले ही हमने अदबी दुनिया के 'फिराक' को ना देखा हो,लेकिन हमने खेलों की दुनिया के 'फ़िराक' को देखा है। कि हमने रोजर फेडरर को खेलते हुए देखा है। यकीन मानिए आने वाली नस्लें ज़रूर उन सब पर रश्क़ करेंगी जिन्होंने फेडरर को खेलते हुए देखा है। जो उनके 24 साल के खेल जीवन के साक्षी रहे हैं। जिन्होंने 2003 में विंबलडन खिताब से लेकर 2022 में 23-24 सितंबर की रात को लेवर कप में राफा के साथ जोड़ी बनाकर यूरोप की टीम से अन्तिम मैच तक खेलते फेडरर को देखा ही नहीं उस खेल के जादू को महसूस किया है। 

ऐसी खुशनसीबी कितनों के भाग्य में बदी होती है।

कुछ साधक अपनी विधा के साधक भर नहीं होते, वे जादूगर होते हैं। वे अपने विधा से प्रभावित नहीं करते,बल्कि सम्मोहित करते हैं। एक ऐसा सम्मोहन जिसके असर से ताउम्र निकल नहीं पाते। बिस्मिल्लाह खान की शहनाई का जादू हो या कुमार गंधर्व के गायन का। कहां कोई बच पाता है। उदय शंकर के पैरों की थिरकन  का जादू हो लच्छू महाराज की भंगिमाओं का जादू। कौन अछूता रह जाता हैं। बेगम अख्तर की गमकती आवाज हो या परवीन शाकिर की मखमली आवाज। कौन इसमें डूब डूब नहीं जाता। 

इनकी कला के सम्मोहन से कहाँ कोई बच पाता है।

और हां, रोजर फेडरर के खेल के जादू से भी कोई कहां बच पाता है।


स्विट्ज़रलैंड की खूबसूरत वादियों में बसे बासेल में जन्मा ये जादूगर मानो अपनी धरती की सारी खूबसूरती खुद अपने में और अपने खेल में समेटे पैदा हुआ हो जिसने आगे चलकर अपने खेल कौशल से,अपनी कला से,उसके खूबसूरत निदर्शन से सारी दुनिया को अभिभूत कर देना था। कि हर किसी को उसके सम्मोहन के मोहपाश में बंध जाना था।

ये दुनिया एक रंगमंच है जिसमें पर्दा उठता है और गिरता है। टेनिस की दुनिया भी रंगमंच से इतर कहां कुछ है। जिस पर पिछले कितने दिनों से तीन पात्रों वाले जादुई यथार्थ वाले शो का मंचन चल रहा है। एक ऐसा शो जिसका पर्दा एक बार उठा तो गिरने का नाम ही ना लेता। एक ऐसा मंच जिस पर तीन पात्रों की कला का जादू बिखर बिखर जाता है। 

ये फेडरर,राफा और नोवाक है। 

ये तीनों हैं कि थकने का नाम ही ना लेते। रंगमंच का परदा हैं कि गिरने का नाम ही ना लेता। अनवरत चलता शो। तीन अंकों का। तीन अंक,तीन पात्रों द्वारा अभिनीत। पात्र, एक दूसरे से अलग भी और एक दूसरे से प्रतिघात करते हुए भी। पात्र एक दूसरे में गुँथे हुए। पात्र एक दूसरे से स्वतंत्र होते भी एक दूसरे में एकाकार। एक दूसरे के बिना आधे अधूरे से। 

ये टेनिस के आइकॉन है। ये टेनिस के देवता है। ये टेनिस की प्रतिमूर्ति हैं। 

ये फेडरर हैं,ये राफा हैं,ये नोवाक हैं।  

अंततः 

इन तीनों में से एक 'अंक' समाप्त हो रहा है। एक पर्दा गिर रहा है। एक पात्र रंगमंच से विदा ले रहा है। टेनिस का एक युग समाप्त हो रहा है। 

कि किसी ग्रीक देवता सा एक खिलाड़ी जिसे दुनिया 'फ़ेडेक्स' कहती है, टेनिस की दुनिया को अलविदा जो कह रहा है।

फेडरर अपने सन्यास के लिए लंदन को चुनते हैं। एक ऐसा स्थान जहाँ से वे महानता की पहली सीढ़ी चढ़ते हैं। अपना पहला जूनियर खिताब जीतते हैं। अपना पहला ग्रैंड स्लैम जीतते हैं।

 वे एक ऐसा समय चुनते हैं जब 19 साल का एक युवा खिलाड़ी कार्लोस अलकराज यूएस ओपन जीतकर रंगमंच से एक नए शो का पर्दा उठाता है और मंच से उदघोषणा करता है कि हम आपके योग्य उत्तराधिकारी हैं। और फेडरर हैं कि नई पीढ़ी के लिए मंच खाली कर देते हैं।

वे अपने सन्यास के लिए एक ऐसे अवसर  का चुनाव करते हैं जो टेनिस के महान खिलाड़ी रॉड लेवर के नाम पर आयोजित होता है जिनके प्रति फेडरर के मन में अगाध श्रद्धा है और जिस प्रतियोगिता को आकार लेने में वे खुद बड़ा योगदान करते हैं। वे लेवर कप में अपना आखिरी मैच खेलना चुनते हैं।

वे अपने लिए लंदन को चुनते हैं। वो लंदन जो टेनिस के जन्मस्थली इंग्लैंड की राजधानी है। लंदन जहां विम्बलडन है। वो विम्बलडन जहां वे आठ खिताब जीतते हैं। उस लंदन में जहां टेनिस अपने सबसे क्लासिक रूप में आज भी शेष है। वहां टेनिस का सबसे क्लासिक खिलाड़ी पहले टेनिस से एकाकार होता है और फिर को अलविदा कहता है। 

टेनिस है कि फेडरर हुई जाती है। फेडरर हैं कि टेनिस हुए जाते हैं। 'इन्दिरा इज इंडिया'पर बहुतेरों को गुरेज हो सकता है। पर कौन ऐसा होगा जिसे इस बात पर एतराज हो कि 'फेडरर इज टेनिस'या फिर 'टेनिस इज फेडरर'।

फेडरर 1998 में विंबलडन का जूनियर खिताब जीतते हैं। 2001 में विम्बलडन के चौथे दौर में उस समय के सबसे बड़े खिलाड़ी पीट सम्प्रास को हराकर टेनिस टूर में अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हैं। और फिर 2003 का साल आता है। वे विम्बलडन खिताब जीतकर एक नए युग के आरंभ की घोषणा करते हैं। 

और फिर 2008 तक टेनिस का समय केवल फेडरर का समय होता है जब विम्बलडन फाइनल में एक ऐतिहासिक मैच में राफेल नडाल उन्हें 6-4,6-4,6-7(5-7),6-7(8-10),9-7 से हरा नहीं देते। लगभग 5 घंटे चले इस मैच को मैकनरो सहित तमाम टेनिस विशेषज्ञ टेनिस इतिहास का सर्वश्रेष्ठ मैच मानते हैं।

उसके बाद का समय उनके पराभव का नहीं बल्कि महान त्रिकोणीय प्रतिद्वंदिता का समय है। उस समय तक टेनिस परिदृश्य पर नोवाक भी नमूदार जो हो जाते हैं। हालांकि इस त्रिकोणीय प्रतिस्पर्धा को चतुष्कोणीय बनाने के लिए एंडी मरे भी जोर आजमाइश करते पाए जाते हैं। लेकिन वे जल्द ही श्रीहीन हो जाते हैं।

जिस समय फेडरर टेनिस परिदृश्य पर पदार्पण करते हैं वो संक्रमण काल था। संक्रमण इसलिए कि खेल अपना स्वरूप बदल रहा था। सर्व और वॉली का खेल बेसलाइन के खेल में बदल रहा था।

रैकेट में आई तब्दीली इस बदलाव का बायस थी। उस समय फेडरर ने सर्व और वॉली टेक्नीक को बचा कर रखा था। वे अपने आदर्श पीट सम्प्रास की तरह तेज सर्विस करते और जितना अच्छा बेसलाइन से खेलते उतना ही अच्छा नेट पर खेलते। वे शानदार ताकतवर ग्राउंड स्ट्रोक्स से विपक्षी को हतप्रभ कर देते। पर कोणीय फोरहैंड इनसाइड आउट शॉट उनका सबसे मारक हथियार था और एक हाथ वाला बैकहैंड उनका सबसे खूबसूरत और ग्रेसफुल शॉट। 

उनके खेल की सबसे खूबसूरत बात उनका कोर्ट कवरेज होता। वे  पूरे कोर्ट में पानी की तरह बहते से प्रतीत होते। एक कोने से  दूसरे कोने तक पहुंचना एकदम एफर्टलेस होता। ऐसा करते देखना एक ट्रीट से कम ना होता।


किसी भी खिलाड़ी की महानता केवल उसकी अपनी उपलब्धियों भर से निर्धारित नहीं होती,बल्कि इस बात से भी होती कि उसके प्रतिद्वन्दी कैसे थे। खेल इतिहास में हर महान खिलाड़ी की महान प्रतिद्वंद्विताएँ रही हैं। दरअसल ये प्रतिद्वंद्विताएँ एक दूसरे के खेल को समृद्ध करती चलती है और ये दोनों मिलकर अंततः खेल को समृद्ध करती हैं। खेलों की कुछ महान प्रतिद्वंद्विताओं को देखिए। मुक्केबाजी में मोहम्मद अली बनाम जो फ्रैजियर,टेनिस में मार्टिना नवरातिलोवा बनाम क्रिस एवर्ट,बैडमिंटन में लिन डान बनाम ली चोंग वेई,गोल्फ में अर्नाल्ड पामर बनाम जैक निकलस या फिर बास्केटबॉल में लॉरी बर्ड बनाम मैजिक जॉनसन। और भी ना जाने कितनी। व्यक्तिगत भी और दलगत भी।

ठीक इसी तरह की प्रतिद्वंदिता फेडरर बनाम राफा,फेडरर बनाम नोवाक और नोवाक बनाम राफा हैं। सच तो ये है इनमें से किसी एक की बात शेष दोनों का उल्लेख किए बिना पूरी हो ही नहीं सकती। इन तीनों की प्रतिद्वंदिता ने टेनिस को असीमित ऊंचाइयों पर पहुंचाया है,उसे लिमिटलेस बना दिया है। ये एक तथ्य भर है कि 2003 से लेकर अब तक के कुल 77 ग्रैंड स्लैम में से 63 इन तीनों ने जीते हैं। राफा ने 22,नोवाक ने 21 और फेडरर ने 20। 


 ये आंकड़े हैं जो रिकॉर्ड भर बनाते हैं। अपने समय के सुप्रसिद्ध खिलाड़ी रिचर्ड्स गास्केट का मानना है कि जब महानतम निर्धारित करने की बात आती है तो ग्रैंड स्लैम की संख्या से अधिक महत्वपूर्ण 'एस्थेटिक्स और ग्रेस'हैं। वे कहते हैं' फेडरर को किसी से भी रिप्लेस नहीं किया जा सकता। जब मैं एस्थेटिक्स के नज़रिए से देखता हूँ या मैदान में उसका ग्रेस देखता हूं  तो मेरे लिए वो सर्वकालिक महानतम खिलाड़ी है।'

जिमी कॉनर्स इस बहस में एक और आयाम जोड़ते हैं। वे कहते है 'विशेषज्ञता के इस युग में खिलाड़ी या तो क्ले कोर्ट विशेषज्ञ है या ग्रास कोर्ट विशेषज्ञ या हार्ड कोर्ट विशेषज्ञ है या फिर आप रॉजर फेडरर हैं।'


आप इन तीनों के व्यक्तित्व का आकलन कीजिए तो पाएंगे कि नोवाक जातीय भेदभाव का शिकार होते हैं और अपने क्रियाकलापों और हाव भाव से सर्वहारा वर्ग के प्रतीत होते हैं। जबकि राफा का व्यक्तित्व मध्यमवर्गीय प्रतीत होता है। इन सब से अलहदा रॉजर फेडरर मैदान में और मैदान के बाहर अपनी शालीनता,अपने ग्रेस और एस्थेटिक सेंस में कुलीनवर्गीय प्रतीत होते हैं। टेनिस स्वयं अपने चरित्र में कुलीनवर्गीय है। टेनिस खेल और फेडरर का टेनिस दोनों क्लासिक हैं और क्लासिकता को पोषित करते हैं। फेडरर टेनिस के मानदंडों के करीब क्या वे स्वयं मानदंड हैं। वे टेनिस के सबसे प्रतिनिधि खिलाड़ी हैं।


लेकिन ये कैसी प्रतिद्वंदिता है। एक प्रतिद्वंदी विदा होने वाला है और उसी के प्रतिद्वंदी उसे विदाई देने वाले हैं। विदा होने वाला उदास है और विदाई देने वाले भी। आँखें सभी की नम हैं। वे एक दूसरे के प्रेम में तरल हुए जाते हैं। आखिर ये कैसी प्रतिद्वंदिता कि फेड अपने सबसे बड़े प्रतिद्वंदी राफा के साथ जोडी बनाकर आखिरी मैच खेलते हैं। कि फेड के इस आखिरी विदाई मैच में ये तीनों प्रतिद्वंदी एक ही टीम हैं। क्या ही दृश्य है कि मैच खत्म होने के बाद फेड राफा के गले मिल रहे हैं और नोवाक हैं कि उन्हें अपने कांधे पर उठाए जाते हैं। ये अद्भुत दृश्य हैं। ये खेल के मैदान पर साकार हो रहे हैं। ये दृश्य खेल के मैदान पर ही साकार हो सकते हैं।

अब फेडरर खेल से विदा ले रहे हैं।

फेडरर का टेनिस से विदा लेना एक युग का अवसान है।

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टेनिस उनके बगैर भी खेला जाता रहेगा। पर यकीन मानिए अब टेनिस वैसा बिल्कुल नहीं होगा जैसा उनके रहते होता था।

खेल मैदान से  अलविदा फ़ेडेक्स।



 

Thursday 22 September 2022

गजोधर बाबू अब नहीं रहे


          राजू श्रीवास्तव को पसन्द करना या ना करना एक व्यक्तिगत बात हो सकती है। ये भी सच है कि उन्होंने कोई बहुत उच्च कोटि का हास्य व्यंग्य रचा या कहा नहीं। वे कई बार फूहड़ हो जाते  और कई बार अश्लीलता को छूते नज़र आते। और ये भी कि वे कलाकार थे,लेकिन उनकी अपनी राजनीतिक प्रतिबद्धताएं भी थीं।

इस सब के बावजूद ये भी तथ्य है कि वे देश के सर्वाधिक लोकप्रिय स्टैंड अप कॉमेडियन थे और आम जनता उन्हें बेहद चाहती और प्यार करती है। दरअसल उन्होंने स्टैंड अप कॉमेडी को देश में बेहद लोकप्रिय बनाया और एक नया मकाम दिया। लॉफ्टर चेलेंज का पहला सीजन था तो उसमें वे भी एक प्रतिभागी थे। इसमें वे भले ही सुनील और अहसान कुरैशी से पिछड़ गए हों। लेकिन इस प्रतियोगिता से बाहर आकर उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा और लोकप्रियता में सबको पीछे छोड़ दिया।

दो,उनका अपनी बात कहने या डिलीवरी का एक खास तरीका था। भदेस सा।  इसमें वे अपनी स्थानीय कानपुरी बोली जो कन्नौजी मिश्रित अवधी थी, का तड़का लगाते। ये उनकी एक ऐसी यूएसपी थी जो उन्हें अपने सभी समकालीन स्टैंड अप कॉमेडियन से विशिष्ट बनाती थी और जनता में  लोकप्रिय भी।

तीन,सबसे महत्वपूर्ण बात ये कि वे आम जीवन की विसंगतियों और विडंबनाओं को उसके पूरे भदेसपन के साथ उजागर करते थे। उनके कहन और कंटेंट का जो भदेसपन था,दरअसल वही उनकी सबसे बड़ी विशेषता थी जो उन्हें आम जनता से कनेक्ट करती थी और उनके बीच लोकप्रिय बनाती थी।

उनकी मृत्यु के बाद जिस तरह से सोशल मीडिया और बाकी प्लेटफार्म हर छोटे बड़े आदमी ने उनके बारे में लिखा,कहा-सुना और प्रतिक्रिया दी,ये बताने के लिए पर्याप्त है कि एक कलाकार के रूप में वो कितने लोकप्रिय थे और ये कहने पर मजबूर भी करता है कि 'बंदे में दम था'।

वे स्टैंड अप कॉमेडी के काका हाथरसी हैं। जो मकाम काका हाथरसी को मंचीय हास्य कवियों में हासिल है,वही स्थान स्टैंड अप कॉमेडी में राजू श्रीवास्तव उर्फ गजोधर बाबू को हासिल है। -------------------------

अलविदा गजोधर बाबू।

Tuesday 13 September 2022

ओले ओले ओले कार्लोस




न्यूयॉर्क के फ्लशिंग मीडोज में स्थित आर्थर ऐश स्टेडियम यूएस ओपन 2022 के पुरुष वर्ग के फाइनल मैच के दौरान "ओले,ओले,ओले कार्लोस" से गूंज रहा था। दरअसल ये टेनिस के भविष्य का नया थीम सांग है। नया थीम सांग इसलिए कि वहां उपस्थित 24 हज़ार दर्शकों सहित दुनिया भर के टेनिस प्रेमी टेनिस के नए युग का आरंभ देख रहे थे। वे टीनएजर कार्लोस अलकराज गार्सिया को चैंपियन बनते देख रहे थे। अब वे नए टेनिस स्टार के उदय को देख रहे थे। दर्शक भविष्य के नए चैंपियन से रूबरू हो रहे थे।
आज स्पेन के कार्लोस अलकराज फाइनल मैच में नॉर्वे के कैस्पर रूड के खिलाफ मैच पॉइंट के लिए सर्व कर रहे थे। उन्होंने गोली की तरह दनदनाती हुई सर्विस की जो कैस्पर रूड की पहुँच से बाहर थी। ये 'ऐस' था। फाइनल मैच के अलकराज के 18 ऐस में अंतिम। अब उन्होंने अपने प्रतिद्वंदी नार्वे के कैस्पर रूड को एक बेहद संघर्षपूर्ण और रोमांचक मैच में 6-4,2-6,7-6(7-1) और 6-2 से हरा दिया था।
ऐस लगाते ही कार्लोस अलकराज पीठ के बल लेट गए। उन्होंने अपनी आंखों को अपनी हथेलियों से ढाँप लिया था। वे कुछ क्षणों के लिए निश्चेष्ट लेटे रहे मानो कोई सपना जी रहे हों। वो सपना जिसे वे ट्रॉफी प्रेजेंटेशन स्पीच में दुनिया को बता रहे थे कि 'बचपन से ही एक सपना देखा था विश्व का नंबर एक खिलाड़ी बनना। ग्रैंड स्लैम चैंपियन बनना।' मानो जिस धरती पर बचपन से देखा गया सपना हकीकत में बदल रहा था,उसकी गोद में लेटकर उसे अपना आभार जता रहे हों और अपने उस सपने को एक बार फिर से जी रहे हों।

कार्लोस अब ग्रैंड स्लैम विजेता थे। विश्व के नंबर एक खिलाड़ी थे। सबसे कम उम्र में। अपनी टीन ऐज में। वे अभी केवल 19 साल के हैं।
याद कीजिए इस साल मई में खेले गए मेड्रिड ओपन को। अलकराज क्वार्टर फाइनल में राफेल नडाल को हरा रहे थे। सेमीफाइनल में नोवाक जोकोविच को हरा थे। और फाइनल में अलेक्जेंडर ज्वेरेव को हराकर 2022 का अपना चौथा खिताब जीत रहे थे। ये टेनिस जगत की हाल के वर्षों की निहायत खूबसूरत बात थी कि एक युवा खिलाड़ी एक ही प्रतियोगिता में राफा और नोवाक को हराकर खिताब अपने नाम कर रहा था। दरअसल इस घटना में टेनिस का भविष्य झांक रहा था।
ये फाइनल अपने आप में टेनिस इतिहास की एक महत्वपूर्ण परिघटना थी। नॉर्वे के 24 वर्षीय कैस्पर रूड और 19 वर्षीय स्पेन के कार्लोस अलकराज गार्सिया दोनों ही पहली बार यूएस ओपन के फाइनल में खेल रहे थे। जो भी विजेता बनता उसे एक इतिहास लिखना था। दोनों अपने पहले ग्रैंड स्लैम के लिए जोर आजमाइश कर रहे थे। दोनों में जो भी जीतता उसे ही नंबर एक होना था। बाजी अलकराज के हाथ लगी। अलकराज की ये जीत कितनी महत्वपूर्ण है इसे इस तथ्य से समझा जा सकता है कि इससे पहले के 22 ग्रैंड स्लैम में से 20 फेडरर,राफा और नोवाक ने जीते थे।
फाइनल में दोनों खिलाड़ियों के अपने अपने प्लस-माइनस थे। अलकराज के पक्ष में ये बात थी कि इस मैच से पहले दोनों तीन मैच खेले थे और तीनों अलकराज ने जीते थे। लेकिन रूड के पास इस बात का फायदा था कि वे अपना दूसरा ग्रैंड स्लैम फाइनल खेल रहे थे। अनुभव उनके साथ था। दूसरे ये कि वे अलकराज के मुकाबले कम थके थे। अलकराज ने फाइनल में पहुंचने से पहले तीन फाइव सेटर मैच खेले थे और इन तीन मैचों में 15 घंटे से अधिक समय बिताया था। क्वार्टर फाइनल में सिनर और सेमीफाइनल में टाइफो के खिलाफ बेहद थका देने वाले मैच थे। सिनर के खिलाफ मैच रात्रि ढाई बजे तक चला था।
फाइनल में अलकराज ने शानदार शुरुआत की। तेज गति से कोर्ट कवरेज, ताकतवर शॉट्स,नेट पर शानदार सर्व एंड वॉली के बूते रूड की तीसरे गेम में सर्विस ब्रेक की और सेट 6-4 से जीत लिया। लेकिन दूसरे सेट में अलकराज पर थकान हावी दिखाई देने लगी। वे बेजा गलतियां करने लगे और ड्राप शॉट छोटे पड़ने लगे। दूसरी तरफ रूड अब अलकराज सी चपलता दिखा रहे थे। रूड ने सेट आसानी से 6-2 से अपने नाम किया। अब दोनों एक एक सेट की बराबरी पर थे। अगले सेट में अलकराज 5- 6 से पिछड़ रहे थे कि एकाएक वे जाग गए हों। उनकी थकान मानो हवा हो गयी हो। उन्होंने कहा भी कि 'ये फाइनल मैच है और ये समय थकने का नहीं है।' अलकराज ने दो सेट पॉइंट बचाए और सेट टाई में ले गए। यहां से एक अलग अलकराज दिखाई दे रहे थे। उन्होंने टाई ब्रेक 7-1 से जीता। उसके बाद अगले सेट में रूड को कोई मौका नहीं दिया और आसानी से सेट और मैच अपने नाम किया। अलकराज अब नंबर 01 खिलाड़ी और नए यूएस चैंपियन थे।
दरअसल अलकराज में अक्षय ऊर्जा है। इतनी ऊर्जा कि 5वें सेट में भी वे थके हुए नहीं लगते।असीमित स्टेमिना है। इतना स्टेमिना कि कोर्ट के हर कोने को लगातार कवर करते हैं और थकते नहीं। अतुल बल है। इतना बल कि वे 135 मील प्रतिघंटा की गति से ऐस लगा पाते हैं और ताकतवर शाट्स से विपक्षी को पस्त कर देते हैं। उनमें कमाल की चपलता है। इतनी चपलता कि असंभव से रिटर्न कर विपक्षी को हतप्रभ कर देते हैं। वे ऐसे शॉट्स पर भी अपनी पहुंच बना लेते हैं और उसको रिटर्न कर देते जिस पर दूसरा कोई खिलाडी प्रयास भी ना करे। ऊर्जा,गति,ताकत, चपलता और साथ में अपने पर बेहद विश्वास उन्हें अजेय बना देता है।
अलकराज की इस जीत को बिग थ्री युग समापन के आरंभ की घोषणा के रूप में भी देखा जा सकता है। बिग थ्री ने अपने बाद की पूरी एक पीढ़ी के ख़िलासियों को अपने खेल,योग्यता और पैशन से खत्म कर दिया थीएम,सिटसिपास,ज्वेरेव,मेदवेदेव को वो कुछ हासिल नहीं करने दिया जो वे हासिल कर सकते थे। ये उन खिलाड़ियों का दुर्भाग्य था कि वे बिग थ्री के रहते खेले।
लेकिन अब फेडरर40 से ऊपर के हैं और उनकी वापसी की कोई उम्मीद नहीं लगती। राफा 36 प्लस है। चोटों से जूझ रहे हैं। उन्होंने कहा भी कि 'नहीं पता अब कब कोर्ट में वापसी होगी।'नोवाक 35 के ज़रूर है। पर उनकी फिटनेस अभी भी कमाल की है। उनमें अभी काफी खेल बाकी है। लेकिन सबसे युवा पीढ़ी जिस तरह का खेल दिखा रही है,वो बेहद रोमांचक और उम्मीद जगाने वाला है। बिग थ्री के दो बचे योद्धा राफा और नोवाक किस तरह इस नई पीढ़ी का सामना करते हैं, 2023 में ये देखना रोचक होगा। और ये भी कि नई पीढ़ी के युवा खिलाड़ियों-रूड, अलकराज, सिनर,बेरेटिनी आदि -की पावर और टेलेंट का राफा और नोवाक किस तरह जवाब देते हैं। पुराने और नए का द्वंद हमेशा तनावपूर्ण लेकिन रोचक और संभावनाओं से भरा होता है।
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फिलहाल तो अलकराज को उनका पहला ग्रैंड स्लैम मुबारक हो।
ओले ओले ओले कार्लोस।

नई टेनिस क्वीन:इगा स्वियातेक




न्यूयॉर्क के फ्लशिंग मीडोज के आर्थर ऐश एरीना में यूएस ओपन के दौरान खेल के नेपथ्य में एफ्रो अमेरिकनों के दुःख दर्द के वाहक जैज़ संगीत को बहते हुए महसूस किया जा सकता है। समय-समय पर एफ्रो अमेरिकन खिलाड़ी अपने खेल से इस संगीत की कोई तान छेड़ उसके स्वर को ऊंचा कर देते हैं और संगीत की ये ऊंची तान है कि अपने आकर्षण के मोहपाश में बांध बांध लेती है।
इस साल पुरुष वर्ग में फ्रांसिस टिआफो इस संगीत की तान मद्धम सुर में सेमीफाइनल तक छेड़ते रहे। लेकिन महिला वर्ग में सेरेना विलियम्स की तीसरे दौर में हार से ये संगीत उसके आंसुओं में घुलकर विलीन हो गया और उसकी जगह पॉप संगीत ने ले ली। और इसको छेड़ने वाली थी पोलैंड की 21 वर्षीया इगा स्वियातेक।
वे ब्रिटिश पॉप स्टार सील की दीवानी हैं। सील का एक बहुत प्रसिद्ध गीत है क्रेजी। इस गीत की पंक्ति है 'हम कभी सर्वाइव नहीं कर सकते जब तक कि हम थोड़े क्रेजी ना हो जाएं....लोगों से भरे इस संसार में थोड़े से लोग होते हैं जो उड़ना चाहते हैं क्या ये क्रेजी नहीं है।' और खिलाड़ियों की इस भीड़ में इगा उन थोड़े से खिलाड़ियों में हैं जो सफलता के आसमान में उड़ना चाहती हैं। वे थोड़ी नहीं बहुत क्रेजी होती हैं और हर चुनौती से पार पा सर्वाइव करती हैं और विजेता बनती हैं।
इस बार का महिला वर्ग का फाइनल पोलैंड की इगा स्वियातेक और अल्जीरिया की ओंस जेबुर के बीच खेला गया। दोनों पहली बार यूएस ओपन के फाइनल में खेल रहीं थीं और जो भी जीतता एक इतिहास लिखता। जीत इगा के हिस्से आई। उन्होंने ओंस को सीधे सेटों में 6-2,7-6(7-5) हराकर अपना तीसरा और साल का दूसरा ग्रैंड स्लैम जीता। वे ये खिताब जीतने वाली पहली पोलिश महिला खिलाड़ी हैं। जेबुर हारकर ये खिताब जीतने वाली पहली अफ्रीकन महिला खिलाड़ी बनने से चूक गईं।
नंबर वन रैंकिंग के साथ इगा इस खिताब को जीतने के लिए सबसे फेवरिट खिलाड़ी मानी जा रही थीं और उन्होंने कर दिखाया। यहां आने से पहले वे फ्रेंच खिताब जीत चुकी थीं। और शानदार खेल रही थीं। विम्बलडन में तीसरे दौर में अलिज़े कोर्नेट से हारने से पहले लगातार 37 मैच जीतकर सेरेना विलियम्स के रिकॉर्ड को ब्रेक कर चुकी थीं। इतना ही नहीं इस साल यहां आने से पूर्व 6 खिताब अपने नाम कर चुकी थीं जिसमें चार डब्ल्यूटीए 1000 खिताब शामिल थे।
दूसरी और 28 वर्षीया विश्व नंबर 05 ओंस जेबूर की चुनौती भी कम नहीं थी। वे विम्बलडन के फाइनल में पहुंचने वाली पहली अरब महिला बनने का गौरव हासिल कर चुकी थीं। वे फाइनल में एक संघर्षपूर्ण मैच में कजाकिस्तान की एलिना रीबाकिना से 6-3,2-6,2-6 से हार गईं थीं। लेकिन यहां वे इगा के विरुद्ध वे 2-2 मैचों की बराबरी पर थीं। और अपने पावर प्ले से किसी भी खिलाड़ी को हराने का माद्दा रखती हैं।
लेकिन इगा ने ओंस के विरुद्ध मई में रोम ओपन में खेले गए अंतिम मैच में ओंस को आसानी से 6-2,6-2 से हराया था। जब आज का फाइनल शुरू हुआ तो इगा ने अपनी सधी सर्विस और डीप स्ट्रोक्स के जरिए ओंस की सर्विस ब्रेक की और 3-0 की बढ़त ले ली। लेकिन ओंस ने वापसी की और दमदार ग्राउंड स्ट्रोक्स के बूते इगा की सर्विस ब्रेक की और स्कोर 3-2 कर लिया। पर इगा ने आगे कोई मौका नहीं दिया और पहला सेट 6-2 से जीत लिया। और दूसरे सेट में 3-0 की बढ़त बना ली तो लगा कि रोम को दोहराया जा रहा है। लेकिन ओंस ने हार नहीं मानी। उन्होंने दो सर्विस ब्रेक कर स्कोर 4-4 और फिर 6-6 कर सेट को टाइब्रेकर में ले गईं। अन्ततः टाईब्रेक 5-7 से हारकर सेट और खिताब हार गईं।
जीत की बाद इगा कह रही थीं 'आज मुझे पता चला मेरे लिए आसमां ही सीमा है' तो निसंदेह उनके मन में अपने प्रिय गायक सील के गाने 'क्रेजी'की पंक्ति 'लोगों से भरे इस संसार में थोड़े से लोग होते हैं जो उड़ना चाहते हैं'घूम रही होगी।
दरअसल सेरेना विलियम्स के पराभव के बाद एक महिला टेनिस में एक ऐसी रिक्ति सी आ गयी थी जिसमें एक शक्तिशाली खिलाड़ी के अभाव में सभी खिलाड़ियों के लिए मैदान खुला था और हर ग्रैंड स्लैम में एक नई खिलाड़ी विजेता बन रही थी। इसको इस तथ्य से भी समझा जा सकता है कि इस समय खेल रही खिलाड़ियों में सेरेना(23), नाओमी ओसाका(04)और एंजेलिक करबर(03) के बाद इगा चौथी ऐसी खिलाड़ी हैं जिन्होंने 03 या उससे अधिक ग्रैंड स्लैम खिताब जीते हैं।
दरअसल वे सेरेना द्वारा खाली स्थान को भर रही हैं और उनकी सही उत्तराधिकारिणी हैं। वे पॉवर खेल में ही नहीं मानसिक दृढ़ता में भी सेरेना की तरह मजबूत हैं। ये उन्होंने आज फाइनल में दिखाया भी। आज दर्शकों के जबरदस्त शोर और ओंस को समर्थन के बावजूद शानदार खेल दिखाया। खेल के बाद सुप्रसिद्ध टेनिस खिलाड़ी क्रिस एवर्ट कह रही थीं 'आज इगा ने इस प्रतियोगिता का सबसे शानदार मैच खेला। वे नंबर वन खिलाड़ी की तरह ही खेल रही थीं।'
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निःसंदेह आज वे आज जीत की खुशी में थोड़ी थोड़ी क्रेजी हुई जा रही होंगी और सील को गुनगुना रही होंगी-
"...लोगों से भरे आकाश में कुछ ही लोग हैं जो उड़ना चाहते हैं, क्या ये क्रेजी नहीं है,
लोगों से भरे स्वर्ग में कुछ ही लोग हैं जो उड़ना चाहते हैं,क्या ये क्रेजी नहीं है,
लोगों से भरी दुनिया में कुछ ही लोग हैं जो उड़ना चाहते हैं,
क्या ये क्रेजी नहीं है,क्या ये क्रेजी नहीं है,क्या ये क्रेजी नहीं है,
लेकिन कभी सर्वाइव नहीं कर सकते जब तक कि हम थोड़े क्रेजी ना हो जाएं..."
इगा को ये जीत मुबारक।

भारतीय पुरातत्व के पितामह




प्रख्यात पुरातत्ववेत्ता प्रो. बृजवासी लाल का 10 सितंबर को 101 वर्ष की भरी पूरी उम्र में दिल्ली में निधन हो गया। वे पिछले कुछ दिन से बीमार थे और एक अस्पताल में भर्ती थे। वे संस्कृत के विद्यार्थी थे। उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से संस्कृत में एमए किया। उसके बाद में उनकी पुरातत्व में रुचि हुई और प्रसिद्ध पुरातत्ववेत्ता मार्टिमर व्हीलर के सानिध्य में पुरातत्व में प्रशिक्षित हुए।
वे 1968 से 1972 तक भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के महानिदेशक रहे और उसके बाद भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान शिमला के निदेशक भी रहे। उनकी सेवाओं के लिए 2021 में उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था। जबकि सन 2000 में उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था।
प्राचीन इतिहास का विद्यार्थी होने के नाते ही उनसे परिचय नहीं था, बल्कि ये सौभाग्य था कि अनन्य मित्र अजय प्रकाश खरे के सगे ताऊ जी होने के कारण भी उनसे व्यक्तिगत परिचय और मुलाकातें थीं। उनके साथ श्रृंगबेरपुर पुरातात्विक उत्खनन स्थल देखने और समझने का सौभाग्य भी प्राप्त हुआ था।
वे बहुत ही सहज और सरल व्यक्तित्व थे। वे सार्वजनिक जीवन में ही नहीं, बल्कि व्यक्तिगत जीवन में भी बहुत अधिक संयमित और अनुशासित थे। वे जब भी इलाहाबाद आते अपने छोटे भाई श्री ओ पी खरे के सर्कुलर रोड की येलो कॉलोनी के फ्लैट में ही रुकते और वहीं पर अजय खरे के मित्र होने के विशेषाधिकार के नाते उनसे मिलने का अवसर मिलता। यहां पर भी उनकी दिनचर्या बहुत ही अनुशासित होती थी। इस दिनचर्या में अध्ययन अनिवार्यतः शामिल होता। हमेशा ही उनकी पत्नी साथ होती जिन्हें हम सभी लोग जिया कहते।
निःसंदेह वे एक महान पुरातत्ववेत्ता थे और एक पुरातत्ववेत्ता के रूप में प्राचीन भारतीय इतिहास की निर्मिति में उनका योगदान अविस्मरणीय है। भारत के प्रागैतिहासिक काल के इतिहास और प्रागैतिहासिक काल से ऐतिहासिक काल में संक्रमण के समय के इतिहास निर्मिति में उन्होंने महत्वपूर्ण हस्तक्षेप किया। दरअसल पुरातात्विक स्थलों के उत्खनन का सुचिंतित खाका उनके दिमाग में था। उन्होंने रामायण और महाभारत से संबंधित स्थलों पर योजनाबद्ध ढंग से उत्खनन कार्य किया। '50 के दशक में दिल्ली के पुराने किले और हस्तिनापुर जैसे महाभारत से जुड़े स्थलों पर उत्खनन कार्य किया,तो '70 के दशक में एएसआई के प्रोजेक्ट के तहत रामायण से स्थलों-श्रृंगबेरपुर, भारद्वाज आश्रम,चित्रकूट,नंदीग्राम और अयोध्या में उत्खनन कार्य किया। दरअसल उन्होंने दो महाकाव्यों-महाभारत और रामायण को एक पुरातात्विक आधार प्रदान किया।
उन्होंने बहुत ज़्यादा स्थलों पर उत्खनन कार्य किया। उपरलिखित स्थलों के अतिरिक्त उन्होंने हड़प्पा सभ्यता से संबंधित स्थल कालीबंगा और राखीगढ़ी,मध्यपाषाण काल से संबंधित स्थल वीरभानपुर,ताम्रपाषाण युग से संबंधित स्थल गिलुन्द और शिशुपालगढ़ में उत्खनन कार्य किया। इतना ही नहीं उन्होंने यूनेस्को के प्रोजेक्ट के तहत नूबिया (मिस्र) में भी उत्खनन कार्य किया। इन स्थलों पर उत्खनन के फलस्वरूप मिली सामग्री के आधार पर चित्रित धूसर मृदभांड संस्कृति, ताम्र निधि संस्कृति, गेरुए मृदभांड संस्कृति और नॉर्दर्न ब्लैक पॉलिश्ड मृदभांड संस्कृति और उनके अंतःसंबंधों पर महत्वपूर्ण प्रस्थापनाएँ दी।
उनका एक महत्वपूर्ण कार्य अयोध्या में राम मंदिर होने की अवधारणा को पुरातात्विक साक्ष्यों से आधार प्रदान करना था। '70 के दशक में अयोध्या में उनके नेतृत्व में उत्खनन कार्य किया गया। इस उत्खनन पर उन्होंने सात पृष्ठों की अलग से एक रिपोर्ट प्रस्तुत की जिसमें उन्होंने बाबरी मस्जिद के बगल में मंदिर के स्तंभ आधार होने की बात कही। इस रिपोर्ट के बाद वहां उत्खनन कार्य रोक दिया गया और इस उत्खनन की विस्तृत रिपोर्ट कभी तैयार नहीं की जा सकी। लेकिन '80 के दशक में एक लेख में और बाद में 2008 में 'राम,हिज हिटोरिसिटी,मंदिर एंड सेतु:एविडेंस ऑफ लिटरेचर,आर्कियोलॉजी एंड अदर साइंस' पुस्तक लिखकर उन्होंने मस्जिद के नीचे मंदिर के ढांचे के होने की बात की। दरअसल उनकी इस प्रस्थापना के बाद वामपंथी इतिहासकारों ने उन्हें दक्षिणपंथी और साम्प्रदायिक करार दिया।
सिर्फ मंदिर की ही नहीं बल्कि उन्होंने पश्चिमी इतिहासकारों द्वारा निर्मित और वामपंथी इतिहाकारों द्वारा पुष्ट प्राचीन भारतीय इतिहास की कई मान्यताओं का खंडन किया और अपनी प्रस्थापना स्थापित कीं। इनमें एक आर्यों के आक्रमण या बाहर से आने की मान्यता है जिसका खंडन करते हुए आर्यों को यहीं का बताया। हड़प्पा सभ्यता पर लिखी गयी पुस्तक 'अर्लियर सिवलाईजेशन ऑफ साउथ एशिया' में पहली बार आर्यों के प्रश्न को उठाया और फिर 'द सरस्वती फ्लोज ऑन' (2002)और 'द ऋग्वैदिक पीपल : द इनवडर्स? द इमिग्रेंट्स?ओर इंडिजिनस? जैसी पुस्तकों ने इस विचार को पुष्ट किया।
उन्होंने कुल मिलाकर 50 से अधिक पुस्तकें और 150 से अधिक शोध पत्र लिखे। वे सेवा निवृति के बाद भी बहुत ही शिद्दत से लेखन और शोधकार्य में संलग्न रहे।
बहुत बड़ी संख्या में पुरातात्विक स्थलों का उत्खनन,महाभारत और रामायण को पुरातात्विक आधार प्रदान करना,कही भी उत्खनन करने के बजाय प्रागैतिहासिक इतिहास के मूल प्रश्नों को हल करने के दृष्टिकोण से विचार कर उत्खनन कार्य को नई दिशा देना,अयोध्या में राम मंदिर होने की अवधारणा को पुरातात्विक आधार देना और पच्छिमी व वामपंथी इतिहासकारों द्वारा स्थापित मान्यताओं का खंडन कर नई प्रस्थापनाएं देना उनके भारतीय पुरातत्व और इतिहास को ऐसे योगदान हैं जिन्हें कभी नहीं भुलाया जा सकता।
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दरअसल वे भारतीय पुरातत्व के पितामह हैं।
उनकी स्मृतियों को सादर नमन और विनम्र श्रद्धांजलि।

ये हार भारतीय क्रिकेट का 'माराकांजो' है।

आप चाहे जितना कहें कि खेल खेल होते हैं और खेल में हार जीत लगी रहती है। इसमें खुशी कैसी और ग़म कैसा। लेकिन सच ये हैं कि अपनी टीम की जीत आपको ...