tag:blogger.com,1999:blog-84659154536201310022024-03-17T00:21:39.379+05:30 बात अपनीबात अपनीhttp://www.blogger.com/profile/05725525971715117550noreply@blogger.comBlogger386125tag:blogger.com,1999:blog-8465915453620131002.post-43232712404488973512023-11-21T19:02:00.002+05:302023-11-21T19:02:59.800+05:30 ये हार भारतीय क्रिकेट का 'माराकांजो' है।<p style="text-align: justify;"></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><br /></div><br /><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><br /></span><p></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhKIywFH2mKnRrXIzT2PZtxVm5lYb3r9Za9Bb3TQ0hL8r6G0wHwA6LUt1XOG3oJlTdVhPt93OVQfst1FYJMuVG93bajEfc62lSLizJM4jo8oVpg3i0HymKKeOHsf1Rpty13mFAN4_g7jb-KO3TwntBaMGW8FJDNX0M6WvEXrD3VQ5RRuh7UPGRqRW8raMk/s1080/ind-vs-aus-2.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="660" data-original-width="1080" height="196" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhKIywFH2mKnRrXIzT2PZtxVm5lYb3r9Za9Bb3TQ0hL8r6G0wHwA6LUt1XOG3oJlTdVhPt93OVQfst1FYJMuVG93bajEfc62lSLizJM4jo8oVpg3i0HymKKeOHsf1Rpty13mFAN4_g7jb-KO3TwntBaMGW8FJDNX0M6WvEXrD3VQ5RRuh7UPGRqRW8raMk/s320/ind-vs-aus-2.jpg" width="320" /></a></div><br /><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>आप</b> चाहे जितना कहें कि खेल खेल होते हैं और खेल में हार जीत लगी रहती है। इसमें खुशी कैसी और ग़म कैसा। लेकिन सच ये हैं कि अपनी टीम की जीत आपको अनिर्वचनीय आनंद से भर देती हैं और हार गहरे अवसाद और निराशा से।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"> <b>अहमदाबाद</b> में क्रिकेट विश्व कप के फाइनल में भारत की हार सालों साल मन को कचोटती रहेगी। एक दुःख रिसता रहेगा। ये एक ऐसी अप्रत्याशित हार थी जिसकी किसी भी भारतवासी ने कल्पना नहीं की थी।</span></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgV7PegowAi31mLHEnc93GtoaL96ZU6CAZStEYMoPjnWDH_MD-5CFalNF6XKP53REPwf2Unh7rxx64NU7a9miXU0eYjlN2zMHzQVq30ISs4q3-41PRQ3p7LYT8s_3r8qjmZFJakT_e9nQk29rrPNn5L9HEsgE5RHPGin6WPFXtxOUjzmlUWz9amEdmWtxY/s730/gif-8_1700447107.gif" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="548" data-original-width="730" height="240" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgV7PegowAi31mLHEnc93GtoaL96ZU6CAZStEYMoPjnWDH_MD-5CFalNF6XKP53REPwf2Unh7rxx64NU7a9miXU0eYjlN2zMHzQVq30ISs4q3-41PRQ3p7LYT8s_3r8qjmZFJakT_e9nQk29rrPNn5L9HEsgE5RHPGin6WPFXtxOUjzmlUWz9amEdmWtxY/s320/gif-8_1700447107.gif" width="320" /></a></span></div><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><br /></span><p></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>भारत</b> अपने सभी प्रतिद्वंदियों को बेतरह हराकर फाइनल तक पहुंचा था। उसने ऑस्ट्रेलिया सहित 09 टीमों को परास्त किया था। उसके बाद सेमीफाइनल में न्यूजीलैंड को दुबारा हराकर फाइनल में प्रवेश किया था। उसके बल्लेबाज़ और गेंदबाज शानदार फार्म में थे। उससे तनिक पहले भारत ने एशिया कप भी शानदार तरीक़े से जीता था और अपने सभी प्रतिद्वंदियों को बेतरह हरा दिया था। फिर ये विश्वकप तो भारत अपने देश में खेल रहा था और फाइनल में स्टेडियम के भीतर टीम को 13 मिलियन लोगों का समर्थन हासिल था। </span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>पर</b> खेल में अनहोनी होना कोई अनहोनी नहीं होता। खेल में ऐसे ही इतिहास रचे जाते हैं। भारतीय टीम फाइनल हार गई। ये विश्वकप 10 शानदार जीत के लिए नहीं, बल्कि एक जीत से चूक जाने के लिए याद किया जाएगा।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"> <b>याद</b> कीजिए 1950 का फुटबॉल विश्वकप। ये ब्राज़ील में खेला गया था। फाइनल में ब्राज़ील और उरुग्वे की टीम थीं। उस समय ब्राज़ील की टीम विजयी रथ पर सवार थी। वो सभी प्रतिद्वंदियों को बुरी तरह हराकर फाइनल में पहुँची थी। फिर वो अपने देश में खेल रही थी। उसकी जीत में किसी को संदेह नहीं था। । उरुग्वे ने ब्राज़ील को 2-1 हरा दिया था। ये मैच रियो डी जेनिरो के माराकाना स्टेडियम में खेला गया था।और तब उस हार से एक नया शब्द प्रचलन में आया था 'माराकांजो' यानी माराकाना का अभिशाप। </span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>उस</b> अप्रत्याशित हार का दर्द हर ब्राज़ील वासी के मन में भीतर ही भीतर आज तक रिसता चला आ रहा है। </span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>और</b> इस अप्रत्याशित हार का दर्द हर भारतवासी के मन में अनंत काल तक रिसता रहेगा।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>हार्ड लक टीम इंडिया।</b></span></p>बात अपनीhttp://www.blogger.com/profile/05725525971715117550noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8465915453620131002.post-4226399929312503542023-10-24T22:28:00.001+05:302023-10-24T22:28:58.136+05:30सरदार ऑफ स्पिन<div style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg82eHuWrSsVpSBFs1LL_ykWdCuDxOEmNQ5ks4EnTENlS-XBvf8SFHBFfgm4H2l0xZ9hyphenhyphen4Ir2hbOpy1bD0bR_AVBy5lQbo74CRit96lPtI-nfo0LCzVpxs_Q1Z7nf3BljBy075OcN5MON9fve-itZVvv_udGBOpemPfDKhvxgNckQKyirOUl_LfJ_2tTCw/s924/FB_IMG_1698166688902.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="886" data-original-width="924" height="307" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg82eHuWrSsVpSBFs1LL_ykWdCuDxOEmNQ5ks4EnTENlS-XBvf8SFHBFfgm4H2l0xZ9hyphenhyphen4Ir2hbOpy1bD0bR_AVBy5lQbo74CRit96lPtI-nfo0LCzVpxs_Q1Z7nf3BljBy075OcN5MON9fve-itZVvv_udGBOpemPfDKhvxgNckQKyirOUl_LfJ_2tTCw/s320/FB_IMG_1698166688902.jpg" width="320" /></a></div><br /><b><br /></b></span></div><div style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>हमारी</b> स्मृतियां सिर्फ देखी गई चीजों से ही नहीं बनती बल्कि पढ़ी गई और सुनी गई चीजों से भी बनती हैं। हम उस पीढ़ी के लोग हैं जब हम बाल्यावस्था से किशोरावस्था की और बढ़ रहे थे,तब टीवी नहीं आया था और रेडियो का जलवा आज के मोबाइल फोन से भी बड़ा हुआ करता था।</span></div><div style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><br /></span></div><div style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>उस</b> समय भी तमाम इवेंट्स और खेलों का सजीव प्रसारण होता था। टीवी पर नहीं बल्कि रेडियो पर। हम रेडियो की कमेंट्री सुनते हुए बड़े हो रहे थे। और ये रेडियो की कमेंट्री का स्वर्णकाल था।</span></div><div style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><br /></span></div><div style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>वो</b> समय जसदेव सिंह,स्कन्द गुप्त,मनीष देब और सुशील दोषी जैसे शानदार कमेंटेटरों का समय था जो माइक्रोफोन के जरिए खेल मैदान के दृश्यों का हूबहू चित्र अपनी आवाज की कूंची से सुदूर बैठे श्रोताओं के मन मष्तिष्क में उकेर देते थे। </span></div><div style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><br /></span></div><div style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"> समय रेडियो के माध्यम से बने चित्र और स्मृतियां आज भी इतनी चमकीली और उजली हैं कि उनके सामने निकट अतीत में दृश्य माध्यमों से बने चित्र फीके और धुंधले प्रतीत होते हैं। मसलन 1975 में विश्व कप हॉकी में जीत या 1983 में क्रिकेट विश्व कप में जीत की स्मृतियां 2007 और 2011 की जीत की स्मृतियों से गहरी और उजली हैं।</span></div><div style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><br /></span></div><div style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>ऐसी</b> ही अमिट स्मृतियाँ उस समय के खेल जगत की तमाम हस्तियों की भी हैं। उन दिनों एक त्रयी हुआ करती थी भारतीय स्पिनरों की जिन्होंने गेंदबाजी की स्पिन विधा की नई परिभाषा गढ़ी थी और उसको अनंतिम ऊँचाईयों पर पहुँचाया था। इस त्रयी का निर्माण इरापल्ली प्रसन्ना,चंद्रशेखर और बिशन सिंह बेदी करते थे। और इससे जुड़कर वेंकट राघवन इसे चौकड़ी में तब्दील कर दिया करते थे।<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjhA1Cy6ZVtcQxI6-31NXlj6ngwhZ7WpipYt42m3Za0PJBA1Rx_l1Gml2DY15qzDmyQZx9BNNIyFYpqee7YAlzV5veaN2URtPN3h4wW6pX24HP-JRQVcxBEi3ltOwND_KmtxEs61RmHfgmYaHSEFh9OngKv_piRrq5Jne8ZBKyF1nW2-XfN62FfGD4TWUg/s192/bishan-bedi.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="192" data-original-width="192" height="192" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjhA1Cy6ZVtcQxI6-31NXlj6ngwhZ7WpipYt42m3Za0PJBA1Rx_l1Gml2DY15qzDmyQZx9BNNIyFYpqee7YAlzV5veaN2URtPN3h4wW6pX24HP-JRQVcxBEi3ltOwND_KmtxEs61RmHfgmYaHSEFh9OngKv_piRrq5Jne8ZBKyF1nW2-XfN62FfGD4TWUg/s1600/bishan-bedi.jpg" width="192" /></a></div><br /></span></div><div style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><br /></span></div><div style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>अब</b> जब बिशन पाजी के इस दुनिया को अलविदा कहे जाने की खबरें आ रही हैं,तो मन यादों के गलियारे में अपने फन के एक ऐसे फनकार की छवियों को ढूंढ रहा है,जो अपने फन का उस्ताद था। ऐसा उस्ताद जिसकी बराबरी उस समय दुनिया में कोई ना कर पाता था। एक ऐसा फनकार जिसकी उंगलियों में जादू था। ऐसा जादूगर जो गेंद को इस तरह घुमाता कि दुनिया का बड़े से बड़ा बल्लेबाज़ नाच जाता। एक ऐसा करामाती जो अपनी गेंदों को ऐसी उड़ान देता कि दिग्गज से दिग्गज बल्लेबाज का विकेट उड़ जाता।</span></div><div style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><br /></span></div><div style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"> <b>आज</b> मन में अलग अलग रंग के और खास तौर पर गुलाबी और आसमानी रंग के पटके पहने बिशन पाजी की असंख्य छवियाँ बन बिगड़ रही हैं। वे बाएं हाथ के ऑर्थोडॉक्स लेग स्पिनर थे जिन्होंने 1966 से 1979 तक भारत के लिए 67 टेस्ट मैच खेले और 266 विकेट लिए। साथ ही 22 टेस्ट मैचों में कप्तानी भी की। उन्होंने प्रथम श्रेणी में 1560 विकेट लिए जो किसी भी भारतीय द्वारा लिए गए सर्वाधिक विकेट हैं।</span></div><div style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><br /></span></div><div style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>1986</b> में बिशन सिंह बेदी के बारे में डी जे रत्नागर 'बार्कलेज वर्ल्ड ऑफ क्रिकेट' में लिख रहे थे कि उनकी 'गेंदबाजी बेहद खूबसूरत और ग्रेसफुल थी जिसमें चतुराई और कलात्मकता दोनों एक साथ समाई थी।' उनका बॉलिङ्ग एक्शन इतना लयात्मक होता जैसे किसी सिद्धहस्त वायलिन वादक का स्ट्रिंग पर बो को साधना। वे इतनी सहजता और कलात्मकता के साथ बॉलिंग करते कि उन्हें बॉलिङ्ग करते देखना ट्रीट होता। ठीक वैसे जैसे किसी आर्केस्ट्रा में सैकड़ों वायलिन वादकों का एक लय में वायलिन साधना।</span></div><div style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><br /></span></div><div style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>वे</b> क्लासिक खब्बू लेग स्पिनर थे। उनका अपनी गेंदबाजी पर अद्भुत नियंत्रण था। वे लगातार एक स्पॉट पर गेंद फेंक सकते थे और ओवर दर ओवर मेडन रख सकते रहे। वे लांस गिब्स के बाद टेस्ट क्रिकेट के सबसे किफायती गेंदबाज थे। 1975 के </span><span style="color: #2b00fe; font-size: large;">विश्व कप में ईस्ट अफ्रीका के विरुद्ध भारत की पहली ओडीआई जीत थी। उसमें बिशन पाजी का गेंदबाजी विश्लेषण था-12 ओवर,08 मेडन,06 रन और 01 विकेट।</span></div><div style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><br /></span></div><div style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>दरअसल</b> वे सर्वश्रेष्ठ शास्त्रीय लेग स्पिनर थे। और वे लेग स्पिन विधा के दिलीप कुमार ठहरते हैं। ना उससे कम ना उससे ज़्यादा। जिस तरह चाहे कितने ही शाहरुख खान आ जाएं,दिलीप साहब नहीं हो सकते। ठीक उसी तरह चाहे जितने शेन वार्न या कुंबले आ जाएं,बिशन पाजी नहीं बन सकते। कोई भी उनसे बेहतर या खराब हो सकता है, लेकिन बिशन पाजी नहीं हो सकता। बिशन बेदी दुनिया में अपनी तरह का एक हुआ और एक ही रहेगा।</span></div><div style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><br /></span></div><div style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>क्लासिक</b> अर्थों में वे लेग स्पिन के मोहम्मद रफी थे। रफी साहब के पक्के सुरों की तरह उनकी गेंदबाजी होती। जो अपनी लेंथ से ज़रा भी इधर उधर ना होती। हां उनकी आर्मर गेंद लय के बीच मुरकियों की तरह होती जो उनकी गेंदबाजी को एक अतिरिक्त ऊंचाई देती।</span></div><div style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><br /></span></div><div style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>जिस</b> तरह उनकी गेंदबाजी धारदार होती उसी तरह उनका व्यक्त्वि भी धारदार था। वे बहुत मुखर और स्पष्ट वक्ता थे और हमेशा न्याय के पक्ष में खड़े होते। वे हर बात पर अपनी स्पष्ट राय रखते और उसे बिना किसी लाग लपेट के व्यक्त करते। उन्होंने श्रीलंका के महान स्पिनर मुरलीधरन चकर कहा और मुरलीधरन की मानहानि की धमकी के बाद भी अपनी बात पर कायम रहे। उनका स्पष्ट मानना था कि 'गेंदबाजी में चकिंग सट्टेबाजी और फिक्सिंग से भी ज़्यादा खतरनाक' है।</span></div><div style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><br /></span></div><div style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>भले</b> ही वे असफल रहे हों लेकिन उन्होंने दिल्ली क्रिकेट प्रशासन को सुधारने का भरसक प्रयास किया और राजनीतिक लोगों से दूर रखने का प्रयास भी। उन्होंने फिरोजशाह कोटला का नामकरण एक राजनीतिज्ञ के नाम पर रखे जाने के विरोध में उस स्टेडियम के एक प्रमुख स्टैंड को अपना नाम नहीं देने दिया।</span></div><div style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><br /></span></div><div style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>वे</b> टी20 फॉरमेट के हमेशा आलोचक रहे और आईपीएल के भी। आईपीएल की ऑक्शन के वे हमेशा विरोधी रहे और उसमें खिलाड़ियों की नीलामी की तुलना उन्होंने घोड़ों की नीलामी से की।</span></div><div style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><br /></span></div><div style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>उनका</b> ये स्पष्ट मानना था कि क्रिकेट का खेल और उसका सम्मान हार जीत से ऊपर है। फिर चाहे 1976 के वेस्टइंडीज दौरे के चौथे टेस्ट मैच में वेस्टइंडीज के तेज गेंदबाजों की खतरनाक गेंदबाजी के विरोध में अपने खिलाड़ियों की सुरक्षा के मद्देनजर पारी की घोषणा करना हो, 1976-77 के इंग्लैंड के भारत दौरे में जॉन लीवर पर वैसलीन प्रयोग के आरोप हो या फिर 1978 में पाकिस्तान दौरे में अंपायरों के पक्षपात पूर्ण रैवैय पर टीम को वापस बुला लेने का निर्णय हो।</span></div><div style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><br /></span></div><div style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>दरअसल</b> एक खिलाड़ी के रूप में महान,एक लेग स्पिनर के रूप में सर्वश्रेष्ठ, एक व्यक्ति के रूप में मुखर और स्पष्टवक्ता जिनका व्यक्तिगत जीवन बहुत ही बिंदास और मनमौजी था जो शराब,खाना और ठहाकों के मेल से बना था।</span></div><div style="text-align: justify;"><span style="color: #990000; font-size: medium;"><br /></span></div><div style="text-align: justify;"><span style="color: #990000; font-size: medium;">----------------</span></div><div style="text-align: justify;"><span style="color: #990000; font-size: medium;"><b>जिसने</b> भी जन्म लिया उसकी मृत्यु अवश्यम्भावी है। लेकिन कुछ मृत्यु आपको गहरे अवसाद से भर देती हैं। लेकिन बिशन पाजी जैसा व्यक्तित्व भले ही भौतिक रूप से हमारे बीच न रहे उनकी यादें हमेशा हमारे जेहन में बनी रहेगी।</span></div><div style="text-align: justify;"><br /></div><div style="text-align: justify;"><span style="color: #990000; font-size: medium;"><b>हां</b> इस फानी दुनिया से बिशन पाजी को अलविदा कहना ही है। तो अलविदा पाजी।</span></div>बात अपनीhttp://www.blogger.com/profile/05725525971715117550noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8465915453620131002.post-80849504279168134992023-10-07T14:03:00.002+05:302023-10-08T08:54:13.361+05:30पारुल,अन्नू और गन्ना पट्टी<p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"> </span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>ये</b> आंखों में पला एक सपना और दिमाग में ठहरा एक इंसेंटिव होता जो व्यक्ति को सफलता के आकाश में उड़ने के पंख ही नहीं देता है,बल्कि उसे फर्श से अर्श पर पहुंचा देता है। </span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>पटना</b> से इलाहाबाद होते हुए दिल्ली तक की तंग गलियों के 8×8 के कमरों में नारकीय जीवन गुज़ारते हुए लड़कों की आंखों में सुनहरे भविष्य के पलते सपने और दिमाग में एक अदद नौकरी का इंसेंटिव ही है जो वे अपने गाँव जवार को छोड़कर इस नारकीय जीवन को खुशी खुशी अपनाते हैं। और फिर एक दिन सफलता के आकाश में उड़ान भरते हैं।</span></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiqZKkcNwrLihzplPbNvtlp8NZzpWyQHZJ5Bzh263Ocxn25rUayi4aM4fcB6TdxWFuuNZqqEVZEQq9lUrJdHt07cEvFhnhGsrnXuwddmZ25Oxg_Qy1L17AmftrBX5zDuXBLMZMANEiTwfYPLpmARDcvqYYeUNlHqYuT1nAoTunao1g-WgAqdX7UNZVKS3s/s1600/SAVE_20231007_135231.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="900" data-original-width="1600" height="180" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiqZKkcNwrLihzplPbNvtlp8NZzpWyQHZJ5Bzh263Ocxn25rUayi4aM4fcB6TdxWFuuNZqqEVZEQq9lUrJdHt07cEvFhnhGsrnXuwddmZ25Oxg_Qy1L17AmftrBX5zDuXBLMZMANEiTwfYPLpmARDcvqYYeUNlHqYuT1nAoTunao1g-WgAqdX7UNZVKS3s/s320/SAVE_20231007_135231.jpg" width="320" /></a></span></div><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><br /></span><p></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>और</b> अगर इसे खेल के उदाहरण से समझना हो तो पारुल चौधरी की सफलता से बेहतर और कौन समझा सकता है।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>03</b> अक्टूबर 2023 को चीन के हांगजू के ओलंपिक स्पोर्ट्स पार्क मुख्य स्टेडियम के ट्रैक पर मेरठ की 28 साल की ये लड़की एशियाई खेलों की 05 हज़ार मीटर की स्पर्धा में भाग ले रही थी। आखरी दो लैप बचे थे और वो तीसरे स्थान पर थी। जापान की रिरिका हिरोनाका और बहरीन की बोन्तु रेबितु उससे आगे दौड़ रही थी। अब उसने गति बढ़ाई और बोन्तु को पीछे छोड़ा। अब भी लगभग आखरी 50 मीटर तक पारुल रिरिका से कई मीटर पीछे थी।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"> <b>कमेंटेटर</b> और स्टेडियम के दर्शक ही रिरिका को विजेता नहीं मान रहे थे,बल्कि स्वयं रिरिका ने भी खुद को विजेता मान लिया था। उसने ना केवल अपने बायीं और पर्याप्त स्पेस छोड़ा हुआ था। बल्कि पूरे आत्मविश्वास से दायीं और हल्का सिर घुमाकर देखा कि उसके प्रतिद्वंदी कितने पीछे हैं।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>लेकिन</b> वे एक भूल कर रही थीं। कोई भी जीत तब तक आपकी नहीं होती जब तक खेल खत्म ना हो जाए। ठीक इसी समय पारुल ने अपनी पूरी शक्ति बटोरी और स्प्रिंटर की तरह दौड़ते हुए रिरिका के बाएं से उसे क्रॉस किया और उसे पीछे छोड़ते हुए दौड़ जीतकर सफलता का नया इतिहास लिखा। </span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>पारुल</b> की आखरी 50 मीटर की दौड़ ने सिर्फ रिरिका को हतप्रभ नहीं किया बल्कि हर खेल प्रेमी को विस्मय से भर दिया। ये एक शानदार जीत थी। उस 50 मीटर के फासले में उसके दिमाग में केवल एक इंसेंटिव था कि जीत उसके बचपन से उसकी आँखों में पला सपना सच हो सकता है। वो एक पुलिस अधिकारी बन सकती है। जीत के बाद वो कह रही थी "आखरी 50 मीटर में मैं सोच रही थी कि हमारी यूपी पुलिस ऐसी है कि गोल्ड लेकर आएँगे तो वो डीएसपी बना देंगे।" मने एक सपना पूरा होने की प्रत्याशा जैस इंसेंटिव से हारी बाज़ी जीती जा सकती है और अपार प्रसिद्धि भी पाई जा सकती है।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"> <b>इस</b> जीत से पारुल ने भारतीय ट्रैक एंड फील्ड के इतिहास में एक स्वर्णिम पृष्ठ ही नहीं जोड़ा बल्कि अब तक ज्ञात खरगोश और कछुए की कहानी का एक नया वर्जन लिखा। उसने लिखा खरगोश खरगोश ही होता है। जागने के बाद जीत उसी की होती हैं।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"> <b>ये</b> जीत इस मायने में भी उल्लेखनीय है कि मुश्किल से 24 घंटे पहले ही एक बहुत थका देने वाली 03 हज़ार स्टीपल चेज स्पर्धा में ना केवल रजत पदक जीत रही थी,बल्कि नया राष्ट्रीय रिकॉर्ड भी बना रही थी।</span></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiH4gF4F_Kj6t8AgtfwfFeUVF-kz5Xdq6HqaUOZ3YXz6y_Xg8aqSYyhbDrXiRSKaBrOCsz2Fvy8gJQ-NmJtl3u6c5iAgAbVzhe3uZ0I6L4XdZnBTgrfFztRokWS_jEMk2GgabRNO_2t26ODLcnq8npK3_xWXnn0JhFiWxd4vZvvnmNttJNeQsvEurr94QI/s1200/SAVE_20231007_135457.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="900" data-original-width="1200" height="240" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiH4gF4F_Kj6t8AgtfwfFeUVF-kz5Xdq6HqaUOZ3YXz6y_Xg8aqSYyhbDrXiRSKaBrOCsz2Fvy8gJQ-NmJtl3u6c5iAgAbVzhe3uZ0I6L4XdZnBTgrfFztRokWS_jEMk2GgabRNO_2t26ODLcnq8npK3_xWXnn0JhFiWxd4vZvvnmNttJNeQsvEurr94QI/s320/SAVE_20231007_135457.jpg" width="320" /></a></span></div><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><br /></span><p></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>जहाँ</b> ट्रैक पर पारुल सफलता का लठ्ठ गाड़ रही थी, वहीं मेरठ की एक और लड़की फील्ड में जीत के धुर्रे उड़ा रही थी। ये अन्नू रानी थी जो जैवलिन में स्वर्ण पदक जीत रही थी। ये इस प्रतियोगिता का किसी भी भारतीय महिला द्वारा जीता गया पहला गोल्ड था। </span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>ग्रामीण</b> परिवेश के साधारण परिवार की ये दो लड़कियां अपने शहर मेरठ को एक बार फिर चर्चा के केंद्र में ला रही थीं। अभी हाल के वर्षों में हरियाणा के साथ साथ पश्चिमी उत्तर प्रदेश भी खेलों में नई प्रतिभाओं और नई संभावनाओं को जन्म दे रहा है। और ध्यान देने वाली बात ये है कि ये संभावनाएं इस क्षेत्र के ग्रामीण इलाके के निम्नमध्यम वर्ग और थोड़ी बहुत मध्यम वर्ग से जन्मती और फलती फूलती हैं। इसके लिए बहुत हद तक इस क्षेत्र का बदलता सामाजार्थिक परिवेश कारक रहा है।</span></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh5zQz0hqLszi7ot6fwjZwi6_qQYjdQrjNweRZn6IekPygzeKFY7LUehoiBhce3jJOiP3ofBrdCSNKym9Rww2EJLhu6XIVYK6Qn5uJks7kp6R_-yXt8tjnwY810QZRtB9QmiyYJmp5yao898uGGZMNP4wvtKgo8VwRoApFbCAwSTbNemx0veRhF07mZ1nM/s1280/SAVE_20231007_135742.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1280" data-original-width="963" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh5zQz0hqLszi7ot6fwjZwi6_qQYjdQrjNweRZn6IekPygzeKFY7LUehoiBhce3jJOiP3ofBrdCSNKym9Rww2EJLhu6XIVYK6Qn5uJks7kp6R_-yXt8tjnwY810QZRtB9QmiyYJmp5yao898uGGZMNP4wvtKgo8VwRoApFbCAwSTbNemx0veRhF07mZ1nM/s320/SAVE_20231007_135742.jpg" width="241" /></a></span></div><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><br /></span><p></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>इस</b> क्षेत्र के राष्ट्रीय राजमार्गों से गुजरें या फिर राज्य राजमार्गों से या फिर स्थानीय सड़कों से,आपको सिर्फ दो ही चीजें इन दिनों दिखाई पड़ती हैं। एक,सड़क के दोनों और गन्ने की शानदार फसल और सड़कों पर दौड़ते नौजवान। इन दौड़ते लड़कों का सिर्फ एक ही सपना है सेना में या फिर पुलिस में सिपाही बनने का।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>ये</b> बात इस क्षेत्र से बाहर वालों के लिए आश्चर्य की हो सकती है,लेकिन इस क्षेत्र में रहने वाला हर इंसान जानता है कि फिजिकल टेस्ट पास करने लिए सड़कों पर दौड़ते लड़कों का सबसे बड़ा सपना एक अदद सिपाही बनने का है। उनमें से बहुत सारे तो आपको बताएंगे कि वे सब इंस्पेक्टर के बजाए सिपाही ही बनना चाहते हैं।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"> <b>इसका</b> एक कारण तो ये है कि परंपरागत रूप से इस इलाके के लोग शारीरिक और मानसिक बनावट की वजह से सेना और पुलिस में भर्ती होते रहे हैं।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>लेकिन</b> इससे भी बड़ी वजह एक खास तरह का विरोधभासी फिनोमिना है। एक तरफ तो इन युवाओं में अध्ययन अध्यापन के प्रति वैसी रुचि उत्पन्न नहीं हो पाती जैसी की होनी चाहिए क्योंकि उनके मन में बचपन से ही एक जमीन के मालिक होने के कारण आर्थिक असुरक्षा का भाव उत्पन्न नहीं हो पाता जो उच्च शिक्षा के लिए प्रेरित कर सके। दूसरी और वे अनेकानेक कारणों से कृषि कार्य करना नहीं चाहते। </span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>एक</b> बड़ा कारण तो खेती करना अब बहुत कठिन और घाटे का सौदा होता जा रहा है। (इसके कारणों में जाना विषयांतर होगा)। स्वाभाविक है उन्हें नौकरी चाहिए। लेकिन क्वालिटी उच्च शिक्षा के अभाव और ठीक ठाक खुराक व शारीरिक तथा मानसिक बनावट के कारण उनके सबसे मुफीद और आसान सिपाही बनना रह जाता है।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>इसका</b> एक बड़ा कारण सिनेमा में पुलिस की लार्जर दैन लाइफ इमेज। फिर जब वे वास्तविक जीवन में भी एक पुलिस कांस्टेबल तक की शानोशौकत भरी लाइफ और ग्राउंड पर उसकी हनक देखकर उनमें में भी ललक पैदा होती है। हालांकि बहुत से लोगों को ये बात गलत लग सकती है कि कांस्टेबल एक शानोशौकत भरी ज़िंदगी कैसे जी सकता है। लेकिन अपने आसपास ध्यान से देखेंगे तो इस बात को समझा जा सकता है। हां अपवाद हर जगह होते हैं।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>तो</b> इस क्षेत्र के ग्रामीण इलाके के निम्नमध्यम वर्गीय युवाओं के सामने अपने सबसे बड़े सपने को पूरा करने का एक उपाय तो प्रतियोगात्मक परीक्षाएं हैं। </span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>लेकिन</b> पिछले दो तीन दशकों से इन सपनों को पूरा करने का उन्हें उनके बहुत ही मुफीद एक और रास्ता मिला। ये रास्ता है खेल। ये वही रास्ता है जिसका ज़िक्र पारुल चौधरी कर रही थीं। और इस क्षेत्र में ये रास्ता वाया हरियाणा आया।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>दरअसल</b> पश्चिमी उत्तर प्रदेश और विशेष रूप से हरियाणा की सीमा से लगने वाले मेरठ,बागपत,शामली,मुजफ्फरनगर और सहारनपुर जैसे ज़िले एक तरह से हरियाणा का ही एक्सटेंशन हैं। हरियाणा की किसी भी गतिविधि का इस क्षेत्र में पड़ना लाज़िमी है।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>पिछले</b> दो तीन दशकों से हरियाणा में खेलों का अभूतपूर्व विकास हुआ। कबड्ड़ी, कुश्ती,निशानेबाजी और मुक्केबाज़ी जैसों खेलों में हरियाणा के अनेक खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चमके। उन्होंने शानदार प्रदर्शन किया और अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भारत के लिए पदक जीते। उन्हें इससे प्रसिद्धि तो मिली ही, केंद्र और हरियाणा सरकार ने उन्हें करोड़ों रुपए इनाम के रूप में दिए। लेकिन उससे भी महत्वपूर्ण और आकर्षक बात ये कि उनमें से ज़्यादातर खिलाड़ियों को हरियाणा सरकार ने पुलिस में डीएसपी के पद से नवाज़ा। इस वासंती बयार को दो राज्यों की स्थूल सीमा कहां रोक पाती। इसका प्रभाव इन जिलों पर पड़ा और अपने सपने पूरे करने का एक रास्ता उन्हें खेल के रूप में मिला।में</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>उम्मीदों</b> की इस वासंती बयार को आईपीएल की सफलता ने तेज पछुआ हवा में तब्दील कर दिया। पर क्रिकेट के साथ समस्या ये थी कि ये खेल शहरी क्षेत्र के लिए तो ठीक था पर ग्रामीण परिवेश के खाँचे के मुफ़ीद ना था। लेकिन जो बयार आईपीएल से शुरू हुई उसकी लहर ने अन्य खेलों को अपने मे समेट लिया। अब अन्य खेलों में भी लीग सिस्टम आया। और उसके साथ आया पैसा और आई बेशुमार शोहरत।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>इन</b> लीग में सबसे सफल हुई प्रो कबड्डी लीग। अब कबड्डी, फुटबॉल, खो खो वॉलीबॉल जैसे खेलों में भी पैसा और शोहरत आई। प्रो कबड्डी लीग ने इस क्षेत्र में विशेष प्रभाव डाला। पोस्टर बॉय राहुल चौधरी इस क्षेत्र में घर घर जाना नाम और आदर्श बन गए।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>इससे</b> लोगों की खेलों में रुचि बढ़ी। इसे इस क्षेत्र के लोगों ने हाथों हाथ लिया और इन जिलों में खेल अकादमियों की बाढ़ सी आ गई। पिछले कुछ वर्षों में जितनी खेल अकादमी इस इलाके के गांवों में खुली हैं शायद ही कहीं और खुली हों। बिनौली में शाहपीर अकादमी खुली जिसमें सौरभ ने प्रशिक्षण लिया। अभी सीमा पुनिया के पति अंकुश पुनिया ने सकौती टांडा में डिस्कस थ्रो अकादमी खोली। बालियान खाप के सबसे बड़े गांव शोरम में इस समय दो अकादमी हैं। एक कुश्ती के लिए टारगेट ओलंपिक कुश्ती अकादमी और दूसरी तीरंदाजी के लिए। पहलवान गौरव बालियां इसी अखाड़े से निकला है। उधर शाहपुर में केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान के भाई ने कुश्ती व अन्य खेलों के लिए प्रशिक्षण केंद्र खोला। बागपत में दर्शन कबड्ड़ी अकादमी है। यहां अगर आप भ्रमण करेंगे तो आपको हर दो चार गांवों के अंतराल पर किसी ना किसी अकादमी का बोर्ड दिखाई देगा। ये सारी अकादमियां प्राइवेट हैं और या तो गांव के लोगों के सहयोग से चल रही हैं या क्राउड फंडिंग से।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>इन</b> अकादमियों में खूब ग्रामीण बच्चे प्रशिक्षण ले रहे हैं और ये अकादमियां एक खेल माहौल तैयार कर रहीं हैं। दरअसल ये इस क्षेत्र में इसलिए भी फल फूल रही हैं कि कई गांव परम्परागत रूप से कुछ खास खेलों के लिए प्रसिद्ध हैं। जैसे मुजफ्फरनगर जिले का भोपा के पास गांव अथाई वॉलीबॉल के लिए जाना जाता है। इस गांव ने कई अंतरराष्ट्रीय वॉलीबॉल खिलाड़ी दिए। इसी तरह इस जिले का शाहपुर क्षेत्र विशेष रूप से काकड़ा, कुटबा और केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान का गांव कुटबी कबड्डी के लिए। एशियाड खेलों में भारतीय कबड्डी टीम के प्रशिक्षक संजीव बालियान इसी गांव के हैं।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>इन</b> अकादमियों ने इस क्षेत्र के युवाओं के सपनों को भुनाया भी है और उन्हें पंख भी दिए हैं। जो भी हो ये अकादमियां ग्रासरूट लेवल पर काम कर रही हैं। और इस क्षेत्र के युवाओं को खेलों में अपना कॅरियर दिखाई दे रहा है और अपने सपनों को सच करने का माध्यम भी।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #cc0000;">------------------</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #cc0000; font-size: medium;"><b>फिलहाल</b> तो पारुल चौधरी और अन्नू रानी सहित साभी खिलाड़ियों को बहुत बहुत बधाई जिन्होंने पदक जीतकर 'इस_बार_सौ_पार' अभियान को सफल बनाया।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #cc0000; font-size: medium;"><br /></span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #cc0000; font-size: medium;"><br /></span></p>बात अपनीhttp://www.blogger.com/profile/05725525971715117550noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8465915453620131002.post-14161038165492476222023-09-27T11:53:00.002+05:302023-09-27T11:54:03.481+05:30अफ्रीका के धावक<p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"> </span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>ये</b> 24 सितंबर 2023 का दिन था। दुनिया के तमाम हिस्सों में अलग-अलग देश और खिलाड़ी खेलों में अपना परचम लहरा रहे थे या उसका प्रयास कर रहे थे। </span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>हांगजू</b> में एशियाई खेलों के पहले ही दिन 12 स्वर्ण पदक जीतकर चीन एशिया में अपनी श्रेष्ठता सिद्ध कर रहा था और भारत 5 पदक जीतकर अपने को उभरती खेल शक्ति के रूप में स्थापित करने का प्रयास कर रहा था।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>उधर</b> एशिया कप जीतने के बाद भारत पहले दो एकदिवसीय मैचों में ऑस्ट्रेलिया को लगभग रौंद कर क्रिकेट के तीनों फॉरमेट में सिरमौर होने दुंदुभी बजा रहा था।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>इंग्लैंड</b> में प्रीमियर लीग में मेनचेस्टर सिटी नॉटिंघम फारेस्ट को 2-0 से हराकर शीर्ष पर थी और पिछले साल अपने ट्रेबल का औचित्य सिद्ध कर रही थी।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>जबकि</b> फ्रांस में फुटबॉल के ही दूसरे रूप रग्बी में विश्व की 20 सर्वश्रेष्ठ टीमें विश्व खिताब जीतने के लिए होड़ कर रही थीं।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;">और</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>और</b> ऐन उसी दिन बर्लिन जर्मनी में अफ्रीका के धावक अपने पैरों की कलम और पसीने की स्याही से खेलों के मैराथन दौड़ वाले पन्ने पर नया इतिहास लिख रहे थे।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"> <b>पुरुष</b> वर्ग में केन्या के 38 वर्षीय एलिउद किपचोगे बर्लिन मैराथन पांचवी बार जीत रहे थे और इथियोपिया के महान धावक हैले गब्रेसिलासी के चार बार जीत के रिकॉर्ड को तोड़ रहे थे। साल 2022 में यहीं बर्लिन में किपचोगे ने 02 घंटे 01 मिनट और 09 सेकंड का विश्व रिकॉर्ड बनाया था। 5 फुट 4 इंच लंबाई और 54 किलोग्राम वजन वाला 38 साल का ये दुबला पतला धावक मैराथन का महानतम धावक है जिसने 11 से ज़्यादा मैराथन जीती हैं। वे पिछले दो ओलंपिक में मैराथन जीत चुके हैं और पेरिस में जीतकर ओलंपिक मैराथन जीत की तिकड़ी बनाना उनका सपना है। </span></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhojZoCqijv8TGWzHJ7tKo-lXCoIpptHqeSYxok7jhdt0F3eyy0t62hotclUNaVIzneZ5Ps3UfFufeU4o9F53AuLzgq36pfmzofh0OW1nsaDACSiexjpkTP7F4DXni4PFdGS-kAwYaUob1aMO06BaIhpfenqTEDMNbggSQnGoUWCwrQf6S43PLpIMGM1Ug/s1080/IMG_20230927_115001.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="638" data-original-width="1080" height="189" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhojZoCqijv8TGWzHJ7tKo-lXCoIpptHqeSYxok7jhdt0F3eyy0t62hotclUNaVIzneZ5Ps3UfFufeU4o9F53AuLzgq36pfmzofh0OW1nsaDACSiexjpkTP7F4DXni4PFdGS-kAwYaUob1aMO06BaIhpfenqTEDMNbggSQnGoUWCwrQf6S43PLpIMGM1Ug/s320/IMG_20230927_115001.jpg" width="320" /></a></span></div><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><br /></span><p></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>वे</b> दुनिया के एकमात्र ऐसे मैराथन धावक हैं जिन्होंने 2 घंटे का बैरियर तोड़कर पूरी दुनिया को आश्चर्य में डाल दिया था। साल 2019 में विएना में उन्होंने मैराथन 01 घंटे 59 मिनट और 03 सेकंड में पूरी की। हालांकि तकनीकी कारणों से इस समय को मान्यता नहीं मिली।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>किपचोगे</b> की ये असाधारण उपलब्धि उन्हें बैनिस्टर जैसे महान एथलीट के समकक्ष रखती है। याद कीजिए रोजर बैनिस्टर को जिन्होंने एक मील की दौड़ 1954 में पहली बार 4 मिनट से कम समय में पूरी कर दुनिया को अचंभित कर दिया था।</span></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjRzdIzyfHmTWZgEv7Bjrmxr56bKiPv7V-El-KVNKm_Hv6uoX4aGbXx6Sevqlt1gBw-3FNdYqGohGmjc05sGA_Opzp_7u5Y3FwKbgZ4EZAyWDk7sgMsU4uP6Ruk3LrxFmVt5hoYhscmNESozuFZm-siOWreVJ51XbQ7lMM4RlKXAFM_8-dgmQHwxEUrm_s/s1062/IMG_20230927_115052.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="608" data-original-width="1062" height="183" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjRzdIzyfHmTWZgEv7Bjrmxr56bKiPv7V-El-KVNKm_Hv6uoX4aGbXx6Sevqlt1gBw-3FNdYqGohGmjc05sGA_Opzp_7u5Y3FwKbgZ4EZAyWDk7sgMsU4uP6Ruk3LrxFmVt5hoYhscmNESozuFZm-siOWreVJ51XbQ7lMM4RlKXAFM_8-dgmQHwxEUrm_s/s320/IMG_20230927_115052.jpg" width="320" /></a></span></div><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><br /></span><p></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;">लेकिन किपचोगे की रिकॉर्ड पांचवीं बार बर्लिन मैराथन जीत भी नेपथ्य में चली जाए तो सोच सकते हैं कि निश्चित ही कुछ बहुत बड़ा हुआ होगा। उस दिन सच में बहुत बड़ा हुआ था और ये कमाल किया था इथियोपिया की मैराथन धाविका तिजिस्त आसेफा ने। वे बर्लिन में अपने कॅरियर की तीसरी मैराथन दौड़ रहीं थीं। यहाँ उन्होंने 2 घंटे 11 मिनट और 53 सेकंड का नया विश्व रिकॉर्ड बनाया। उन्होंने 2019 में ब्रिजिड कोसेगे के पुराने रिकॉर्ड को 02 मिनट और 11 सेकंड से बेहतर किया और साथ ही 02 घंटे 12 मिनट के असंभव से बैरियर को भी तोड़ा। कमाल की बात ये है 37 किलोमीटर तक उनकी गति पुरुष मैराथन विजेता किपचोगे से केवल 03 सेकंड प्रति किलोमीटर कम थी।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"> <b>यहां</b> उल्लेखनीय बात ये भी है कि पुरुष और महिला मैराथन दौड़ के समय में अंतर अब लगभग दस मिनट का रहा गया है। 1900 के आसपास ये अंतर लगभग 90 मिनट का था।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>कमाल</b> की बात तो ये भी है कि महिला पुरुष दोनों वर्गों में पहले आठ स्थान पर केन्या,इथियोपिया और तंजानिया के धावक थे। अगर कहीं से भी हिटलर की आत्मा इस दौड़ को देख रही होगी तो उसके 'आर्यन श्रेष्ठता के सिद्धांत' को एक बार फिर कलर्ड लोगों द्वारा ध्वस्त होते देख जार जार रो रही होगी।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>क्या</b> ही अद्भुत दृश्य होते हैं वे जहां कि लगभग बिना मांस मज्जा के काले चमड़ी वाले पसीने से सराबोर अफ्रीकी धावकों के शरीर सूर्य की रोशनी में काले संगमरमर से चमक रहे होते हैं। उनके शरीर में भले ही सुविधाओं और संपन्नता के मांस का अभाव हो, पर अभावों और गरीबी की आग में तपी और साहस, हिम्मत और कड़ी मेहनत के हथौड़ों के प्रहारों से बनी वज्र सी हड्डियां उनके शरीर में विद्यमान होती हैं। जो उन्हें संघर्ष करने का होंसला देती हैं और उन्हें अजेय बना देती हैं।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>अफ्रीका</b> के इन काले चमड़ी वाले खिलाड़ियों को और विशेष रूप से लंबी दौड़ के धावकों को ध्यान से देखिए। ये दौड़े उनके लिए जीने मरने का प्रश्न होती हैं। जीत जीवन और हार मृत्यु। जीत सुनहरे भविष्य का आश्वासन और हार बीते नारकीय जीवन की बाध्यता। उनकी आंखों में झांकिए। उसमें जीतने की अदम्य लालसा के अलावा और कुछ नहीं दिखाई देगा।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>आखिर</b> उनमें संघर्ष का ये जज़्बा और हौंसला आता कहां से है। निश्चित ही ये उनके परिवेश से ही आता होगा। वे दुनिया की सबसे कठिन और दुरूह भौगोलिक परिवेश से आते हैं। वे प्राकृतिक संसाधन जो उनके लिए होने चाहिए, पश्चिम की बहुराष्ट्रीय कंपनी के लालच की भेंट चढ़ जाते हैं और उनके हिस्से आते हैं बचे खुचे संसाधनों पर अधिकार जमाने के लिए सबसे भयानक,कठिन और कभी ना खत्म होने वाले गृह युद्ध और उसके परिणामस्वरूप घोर गरीबी और अभावों भरा जीवन। ऐसे में उनके भीतर अदम्य जिजीविषा पैदा होती है और उससे पैदा होता है कड़ा संघर्ष करने हौंसला और कभी ना हार मानने का जज़्बा।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #990000; font-size: medium;">°°°°°</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #990000; font-size: medium;"><b>और</b> हां कुछ कुछ यही हौंसला और जज़्बा तीसरी दुनिया के देशों के खिलाड़ियों में भी होता है जो निम्न मध्यम वर्ग से आते हैं। ये दूसरी बात है वे अफ्रीका के इन खिलाड़ियों से संघर्ष में पिछड़ जाते हैं।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #990000; font-size: medium;"><b>तो</b> अफ्रीकी देशों के मध्यम और लंबी दूरी के धावकों के हौंसलों और अद्भुत सफलता को सलाम करना तो बनता हैं ना।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #990000; font-size: medium;"><br /></span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #990000; font-size: medium;"><br /></span></p>बात अपनीhttp://www.blogger.com/profile/05725525971715117550noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8465915453620131002.post-25190747626671924912023-09-21T21:10:00.001+05:302023-09-21T21:10:52.476+05:30जेंटलमैन गेम क्रिकेट<p></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgudmtMJVL94ZAUHnK7rVtaFqR7CudTEDWYeWJkWAaKE36H-9sulrtfZMUj4eMqtlPjlLqvUMrVte-0KV4Z2oAZIQgD8E0SfRFlVTIFjmnJ-fS_Q_EBmufFEMt-lap3BJr7tuKmyrFMc2VCUFhgjNN51Np4YrcHgkakLXd6P4y41S4UvrNHGKsHIDXDOIk/s1080/IMG_20230921_210202.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1064" data-original-width="1080" height="315" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgudmtMJVL94ZAUHnK7rVtaFqR7CudTEDWYeWJkWAaKE36H-9sulrtfZMUj4eMqtlPjlLqvUMrVte-0KV4Z2oAZIQgD8E0SfRFlVTIFjmnJ-fS_Q_EBmufFEMt-lap3BJr7tuKmyrFMc2VCUFhgjNN51Np4YrcHgkakLXd6P4y41S4UvrNHGKsHIDXDOIk/s320/IMG_20230921_210202.jpg" width="320" /></a></div><br /><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><br /></span><p></p><p><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"> <b>क्रि</b>केट अब जेंटलमैन गेम रह गया है या नहीं, इस पर बहस की जा सकती है। लेकिन 1983 में जब भारत ने पहली बार विश्व कप जीता, तो निश्चित ही उस समय ये जेंटलमैन गेम रहा होगा। उस समय एक अम्पायर टेलेंडर को बाउंसर फेंकने पर बॉलर को डांट सकता था। जाने माने पत्रकार और ब्रॉडकास्टर <b>रेहान फज़ल</b> बीबीसी डॉट कॉम में अपने एक लेख में भारत और वेस्टइंडीज के बीच खेले गए फाइनल मैच की एक घटना का जिक्र करते हैं-</span></p><p><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><i>'<b>ते</b>ज़ गेंदबाज़ मैल्कम मार्शल किरमानी और बलविंदर सिंह संधु की साझेदारी से इतने खिसिया गए कि उन्होंने नंबर 11 खिलाड़ी संधू को बाउंसर फेंका जो उनके हेलमेट से टकराया। संधू को दिन में तारे नज़र आ गए। अंपायर डिकी बर्ड ने मार्शल को टेलएंडर पर बाउंसर फेंकने के लिए बुरी तरह डाँटा. उन्होंने मार्शल से ये भी कहा कि तुम संधू से माफ़ी माँगो।</i></span></p><p><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><i><b>मा</b>र्शल उनके पास आकर बोले, ‘मैन आई डिड नॉट मीन टु हर्ट यू. आईएम सॉरी.’(मेरा मतलब तुम्हें घायल करने का नहीं था. मुझे माफ़ कर दो).</i></span></p><p><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><i><b>सं</b>धू बोले, ‘मैल्कम, डू यू थिंक माई ब्रेन इज़ इन माई हेड, नो इट इज़ इन माई नी.’(मैल्कम क्या तुम समझते हो, मेरा दिमाग़ मेरे सिर में है? नहीं ये मेरे घुटनों में है)।</i></span></p><p><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><i><b>ये</b> सुनते ही मार्शल को हँसी आ गई और माहौल हल्का हो गया।'</i></span></p><p><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>द</b>रअसल खेल मैदान में केवल प्रतिद्वंदिता ही नहीं होती बल्कि दोस्ताना माहौल भी साथ साथ चलता है। सिर्फ तनाव ही व्याप्त नहीं रहता बल्कि सहजता और जीवंतता भी व्याप्ति है।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #990000; font-size: medium;"><b>.............</b></span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #990000; font-size: medium;"><b>स</b>च तो ये है खेल जीवन का ही एक हिस्सा है और खेल मैदान में सिर्फ खेल और प्रतिद्वंदिता ही नहीं रहती बल्कि जीवन भी साथ साथ चलता है।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #990000; font-size: medium;"><br /></span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #990000; font-size: medium;"><br /></span></p>बात अपनीhttp://www.blogger.com/profile/05725525971715117550noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8465915453620131002.post-61116030218268602142023-09-21T20:52:00.004+05:302023-09-21T21:13:38.479+05:30खेल भावना<p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"></span></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgUT-MnFm8YvWPVpOheti6VGDbvkur5kMhiShCmvxk0Ef5sL3cVbrqVI1du3nEzh-u3hAH8dSx7LEwPAtl5A7vRsL1gQz0WJ3WVKgk2g5b-r3pe56fqP17Rl9UR8ZshA81Tsjpe7KlBjh9w0HH_Eg5jg1Y6d0QYaUHwkDlTLN0ls4fPQwgGljnkNNMKkGU/s1080/FB_IMG_1695310437623.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="720" data-original-width="1080" height="213" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgUT-MnFm8YvWPVpOheti6VGDbvkur5kMhiShCmvxk0Ef5sL3cVbrqVI1du3nEzh-u3hAH8dSx7LEwPAtl5A7vRsL1gQz0WJ3WVKgk2g5b-r3pe56fqP17Rl9UR8ZshA81Tsjpe7KlBjh9w0HH_Eg5jg1Y6d0QYaUHwkDlTLN0ls4fPQwgGljnkNNMKkGU/s320/FB_IMG_1695310437623.jpg" width="320" /></a></span></div><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><br /> </span><p></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>यूं</b> देखा जाए तो रविवार की रात विश्व एथलेटिक्स प्रतियोगिता की जैवलिन थ्रो स्पर्धा का फाइनल भारत और पाकिस्तान के बीच फाइनल भी था। ये भारत के नीरज चोपड़ा और पाकिस्तान के अरशद नदीम के बीच स्पर्धा थी। इस स्पर्धा में नीरज ने स्वर्ण और नदीम ने रजत जीता। यहां यह बात ध्यान देने वाली है कि नदीम बेहद प्रतिभावान हैं और उनका व्यक्तिगत सर्वश्रेष्ठ 90+ मीटर है जो नीरज के व्यक्तिगत सर्वश्रेष्ठ से अधिक है।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>लेकिन</b> क्या ही कमाल है कि बेलग्रेड के नेशनल एथलेटिक्स सेंटर पर क्रिकेट और हॉकी की स्पर्धाओं के उन्मादी माहौल के बरक्स सहयोग,अपनेपन और प्यार के खूबसूरत दृश्य थे। फाइनल थ्रो के बाद वे दोनों प्यार से गले मिले और एक दूसरे के प्रति सम्मान प्रदर्शित किया। उसके बाद जब फोटो सेशन में नदीम बिना राष्ट्रीय झंडे के अलग खड़े थे,तब नीरज उन्हें अपने साथ लेकर आए और फोटो सेशन पूरा किया। इससे पहले टोक्यो ओलंपिक में नीरज के जैवलिन से नदीम अभ्यास कर रहे थे।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>क्या</b> ये कारण है कि सामूहिकता और भीड़ ही उन्माद पैदा करती है जबकि एक अकेला व्यक्ति अधिक विवेकशील होता है। इसीलिए टीम खेल और उनके समर्थक उन्माद फैलाते हैं,जबकि व्यक्तिगत प्रतियोगिताओं में उस तरह का उन्माद नहीं होता। या फिर एथलेटिक्स जैसे खेलों में जहां विश्व स्तर पर भारत और पाक का कम या बहुत कम प्रतिनिधित्व होता है, वहां वो अकेलेपन का भाव आपस में एक जुड़ाव पैदा करता है। या फिर हर व्यक्ति का एक अलग मानसिक गठन होता है जो उसके परिवेश और परिवार से आता है।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>नीरज</b> इस जीत के बाद भारत के महानतम एथलीट कहे जा सकते हैं। और इसलिए उनमें एक 'एटीट्यूड'पैदा हो सकता है। लेकिन ऐसा है नहीं। वे बेहद विनम्र,ज़मीन से जुड़े फोकस्ड खिलाड़ी हैं। जब उनसे पूछा गया कि क्या वे गोट (आल टाइम ग्रेटेस्ट एथलीट) हैं तो उन्होंने बेहद विनम्रता से कहा 'मुझे नहीं लगता कि मैं महानतम खिलाड़ी हूं। हमेशा कुछ ना कुछ कसर रह जाती है। अभी और ज्यादा इम्प्रूवमेंट करने हैं और काफ़ी कुछ करना है। फिलहाल उसी पर फ़ोकस करूंगा।'</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>आईपीएल</b> के सट्टेबाजी के चार पैसे आने पर जहां नए से नया क्रिकेटर भी सीना खोले,गले में मोटी मोटी चैन, अंगुलियों में अंगूठी,हाथों में कड़े और पूरे शरीर पर टैटू खुदवाए दंभी 'छक्का छैला' बना फिरता है,वहीं नीरज चोपड़ा जैसे खिलाड़ी अपनी एक सफलता के बाद अपने अगले लक्ष्य की और नज़र गड़ाए होते हैं। </span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>दरअसल</b> महान व्यक्तित्व ऐसे ही विनम्र, सरल और प्यार से भरे होते हैं। नीरज भी ऐसे ही हैं। वे चैंपियन हैं, खिलाड़ी भी और व्यक्ति भी।</span></p><p style="text-align: justify;"><b style="color: #cc0000;">---------------</b></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #cc0000; font-size: medium;"><b>नीरज</b> को मोहब्बत पहुंचे।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #cc0000; font-size: medium;"><br /></span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #cc0000; font-size: medium;"><br /></span></p>बात अपनीhttp://www.blogger.com/profile/05725525971715117550noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8465915453620131002.post-14703271609970001542023-09-21T20:48:00.002+05:302023-09-21T21:14:14.041+05:30एथलेटिक्स<p style="text-align: justify;"></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiYInDcaQoGEqP-uWBXsOS6tIJV4kjE1gWnxlYSGrYJMJZoAb1CvYoY-5hfD9wAHp05aMZf51WGlMwXNWh2rmWOxpt9hxGm9KRjZZk2anqF8QIjyv-w6dJ5FtrorHar2nrPU3ePFoiI9OjJ6iBitDkhhoi5pYkqm64Y2xwTXkvjgeKAALXdukDpi8MXUJc/s1080/FB_IMG_1695310455016.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="995" data-original-width="1080" height="295" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiYInDcaQoGEqP-uWBXsOS6tIJV4kjE1gWnxlYSGrYJMJZoAb1CvYoY-5hfD9wAHp05aMZf51WGlMwXNWh2rmWOxpt9hxGm9KRjZZk2anqF8QIjyv-w6dJ5FtrorHar2nrPU3ePFoiI9OjJ6iBitDkhhoi5pYkqm64Y2xwTXkvjgeKAALXdukDpi8MXUJc/s320/FB_IMG_1695310455016.jpg" width="320" /></a></div><br /><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><br /></span><p></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"> <b>दरअसल</b> यही असली भारत है और असली खेल हैं। जिस समय क्रिकेटर धोनी और कोहली अमीर खिलाड़ियों की सूची में शुमार हो रहे थे,ठीक उसी समय कुछ नॉन सेलिब्रिटी खिलाड़ी हमें गर्व करने के कई मौके दे रहे थे। </span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>एच</b> एस प्रनॉय विश्व नं एक विक्टर एक्सेलसन को हराकर विश्व बैडमिंटन प्रतियोगिता के सेमीफ़ाइनल में पहुंचकर कांस्य पदक पक्का कर रहे थे, तो प्रज्ञान नंदा विश्व नं दो हिकारू नाकामुरा और विश्व नं तीन खिलाड़ी फैबियानो कारूआना को हराकर विश्व शतरंज प्रतियोगिता के फाइनल में पहुंच कर उपविजेता बन रहे थे।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>और</b> फिर कल रात बुडापेस्ट हंगरी में नीरज चोपड़ा 88.17 मीटर की भाले की उड़ान के साथ भारत के सार्वकालिक महानतम एथलीट ही नहीं बल्कि भारत के महानतम खिलाड़ियों में शुमार हो रहे थे।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>विश्व</b> एथलेटिक्स में भाला फेंक में नीरज स्वर्ण पदक जीतकर ओलंपिक स्वर्ण के साथ अपना डबल पूरा कर भारतीय खेल जगत के आसमान में जो स्वर्णिम आभा बिखेर रहे थे, उस आभा को निःसंदेह 4×400 मीटर में पांचवां स्थान प्राप्त कर मो अनस,अमोज जैकब,मो अजमल और राजेश रमेश और चमकदार बना रहे थे। </span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>वे</b> पदक भले ही ना जीत पाएं हो,वे हमारे दिलों को रोशन कर रहे थे और भारतीय एथलेटिक्स के लिए संभावनाओं के नए द्वार भी खोल रहे थे।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;">------------</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>बिला</b> शक ये प्रदर्शन आश्वस्तकारी हैं। शानदार प्रदर्शन के लिए खिलाड़ियों को बधाई।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><br /></span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><br /></span></p>बात अपनीhttp://www.blogger.com/profile/05725525971715117550noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8465915453620131002.post-30268323912859469742023-08-05T18:07:00.001+05:302023-08-05T18:07:55.821+05:30 पत्थरों में बदलते शहरों की कोमल दास्तां<p style="text-align: justify;"></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjJ8sDVaHWnA2MjrPlVTnV7ob87soU1i8jPc4GOZ2mVZskWCzPLGLWj5IMtc-lNmRjvN4i91_TE9xFXEv_KNEJPTbgGoYpC9WbXQvn9bLj4fcMqbJ4LF9WaUMUXcfjCLdqRyN-Rbeo4pztRdPvVv2vDvn2jIvzu3kaW_9dmLfJwh0I_tF6h73XhoG1fxdw/s3926/IMG_20230805_140534.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="3926" data-original-width="2478" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjJ8sDVaHWnA2MjrPlVTnV7ob87soU1i8jPc4GOZ2mVZskWCzPLGLWj5IMtc-lNmRjvN4i91_TE9xFXEv_KNEJPTbgGoYpC9WbXQvn9bLj4fcMqbJ4LF9WaUMUXcfjCLdqRyN-Rbeo4pztRdPvVv2vDvn2jIvzu3kaW_9dmLfJwh0I_tF6h73XhoG1fxdw/s320/IMG_20230805_140534.jpg" width="202" /></a></div><br /><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><br /></span><p></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>द</b>रअसल किसी शहर में रहना और किसी शहर में जीना दो मुख्तलिफ बातें हैं। जब आप किसी शहर को जी रहे होते हैं या उसमें जी रहे होते हैं,तो वो शहर अपनी संपूर्णता में आपके भीतर कहीं गहरे पैंठ जाता है। उसकी स्मृतियां आपके भीतर कहीं गहरे धंस जाती हैं। हमेशा के लिए आपके भीतर महफूज़ हो जाती हैं। और जब फिर कभी पलट कर उस शहर को आप देखते हैं,तो वो शहर आपको दिखाई ही नहीं देता। वो इस कदर बदल गया होता है कि पहचान में ही नहीं आता। शहर गतिमान होता है और हमारी स्मृतियां जड़। शहर किसी का इंतज़ार नहीं करता। किसी के लिए रुकता नहीं। शहर स्मृतियों से बहुत आगे निकल जाते हैं।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>ये</b> दीगर बात है कि उनकी गति क्या होती है और ये गति उन्हें कहां ले जाती है। अधिकांश शहर कांक्रीट के जंगल के ब्लैक हॉल की तरफ बढ़ गए होते हैं, जिनमें समा कर उन्हें अंततः अपना अस्तित्व ही खो देना है। जाने माने लेखक जितेंद्र भाटिया कुछ ऐसा ही लक्षित करते हैं और अपनी सद्य प्रकाशित पुस्तक 'कांक्रीट के जंगल में गुम होते शहर'में बयां करते हैं।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>सं</b>भावना प्रकाशन से प्रकाशित इस किताब में जितेंद्र भाटिया ने कुल पांच शहरों-लाहौर,चेन्नई,जयपुर,मुम्बई और कोलकाता के बारे में लिखा है। ये वो शहर हैं जिनमें वे जिये और जिनको उन्होंने जिया। जिन शहरों ने उन्हें गढ़ा। जिन शहरों में उनके जीवन की निर्मिति हुई।कुल चौदह अध्यायों में फैली पुस्तक के एक-एक अध्याय में चेन्नई और लाहौर, दो अध्याय में जयपुर,चार में मुम्बई और छह अध्यायों में कोलकाता को समाहित किया है। जिस विस्तार से शहरों का वर्णन उन्होंने किया है,उसी क्रम में उनके वर्णन की सांद्रता और संवेदना का विस्तार होता गया है। ज़ाहिर सी बात है कि कोलकाता उनके दिल के सबसे करीब है और इसीलिए सबसे ज़्यादा विस्तार से और सघन संवेदना से उन्होंने कोलकाता का वर्णन किया भी है।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>इ</b>नमें से लाहौर शहर उनका अनदेखा शहर था जिसे उन्होंने अपने परिवार के बड़ों की आंखों और अनुभवों से देखा था। ये उनके पूर्वजों का शहर था जिसके प्रति वे एक प्रकार के रोमान से भरे हैं और उसी तरह वर्णित करते हैं। चेन्नई में वे कम रहे और वो कम विस्तार भी पाता है। शेष तीन शहर- जयपुर,मुम्बई और कोलकाता उनकी संवेदना से गहरे जुड़े हैं और अपने वर्णन में उतना ही विस्तार पाते हैं।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>प</b>र सब शहरों के वर्णन में एक बात कॉमन है,वो है शहर का इतिहास। वे हर शहर की स्थापना से लेकर वर्तमान तक का एक प्रामाणिक इतिहास प्रस्तुत करते हैं। वे भले ही विस्तार में नहीं जाते लेकिन उनकी दृष्टि और लेखन बहुत साफ है। मुम्बई और कोलकाता के फ़िल्म इतिहास पर तो उन्होंने बहुत ही शानदार लिखा है। मुम्बई के फ़िल्म इतिहास के एक चैप्टर में मूक फिल्मों तथा दूसरे में बोलती फिल्मों के बारे में बेहतरीन लिखा है और उतना ही बेहतरीन कोलकाता के फ़िल्म इतिहास पर। ऋत्विक घटक,मृणाल सेन और सत्यजीत रे पर उनका लिखा इस किताब का श्रेष्ठ और सबसे सरस हिस्से हैं। </span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>इ</b>स किताब में शहरों का वृतांत भी है,इतिहास भी है और लेखक की आत्मकथा भी। इसमें निबंधों की वैचारिकता भी है और कहानी की किस्सागोई भी। छोटे फॉन्ट में छपी 332 पृष्ठों की ये पुस्तक पढ़े जाने के लिए खासे समय के निवेश की मांग करती है। पर जितेंद्र भाटिया फिक्शन लेखक हैं। वे किस्सागोई जानते हैं और इसीलिए एक रोचकता पूरे समय बनी रहती है और आप एक सांस में उसे पढ़ भी जाते हैं।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>इ</b>स पुस्तक में जो कमी लगती है,वो है इसमें शहर के बदलाव को,उनके कांक्रीट के जंगल में तब्दील होने को उस विस्तार से रेखांकित नहीं किया गया है जिस हिसाब से पुस्तक के शीर्षक के अनुरूप होना चाहिए था। ऐसे विवरण विरल है और सांकेतिक है। दूसरे,फ्रूफ की कमी खलती है यहां तक कि कई जगह तो सन भी गलत छपी हैं।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>ले</b>किन कुल मिलकर एक बेहतरीन और पठनीय पुस्तक है। पुस्तक की भूमिका में प्रियंवद लिखते हैं-</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"> "<b>इ</b>स किताब का शीर्षक ही मुनादी करता है कि इस नए और तेजी से बदलते दौर में ये पांच शहर धीरे धीरे अपनी पहचान,अपना इतिहास,अपना पुराना वजूद खो रहे है। कांक्रीट के जंगल इन शहरों की पुरानी इमारतों,खंडहरों,</span><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;">गलियों,बाजारों,थियेटर,सिनेमाहाल को तेजी से निगलकर,प्लाटिक के खिलौनों के घरों की तरह बेजान,यकरंग और बेहिस बना रहे हैं। जिनका आसमान तेजी से छोटा होता जा रहा है।.....एक से दिखते ये शहर किसी मशीन के खाँचे में ढलाई करके निकाले गए उत्पाद की तरह दिखते हैं। इनमें अब पुरानी, कुशादा इमारतें,चौड़ा,बड़ा नीला आकाश, मृत्यु का खामोश गीत गाते </span><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;">कब्रिस्तान,नदी के सुकून,चांदनी रातों और सुनहरी धूपों के वितान नहीं दिखते </span><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;">छत,मुंडेर,बरामदा,आँगन,दुछत्ती,जाल,गोलंबर,</span><span style="color: #2b00fe; font-size: large;">कोठा,जीना नहीं दिखता।"</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>द</b>रअसल विकास की अंधी दौड़ से मरते शहर,कोमल सौंदर्य से पत्थर में तब्दील होते शहर का जो दुःख-दर्द जितेंद्र भाटिया का है,वोही प्रियंवद का है, और वो ही शहर में जीने वाले लाखों संवेदनशील आम लोगों का है, जिसको जितेंद्र भाटिया अपनी किताब में रच रहे होते हैं।</span></p>बात अपनीhttp://www.blogger.com/profile/05725525971715117550noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8465915453620131002.post-39486555427385852212023-07-30T09:53:00.003+05:302023-08-02T12:58:45.924+05:30हरजीत सिंह:मुझसे फिर मिल<p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"> </span></p><p style="text-align: justify;"></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiWcTCqdQvbjpalMBUfy7WGcILMsi14d9NHys5Lzf0HsqQZh2JuQ7_8kttwyNfvi34yyIOdmlT3EEknVVQOW4sP1eMCe3H2egnEuc4PaNV3zit7Cg2MUDNHn9Y9LUSBkqpDEbzBBrbr_vuOuViIO_qArH-iaSt8k0p4dtp7BJsZ8dMu_u701btCA3JcsEo/s3681/IMG_20230730_095010.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="3681" data-original-width="2350" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiWcTCqdQvbjpalMBUfy7WGcILMsi14d9NHys5Lzf0HsqQZh2JuQ7_8kttwyNfvi34yyIOdmlT3EEknVVQOW4sP1eMCe3H2egnEuc4PaNV3zit7Cg2MUDNHn9Y9LUSBkqpDEbzBBrbr_vuOuViIO_qArH-iaSt8k0p4dtp7BJsZ8dMu_u701btCA3JcsEo/s320/IMG_20230730_095010.jpg" width="204" /></a></div><br /><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><br /></span><p></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"> <b>ह</b>र शहर का एक साहित्यिक आभामंडल होता है। उस आभामंडल में तमाम सितारे होते हैं जो आंखों को चकाचौंध से भर देते हैं। लेकिन जब आप उस चकाचौंध को पार कर कुछ गहरे जाते हैं तो कुछ मद्धिम शीतल प्रकाश लिए ऐसे सितारे होते हैं जो आत्मा को दीप्त कर देते है। विस्मय से भर देते हैं। प्रेम और करुणा से सराबोर कर देते हैं</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"> <b>दे</b>हरादून की अदबी जमात के प्रमुख सितारों की चकाचोंध के पार भी दो ऐसे ही सितारों का एक युग्म है जिसका प्रकाश आंखों को नहीं बल्कि दिल को प्रकाशमान करता है। ये युग्म अवधेश और हरजीत का है। </span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>दे</b>हरादूनी अदबी जमात की हंसी के बीच किसी बच्चे की किलकारी गर आपको सुनाई दे तो आप समझ जाइए ये हरजीत है। उस जमात से कोई संगीत की उदास सी धुन सुनाई दे तो समझ लीजिए ये हरजीत है। उस जमात की सदा में कोई सदा दोस्त की सी लगे तो समझो वो हरजीत है।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>को</b>ई भी शास्त्रीय गायन तानपुरे के बिना कहां पूरा होता है। कितना ही सिद्धहस्त गायक क्यों ना हो। तानपुरा गायक को वे अवकाश देता है जो उसकी लय को बनाए रखने के लिए सबसे जरूरी होते हैं। वो गैप्स को,अंतरालों को भरता है। वो बिना लाइमलाइट में आए महत्वपूर्ण काम करता है। दरअसल हरजीत देहरादून के साहित्यिक जमात के संगीत का तानपुरा है।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>ह</b>रजीत की कहानी आपको विस्मित भी करती है और करुणा से भर देती है। पेशे से बढ़ईगिरी करने वाला ये शायर बहुमुखी प्रतिभा का धनी था। अभावों के बीच भी वो उम्दा शेर कहता,खूबसूरत कैलीग्राफी करता, बेहतरीन कोलाज बनाता,कमाल की फोटोग्राफी करता। वो शास्त्रीय संगीता का दीवाना था और फक्कड़ यायावर। जितना अधिक भटकाव उसके स्वभाव में था, उसकी शायरी उतनी ही सधी हुई थी।</span></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjnEBF_JbKRLZrIq4IPb2GoUmOkxB1mijU3abcO0IxpsevAbJb6LWwpQR8wCzoQ0tXTNmzOaVa4go8CwXY_3Q9pWnb0v9cprY7k2xyLQwKURQIbod6J5lz4b7ORqF-1BPdGnkjOt5suyP5N4fKxQm9mh2qe9PIT57n_mcUS31k6mGcvT4W0TyQnJOHPG9c/s2404/IMG_20230730_094938.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="2358" data-original-width="2404" height="314" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjnEBF_JbKRLZrIq4IPb2GoUmOkxB1mijU3abcO0IxpsevAbJb6LWwpQR8wCzoQ0tXTNmzOaVa4go8CwXY_3Q9pWnb0v9cprY7k2xyLQwKURQIbod6J5lz4b7ORqF-1BPdGnkjOt5suyP5N4fKxQm9mh2qe9PIT57n_mcUS31k6mGcvT4W0TyQnJOHPG9c/s320/IMG_20230730_094938.jpg" width="320" /></a></span></div><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><br /></span><p></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>ह</b>म जानते हैं भारतीय किस कदर उत्सवधर्मी होते हैं। अभावों से उपजा दुख इस कदर उनकी रगों में बहता है कि वे दुखों को भी सेलिब्रेट करने लग जाते हैं। क्या वजह है कि उजली पूर्णिमा के साथ अंधेरी अमावस्या का भी उसी उत्साह से उत्सव मनाते हैं। हरजीत भी ऐसा ही था। दुनियादारी के पेचोखम से नावाफ़िक वो अपने अभावों का सुखों की तरह ही उत्सव मनाता। टूटी छत से चिड़िया को घर के अंदर आते देख वो कहता है-</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><i><br /></i></span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><i>"आई चिड़िया तो मैंने जाना/</i></span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><i>मेरे कमरे में आसमान भी था"।</i> </span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><br /></span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>इ</b>ससे ज़्यादा आशा और उम्मीदों से भरा हरजीत के अलावा कौन हो सकता था।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>उ</b>सके भीतर एक बच्चे सा साफ शफ्फाक मन वास करता। तभी तो वो कठोर काष्ठ को सजीव खिलौनों का रूप दे देता। वो कहता-</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><i><br /></i></span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><i>"गेंद, गोली,गुलेल के दिन थे/</i></span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><i>दिन अगर थे तो खेल के दिन थे"।</i></span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><i><br /></i></span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>वो</b> प्रेम से भरा रहता। जब वो प्रेम से उमगता तो कहता- </span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><i><br /></i></span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><i>"हम तुझे इतना प्यार करते हैं/</i></span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><i>हम तेरी फ़िक्र ही नहीं करते"</i></span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><i><br /></i></span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>उ</b>से साथ पसंद था। दोस्ती पसंद थी। जिसको उसकी दोस्ती नसीब हुई वो कितने खुशकिस्मत थे। वो एक जगह लिखता है-</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><i><br /></i></span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><i>"आप हमसे मिलें तो ज़मी पर मिलें</i></span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><i>ये तकल्लुफ़ की दुनिया मचानों की है"</i></span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><i><br /></i></span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>ए</b>क ऐसा ही दोस्त है नवीन कुमार नैथानी। वो युग्म में एक तीसरा आयाम जोड़ता है। वो अवधेश और हरजीत के साथ मिलकर दोस्ती की त्रयी बनाता है। कभी उससे मिलिए और हरजीत का ज़िक्र भर कर दीजिए। उसकी आंखों में हर्ष और विषाद एक साथ उतर आते हैं। वो किस्सों पर किस्से कहे जाता है। वो बताता है हरजीत विचारधाराओं के पचड़े में कभी नहीं पड़ा। एक बार जब उसकी ग़ज़लों को वाम सिद्ध किया जाने लगा तो उसने अपनी वही रचनाएं धर्मयुग में छपवाकर उसका प्रतिवाद किया। </span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>अ</b>गर हरजीत की दोस्ती के चलते उसके दोस्त खुशनसीब थे तो हरजीत भी कम खुशनसीब कहां था। उसे ऐसे दोस्त मिले जो उसके जाने के बाद भी उसे हमेशा दिल में बसाए हैं। उनकी एक दोस्त हैं तेजी ग्रोवर। उन्होंने हरजीत के सारे दोस्तों को,उसके चाहने वालों को एकत्रित किया। फिर उन सबसे हरजीत की यादों को, उसके लिखे को बटोर कर एक किताब की शक्ल दे दी। नाम है 'मुझसे फिर मिल'।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>द</b>रअसल ये हरजीत को उसके चाहने वालों से,नए पाठकों से और दुनिया जहान से मिलवाने का सच्चा सा उपक्रम है। उसकी यादों को जिलाए रखने का एक बेहद संजीदा प्रयास है।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>इ</b>समें हरजीत के दो पूर्व प्रकाशित संग्रह 'ये पेड़ हरे हैं' और 'एक पुल' के अलावा एक अप्रकाशित संग्रह 'खेल' और तमाम अप्रकाशित गज़लें शामिल की गई। इसके अलावा उनके कई दोस्तों व अन्य लोगों के हरजीत के बारे आत्मीय उद्गार हैं और दो आलेख भी। </span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>इ</b>नमें से एक शानदार संस्मरणात्मक आलेख सुप्रसिद्द चित्रकार लेखक जगजीत निशात का है 'हरजीत और उसका 'हरजीत' बनना'। इसमें निशात हरजीत को हरजीत बनाने के प्रक्रिया की पड़ताल ही नहीं करते बल्कि देहरादून के उसके समकालीन सांस्कृतिक माहौल को भी बखूबी उद्घाटित करते चलते हैं। </span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>ए</b>क और संस्मरणात्मक आलेख ज्ञान प्रकाश विवेक का है। ये आलेख बहुत ही मार्मिक बन पड़ा है। वे लिखते हैं- 'हरजीत से मिलना किसी बहुत अच्छे मौसम से मिलने जैसा था.वह खुद किसी पेड़ जैसा था-किसी दरख़्त जैसा..... एक ऐसा दरख़्त,जिसके पत्तों पर आसमान आराम कर रहा हो,जिसकी शाखों में ज़िंदगी के संघर्ष जुड़े हों और जड़ों में कई जोड़ी पांव हों जो उसमें आवारगी और घुमक्कड़ी का अहसास पैदा करते हों.... उसमें बेचैनियों की खुशबू थी,जज़्बात की तरलता थी। उसे अपने सबसे विकट समय में भी मुस्कुराते देखना चकित करता था"। </span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>वो</b> अपने समय का बेहतरीन ग़ज़लकार था जो बेहद संवेदनशील और संवेगों से भरा था और ग़ज़ल के क्षेत्र में नया मुहावरा गढ़ रहा था। ज्ञान प्रकाश आगे लिखते हैं "हिंदी ग़ज़ल के कूड़े में अपनी अलग पहचान कराने वाला संवेदनशील,मैच्योर और समझदार ग़ज़लकार था।"</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>ह</b>रजीत का प्रकृति से अद्भुत जुड़ाव था। उसके पहले ही संग्रह का नाम 'ये हरे पेड़ हैं' है। वो लिखता है-</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><i><br /></i></span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><i>"कश्तियाँ डूब भी जाएं तो मरने वालों में</i></span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><i>होश जब तक रहे साहिल का गुमाँ रहता है</i></span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><i>ये हरे पेड़ हैं इनको ना जलाओ लोगों</i></span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><i>इनके जलाने से बहुत रोज़ धुंआ रहता है"</i></span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><i><br /></i></span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>ए</b>क जगह वो लिखता है-</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><br /></span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><i>"हरी ज़मीन पे तूने इमारतें बो दी</i></span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><i>मिलेगी ताज़ा हवा पत्थरों में कहाँ"</i></span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><i><br /></i></span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>या</b> फिर</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><br /></span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><i>"ज़िंदा चेहरे भी बदल जाते हैं तस्वीरों में</i></span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><i>पेड़ मरते हैं तो ढल जाते हैं शहतीरों में"</i></span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><i><br /></i></span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>औ</b>र फिर ऐसे हरे पेड़ के शैदाई को प्रकाशन संस्थान संभावना प्रकाशन की इससे खूबसूरत श्रद्धांजलि और क्या हो सकती है कि इस किताब को छापने में उसने पेड़ों को नष्ट नहीं किया। किताब को गन्ने की खोई से बने कागज़ पर छापा।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>अ</b>ब देहरादून में महसूस होने वाला सबसे बड़ा मलाल और कमी उस महबूब शायर से ना मिल पाना है। लेकिन आप उसे यहां महसूस कर सकते हैं। यहां के साहित्यिक माहौल में वो एक अहसास सा उपस्थित रहता है।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"> <b>औ</b>र ये भी कि मेरे तईं देहरादून की तमाम पहचानों में एक बड़ी पहचान हरजीत भी है। उसको जानने के बाद जब भी देहरादून जाएंगे उसकी याद तो आएगी ही और होठों बरबस गुनगुना उठेंगे कि-</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><i><br /></i></span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><i>"ढूंढते फिरते हैं हम उस शख़्स का पता</i></span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><i>जिससे हों इस शहर के माहौल की बातें बहुत।"</i></span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><i><br /></i></span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>औ</b>र</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;">और हरजीत आपके कानों में आकर चुपके से कहेगा -</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><br /></span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><i>"सोचता हूँ कहां गए वो दोनों</i></span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><i>मेरी साइकिल वो मेरा देहरादून"</i></span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><i><br /></i></span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><i><br /></i></span></p><p style="text-align: justify;"><br /></p>बात अपनीhttp://www.blogger.com/profile/05725525971715117550noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8465915453620131002.post-26224320267600283322023-07-20T22:59:00.002+05:302023-07-23T19:03:15.474+05:30 टेनिस:एक युग का अवसान/एक युग का आगाज़<p></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgrxj9vUgBVquwDB6wxJa9fnE59fYny1ingbXxYX9jY23VNctyWrGa__1NpIya11fRHJ7e53mDEzhBLpgCUsFF5q3czavq0RIDb6GmMuZU9_QjaKFszc5mfagF47-YKZofbfj-rMHCDHFx9Vd1ywfQRrBaC5UL3gjQhxS7WEIBPU7dba3K9qDd3g37P8lI/s525/Britain_Wimbledon_Tennis_16365.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="350" data-original-width="525" height="213" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgrxj9vUgBVquwDB6wxJa9fnE59fYny1ingbXxYX9jY23VNctyWrGa__1NpIya11fRHJ7e53mDEzhBLpgCUsFF5q3czavq0RIDb6GmMuZU9_QjaKFszc5mfagF47-YKZofbfj-rMHCDHFx9Vd1ywfQRrBaC5UL3gjQhxS7WEIBPU7dba3K9qDd3g37P8lI/s320/Britain_Wimbledon_Tennis_16365.jpg" width="320" /></a></div><br /><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><br /></span><p></p><p><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b> बा</b>त 2022 की लाल मिट्टी पर खेली जाने वाली मेड्रिड ओपन प्रतियोगिता की है। इसमें एक 19 साल का नौजवान जर्मनी के एलेक्जेंडर ज्वेरेव को हराकर प्रतियोगिता जीत रहा था। क्वार्टर फाइनल में उसने राफेल नडाल को और सेमीफाइनल में नोवाक जोकोविच को हराया था।</span></p><p><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"> <b>टे</b>निस इतिहास में इससे ख़ूबसूरत और क्या हो सकता था कि एक टीनएजर राफा और नोवाक को हराकर ये प्रतियोगिता जीत रहा था।</span></p><p><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>ये</b> टीनएजर कोई और नहीं स्पेन का कार्लोस अलकराज था।</span></p><p><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>द</b>रअसल ये जीत एक नए उगते सूरज की मानिंद थी। जिसका नरम मुलायम प्रकाश बरगद के पेड़ों की घनी छाया को चीरकर टेनिस के नए भविष्य का संकेत दे रहा था। वो टीनएजर बता रहा था कि वो एक ऐसा महत्वाकांक्षी और सक्षम बिरवा है कि वट वृक्ष सरीखे नोवाक और राफा के अनुभव और काबिलियत की सघन छाया के नीचे भी सरवाइव कर सकता है। </span></p><p><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>उ</b>सके चार महीने बाद फ्लशिंग मीडोज के आर्थर ऐश स्टेडियम पर कैस्पर रड को हराकर अपना पहला यूएन ओपन ग्रैंड स्लैम जीतकर वो टीनएजर अपने पॉइंट को प्रूव कर रहा था। पूरा स्टेडियम 'ओले ओले ओले कार्लोस' से गूंज रहा था। ये टेनिस का भविष्य का थीम सांग बनने जा रहा था।</span></p><p><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>औ</b>र विंबलडन तक आते आते उस बिरवे का कद काफी बढ़ गया था। अब वो अपना आकार बनाने लगा था। उसकी जड़ें ज़मीन में कुछ और गहरे धंस रहीं थीं। सुबह का नरम मुलायम सूरज आसमान में और ऊपर हो आया था। उसका प्रकाश अब इतना तेज हो गया था कि दुनिया की आंखे चौंधियाने लगी थीं।</span></p><p><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>वि</b>म्बलडन 2023 का फाइनल उम्मीद के अनुरूप नोवाक और उस अलकराज के बीच ही खेला ही गया। </span></p><p><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>ये</b> मैच केवल एक फाइनल मैच भर नहीं था,बल्कि ये विरुद्धों का द्वंद था। ये दो अलग व्यक्तित्व,दो अलग खेल शैलियों,दो अलग समयों के बीच का द्वंद्व भी था। यहां अनुभव जोश के मुकाबिल था। नया पुराने के सामने था। ये अपने अपने अस्तित्व की रक्षा का मसला था। पुराना अपनी जड़ें और मजबूती से जमाए रखने की कोशिश में था और नया था कि पुराने को उखाड़ फेंकना चाहता था।</span></p><p><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>मै</b>दान पर पहले नंबर दो नोवाक आए और उनके पीछे नंबर एक अलकराज। 35 साल के नोवाक का अनुभवी चेहरा बाल सुलभ मुस्कुराहट से चमक रहा था,तो बीस साल के युवा अलकराज का बालसुलभ चेहरा विश्वास और गंभीरता से प्रदीप्त था। </span></p><p><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>नो</b>वाक साल की पहली दो ग्रैंड स्लैम प्रतियोगिता जीतकर यहां आए थे।उनके हिस्से अब तक कुल 23 ग्रैंड स्लैम आ चुकी थीं। ये उनकी सबसे प्रिय और अनुकूल सतह थी। वे अनुभव का टोकरा अपने साथ लिए थे। वे यहां 07 बार जीत चुके थे। इसके विपरीत अलकराज की ये पसंदीदा सतह नहीं थी। लेकिन वे नंबर एक टेनिस खिलाड़ी का तमगा अपने सीने से लगाए थे। जोश उनमें हिलोरें ले रहा था और प्रतिभा उनमें कूट कूट कर भरी थी।</span></p><p><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>मु</b>काबला शुरू हुआ। नोवाक ने शानदार शुरुआत की। पहला सेट 6-1 से अपने नाम किया। लगा ये मैच नोवाक के लिए 'केक वॉक' होने जा रहा है। वे संख्या 24 की तरफ दौड़ते दिखे। लेकिन कार्लोस की यही काबिलियत है कि वे कोई भी दबाव अपने ऊपर बनने नहीं देते। फिर चाहे ग्रैंड स्लैम फाइनल खेलने का दबाव हो या सामने नोवाक सरीखा कोई लीजेंड हो। अगले सेट में ज़ोरदार संघर्ष हुआ। टाईब्रेक अंततः अलकराज ने 8-6 से जीत लिया। अब मैच में जान आ गयी थी। नोवाक यहां थोड़े थके दिखे और अगला सेट वे आसानी से 1-6 से हार गए। अब लगा कि मैच एकतरफा कार्लोस के पक्ष में हो चला है। तभी नोवाक अपनी फॉर्म में लौट आए और अगला सेट 6-3 से जीत कर मैच अत्यधिक रोमांचक बना दिया। अंतिम और निर्णायक सेट में नोवाक के दूसरे सर्विस गेम में कार्लोस ने नोवाक की सर्विस ब्रेक की। गुस्से में आकर नोवाक ने नेट पोल पर मारकर अपना रैकेट तोड़ दिया। दरअसल नोवाक उसी समय हार गए थे। ये उनकी निराशा थी। मन ही मन हार जाने का संकेत। वही हुआ भी। अलकराज ने अंततः सेट 6-4 से जीतकर कैरियर का दूसरा ग्रैंड स्लैम अपने नाम कर लिया।</span></p><p><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>ये</b> फाइनल कितना संघर्षपूर्ण और इंटेंस था,इसे इस बात से समझा जा सकता है कि तीसरे सेट का चौथा गेम लगभग 26 मिनट चला जिसमें कुल 13 ड्यूस हुए और 32 पॉइंट बने। नोवाक की सर्विस गेम को अलकराज ने जीता। ये मैच लगभग 5 घंटे तक चला। नोवाक के 166 के मुकाबले अलकराज ने कुल 168 अंक जीते। इस बात से भी अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि मैच कितना करीबी था और संघर्षपूर्ण भी।</span></p><p><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>इ</b>स मैच में शानदार टेनिस खेला गया। बुलेट की तेजी सी सर्विस,शानदार ग्राउंड स्ट्रोक्, एंगुलर फोरहैंड स्ट्रोक्स,वॉली,ड्राप शॉट्स,बैक हैंड स्लैश,क्या कुछ नहीं था इस मैच में।</span></p><p><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>ये</b> एक ऐसा मैच था जिसे दो पीढ़ियों की टकराहट के सबसे शानदार उदाहरण के रूप में हमेशा याद रखा जाएगा।</span></p><p><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>2</b>003 से लेकर 2022 तक के 20 साल के सफर में विम्बलडन का खिताब 'फेबुलस फोर' के अलावा कोई और नहीं जीत सका था। ये अलकराज ही हैं जिसने 20 सालों के 'फेबुलस फोर'के विम्बलडन पर उनके वर्चस्व को समाप्त किया। </span></p><p><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>जो</b> भी हो जोकोविच अपनी हार में भी ग्रेसफुल थे। उन्होंने मैच पश्चात ऑन कोर्ट इंटरव्यू में अलकराज की खूब तारीफ की। उन्होंने कहा 20 साल की उम्र में दबाव झेलने की उनकी ताकत सराहनीय है। और क्रोशियन कोच इवान लूबिसिक की उस बात की ताईद भी की कि अलकराज में स्वयं उनके यानी नोवाक,फेडरर और राफा की खूबियों का मिश्रण है।</span></p><p><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"> <b>पि</b>छले सालों में 'फेबुलस फोर' ने, या कहें कि 'बिग थ्री' ने इतनी शानदार टेनिस खेली कि उन्होंने ज्वेरेव, सितसिपास,थिएम,मेदवेदेव जैसे खिलाड़ियों की पूरी एक पीढ़ी को लगभग खत्म कर दिया। उन्हें अपनी छाया से बाहर आने ही नहीं दिया। लेकिन उसके बाद की पीढ़ी के खिलाड़ियों-कैस्पर रड,रुन, बेरेटिनी,आगर अलिसिमे से पार पा पाना मुश्किल होगा। हालांकि अभी भी नोवाक की फिटनेस शानदार है। उनमें बहुत टेनिस बाकी है। उन्हें अभी खारिज़ कतई नहीं किया जा सकता।</span></p><p><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>ये</b> अलकराज की स्वप्न सरीखी यात्रा पूरी दुनिया अपनी खुली आँखों से देख रही है। ऐसी ना जाने कितनी स्वप्निल सफलताएं अभी उनके हाथ आने वाली हैं ये तो भविष्य ही बताएगा।</span></p><p><span style="color: #cc0000; font-size: medium;">°°°°°°</span></p><p><span style="color: #cc0000; font-size: medium;"><b>अ</b>भी तो बस कार्लोस अलकराज को उनके दूसरे ग्रैंड स्लैम की बधाई।</span></p><p><span style="font-size: medium;"><br /></span></p>बात अपनीhttp://www.blogger.com/profile/05725525971715117550noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8465915453620131002.post-193586171688480612023-07-06T18:55:00.005+05:302023-07-11T21:26:48.227+05:30अकारज_19<p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"> </span></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjI_7y28JEOiXy7kHSOjK-YnLrZ3g2kU4CzO66oeptHMVk0_XPAjgN3TGSYOG2LGWiqkWzi2F2owtaaHoMV5aQTriFkIHE0KFRT89ZKqed_HNpwgN1cTBMFXiOC1ALhHUML29ZbA0Wl-qbboIXqTui7Li4ETyqFDtIxlbxrNH0uG-vkTsCm7zKP5ZnBIfA/s367/Pen-and-paper-clipart.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="353" data-original-width="367" height="308" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjI_7y28JEOiXy7kHSOjK-YnLrZ3g2kU4CzO66oeptHMVk0_XPAjgN3TGSYOG2LGWiqkWzi2F2owtaaHoMV5aQTriFkIHE0KFRT89ZKqed_HNpwgN1cTBMFXiOC1ALhHUML29ZbA0Wl-qbboIXqTui7Li4ETyqFDtIxlbxrNH0uG-vkTsCm7zKP5ZnBIfA/s320/Pen-and-paper-clipart.jpg" width="320" /></a></span></div><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><br /></span><p></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>उस</b> दिन किशोर प्रेमी युगल को देखते हुए उसने कहा <i>'आजकल का प्रेम भी कोई प्रेम होता है! आज प्रेम,कल ब्रेकअप। प्रेम तो हमारे ज़माने में होता था।'</i></span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>मैंने</b> उसकी ओर शरारत भरी दृष्टि से देखा और पूछा <i>'तुम्हारा ज़माना!</i>'</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>उसने</b> भी शरारतन कहा<i> 'हाँ, तुम्हारे बैलगाड़ी वाले समय के बाद साइकिल वाला ज़माना।'</i></span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>मेरे</b> ओंठ मुस्कुराहट से फैल गए। मैंने फिर पूछा<i> 'और कैसा था वो तुम्हारा साइकल वाला ज़माना!'</i></span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><i><b>'हमारा</b> ज़माना आज के मल्टीप्लेक्स,मोबाइल,ओटीटी,बाइक वाला फटाफट इंस्टा ज़माना थोड़े ही ना था। वो तो रेडियो वाला 'हौले हौले चलो रे बालमा' वाला ज़माना था।' </i>कहते कहते उसकी आवाज़ अतीत में धंस गईं और आंखें यादों से चमक उठीं।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>उसकी</b> बात को आगे बढ़ाते हुए मैं खुद अतीत में गहरे उतर आया था। मैंने कहा <i>'यानि तुम्हारे समय का प्रेम धीमे धीमे सींझते हुए परिपक्व होता था। जैसे गांवों में हारे पर धीमी धीमी आंच में पकती दाल या औटता हुआ दूध।'</i></span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>उसने</b> उत्साह से भरते हुए कहा <i>'और क्या ! तब प्रेम खतो-किताबत से धीमे धीमे परवान चढ़ता था। क्या समय हुआ करता था वो भी। क्या प्रेम पत्र लिखे जाते थे उन दिनों। दरअसल वो समय ही 'प्रेम पत्रों' का समय था।'</i></span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>फिर</b> उसने बाल सुलभ उत्सुकता से पूछा <i>'तुम्हें याद है तुमने अपने पहले पत्र में क्या लिखा था?'</i></span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>अब</b> यादें अतीत के गलियारे तय करने लगीं। और फिर यादों ने उन शब्दों को अतीत की भूलभुलैया से ढूंढ निकाला। मैंने कहा <i>'हां वो एक लाइन की पाती थी- 'लिखे जो खत तुझे'</i></span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>उसने</b> खिलखिलाकर कहा<i> 'और उसके बाद तुम तीन दिन कॉलेज नहीं आए थे।'</i></span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>मैंने</b> ठहाका लगाया <i>'तुम्हारी याददाश्त कमाल है।'</i></span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><i><b>'और</b> तुम्हें वो वाली चिठ्ठी भी याद है ना जो तुमने घर जाते हुए लिखी थी।' </i>उसने फिर पूछा।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>यादें</b> एक बार फिर छटपटाईं और स्थिर हो गईं। मैंने मुस्कुराते हुए कहा <i>'वो भी वन लाइनर ही था कि 'तुम भी खत लिखना'।'</i></span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>अब</b> शरारत उसकी आँखों से उतर कर उसके ओंठों पर ठहर गई। उसने शोखी से पूछा - <i>'तो खत आया क्या!'</i> इसमें सवाल कम उत्तर अधिक था।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>मैंने</b> कहा <i>'हां उसमें बस इतना ही लिखा था- 'इन दिनों यहां बादल खूब बरस रहे हैं। और आंखें भी।</i>'</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>वो </b>फिर अतीत में डूब गई। एक बार प्रेम फिर आंखों से बरसने लगा। वो प्रेम की नमी से गल चुकी थी। <i>'तो तुमने जवाब भेजा!' </i>उसने तरल हुई रेशम सी आवाज़ में पूछा।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"> <b>मैंने</b> यादों के हवाले से कहा <i>'केवल एक शब्द लिखा था '....तुम्हारा'</i></span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>वो</b> जवाब सुन खिलखिला उठी कि पास के खिले फूलों का रंग कुछ और गहरा हो उठा। पत्तियां कुछ और हरी हो गईं। चिड़िया कुछ और चहक उठीं। घास के तिनको पर ठहरी ओस की बूंदें उसकी ऊष्मा से सुध बुध खोकर अपना अस्तित्व ही खो बैठी। सूरज कुछ और तेजस्वी हो उठा और सुबह कुछ और जवान। </span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>उसके</b> स्वर में बरसों से ठहरी जिज्ञासा मुखर हो आई -<i> 'ये तुम्हारे 'प्रेम पत्र' वन लाइनर क्यूं होते थे।'</i></span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><i><b>'उन</b> दिनों मौन अधिक वाचाल जो होता था।अनलिखा ही सब कह जो देता था।'</i> मैंने हँसते हुए कहा।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #990000; font-size: medium;">°°°°°°</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>अब</b> पूछने को कुछ बाकी रहा भी हो तो पूछा ना गया। शब्दों ने मौन जो धारण कर लिया था। </span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"> मौन के बीच एक धड़कता दिल 'पाती' हुआ जाता था, दूसरा 'कलम'। कलम से शब्द शब्द प्रेम पाती पर रिसता जाता।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>उधर</b> मौन था कि 'कलम' से लिखी जा रही इस 'प्रेम पाती' को बांच रहा था। </span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;">और </span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>और</b> यादों की आंख से निकले आंसू थे कि अतीत की पीठ को भिगो भिगो जाते थे।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><br /></span></p><p style="text-align: justify;"><br /></p>बात अपनीhttp://www.blogger.com/profile/05725525971715117550noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8465915453620131002.post-25302891295672786352023-06-14T11:12:00.002+05:302023-06-17T19:58:11.024+05:30मैनचेस्टर डर्बी और सिटी का डबल<p style="background-color: white; box-sizing: border-box; font-family: NotoSerif-Regular, serif, Arial; line-height: 1.75em; margin: 15px 0px; text-align: justify;"><span style="box-sizing: border-box;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"></span></span></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><span style="box-sizing: border-box;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh3DzJ4vgoRN_D845hHsU4xOmdPcbazBZZhxnWqY0-iW9qXN8zpmGVeuyhCl8MkXSI60KBOlB0-Atv3OVRj3O6mnk4MrNN6G0eoovOFZBVCwTplYr-zTtY9wrtjPjarhYhrSCs0kdSpQ1jiTMutPITa8TcBTLyLEYr7djV0TL9W_DLZrmha7JTxOjQ4/s1200/6000.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="900" data-original-width="1200" height="240" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh3DzJ4vgoRN_D845hHsU4xOmdPcbazBZZhxnWqY0-iW9qXN8zpmGVeuyhCl8MkXSI60KBOlB0-Atv3OVRj3O6mnk4MrNN6G0eoovOFZBVCwTplYr-zTtY9wrtjPjarhYhrSCs0kdSpQ1jiTMutPITa8TcBTLyLEYr7djV0TL9W_DLZrmha7JTxOjQ4/s320/6000.jpg" width="320" /></a></span></span></div><span style="box-sizing: border-box;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><br /><b><br /></b></span></span><p></p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; font-family: NotoSerif-Regular, serif, Arial; line-height: 1.75em; margin: 15px 0px; text-align: justify;"><span style="box-sizing: border-box;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b> बात</b> सन् 1764-65 की है. जेम्स हरग्रीव्ज़ ने ‘स्पिनिंग जेनी’ नाम के एक जादुई यंत्र का आविष्कार किया. 18वीं शताब्दी के पूर्वार्ध में पूरे यूरोप और विश्व में सूती कपड़े की मांग ज़ोर पकड़ रही थी. उस समय केवल आठ हज़ार की आबादी वाला इंग्लैंड का एक क़स्बानुमा शहर मैनचेस्टर सूती कपड़ों के उत्पादन का केंद्र बनने की कोशिश में था.<span id="more-10793" style="box-sizing: border-box;"></span> वहां के बुनकर हस्तचालित पुराने हथकरघों से उस बढ़ती मांग को पूरा करने में ख़ुद को असमर्थ पा रहे थे. ऐसे में ‘जेनी’ ने इस क्षेत्र में क्रांति ला दी.</span></span></p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; font-family: NotoSerif-Regular, serif, Arial; line-height: 1.75em; margin: 15px 0px; text-align: justify;"><span style="box-sizing: border-box;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b> हरग्रीव्ज़</b> की जेनी में आठ स्पांडल थे. यानी अब पहले जितने समय में आठ गुना सूत काता जा सकता था. इसने वहां टेक्सटाइल कारख़ानों के निर्माण का मार्ग प्रशस्त किया. देखते ही देखते वहां बड़ी संख्या में सूती कपड़ों के कारख़ाने लग गए. उसके साथ ही कपड़ों को रंगने और ब्लीच करने के लिए ज़रूरी केमिकल्स की मांग बढ़ने से केमिकल फ़ैक्ट्री भी लगने लगीं और उन कारख़ानों के लिए आवश्यक संयंत्र बनाने के कारख़ाने भी स्थापित हुए. कच्चे माल के लाने के लिए परिवहन नहर प्रणाली का विकास हुआ और पहली रेल लाइन की स्थापना भी यहीं हुई<span style="font-weight: bolder;">.</span></span></span></p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; font-family: NotoSerif-Regular, serif, Arial; line-height: 1.75em; margin: 15px 0px; text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"> <b>अब</b> देश के कोने-कोने से लोग बड़ी संख्या में कारख़ानों में काम पाने के लिए मैनचेस्टर आने लगे.</span></p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; font-family: NotoSerif-Regular, serif, Arial; line-height: 1.75em; margin: 15px 0px; text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b> 19वीं</b> शताब्दी के शुरू होते होते मैनचेस्टर औद्योगिक क्रांति का प्रमुख केंद्र बन गया और इंग्लैंड के सबसे बड़े तीन शहरों में एक. अब उसकी आबादी तीन लाख से ऊपर हो चुकी थी. इसमें ज़्यादातर मजदूर थे जिन्हें बारह घंटों से भी अधिक समय तक कारख़ानों में काम करना पड़ता था और कठिन परिस्थितियों में जीवन यापन. ऐसे में उनके मनोरंजन के साधनों की ज़रूरत महसूस होने लगी. इससे अनेक खेलों के आयोजनों की शुरुआत हुई, जिसमें घुड़सवारी से लेकर फ़ुटबॉल तक शामिल थे.</span></p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; font-family: NotoSerif-Regular, serif, Arial; line-height: 1.75em; margin: 15px 0px; text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b> मजदूरों</b> के बीच फ़ुटबॉल तेजी से लोकप्रिय होने लगा. और देखते ही देखते वहां कई फ़ुटबॉल क्लब बन गए. इनमें से दो क्लब ऐसे थे, जिन्हें आगे चलकर न केवल विश्व प्रसिद्ध फ़ुटबॉल क्लबों में तब्दील हो जाना था बल्कि प्रसिद्ध खेल प्रतिद्वंद्विता में भी बदल जाना था, जिसे ‘मैनचेस्टर डर्बी’ के नाम से जाना जाना था.</span></p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; font-family: NotoSerif-Regular, serif, Arial; line-height: 1.75em; margin: 15px 0px; text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b> सन्</b> 1878 में लंकाशायर व यॉर्कशायर रेलवे के मज़दूरों ने ‘न्यूटन हीथ एलवाईआर फ़ुटबॉल क्लब’ बनाया. 1892-93 में एक स्वतंत्र कंपनी बन जाने के कारण नाम से एलवाईआर शब्द हटा दिया गया. सन् 1902 तक आते आते क्लब का घाटा बहुत बढ़ गया और इसको बंद करने की नौबत आ गई. उस समय चार स्थानीय व्यापारियों ने इसमें निवेश किया और आधिकारिक रूप से इसका नाम ‘मैनचेस्टर यूनाइटेड फ़ुटबॉल क्लब’ पड़ा.</span></p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; font-family: NotoSerif-Regular, serif, Arial; line-height: 1.75em; margin: 15px 0px; text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b> उधर</b> सन् 1880 में एक अन्य फ़ुटबॉल क्लब ‘सेंट मार्क्स’ (वेस्ट गोर्टन) की स्थापना हुई. सन् 1887 में इसका नाम ‘ऑर्डिक एसोसिएशन फ़ुटबॉल क्लब’ हो गया. और फिर 16 अप्रैल 1894 को ये क्लब ‘मैनचेस्टर सिटी फ़ुटबॉल क्लब ‘ नाम से जाना जाने लगा.</span></p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; font-family: NotoSerif-Regular, serif, Arial; line-height: 1.75em; margin: 15px 0px; text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b> इन</b> दोनों टीमों के बीच पहला मुक़ाबला 1881 में हुआ, जिसमें न्यूटन हीथ ने सेंट मार्क्स की टीम को 3-0 से हरा दिया. ये एक दोस्ताना मैच था और प्रतिद्वंद्विता जैसी कोई बात न थी. लेकिन इसी दशक में दोनों टीमों ने प्रगति करना शुरू किया और मैनचेस्टर क्षेत्र की दो सर्वश्रेष्ठ टीमें बन गईं. इनमें से ही कोई एक टीम मैनचेस्टर कप जीतती. यहां से दोनों टीमों में श्रेष्ठता के लिए प्रतिद्वंद्विता स्थापित हो गई. और दोनों टीमों के बीच मुकाबले ‘मैनचेस्टर डर्बी’ के नाम से जाने जाने लगे. समय के साथ-साथ यह प्रतिद्वंद्विता सघन और तीव्र होती गई और विश्व भर में खेलों की और विशेषकर फ़ुटबॉल की सबसे प्रसिद्ध खेल प्रतिद्वंद्विताओं में शुमार हो गई.</span></p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; font-family: NotoSerif-Regular, serif, Arial; line-height: 1.75em; margin: 15px 0px; text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b> ऐसी</b> प्रतिद्वंद्विताएं कभी भी एकतरफ़ा कहां हो पाती हैं. पलड़ा कभी इस ओर झुक जाता तो कभी उस ओर. पर कुल मिलाकर मैनचेस्टर डर्बी में रेड डेविल्स यानी यूनाइटेड का पलड़ा भारी रहा. डर्बी में अब तक कुल 190 मुकाबलों में से 78 यूनाइटेड ने और 59 सिटी ने जीते. शेष 53 मुकाबले अनिर्णीत रहे. इस दौरान यूनाइटेड ने 67 खिताब जीते तो सिटी ने 31 खिताब.</span></p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; font-family: NotoSerif-Regular, serif, Arial; line-height: 1.75em; margin: 15px 0px; text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b> लेकिन</b> 2023 का साल मानो इस प्रतिद्वंद्विता का निर्णायक साल था. 142 साल पुरानी प्रतिद्वंद्विता का चर्मोत्कर्ष था. लेकिन ये साल सिटी की बुलंदियों का भी साल है.</span></p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; font-family: NotoSerif-Regular, serif, Arial; line-height: 1.75em; margin: 15px 0px; text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b> इंग्लैंड</b> की सबसे प्रतिष्ठित फ़ुटबॉल प्रतियोगिताओं में एफए कप शुमार है, जो विश्व की सबसे पुरानी प्रतियोगिता है. इस प्रतियोगिता के 142 साल के इतिहास में पहली बार फ़ाइनल में मैनचेस्टर की ये दो टीमें आमने-सामने थीं. ये मैनचेस्टर डर्बी का महामुक़ाबला था. मानो ये एफए कप का फाइनल न होकर, डर्बी फ़ाइनल हो.</span></p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; font-family: NotoSerif-Regular, serif, Arial; line-height: 1.75em; margin: 15px 0px; text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b> यह</b> मैच 03 जून को लंदन के वेम्बले स्टेडियम में खेला गया.</span></p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; font-family: NotoSerif-Regular, serif, Arial; line-height: 1.75em; margin: 15px 0px; text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b> सुप्रसिद्ध</b> मैनेजर पेप गोर्डियाला के निर्देशन और जर्मन मिडफ़ील्डर इल्के गुंडोगन के नेतृत्व में जब सिटी की टीम हरी घास पर अपनी पारंपरिक आसमानी रंग की जर्सी में मैदान पर उतरी तो इस साल की प्रीमियर लीग की जीत के गर्व से आसमान से ऊंचे उनके सिर थे और किसी महासमुद्र से संतुष्ट और शांत प्रतीत होते थे. यह और बात है उनके सीने में प्रतिद्वंद्वियों को हराने के लिए ज़ज्बात की एक सुनामी थी.</span></p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; font-family: NotoSerif-Regular, serif, Arial; line-height: 1.75em; margin: 15px 0px; text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b> दूसरी</b> और मैनेजर एरिक तेन हाग के निर्देशन में और पुर्तगाली अटैकिंग मिडफ़ील्डर ब्रूनो फ़र्नांडीज के नेतृत्व में यूनाइटेड की टीम इतिहास के अपने पक्ष में होने के गौरव की रक्तिम आभा लिए और फ़रवरी में ही ईएफएल में जीत की अग्नि से दावानल हुए प्रतिद्वंद्वी टीम को भस्म कर देने की मुद्रा में थी.</span></p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; font-family: NotoSerif-Regular, serif, Arial; line-height: 1.75em; margin: 15px 0px; text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b> ये</b> आसमानी रंग के हरहराते महासागर और लाल रंग की लपलपाती दावानाल के बीच का मुकाबला जो था.</span></p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; font-family: NotoSerif-Regular, serif, Arial; line-height: 1.75em; margin: 15px 0px; text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b> मैच</b> शुरू हुआ. सिटी के कप्तान गुंडोगन ने किक ऑफ़ किया. गेंद गोलकीपर के पास पहुंची. उसने जोरदार किक से बॉल को यूनाइटेड के पेनाल्टी एरिया के पास पहुंचा दिया. एक हैडर से बॉल गुंडोगन के पास पहुँची और उसने शानदार वॉली से गैंद गोल में पहुंचा दी. अभी मैच शुरु हुए केवल 13 सेकंड हुए थे. ये एफए कप फ़ाइनल का सबसे तेज गोल था.</span></p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; font-family: NotoSerif-Regular, serif, Arial; line-height: 1.75em; margin: 15px 0px; text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b> सिटी</b> ने 1-0 की बढ़त ले ली थी. लगा मानो स्टेडियम में आसमानी समुद्र गर्जना कर रहा था और दहकती दावानल निस्तेज हुई जाती थी. हालांकि दावानल निस्तेज भले ही हो गई हो, पर अभी भी बहुत आग उसमें बाक़ी थी.</span></p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; font-family: NotoSerif-Regular, serif, Arial; line-height: 1.75em; margin: 15px 0px; text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b> इधर</b> सिटी ने मोमेंटम बनाए रखा. जल्दी ही उसने गोल करने के दो और मौक़े बनाए. पहले ब्रुएने के फ्री किक पर रोडरी ने हैडर बाहर मार दिया. उसके तुरंत बाद हालैंड ने मौक़ा गंवाया. इधर यूनाइटेड ने गेंद पर नियंत्रण बढ़ाकर दबाव बनाना शुरू किया. एक के बाद एक कई आक्रमण किए. इसका प्रतिफल उन्हें पेनाल्टी के रूप में मिला. हालांकि ये पेनाल्टी वीएआर से मिली. कप्तान फ़र्नांडीज ने बराबरी का गोल दाग दिया. ये गोल 33वें मिनट में आया.</span></p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; font-family: NotoSerif-Regular, serif, Arial; line-height: 1.75em; margin: 15px 0px; text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b> दूसरे</b> हाफ़ में 51 वें मिनट में ब्रुएने का फ्री किक एक बार फिर गुंडोगन को पेनाल्टी एरिया में मिला और एक बार फिर वॉली पर गोल कर सिटी को फिर बढ़त दिला दी. इसके बाद दोनों ही टीमों ने मूव बनाए और गोल के मौक़े भी. लेकिन अंततः मैच 2-1 से सिटी ने जीत लिया.</span></p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; font-family: NotoSerif-Regular, serif, Arial; line-height: 1.75em; margin: 15px 0px; text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b> मैनचेस्टर</b> सिटी ने प्रीमियर लीग के बाद एफए कप जीत कर अपना डबल पूरा किया. ऐसा उसने दूसरी बार किया. इससे पहले ये कारनामा 2018-19 में किया था. जबकि उसके प्रतिद्वंद्वी ये कारनामा तीन बार 1993-94, 1995-96 और 1998-99 में किया था.</span></p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; font-family: NotoSerif-Regular, serif, Arial; line-height: 1.75em; margin: 15px 0px; text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b> मैनचेस्टर</b> डर्बी में इस बार बाज़ी सिटी के हाथ रही. लेकिन इससे बड़ी प्रतिष्ठा अभी भी दांव पर है. इस शनिवार यूएफा कप चैपियनशिप के फ़ाइनल में उसका मुक़ाबला इंटर मिलान से है. सवाल ये है कि क्या ये फ़ाइनल जीतकर सिटी अपना ट्रिपल पूरा कर पाएगी या नहीं.</span></p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; font-family: NotoSerif-Regular, serif, Arial; line-height: 1.75em; margin: 15px 0px; text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b> अभी</b> तक विश्व के कुल 21 क्लब ने 29 बार ट्रिपल पूरा किया है. पर इंग्लैंड की केवल एक टीम है, जिसने ये किया है और वो सिटी की डर्बी प्रतिद्वंद्वी यूनाइटेड है जिसने 1998-99 में ये ट्रिपल किया था.</span></p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; font-family: NotoSerif-Regular, serif, Arial; line-height: 1.75em; margin: 15px 0px; text-align: justify;"><span style="color: #990000; font-size: medium;">-----------------------------</span></p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; font-family: NotoSerif-Regular, serif, Arial; line-height: 1.75em; margin: 15px 0px; text-align: justify;"><span style="color: #990000; font-size: medium;"> <b>सिटी</b> की बारी है. ये शनिवार और रविवार के बीच की जो रात है न, कम रोमांचक नहीं होने जा रही है.</span></p><p style="background-color: white; box-sizing: border-box; font-family: NotoSerif-Regular, serif, Arial; line-height: 1.75em; margin: 15px 0px; text-align: justify;"><span style="color: #990000; font-size: medium;">याद रखिएगा!</span></p><div><br /></div>बात अपनीhttp://www.blogger.com/profile/05725525971715117550noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8465915453620131002.post-85945813433361634582023-06-14T11:10:00.007+05:302023-06-17T19:28:24.546+05:30लाजवाब जोकोविच<p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"> </span></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEix2MfuVFZb0ZTfaqLgRXeb9LDV9e7o9Fo0HdbScj06xQVdxoaAHwxtFhqCMJetNLlqVN7dwN3BGV90LtxJcq5ZOMg9AEkdXcCiR7vSlA6GRvnOUkGNi0W8WU-9n9jAamNeyLYuzaHgKITdeeitw6lAQ8YZQLVMuo3dqHKipqtVp3EYVBiSgVAkEdHz/s760/230611-novak-djokovic-french-open-jm-1702-5787b5.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="507" data-original-width="760" height="213" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEix2MfuVFZb0ZTfaqLgRXeb9LDV9e7o9Fo0HdbScj06xQVdxoaAHwxtFhqCMJetNLlqVN7dwN3BGV90LtxJcq5ZOMg9AEkdXcCiR7vSlA6GRvnOUkGNi0W8WU-9n9jAamNeyLYuzaHgKITdeeitw6lAQ8YZQLVMuo3dqHKipqtVp3EYVBiSgVAkEdHz/s320/230611-novak-djokovic-french-open-jm-1702-5787b5.jpg" width="320" /></a></span></div><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><br /></span><p></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>मानवीय</b> क्षमताएं असीमित हैं। इस हद तक कि जो चीजें किसी समय अकल्पनीय लगती हैं,आगे चलकर वे यथार्थ में तब्दील हो जाती हैं। मानव ने अपने विकास क्रम में ये बात अलग अलग समय पर अलग अलग क्षेत्रों में बार बार सिद्ध की है।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"> <b>ऐसा</b> भी होता है कि मानव की बहुत सी उपलब्धियां इस हद तक अविश्वसनीय होती हैं कि तर्कातीत हो जाती हैं। हम उनमें तब देवत्व का आरोपण कर देते हैं। </span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>और</b> खेल भी इससे अछूते कहाँ रह पाते हैं। जब सचिन या पेले या माराडोना या मेस्सी या शुमाकर या माइकेल जॉर्डन या लेब्रों जेम्स या मोहम्मद अली जैसे खिलाड़ी खेलों में मानवीय क्षमताओं के तर्कातीत मानक स्थापित करते हैं तो उन्हें भगवान का दर्ज़ा दे दिया जाता है। </span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>बीते</b> रविवार फिलिप कार्टियर अरीना पर 36 साल के नोवाक जोकोविच फ्रेंच ओपन के फाइनल में कैस्पर रड को 7-6(7-1),6-3,7-5 से हराकर जब अपना 23वां ग्रैंड स्लैम जीत रहे थे तो कुछ ऐसा ही अविश्वसनीय कर रहे थे। कि उस उपलब्धि को बयां करने के लिए कोई भी शब्द पर्याप्त नहीं हो सकता था। उसके लिए कोई तर्क प्रस्तुत नहीं किया जा सकता था। </span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>नोवाक</b> अपने प्रतिद्वंदी राफा के 22 ग्रैंड स्लैम से एक खिताब अधिक जीत रहे थे,तो राफा नोवाक को बधाई देते हुए ट्वीट कर कह रहे थे "23 एक नंबर है जिसके बारे में कुछ समय पहले तक सोचना भी असंभव था, तुमने इसे कर दिखाया।"</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>निःसंदेह</b> वे कुछ असंभव ही कर रहे थे। कुछ समय पहले तक के अकल्पनीय को हकीकत में तब्दील कर रहे थे। वे टेनिस ही नहीं,पूरे खेल इतिहास का पुनर्लेखन कर रहे थे। एक खिलाड़ी की क्षमताओं की नई परिभाषा गढ़ रहे थे जिसका एक छोर असंभव और अविश्वसनीय शब्दों को छूता है।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>याद</b> कीजिए 2002 का यूएस ओपन। आंद्रे अगासी को हराकर पीट सम्प्रास अपना 14वां ग्रैंड स्लैम जीत रहे थे, तो टेनिस के जानकार और प्रसंशक विस्मय से भर उठे थे। वे कह रहे थे इससे अब कौन पार पाएगा। तब रोज़र फ़ेडरर आए। उन्होंने पहले 14 की बराबरी की और 20 पर जाकर रुके। लोगों को लगा ये असंभव है और तब राफा आए। 22 पर रुके। लगा ये संख्या असंभव है। लेकिन जो 22 को असंभव मान रहे थे वे एक भूल कर रहे थे। वे नोवाक को या तो विस्मृत कर रहे थे या खारिज़। और तब नोवाक आए। हां उनके आगे कौन पर लगा प्रश्रचिन्ह असीमित समय तक लगा रह सकता है,ये यकीन मानिए।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>इस</b> बात पर गौर कीजिए कि नोवाक 23 पर रुके नहीं है। वे कहां तक जाएंगे,वे कौन सी संख्या पर रुकेंगे,ये भविष्य तय करेगा। जिस तरह की उनकी फिटनेस है और जिस तरह से वे खेल रहे हैं, कोई भी संख्या असंभव नहीं है। 30 भी नहीं।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>उनके</b> 23 ग्रैंड स्लैम जीत में दो बातें उल्लेखनीय हैं। एक, आखिरी 11 खिताब उन्होंने 30 साल की उम्र के बाद जीते हैं। दो, इन सालों में उन्होंने 05 ग्रैंड स्लैम मिस किए। एकऑस्ट्रेलियन और एक अमेरिकन कोविड टीकाकरण ना कराने की वजह से एक विंबलडन कोरोना की वजह से हुआ ही नहीं और एक विम्बलडन थकान के कारण छोड़ दिया। जबकि एक अमेरिकन क्वार्टर फाइनल में गेंद बॉल बॉय को मारने के कारण डिसक्वालिफाई कर दिए गए। अन्यथा आप समझ सकते हैं वे कहां पर इस समय होते।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>दरअसल</b> दिनांक 11 अप्रैल,2023 दिन रविवार को पेरिस के स्थानीय समय के अनुसार लगभग शाम के चार बजे फिलिप कार्टियर अरीना पर फ्रेंच ओपन के फाइनल मुकाबले के लिए अहर्ता पाने वाले दो खिलाड़ी अलग अलग भाव भंगिमाओं से मैदान में प्रवेश कर रहे थे। </span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>24</b> साल के युवा खिलाड़ी नॉर्वे के कैस्पर रड का चेहरा आत्मविश्वास से दमक रहा था। वे क्ले कोर्ट के माहिर खिलाड़ी माने जाते हैं और जैसा वे दो सालों से खेल रहे थे उससे उनका आत्मविश्वास आसमान पर ना होता तो कहां होता। वे अब इस साल के संभावित विजेता माने जा रहे थे क्योंकि कार्लोस अलकराज सेमीफाइनल में हार चुके थे।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>दूसरी</b> और सर्बिया के 36 साल के किशोर नोवाक जोकोविच सारी दुनिया जहान की मासूमियत अपने चेहरे में समेटे प्रवेश कर रहे थे। लेकिन उनके मन की बेचैनी और उद्विग्नता को उनकी सारी मासूमियत भी मिलकर छिपाने में असमर्थ हो रही थी। ये इतिहास रचने की बेचैनी थी। एक ऐसे मुकाम पर पहुंचने की उद्विग्नता थी जहां तक कोई नहीं पहुंचा था। उस आसमां को छूने की लालसा थी जिसे कभी किसी ने ना छुआ हो और ना ही कोई छू सके।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>खेल</b> शुरू हुआ। पहले सेट का दूसरा गेम लगभग 11 मिनट चला। रड ने नोवाक की सर्विस ब्रेक की और अपना गेम जीतकर स्कोर 3-0 किया। लेकिन चौथे गेम में रड ने एक ओवरहेड शॉट मिस किया। यहां से मोमेंटम शिफ्ट हुआ। नोवाक रंग में आने लगे। उनके शक्तिशाली फोरहैंड शॉट्स का अब रड के पास कोई जवाब नहीं रह गया था। पहला सेट टाई ब्रेक में गया। नोवाक ने टाई ब्रेक 7-1 से जीता। फिर अगले दो सेट आसानी से जीत लिए। जो नोवाक पहले सेट में थके से लग रहे थे। इस सेट की जीत ने उनमें अपूर्व उत्साह भर दिया। वे अगले दो सेटों में उससे एकदम अलग अपनी ऊर्जा और अपने खेल को उस ऊंचाई पर ले गए जिस तक रड नहीं पहुंच सकते थे और नहीं पहुंच पाए।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>तीन</b> घंटों के संघर्ष के बाद नोवाक के चेहरे की मासूमियत और मायूसी रड के चेहरे पर नमूदार हो गयी थी और नोवाक का चेहरा आत्मविश्वास और खुशी से दहक रहा था। लाल मिट्टी पर लाल जूतों और लाल टी शर्ट के साथ उनका चेहरा भी रक्तिम हुआ जाता था। हां इन सब के बीच उनका काला शॉर्ट्स किसी नजरबट्टू सा उन्हें बुरी नज़र से बचाता नज़र आता था।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>उस</b> जीत के बाद नोवाक नोवाक कहां रह गए थे। उनका चेहरा असीमित खुशी से दीप्त हो रहा था। वे टेनिस जगत के आकाश में सूर्य से चमक रहे थे जिसके सामने टेनिस जगत के सारे सितारे श्रीहीन हुए जाते थे। और रोलां गैरों की लाल मिट्टी नोवाक के प्रेम में पड़कर लजाती हुई कुछ और अधिक लाल हुई जाती थी।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>उनकी</b> जीत दरअसल एक डिफाईनिंग मोमेंट था। एक निर्णायक पल। निर्णायक मोमेंट उस त्रिकोणीय संघर्ष का जिसके दो अन्य कोण फेडरर और राफा बनाते थे। 2003 में शुरू हुए फेडरर और राफा की प्रतिद्वंदिता को 2010 में नोवाक त्रिकोणीय आयाम देते हैं और फिर तीनों मिलकर पिछले बीस सालों के काल को टेनिस इतिहास के स्वर्णिम काल में बदल देते हैं।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>अगर</b> आप ध्यान से देखेंगे तो ये प्रतिद्वंदिता खेल शैलियों भर की नहीं है,बल्कि तीन अलग अलग व्यक्तित्वों की भी है। वे अपनी खेल शैली और अपने पूरे व्यक्तित्व से तीन अलग वर्गों का प्रतिनिधित्व करते प्रतीत होते हैं। आप इन तीनों के व्यक्तित्व का आंकलन कीजिए तो पाएंगे कि रोजर फेडरर मैदान में और मैदान के बाहर अपनी शालीनता, अपने ग्रेस और एस्थेटिक सेंस में कुलीन प्रतीत होते हैं। टेनिस ख़ुद ही अपने चरित्र में कुलीन है। टेनिस खेल और फेडरर का टेनिस दोनों क्लासिक हैं और क्लासिकता को पोषित करते हैं। फेडरर टेनिस के मानदंडों के क़रीब क्या, वे स्वयं मानदंड हैं। वे टेनिस के सबसे प्रतिनिधि खिलाड़ी हैं। जबकि राफा अपने चेहरे मोहरे,वस्त्र विन्यास और अपने चपल,चंचल,अधीर स्वभाव जिसमें हर शॉट पर ज़ोर से आवाज़ करना और हर हारे या जीते पॉइंट पर प्रतिक्रिया करते मध्य वर्ग के प्रतिनिधि से प्रतीत होते।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>इन</b> दोनों से अलग नोवाक जातीय भेदभाव का शिकार होते हैं और अपने क्रियाकलापों और हाव-भाव से सर्वहारा वर्ग के प्रतीत होते हैं। वैसे भी उनका बचपन बेहद विषम परिस्तिथियों से गुजरा है। उनका पूरा बचपन बाल्कान संघर्ष के बीच बीता है। जब वे बड़े हो रहे थे तो वे अपना समय बंकर में बिता रहे थे। परिस्थितियों ने उन्हें अजेय योद्धा बनाया। वे खेल मैदान में अंतिम समय तक संघर्ष करते हैं और अंतिम समय तक हार नहीं मानते। </span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>उनकी</b> अपनी सोच और मान्यताएं उन्हें विवादास्पद और अलोकप्रिय के साथ साथ आम से जोड़ती है। वे कोविड टीकारण के खिलाफ थे। वे कोसोवा के उस मंदिर में जाकर शक्ति और शांति पाने जाते हैं जिसके बारे में मान्यता है कि वो एक दैवीय स्थल है। वे पिछले 10 वर्षों से ग्लूटन रहित खाना खा रहे हैं। जिसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>लेकिन</b> आप कह सकते है कि वे अपनी मान्यताओं के प्रति लॉयल हैं। उसके लिए कोई भी कीमत चुकाने के लिए तैयार हैं। वे अपने टीकाकरण ना करने पर दृढ़ रहे। इसकी कीमत दो ग्रैंड स्लैम थी।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>ट्रॉफी</b> प्रेजेंटेशन सेरेमनी में वे लाल काली जैकेट में आए जिसकी दाईं और 23 लिखा था। विक्ट्री स्टैंड पर एक हाथ में मस्केटियर ट्रॉफी थी और दूसरे हाथ से 23 नंबर की ओर इशारा कर रहे थे। </span></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiyjLoGrv-VxO3kL8JKZZRDQEKzoTwXV6_mOXV-NyqHx_EGiKJtPDUESf6Ws6K-xR3F9LLjnveIIfV1q8RJb7xm9U_i7M8YIINHJrdsOBBoyx9orkluCTIwO9Y31d_j2ZXYqG1FsfhdrQQz9j5bnUuHaWOm4eV6elGieLRsECgwLcS5HmsDwruazjQP/s670/%E2%80%98Incredible-as-history-making-Djokovic-wins-record-23rd-Grand-Slam-title-.jpeg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="400" data-original-width="670" height="191" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiyjLoGrv-VxO3kL8JKZZRDQEKzoTwXV6_mOXV-NyqHx_EGiKJtPDUESf6Ws6K-xR3F9LLjnveIIfV1q8RJb7xm9U_i7M8YIINHJrdsOBBoyx9orkluCTIwO9Y31d_j2ZXYqG1FsfhdrQQz9j5bnUuHaWOm4eV6elGieLRsECgwLcS5HmsDwruazjQP/s320/%E2%80%98Incredible-as-history-making-Djokovic-wins-record-23rd-Grand-Slam-title-.jpeg" width="320" /></a></span></div><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><br /></span><p></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>वे </b>बता रहे थे कि टेनिस इतिहास में ये एक अनोखी,अद्भुत और अविश्वसनीय संख्या है। और ये भी मैं नोवाक हूँ। मुझे जान लीजिए। ये संख्या मैंने और केवल मैंने अर्जित की है।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;">और</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>और</b>,वे बता रहे थे कि मैं आप की तरह हाड़ मांस का बना व्यक्ति हूँ। मुझे भगवान मानने की भूल मत करना। और ये भी कि निश्चिंत रहिए मुझमें अभी भी बहुत टेनिस बाकी है। नई पीढ़ी को अभी और काबिलियत हासिल करनी है। पुरानों का समय अभी खत्म नहीं हुआ है। हम वे वटवृक्ष हैं जिनके साये से निकलने में बहुत मेहनत लगती है।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #cc0000; font-size: medium;">--------------------</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #cc0000; font-size: medium;"><b>फिलहाल</b> तो 23वे ग्रैंड स्लैम की बधाई स्वीकार करो दोस्त।</span></p>बात अपनीhttp://www.blogger.com/profile/05725525971715117550noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8465915453620131002.post-61041641843730847772023-03-07T09:51:00.001+05:302023-03-07T09:53:54.951+05:30आग और पानी<p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"></span></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjI2eMHEsuNJ4yICQ8JbuIUA8Qg7WSTZEWoBQV3SuwDbUpFtHlDEsEJOSXzufCHOk5umBMOYM_49EtQjT41D--JhfmWoheGyT29khQlDp2FwbhEKVj_w90MMy6MfN5lhTTWguC53N0jnj3MzQHn060YlrYFqVXgmnGKsEInQdAiUo8xJHZM9TBd_aQF/s3923/IMG_20230306_233403.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="3923" data-original-width="2380" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjI2eMHEsuNJ4yICQ8JbuIUA8Qg7WSTZEWoBQV3SuwDbUpFtHlDEsEJOSXzufCHOk5umBMOYM_49EtQjT41D--JhfmWoheGyT29khQlDp2FwbhEKVj_w90MMy6MfN5lhTTWguC53N0jnj3MzQHn060YlrYFqVXgmnGKsEInQdAiUo8xJHZM9TBd_aQF/s320/IMG_20230306_233403.jpg" width="194" /></a></span></div><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><br /> </span><p></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;">ज़्यादातर लोग किसी शहर में रहते भर हैं। लेकिन कुछ लोग उस शहर में जीते हैं,उस शहर को जीते हैं। वो शहर उनमें और वे शहर में घुल जाते हैं। शहर उनकी आत्मा में उतर जाता है और वे शहर की आत्मा में। शहर उनकी शिराओं में खून की माफ़िक बहने लगता है। फिर किसी एक दिन वो शहर कलम की मार्फत शब्द शब्द सफ़े दर सफ़े उतरता जाता है और शहर एक खूबसूरत किताब में तब्दील हो जाता है। </span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;">ऐसी ही एक किताब को हम नाम 'आग और पानी'के नाम से जानते हैं। शहर है बनारस। और उसका रहवासी व्योमेश शुक्ल एक दूसरे में घुले हुए। व्योमेश बनारस को जीते हैं और बनारस उनमें। वही बनारस जब उनके दिल से होता हुआ उनकी कलम से शब्द दर शब्द बाहर आता तो 'आग और पानी' में तब्दील ना हो जाता तो और क्या हो जाता।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;">व्योमेश से कभी मिला नहीं। फेसबुक पर उन्हें फॉलो करता हूँ। उसी से जाना वे आला दर्ज़े के रंगकर्मी हैं। वे मंच पर खूबसूरत और भव्य दृश्य बनाने में सिद्धहस्त हैं। वे अपनी लेखनी से भी बनारस शहर के ऐसे ही खूबसूरत दृश्य बनाते।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;">किताब की सबसे सुंदर बात ये है कि इसमें कुछ लंबे आलेख हैं,साक्षात्कार है,ससंस्मरण हैं, चरित्र चित्रण हैं और स्निपेट्स भी हैं। ये विविधता रुचती है,मन मोहती है। इसमें संगीत अंतर्धारा के रूप में बहता है,कंटेंट में भी और भाषा में भी। संगीत और संगीतकारों पर कितना कुछ है और कितना समृद्ध करता चलता है आपको। और हो भी क्यों ना। वे राम की शक्तिपूजा जैसे कालजयी रचना की देशभर में लाजवाब संगीतमयी प्रस्तुति देते हैं। संगीत के निःसंदेह जानकार हैं और इसीलिए उनके गद्य में लय है, वो किसी संगीत सा बहता है।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;">'आग और पानी' दरअसल बनारस के सांस्कृतिक इतिहास का दस्तावेज है।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;">जब आपको कुछ अच्छा मिलता है तो और ज़्यादा की आस होने लगती है। बनारस केवल धार्मिक सांस्कृतिक नगरी भर नहीं है। इसलिए कुछ मिसिंग लगता है। बनारस और भी बहुत कुछ है। पूर्वी उत्तर प्रदेश और सीमांत बिहार की आर्थिक राजधानी है ये। घाट हैं, पंडे हैं। नाव हैं, नाविक हैं। जुलाहे हैं,बनारसी साड़ियां हैं। विश्वनाथ मंदिर है,ज्ञानवापी मस्जिद है। बुद्ध हैं,सारनाथ है। और भी बहुत कुछ है बनारस। व्योमेश की नज़र और उनकी कलम से देखना निश्चित ही रोचक होगा।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #990000; font-size: medium;">°°°°</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #990000; font-size: medium;">और अंत में एक बात रुख़ प्रकाशन की। अब तक दो किताबें पढ़ी हैं। एक 'आग और पानी'। दूसरी सुशोभित की 'मिडफील्ड'। दोनों बेहतरीन किताबें हैं। कंटेंट से भी और रूप सज्जा से भी। किताबों पर खासी मेहनत की गई है। आवरण से लेकर प्रिंटिंग तक। सबसे बड़ी बात प्रूफ की गलती सिरे से नदारद है जो आज के समय की बड़ी बहुत बड़ी बात है। पढ़ने का आनंद द्विगुणित हो जाता है। निःसंदेह बेहतरीन पुस्तकों के लिए अनुराग वत्स भी बधाई के पात्र हैं।</span></p>बात अपनीhttp://www.blogger.com/profile/05725525971715117550noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8465915453620131002.post-44720330726570311492023-02-17T21:44:00.000+05:302023-02-17T21:44:06.550+05:30अलविदा बलरामन<p style="text-align: justify;"></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj7wmgbVr6n5nURyU3arxOU3U1jTqaOjCuLAMaIwon6ndiov3YqFfol9pyiWswssLUz_LF4adf-bOXqHgystx1hbIu5PL-FYrknbA1_2_XWQ9lRDx6lc2IP7OY_fqos-39DHCCyVJvFDpVjIEE8kB5PogAryZeb-FxZZNGxMsmax7RVnmWCJqvMO8oW/s640/how-he-died.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="480" data-original-width="640" height="240" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj7wmgbVr6n5nURyU3arxOU3U1jTqaOjCuLAMaIwon6ndiov3YqFfol9pyiWswssLUz_LF4adf-bOXqHgystx1hbIu5PL-FYrknbA1_2_XWQ9lRDx6lc2IP7OY_fqos-39DHCCyVJvFDpVjIEE8kB5PogAryZeb-FxZZNGxMsmax7RVnmWCJqvMO8oW/s320/how-he-died.jpg" width="320" /></a></div><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><br /></span><p></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><br /></span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>ये</b> एक युग का अवसान है। एक सितारे का दुनिया की नज़रों से ओझल हो जाना है। भारतीय फुटबॉल की शानदार परंपरा का थोड़ा और छीज जाना है। उसके गौरव का कालातीत हो जाना है। ये भारतीय फुटबॉल की सुप्रसिद्ध त्रयी की आखिरी मूर्ति का ढह जाना है। भारतीय फुटबॉल के एक सबसे शानदार खिलाड़ी तुलसी बलरामन ने 86 वर्ष की उम्र में इस संसार को अलविदा जो कह दिया है। दरअसल ये एक त्रासद मायूस और अपमानित जीवन का अंत भी है।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>बी</b>ती शताब्दी के 50 और 60 के दो दशकों का समय भारतीय फुटबॉल का स्वर्णिम युग था। और पीके बनर्जी,चुन्नी गोस्वामी और तुलसी बलरामन उस समय के सबसे चमकते सितारे थे जिन्होंने अपनी प्रतिभा से भारतीय फुटबॉल को उसके चरमोत्कर्ष पर पहुंचाया था। वे भारतीय फुटबॉल की एक त्रयी बनाते हैं। वे भारतीय फुटबॉल के ब्रह्मा विष्णु महेश ठहरते थे।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;">पिछले तीन सालों में भारतीय फुटबॉल के इन तीन सर्वश्रेष्ठ फरवार्डों ने, तीन दोस्तों ने, भारतीय फुटबॉल के तीन 'मोशाय बाबुओं' ने एक एक करके इस दुनिया को अलविदा कह दिया। सबसे पहले 20 मार्च 2020 को पीके दा गए। फिर उसी साल 30 अप्रैल को चुन्नी गोस्वामी गए। और अब 16 फरवरी 2023 को तुलसी बलरामन। इन तीनों ही ने भारतीय फुटबॉल के मक्का कोलकाता को अपनी कर्मभूमि बनाया और यहीं से इस नश्वर संसार से विदा ली। बलराम भले ही जन्मना बंगाली ना हो,उन्होंने जन्म हैदराबाद राज्य के सिकंदराबाद के एक गांव में लिया हो, लेकिन उन्होंने ज़िंदगी भर कोलकाता में खेला और उसके ही एक उपनगर उत्तरपाड़ा को रिहाइश के लिए चुना।</span></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhmFLRf10Ne3uHFfxb32UWIcqj8pNnkFniiu8APFHEp623E3fkoacsELA_a7SaxnGTr6vEk86DJrKt1Lg5zBGRxBsSMqquKYVAZs1UkwdJ2M6GPg07k4oxCZEwCamnLrOfR2QK0_zZ1zCEDf9vsxiAmnwYG5yEtEdtG3Pif4FxoUNOQdlPDQfTx6DS3/s1200/IMAGE_1672331402.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="675" data-original-width="1200" height="180" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhmFLRf10Ne3uHFfxb32UWIcqj8pNnkFniiu8APFHEp623E3fkoacsELA_a7SaxnGTr6vEk86DJrKt1Lg5zBGRxBsSMqquKYVAZs1UkwdJ2M6GPg07k4oxCZEwCamnLrOfR2QK0_zZ1zCEDf9vsxiAmnwYG5yEtEdtG3Pif4FxoUNOQdlPDQfTx6DS3/s320/IMAGE_1672331402.jpg" width="320" /></a></span></div><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><br /></span><p></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>नि</b>यति किस तरह से जीवन को त्रासद बना सकती है और उसे अंतर्विरोधों से भर सकती है,ये जानना हो तो एक बार बलराम के जीवन को ज़रूर देखना चाहिए। पीके और चुन्नी की तरह ही उन्होंने शानदार फुटबॉल खेली,उसे समृद्ध किया और नाम कमाया,लेकिन उन्हें कभी भी अपना दाय नहीं मिला। वे कभी भी उस तरह की प्रसिद्धि नहीं पा सके ,उस तरह का सम्मान नहीं पा सके जिस तरह का उनके दोनों साथियों को मिला। विशेष रूप से खेल से सन्यास लेने के बाद। उनकी हमेशा उपेक्षा हुई। अपमान हुआ।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>उ</b>न्हें अर्जुन पुरस्कार के अलावा कोई पुरस्कार नहीं मिला। उनके दोनों साथियों को पद्मश्री मिला। उन्हें नहीं। एक बार इसके लिए बहुत सारी औपचारिकताएं भी पूरी कर ली गईं पर एन समय पर उन्हें उससे वंचित कर दिया गया। ये बिल्कुल वैसे ही था जैसे किसी के मुँह में जाते कौर को छीन लिया जाए। ऐसे ही उन्हें एक बार चयनकर्ता बनाया गया, लेकिन टीम बिना उनकी जानकारी के चुन ली जाती। ऐसे अपमान के अनेक उदाहरण हैं जब भारतीय फुटबाल प्रशासन ने उनकी उपेक्षा की एआ अपमान किया।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>वे</b> 'फुटबॉलिङ्ग सेंस' और प्रतिभा के धनी थे लेकिन जन्म से बहुत गरीब थे। जब 18 साल की उम्र में उन्हें एक स्थानीय प्रतियोगिता में खेलते देख लीजेंड कोच सैय्यद अब्दुल रहीम ने उनकी प्रतिभा पहचान उन्हें संतोष ट्रॉफी के लिए ट्रायल के लिए आमंत्रित किया तो उनके पास अपने घर बोलाराम से हैदराबाद आने के लिए पैसे नहीं थे। बाद में खुद रहीम साब ने उन्हें पैसे दिए।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>ये</b> बात 1956 की है। उनका संतोष ट्रॉफी के लिए हैदराबाद की टीम में चयन हो गया। उस साल ये प्रतियोगिता एर्नाकुलम में सम्पन्न हुई थी और फाइनल मैच हैदराबाद और बॉम्बे के बीच खेला गया। मैच अनिर्णीत रहा तो दुबारा खेला गया। इस मैच में बलराम ने शानदार खेल दिखाया। ये भारतीय फुटबॉल के नए सितारे का उदय था। उस मैच में वे आउटसाइड लेफ्ट की जगह इनसाइड राइट की पोजीशन पर खेल और 4-1 की हैदराबाद की जीत में दो गाल किए। </span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>उ</b>सी साल उनका चयन भारतीय टीम में हो गया। उन्होंने अपना पहला अंतरराष्ट्रीय मैच 1956 में मेलबोर्न ओलंपिक में यूगोस्लाविया के खिलाफ खेला और अगले 6 सालों तक भारतीय फुटबॉल टीम के अनिवार्य और महत्वपूर्ण खिलाड़ी बने रहे। 1956 से 1962 का ये समय भारतीय फुटबॉल का स्वर्णकाल माना जाता है। इस दौरान वे 1956 के मेलबोर्न और 1960 के रोम ओलंपिक,1958 के एशियन खेल और 1962 के जकार्ता एशियन खेल में स्वर्ण पदक विजेता टीम और 1959 में मर्देका प्रतियोगिता की उपविजेता टीम के सदस्य रहे।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>उ</b>न्होंने भारत के लिए 26 अंतरराष्ट्रीय मैच खेले और कुल आठ गोल किए। लेकिन ये आंकड़े उनकी प्रतिभा की सही तस्वीर प्रस्तुत नहीं करते। वे बिला शक भारत के सार्वकालिक महानतम खिलाड़ियों में एक थे। ये वो समय था जब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर टोटल फुटबॉल आकार ले रही थी और क्रुयफ़ की अगुवाई में हॉलैंड की फुटबॉल टीम को इसका सर्वश्रेष्ठ निदर्शन करना था। उस समय बलराम टोटल फुटबॉल खेल रहे थे जो लेफ्ट विंग, राइट विंग, सेंटर या अटैकिंग मिडफील्डर किसी भी पोजिशन पर खेल सकते थे। उनका बॉल पर गज़ब का नियंत्रण होता था और वे शानदार ड्रिबलिंग करते और इतनी गति से करते कि किसी भी विपक्षी टीम के लिए उन्हें रोकना मुश्किल होता। वे शानदार पासिंग करते। खिलाड़ियों की पोजीशन का वे सटीक अंदाज़ लगा लेते। उनकी शानदार पासिंग के लिए एक बार सुप्रसिद्ध फुटबॉलर अरुण घोष ने कहा था कि 'उनकी पीठ पर भी दो आंखें हैं।' जबकि उनकी विपक्षी खिलाड़ी से गेंद पुनः छीन लेने और तीव्र गति से काउंटर अटैक की उनकी काबिलयत के कारण दूसरे सुप्रसिद्ध फुटबॉलर सुभाष भौमिक उन्हें फ्रांस के हेनरी थियरी के समकक्ष रखते हैं।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>अ</b>गर आपको उनकी गति और ब्रिलियंस देखनी है तो 1960 के रोम ओलंपिक के हंगरी के खिलाफ मैच की रिकॉर्डिंग देखिए। हंगरी ने ग्रुप में फ्रांस को 6-1 और पेरू की टीम 7-2 से हराया था। लेकिन भारतीय टीम को बमुश्किल 2 -1 से हरा पाई। इसमें बलराम ने अद्भुत खेल दिखाया और गेंद पर अद्भुत नियंत्रण और गज़ब की गति भी। उन्होंने 79वें मिनट में भारत के लिए गोल किया। वे इतना शानदार खेल और इतनी गति से खेल रहे थे कि हंगरी के लिए उनको रोक पाना बहुत कठिन हो रहा था और वे बार बार फिजिकल हो रहे थे। उनका एक और अविस्मरणीय मैच 1958 के एशियन खेलों में हांगकांग के खिलाफ क्वार्टर फाइनल मैच है। ये मैच रेगुलर समय तक 2-2 की बराबरी पर था जिसे भारत ने अतिरिक्त समय 5-2 से जीता। अतिरिक्त समय में बलराम ने चोट के बावजूद एक गोल किया और दो असिस्ट की।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>उ</b>न्होंने क्लब कॅरियर की शुरुआत 16 साल की उम्र में 1954 में हैदराबाद की आर्मी कॉम्बैट फ़ोर्स की टीम से की। 1957 में वे कोलकाता की ईस्ट बंगाल टीम में आ गए। शीघ्र ही अपने खेल और क्लब के प्रति अपनी लॉयल्टी के कारण उसके समर्थकों में ना केवल अत्यधिक लोकप्रिय हो गए बल्कि देवता की तरह पूजे जाने लगे। वे इतने लोकप्रिय थे कि जब एक बार मोहन बागान ने अपने क्लब में शामिल करने का प्रयास किया तो हज़ारों क्लब समर्थकों ने प्रदर्शन किया और मोहन बागान के प्रयास को निष्फल कर दिया। ईस्ट बंगाल के लिए उन्होंने 1957 और 1960 में डीसीएम ट्रॉफी, 1958 में आईएफए शील्ड ट्रॉफी, 1960 में डुरंड कप,1962 में रोवर्स कप जीता। 1961 में क्लब के कप्तान बने और उस साल न केवल नौ वर्ष के अन्तराल के बाद ईस्ट बंगाल को कलकत्ता लीग जितायी बल्कि आईएफए शील्ड जिताकर डबल भी पूरा किया। लीग के फाइनल में बागान के सुप्रसिद्ध डिफेंडर जरनैल सिंह को छका कर एक अविष्मरणीय गोल किया। जरनैल सिंह उन्हें सबसे खतरनाक फारवर्ड मानते थे। उन्होंने ईस्ट बंगाल क्लब के लिए कुल 104 गोल किये और 1961 में गोल्डन बूट खिताब से उन्हें नवाजा गया।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"> <b>1</b>963 में आर्थिक सुरक्षा की दृष्टि से ईस्ट बेंगाल छोड़कर बीएनआर(बेंगाल नागपुर रेलवे) टीम में आ गए। लेकिन सांस की बीमारी के कारण उन्हें शीघ्र ही खेल को छोड़ना पड़ा।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>नि</b>संदेह वे एक शानदार खिलाड़ी थे जिन्होंने भारतीय फुटबॉल को उनके मुकाम तक पहुंचाने में अपना प्रतिभाग किया। लेकिन दुर्भाग्य है कि हम अपने सच्चे महानायकों का सम्मान करना नहीं जानते। हम ना तो उनके जीते जी सम्मान कर पाते हैं और ना ही मरने के बाद ही। तुलसी बलरामन एक उदाहरण भर हैं।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>औ</b>र इसीलिए एक ऐसा ख़िलाड़ी जिसने बहुत उत्साह से शानदार फुटबॉल खेली, खेल को ऊंचाइयों पर पहुंचाया, उसके जीवन की समाप्ति एक बहुत ही निराश,एकाकी,अभावग्रस्त और गुस्से से भरे व्यक्ति के रूप में हुई।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;">-----------------</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>अ</b>लविदा लीजेंड। अलविदा बलराम ।</span></p>बात अपनीhttp://www.blogger.com/profile/05725525971715117550noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8465915453620131002.post-73681230915796146252023-01-30T22:39:00.002+05:302023-01-30T22:39:57.137+05:30छोटी छोटी कहानियां का बड़ा संसार<p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"> </span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><br /></span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;">खेल मैदान की अभी हाल की तीन खबरें-सानिया मिर्ज़ा के शानदार खेल जीवन का समापन,विनेश फोगाट की बगावत और अंडर 19 क्रिकेट विश्व कप में भारतीय लड़कियों की जीत,इस बात की ताईद करती हैं कि देश बदल रहा हो या नहीं, समाज बदल रहा हो या नहीं, पर लड़कियां बदल रही हैं,उनकी सोच बदल रही है और उनकी ज़िंदगी बदल रही है।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;">अब लड़कियों के हाथों को चूल्हा,चौका और चूड़ियां नहीं रुचती </span></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiCR2OhWz2CuytjF7rxPGQTk10LWIb4EGx4lrWbz8XroAV23-6l0imaiylnleicwVXi_wI66OXnq5XU2wZhk9KJ9-2m0KYZWuTpzMcR8G-rx-xgHlPdkkfO0Kc5uOUuVhk9ojrxh9lszBl87TLxp3IQVSJIQqdLzBoqyxElYdur-XT26e01r4v1P_Io/s1200/29india-champs.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="675" data-original-width="1200" height="180" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiCR2OhWz2CuytjF7rxPGQTk10LWIb4EGx4lrWbz8XroAV23-6l0imaiylnleicwVXi_wI66OXnq5XU2wZhk9KJ9-2m0KYZWuTpzMcR8G-rx-xgHlPdkkfO0Kc5uOUuVhk9ojrxh9lszBl87TLxp3IQVSJIQqdLzBoqyxElYdur-XT26e01r4v1P_Io/w320-h180/29india-champs.jpg" width="320" /></a></span></div><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><br />बल्कि बैट और बॉल शोभते हैं,रैकेट शोभते हैं, मैट और मैदान शोभते हैं।</span><p></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;">पहले अंडर 19 क्रिकेट विश्व कप जीतने वाली लड़कियों की चेहरों पर फैली खुशी देखिए और फिर उनके जीवन में झांकिए,तो आपको पता चलेगा कि ये सफलता लड़कियों की लगन,उनके परिश्रम,उनकी दृढ़ इच्छा शक्ति,कठिन और विपरीत परिस्थितियों में भी हार ना मानने का जज़्बा और सबसे ऊपर उनकी नई और बदलती का परिणाम है।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;">उन लड़कियों में एक मन्नत है। गांव चिल ज़िला पटियाला। खेलने के लिए पैसा पास नहीं। लड़कों की कोचिंग में जुगाड़ हुई तो लड़के साथ खिलाने को तैयार नहीं। पर उसने हार नहीं मानी। अड़ी रही। कोचिंग जाती रही। अब वो टीम की 'जोंटी रोड्स'है।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;">एक और लड़की है सोनम यादव। उम्र केवल 15 साल। पिता मजदूर। पता ज़िला फिरोजाबाद,उत्तर प्रदेश। देश दुनिया की लड़कियों की कलाइयों को सजाने वाली चूड़ियां बनाने के लिए विश्व प्रसिद्ध शहर की इस लड़की को कांच की चूड़ियों की जगह रास गुगली। जीवन की पिच पर भी और खेल की पिच पर भी।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;">एक लड़की है फलक नाज़। संगम नगरी प्रयागराज की ही नहीं देश की शान बन चुकी है अब। चपरासी पिता ने नाज़ों से पाला पर नाजुक नहीं बनाया। उसकी तेज गेंदें विपक्षी बल्लेबाजों पर कहर बरपाती हैं।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;">इस लड़की का नाम है अर्चना। पता ग्राम रतई पुरवा ज़िला उन्नाव। पिता बचपन में छोड़ बस चले। मां ने हार नहीं मानी। नतीजा विश्व विजेता भारतीय टीम की जान।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;">एक लड़की दिल्ली की-श्वेता सहरावत। वॉलीबॉल,बैडमिंटन,स्केटिंग तक में हाथ आजमाया। पर रास आया क्रिकेट। नतीजा विश्व कप में 140 की स्ट्राइक और 99 की औसत से सर्वाधिक 297 रन।</span></p><p style="text-align: justify;"></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhLgJvYupQj2EY1qlHdvVYb96tLnBLFfDTEQ41aHYrEfkmuBIgMYC5eo08SD_m8L49wLBAmDqsVeGk7s421Ool238NQizqr-7u6n9Zfxthvo1zYEGws0z2zqzYL3ih6KNzWrXcHvXYMmPN6NpEIi8zyD2IxhI55bdEKrATiS7YrZpcStHOlCDA1AaaG/s1200/PTI01_29_2023_000422A.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="810" data-original-width="1200" height="216" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhLgJvYupQj2EY1qlHdvVYb96tLnBLFfDTEQ41aHYrEfkmuBIgMYC5eo08SD_m8L49wLBAmDqsVeGk7s421Ool238NQizqr-7u6n9Zfxthvo1zYEGws0z2zqzYL3ih6KNzWrXcHvXYMmPN6NpEIi8zyD2IxhI55bdEKrATiS7YrZpcStHOlCDA1AaaG/s320/PTI01_29_2023_000422A.jpg" width="320" /></a></div><br /><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><br /></span><p></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;">भोपाल की सौम्या तिवारी। कपड़े धोने की थपकी से गली मोहल्ले में क्रिकेट खेलने से लेकर भारतीय टीम के उपकप्तान का सफर करने वाली लड़की। एक योद्धा लड़की। कोच द्वारा कोचिंग देने से इनकार करने पर भी हार ना मानने वाली लड़की। नतीजा विश्व कप के फाइनल में विजयी रन बनाने वाली बैटर।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;">और अंत में, कप्तान शेफाली वर्मा। 15 साल और 285 दिन की सबसे कम उम्र में अंतरराष्ट्रीय अर्धशतक बना कर सचिन का रिकॉर्ड तोड़ने वाली लड़की। अंडर 19 विश्व कप,सीनियर विश्व कप और राष्ट्रमंडल प्रतियोगिता के फाइनल में खेलने वाली अकेली खिलाड़ी।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;">छोटी छोटी लड़कियों की ये छोटी छोटी कहानियां उनके बड़े बड़े सपनों और बड़े बड़े संघर्षों की कहानियां हैं। ये छोटी छोटी जगहों की छोटी छोटी कहानियां सफलता का इतना बड़ा संसार रचती हैं कि उन्हें खुद भी कहाँ विश्वास हो पाता होगा। क्या पता उनका खुद का रचा संसार उन्हें ही 'लार्जर दैन लाइफ' प्रतीत होता हो।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #741b47; font-size: medium;">-------------</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #741b47; font-size: medium;">और हां, भारत में दो लड़कियों के एक पिता को लड़कियों की ये सफलता बरसात की पहली फुहार की भीगी भीगी रेशम सी मुलामियत का अहसास ना कराती होगी तो और क्या कराती होगी।</span></p>बात अपनीhttp://www.blogger.com/profile/05725525971715117550noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8465915453620131002.post-44111189806258090522023-01-28T23:35:00.003+05:302023-01-29T20:01:47.051+05:30सानिया मिर्जा : स्पोर्ट्स आइकॉन<p style="text-align: justify;"></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhOd3K8p9WL1VV-YMK2MxNB6VnYI0M_yVBsoCGCCe93M7CKCioTlcZ_TmpQdO-Qz2gX8BLGxJ-hkislcHq9p4020decBHeIFcrISvRtaQjQPyWkTo5D0pCm0Xk4HkdUXZaNLk9PIg6e-BeahixWIm1JRTq-UBFfg58wpQ5cHpbjbTifhz-eB3JbVA7z/s4436/6-6.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="4436" data-original-width="3002" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhOd3K8p9WL1VV-YMK2MxNB6VnYI0M_yVBsoCGCCe93M7CKCioTlcZ_TmpQdO-Qz2gX8BLGxJ-hkislcHq9p4020decBHeIFcrISvRtaQjQPyWkTo5D0pCm0Xk4HkdUXZaNLk9PIg6e-BeahixWIm1JRTq-UBFfg58wpQ5cHpbjbTifhz-eB3JbVA7z/s320/6-6.jpg" width="217" /></a></div> <span style="color: #741b47; font-size: xx-small;"> (गूगल से साभार)</span><br /><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><br /></span><p></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b> आ</b>खिर क्या होता है खेल को 'अलविदा' कहना। खेल से 'सन्यास' लेना। इसे हम,आप या कोई भी खेल प्रेमी कहां समझ पाएंगे। उनके लिए इसे समझ पाना इसलिए मुमकिन नहीं होता कि मैदान से उनका एक चहेता रुखसत होता है,तो दो और खिलाड़ी उसकी जगह भरने को आ जाते हैं। प्रसंशक हैं कि पहले को भुला नए के साथ हो लेते हैं।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>प</b>र एक खिलाड़ी के लिए ऐसा कहाँ संभव होता है। खेल से सन्यास का मतलब एक आम आदमी के लिए चाहे जो हो, लेकिन एक खिलाड़ी के लिए ये उसकी सबसे प्रिय वस्तु से विछोह है। एक यात्रा का अंत है। अपने सबसे प्रिय सपने का अचानक से लुप्त हो जाना है। एक ऐसा सपना जो उसके दिल में जन्मा और बरसो बरस बड़े जतन से पाला पोसा और फिर अचानक एक दिन उससे दूर कहीं बहुत दूर चला जाता है। फिर कभी ना मिल पाने को। </span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>ये</b> अंत है। ये बिछोह है। ये दुख है। ये संताप है। ये भय भी है।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>स</b>च तो ये है 'खेल से सन्यास' की इस 'पर्वत सी पीर'को सिर्फ और सिर्फ वो खिलाड़ी ही समझ और महसूस कर पाता है जो खेल से सन्यास लेता है। उसे अलविदा कहता है। </span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>इ</b>से समझना है तो एक बार महान इतावली फुटबॉलर फ़्रांचेस्को तोत्ती के विदाई वक्तव्य को ध्यान से देखें। वे एएस रोमा से 25 साल खेलने के बाद खेल को अलविदा लेते हुए कह रहे थे- "आपको पता नहीं है पिछले दिनों में पागलों की तरह अकेले में बैठकर कितना रोया हूँ। काश कि मैं कविता लिख पाता। लेकिन ये मुझे नहीं आता। पिछले 25 सालों से में फुटबॉल के मैदान में पैरों की ठोकर से कविता लिखने की कोशिश कर रहा था,और अब सबकुछ खत्म हो गया है।....अब मैं घास की गंध को इतने करीब से नहीं अनुभव कर पाऊंगा। अब जब मैं दौडूंगा तो सूर्य मेरे चेहरे को ऊष्मा नहीं देगा। मैं बार बार खुद से पूछ रहा हूँ मुझे इस सपने से क्यूं जगाया जा रहा है। लेकिन ये सपना नहीं सच है,और अब मैं बूढ़ा हो गया हूँ। मैं डर गया हूँ। मुझे डरने की मोहलत दीजिए।"</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>सौ</b>रव गांगुली अपनी किताब 'एक सेंचुरी काफी नहीं'मैं अपने सन्यास के बारे में लिख रहे थे "मेरे दिल में तरह तरह के जज़्बात थे। मैं बेहद गमज़दा था मेरी ज़िंदगी का सबसे बड़ा प्यार दूर जा रहा था।"</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>बी</b>ते सितंबर लंदन में लेवर कप के बाद सन्यास लेते समय के महानतम टेनिस खिलाड़ी रोजर फेडरर को जार जार रोते हुए देखिए तो एहसास होगा कि एक खिलाड़ी के खेल से सन्यास के मायने क्या होते हैं। </span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>फि</b>र बीते शुक्रवार, 27 जनवरी 2023 को मेलबर्न पार्क के रॉड लेवर अरीना में भारत की सानिया मिर्ज़ा की आखों से बहते पानी को देखिए। और एक खिलाड़ी को खेल से विदा कहने का मतलब समझिए।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>उ</b>स दिन मिश्रित युगल के फाइनल में ब्राजील के लुईसा स्तेफानी और राफेल मतोस की जोड़ी से 6-7(2-7),2-7 से हार जाने के बाद ट्रॉफी प्रेजेंटेशन स्पीच में सानिया के साथी खिलाड़ी रोहन बोपन्ना कह रहे थे "ये सच है, सानिया के साथ खेलना स्पेशल है। हमने पहला मिश्रित युगल उस समय साथ खेला था जब वो 14 साल की थी और खिताब जीता था। आज यहां हम आखिरी ग्रैंड स्लैम मैच खेल रहे हैं। दुर्भाग्य से हम खिताब नहीं जीत सके। लेकिन शुक्रिया उस सब के लिए जो तुमने भारतीय टेनिस के लिए किया।" पास खड़ी सानिया थी कि अपने आसुंओं को बहने से रोकने की असफल कोशिश किए जा रही थीं। और आंसू थे कि बहे जाते जाते थे।</span></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEixQv2kUlXs69HkL-p138B9PEfsjAKuaqXw7t9I4nDJtXmaX0-bZFnkfQAbYgMc9d5qtBJ18zxZHy0hXfPbxwnegvnguCExja-6q8A6YqxWtKZSiUnyfn9WTTAc5kxsXnEdGShRnkhNtbGQlBGXW0jLTErzJktQh3kMv-uO_7zLYEf92fQFwNnpz17d/s3567/Sania_Mirza_(33075767774)_(cropped).jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="3567" data-original-width="2070" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEixQv2kUlXs69HkL-p138B9PEfsjAKuaqXw7t9I4nDJtXmaX0-bZFnkfQAbYgMc9d5qtBJ18zxZHy0hXfPbxwnegvnguCExja-6q8A6YqxWtKZSiUnyfn9WTTAc5kxsXnEdGShRnkhNtbGQlBGXW0jLTErzJktQh3kMv-uO_7zLYEf92fQFwNnpz17d/s320/Sania_Mirza_(33075767774)_(cropped).jpg" width="186" /></a></span></div><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"> </span><span style="color: #2b00fe;"><span style="font-size: xx-small;"> (गूगल से साभार)</span><br /></span><p></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>सा</b>निया की आंखों के ये आंसू हार के आंसू नहीं थे बल्कि ये अपने पैशन अपने सपने अपनी ज़िंदगी के सबसे अज़ीज हिस्से से बिछोह से उपजे दुख के आंसू थे। हालांकि वे कह रही थीं "अगर मैं रो रहीं हूँ ये दुख के नहीं खुशी के आंसू हैं। मैं विजेताओं की खुशी के रंग को भंग नहीं करना चाहती।"वे ऐसी ही हैं । इतनी ही उद्दात्त। दुख ऐसे ही उद्दात्त बना देता है मनुष्य को।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>ये</b> 36 वर्षीया सानिया का आखिरी ग्रैंड स्लैम मैच था। उनके 18 साल लंबे खेल जीवन का समापन। खेल से सन्यास। भले ही औपचारिक रूप से उनका आखिरी प्रतियोगिता फरवरी में दुबई इंटरनेशनल हो। पर वास्तव में उनके खेल जीवन का वास्तविक समापन यही था। </span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>उ</b>न्होंने खेल से विदा कहने को वही मैदान चुना जहां से उन्होंने अपने ग्रैंड स्लैम कॅरियर की शुरुआत की थी साल 2005 में। तब वे तीसरे राउंड तक पहुंची थी। जहां वे उस साल की चैंपियन सेरेना विलियम्स से हार गईं थी। वे हार ज़रूर गई थीं। लेकिन इस हार ने उनमें विश्वास भरा था कि उनके लिए एक खुला आसमां सामने है उड़ान भरने के लिए। उस मैच के बाद सेरेना ने रिपोर्टर्स से बात करते हुए कहा था "मैं विशेष रूप से भारत से एक खिलाड़ी को इतना अच्छा खेलते हुए देखकर रोमांचित हूँ। उसका खेल बहुत सॉलिड है और वह अभी केवल 18 साल की है। उसका भविष्य उज्जवल है।"</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>6</b> साल की उम्र से टेनिस खेलना शुरू करने वाली सानिया सीनियर वर्ग में खेलने से पहले ही जूनियर स्तर पर अनेक उपलब्धि हासिल कर चुकी थी। जूनियर लेवल पर 10 एकल और 13 युगल खिताब वे जीत चुकी थीं जिसमें 2003 का जूनियर विम्बलडन युगल खिताब भी शामिल था जो उन्होंने एलिसा क्लेबिनोवा के साथ जीता था।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>2</b>005 में ऑस्ट्रेलियन ओपन में खेलने के बाद फरवरी में हैदराबाद में डब्ल्यूटीए खिताब जीता और कोई डब्ल्यूटीए खिताब जीतने वाली वे पहली भारतीय महिला बनी। उसी साल वे यूएस ओपन में प्री क्वार्टर फाइनल तक पहुंची जहां अंततः चैंपियन मारिया शारापोवा से हारीं। उस साल की सफलता ने उन्हें 2005 की 'डब्ल्यूटीए नवोदित खिलाड़ी' के खिताब से नवाजा। उसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा और अपने व देश के लिए अनेक उपलब्धियां हासिल कीं।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>अ</b>गस्त 2007 में उन्होंने 27वीं रैंकिंग हासिल की। सौ के अंदर रैंकिंग हासिल करने वाली वे पहली भारतीय महिला थीं। इससे पहले केवल दो भारतीय पुरुष खिलाड़ी, रमेश कृष्णन (उच्चतम 23वीं) और विजय अमृतराज (उच्चतम 18वीं), 30 के अंदर रैंकिंग हासिल कर सके थे। अगले चार सालों तक वे 35वीं रैंकिंग के भीतर रहीं और दुनिया की श्रेष्ठ महिला खिलाड़ियों में उनकी गणना होती रही। 2012 में कलाई में चोट के बाद एकल को छोड़कर पूरी तरह युगल खिलाड़ी बन गईं। उन्हें अपने कॅरियर के शीर्ष पर जो पहुंचना था। उन्होंने डबल्स में 6 ग्रैंड स्लैम खिताब जीते। 2009 में ऑस्ट्रेलियन ओपन और 2012 में फ्रेंच ओपन महेश के साथ और 2014 में यूएस ओपन ब्राज़ील के ब्रूनो सोरेस के साथ मिश्रित युगल के तीन खिताब।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>म</b>हिला युगल में भी उन्होंने तीन ग्रैंड स्लैम जीते। उनकी सबसे सफल और शानदार जोड़ी स्विट्जरलैंड की मार्टिना हिंगिस के साथ बनी जिसे 'संतीना'के नाम से जाना गया(सानिया का SAN और मार्टिना का TINA)। इस जोड़ी ने ना केवल 14 खिताब जीते जिसमें 2015 के विम्बलडन और यूएस तथा 2016 का ऑस्ट्रेलियन खिताब शामिल हैं बल्कि लगातार 44 मैच जीतने का रिकॉर्ड भी बनाया।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>इ</b>स दौरान वे 91 हफ्तों तक डबल्स की नंबर एक खिलाड़ी रहीं और अपने खेल जीवन में कुल 43 डब्ल्यूटीए खिताब जीते।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>वे</b> एक असाधारण खिलाड़ी थीं जिन्होंने अपनी उपलब्धियों और अपने खेल से भारत में टेनिस के स्वरूप को ही बदल दिया। वे मार्टिना नवरातिलोवा और स्टेफी ग्राफ के खेल को देखते हुए बड़ी हो रही थीं और उनके समय तक विलियम्स बहनें परिदृश्य पर आ चुकी थीं। उन्होंने भी आक्रामक खेल को अपनाया। उनके फोरहैंड शॉट बहुत शक्तिशाली होते थे। वे उनके समकालीन किसी खिलाड़ी जितने ही शक्तिशाली होते। सर्विस रिटर्न्स भी बहुत शक्तिशाली और कोणीय होते। दरअसल उनके खेल की एक कमजोरी थी कोर्ट में मूवमेंट की। उनका कोर्ट में मूवमेंट बहुत धीमा था और इसकी भरपाई अपने शक्तिशाली फोरहैंड और आक्रामक खेल से करतीं। उनके पहले तक भारत में टेनिस एक एलीट और नर्म मिजाज़ खेल था जिसे सानिया ने पावर और रफ टफ खेल में बदल दिया।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>आ</b>क्रामकता, बिंदासपन और साफगोई उनमें जन्मजात थी और उनके स्वाभाविक चारित्रिक गुण। वे जितनी आक्रामक मैदान में प्रतिद्वंदी के प्रति होती, उतनी ही आक्रामक मैदान के बाहर अपने विरोधियों के प्रति। वे अपेक्षाकृत संभ्रांत परिवार से थीं इसलिए उन्हें उस तरह से संसाधनों के अभावों का सामना नहीं करना पड़ा जैसे अमूमन भारतीय महिला खिलाड़ियों को करना पड़ता है। फिर उनके माता पिता हर समय उनके साथ खड़े रहे। </span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>द</b>रअसल उनके संघर्ष दूसरी तरह के थे। वे महिला थी और मुस्लिम भी। और वे एक ऐसे ग्लैमरस खेल को चुन रही थीं जिसके ड्रेसकोड को लेकर रूढ़िवादी परंपरागत मुस्लिम समाज सहज नहीं हो सकता था। उनका विरोध होना स्वाभाविक था। और खूब हुआ। उनके खिलाफ फतवे जारी किए गए। 2005 में वे केवल 18 साल की थीं और उस साल सितंबर में कोलकाता में सनफीस्ट ओपन खेलने गईं तो उनके कपड़ों को लेकर पहला फतवा जारी किया गया। लेकिन वे गईं वहां। वे वहां कड़ी सुरक्षा में रहीं। एक 18 साल की लड़की जो चारों और से सुरक्षा घेरे में रहती हो कैसी मानसिकता में जी और खेल रही होगी। लेकिन वो किसी और मिट्टी की बनी थी। उसने 'गिव अप'नहीं किया। उसने टेनिस की ऑफिसियल ड्रेसकोड का पालन किया। स्कर्ट और शॉर्ट में खेली। उसने साहसिक इबारत वाली टी शर्ट पहनने से भी गुरेज नहीं किया। </span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>वि</b>वाद और विरोध उसके साथ साये की तरह थे। फिर वो हॉफमैन कप के एक मैच के दौरान राष्ट्रीय ध्वज के अपमान का आरोप हो,विवाह पूर्व संबंधों का या पाकिस्तानी क्रिकेटर शोएब मलिक का उनके साथ विवाह पूर्व हैदराबाद में रहना हो या उनके साथ विवाह का हो,उन्होंने सभी का सामना किया और आगे बढ़ीं। खेल प्रशासन और टीम कम्पोज़िशन को लेकर भी विवाद हुए। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। उन्होंने हर बार स्टैंड लिया और स्पष्ट स्टैंड लिया।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>उ</b>नका सबसे बड़ा और स्पष्ट स्टैंड महिलाओं की स्थिति को लेकर था। अखबारों में कहा गया कि सानिया मिर्जा मानती हैं 'भारत में स्त्रियों का सम्मान नहीं होता।' इस बात पर उनकी कड़ी आलोचना हुई। पर उन्होंने कहा 'मैने ये नहीं कहा भारत में स्त्रियों का सम्मान नहीं होता। अगर ऐसा होता तो मैं आज यहां नहीं होती। लेकिन मैं बहुत भाग्यशाली हूँ,बहुत ज़्यादा। लेकिन हज़ारों अन्य स्त्रियां इतनी भाग्यशाली नहीं हैं। उनका शारीरिक और यौन शोषण होता है और उन्हें अपने सपनों को पूरा करने की आज़ादी नहीं है क्योंकि वे स्त्रियां हैं।' आज भी उनका स्टैंड स्पष्ट है। </span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>पी</b>टी उषा के बाद वे भारत की सबसे बड़ी स्पोर्ट्स वीमेन आइकॉन थीं। सानिया मैरी कॉम और साइना नेहवाल के साथ स्टार स्पोर्ट्स वोमेन की त्रयी बनाती हैं। पीवी सिंधु उनके बाद आईं। अपने साहसिक,कभी हार ना मानने,सतत संघर्ष शील और फेमिनिस्ट सानिया नई पीढ़ी की भारतीय महिला खिलाड़ियों के लिए एक बड़ी प्रेरणा स्रोत हैं। तभी तो स्टार रेसलर विनेश फोगाट जो खुद खेल प्रशासन और डब्ल्यूएफआई के बाहुबली और दबंग माने जाने वाले अध्यक्ष के खिलाफ मोर्चा खोलने वाली उनके सन्यास पर इतनी खूबसूरत बात कह सकीं कि "शुक्रिया सानिया,युवा भारतीय लड़कियों की एक पूरी पीढ़ी को ये बताने के लिए कि सपने कैसे देखे जाते हैं।उनमें से मैं भी एक हूँ। आप तमाम चुनौतियों के बीच पूरे जुनून के साथ खेलीं। आपका दाय भारतीय महिला खिलाड़ियों के लिए बहुत मायने रखता है। सम्मान और बधाई !"</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #741b47; font-size: medium;">-----------</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #741b47; font-size: medium;"><b>खे</b>ल मैदान में हमेशा तुम्हारी कमी खलेगी। नई पारी के लिए बहुत बधाई सानिया</span><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;">।</span></p>बात अपनीhttp://www.blogger.com/profile/05725525971715117550noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-8465915453620131002.post-73508890365751193882023-01-17T09:46:00.003+05:302023-01-19T09:51:19.755+05:30स्टीफन डगलस केर:'पारस' प्रशिक्षक<p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"></span></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiACA5Tdh-leLjDaJDyP1uLRGqVaLCZjCIiVym31eUIG28ZR0uq4AlqnHpTftq5ccqwSpFil1vmSyw-Yi4oLSYRt5YuMcqEEs5Eimt4E3UNpTnyFWtrRm3ByhxBRJzscrrx_-Bm0Zv38uJOBpLlr422k6N76DcGQ1_11bIsQL5TpMhdRXmNzBY-zCD5/s1200/steve-kerr-has-one-of-the-most-unique-careers-in-nba-history.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="675" data-original-width="1200" height="180" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiACA5Tdh-leLjDaJDyP1uLRGqVaLCZjCIiVym31eUIG28ZR0uq4AlqnHpTftq5ccqwSpFil1vmSyw-Yi4oLSYRt5YuMcqEEs5Eimt4E3UNpTnyFWtrRm3ByhxBRJzscrrx_-Bm0Zv38uJOBpLlr422k6N76DcGQ1_11bIsQL5TpMhdRXmNzBY-zCD5/s320/steve-kerr-has-one-of-the-most-unique-careers-in-nba-history.jpg" width="320" /></a></div><br /><div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;"><br /></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;"><br /></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;"><br /></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;"><span style="color: #0000ee; font-size: medium;"><b><u>स्टीफन डगलस केर:'पारस' प्रशिक्षक</u></b></span></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;"><span style="color: #0000ee; font-size: medium;"><b><u><br /></u></b></span></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;"><span style="color: #0000ee; font-size: medium;"><b><u><br /></u></b></span></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;"><span style="color: #0000ee; font-size: medium;"> <b>ए</b>क होता है पारस पत्थर। जिस चीज को छू ले सोने की बन जाए। बेशकीमती हो जाए। अनमोल हो जाए। कुछ लोग भी पारस होते हैं। वे चीजों को छू भर लें दीप्त होने लगती हैं। सोने की माफिक चमकने लगती हैं। स्टीफेन डगलस केर ऐसे ही प्रशिक्षक हैं। पारस हैं। उन्होंने गोल्डन स्टेट वारियर्स के खिलाड़ियों को छुआ,सितारे बनकर चमकने लगे। गोल्डन स्टेट वारियर्स टीम को छुआ,सफलता की असाधारण चमक से सबको चकाचौंध दिया।</span></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;"><span style="color: #0000ee; font-size: medium;"><br /></span></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;"><span style="color: #0000ee; font-size: medium;"><b>बी</b>ते शुक्रवार 13 जनवरी की रात एनबीए के 2022-23 के रेगुलर सीजन में वेस्टर्न कांफ्रेंस में सान एंटोनियो स्पर्स की टीम अपने अरीना अलामो डोम में गोल्डन स्टेट वारियर्स की टीम को होस्ट कर रही थी। इस सीजन पिछली चैंपियन गोल्डन स्टेट वारियर्स की टीम पूरी तरह से फॉर्म में नहीं है और उसकी अच्छी शुरुआत नहीं रही। लेकिन इस मैच में वारियर्स ने शानदार खेल दिखाया और उसने मेजबान स्पर्स को 144-113 से हरा दिया। इस मैच को देखने के लिए रिकॉर्ड संख्या में दर्शक उपस्थित थे। कुल 68,323 दर्शक।</span></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;"><span style="color: #0000ee; font-size: medium;"><br /></span></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;"><span style="color: #0000ee; font-size: medium;"><b>द</b>रअसल एक कोच के रूप में स्टीव केर की रेगुलर सीजन में ये 450वीं जीत थी। इस महत्वपूर्ण उपलब्धि के लिए ऐसी ही रिकॉर्ड ब्रेकिंग दर्शकों की उपस्थिति और शानदार जीत की दरकार थी। निसंदेह स्टीव केर एनबीए के महानतम प्रशिक्षकों में से एक हैं।</span></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;"><span style="color: #0000ee; font-size: medium;"><br /></span></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;"><span style="color: #0000ee; font-size: medium;"><b>ए</b>नबीए के पिछले सीजन 2021-22 में स्टेट वारियर्स की टीम बोस्टन सेल्टिक्स को 4-2 से हराकर पिछले आठ सालों में चौथी बार और अपने फ्रेंचाइजी इतिहास की सातवीं चैंपियनशिप जीत रही थी। आठ सालों में चौथी बार। स्टीव ने गोल्डन स्टेट को छू जो लिया था। वे उसके कोच जो बन गए थे।</span></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;"><span style="color: #0000ee; font-size: medium;"><br /></span></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;"><span style="color: #0000ee; font-size: medium;"><b>स्टी</b>व 2014-15 के सीजन में स्टेट वारियर्स के पहली बार हेड कोच बने और पहली बार में ही उसको चैंपियन बना दिया। ऐसा करने वाले एनबीए के 75 वर्षों के इतिहास में केवल सातवें प्रशिक्षक थे।उल्लेखनीय है फाइनल में वे लेब्रोन जेम्स कैवेलियर्स को हरा कर ये जीत हासिल कर रहे थे।डब नेशन 40 साल बाद चैंपियन बन रही थी। इतना ही नहीं उन्होंने डब नेशन को लगातार 05 साल तक एनबीए के फाइनल में पहुंचाया। 2014 के बाद 2017,2018 और 2022 में स्टेट वारियर्स को चैंपियनशिप दिलाई।</span></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;"><span style="color: #0000ee; font-size: medium;"><br /></span></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;"><span style="color: #0000ee; font-size: medium;"><b>स</b>च तो ये है 2014 के सीजन से पहले डब नेशन एक बहुत ही औसत टीम थी। लेकिन इस सीजन उस टीम के हेड कोच बनते ही उन्होंने टीम को औसत टीम से चैंपियन टीम में रूपांतरित कर दिया। </span></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;"><span style="color: #0000ee; font-size: medium;"><br /></span></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;"><span style="color: #0000ee; font-size: medium;"><b>बि</b>ला शक वे एक महानतम प्रशिक्षकों की श्रेणी में शुमार हो चुके हैं। ये इस तथ्य से भी जाना जा सकता है कि 2022 में एनबीए की स्थापना की 75वीं वर्षगांठ के अवसर पर एनबीए ने सार्वकालिक 15 सर्वश्रेष्ठ कोचों की एक सूची जारी की जिसमें स्टीव केर भी एक थे। और वे एकमात्र वर्तमान सक्रिय कोच थे। इससे पहले 1916 के सीजन में उन्हें एनबीए के सर्वश्रेष्ठ कोच का खिताब मिल चुका था।</span></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;"><span style="color: #0000ee; font-size: medium;"><br /></span></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;"><span style="color: #0000ee; font-size: medium;"><b>इ</b>तना ही नहीं 2022 में जब एक कोच के रूप में चौथी रिंग प्राप्त कर रहे थे तो कुल मिलाकर वे अपनी नवीं रिंग प्राप्त कर रहे थे। पांच खिलाड़ी के रूप में और चार कोच के रूप में। वे एनबीए के एकमात्र व्यक्ति हैं जिन्होंने कोच और खिलाड़ी के रूप में चार चार रिंग (खिताब ) जीती हैं।</span></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;"><span style="color: #0000ee; font-size: medium;"><br /></span></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;"><span style="color: #0000ee; font-size: medium;"><b>आ</b>खिर एक प्रशिक्षक के रूप में उनकी सफलता का राज क्या था। दरअसल वे एक उम्दा खिलाड़ी भी थे जो तमाम बेहतरीन प्रशिक्षकों के अधीन और विशेष रूप से महानतम प्रशिक्षक फिल जैक्सन के अधीन खेले थे। उनसे मिले सारे अनुभवों के आधार पर डब नेशन को प्रशिक्षित किया और एक उम्दा टीम में परिवर्तित कर दिया।</span></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;"><span style="color: #0000ee; font-size: medium;"><br /></span></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;"><span style="color: #0000ee; font-size: medium;"><b>ए</b>क प्रशिक्षक के रूप में उनकी रणनीति का प्रमुख औज़ार था 'त्रिकोणीय आक्रामक तकनीक'।</span></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;"><span style="color: #0000ee; font-size: medium;">पहले शिकागो बुल्स और फिर सान एंटोनियो स्पर्स से खेलते हुए जो ट्राई एंगुलर ऑफेंसिव तकनीक (त्रिकोणीय आक्रामण शैली) से वे रूबरू हुए, उसका परिवर्धित रूप स्टेट वारियर्स की टीम को दिया और उसे सर्वश्रेष्ठ टीम के रूप में परिवर्तित कर दिया।</span></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;"><span style="color: #0000ee; font-size: medium;"><br /></span></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;"><span style="color: #0000ee; font-size: medium;"><b>त्रि</b>कोणीय आक्रमण तकनीक बास्केटबॉल की एक ऐसी तकनीक या खेल प्रविधि है जिसमें कोई टीम एक विंग से आक्रामक मूव बनाती है जिसमें पास,ड्रिबलिंग और खिलाड़ियों के मूवमेंट के बिंदुओं को जोड़ेंगे तो वे अनेकानेक त्रिकोण बनाएंगे। और इस तरह से आक्रामक टीम बास्केट करने और अंक अर्जित करने के आसान मौकों की निर्मिति करती है। इस तकनीक में जिस विंग में खेल होता है(स्ट्रांग विंग) उसमें तीन खिलाड़ी होते हैं और जिस विंग में खेल नहीं होता है (वीक विंग),उसमें दो खिलाड़ी। </span></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;"><span style="color: #0000ee; font-size: medium;"><br /></span></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;"><span style="color: #0000ee; font-size: medium;"><b>ये </b>एक ऐसा तरल कॉम्बिनेशन है जिसमें टीम के पांचों खिलाड़ी शामिल होते हैं और इसमें कोई भी खिलाड़ी किसी भी स्थान पर खेल सकता है और एक दूसरे की पोजीशन ले सकता है। इसमें खिलाड़ी की आई क्यू मायने रखती है और दो खिलाड़ियों के बीच का स्पेस भी। ये एक कठिन लेकिन बहुत ही कारगर प्रविधि है जिससे कई टीमें चैंपियन बनी हैं।</span></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;"><span style="color: #0000ee; font-size: medium;"><br /></span></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;"><span style="color: #0000ee; font-size: medium;"><b>इ</b>स आक्रमण शैली या प्रविधि को इज़ाद करने वाले दक्षिण कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के सैम बैरी माने जाते हैं जिसे आगे चलकर कंसास राज्य के मुख्य प्रशिक्षक टेक्स विंटर ने आगे बढ़ाया जो बैरी के अधीन खेले थे। बाद में शिकागो बुल्स के हेड कोच और दुनिया के महानतम प्रशिक्षकों में से एक फिल जैक्सन ने इसे अपनाया और इस तकनीक को प्रसिद्ध कर दिया।</span></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;"><span style="color: #0000ee; font-size: medium;"><br /></span></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;"><span style="color: #0000ee; font-size: medium;"><b>द</b>रअसल 1985 में टेक्स विंटर शिकागो बुल्स में सहायक प्रशिक्षक बन गए और मुख्य कोच फिल जैक्सन के साथ मिलकर त्रिकोणीय आक्रमण तकनीक को लागू किया। परिणाम था कुल 11 एनबीए चैंपियनशिप। 06 शिकागो बुल्स के साथ और 05 लॉस एंजिलिस लेकर्स के साथ। </span></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;"><span style="color: #0000ee; font-size: medium;"><br /></span></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;"><span style="color: #0000ee; font-size: medium;"><b>य</b>ही वो समय था जब स्टीव केर एक खिलाड़ी के रूप में पहले बुल्स और फिर स्पर्स के साथ कैरियर बना रहे थे और उस तकनीक से रूबरू भी हो रहे थे जिस का प्रयोग करके उन्हें आगे खुद की प्रशिक्षित टीम को चैंपियन बनाना था।</span></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;"><span style="color: #0000ee; font-size: medium;"><br /></span></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;"><span style="color: #0000ee; font-size: medium;"><b>वे</b> भले ही एनबीए के महानतम खिलाड़ियों में से ना रहे हों लेकिन उम्दा खिलाड़ी अवश्य रहे और एक खिलाड़ी के रूप में कुल पांच रिंग जीती। तीन बुल्स के साथ और दो स्पर्स के साथ। <div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEie7FL_C-jviAYXOmAqvIvuszvtauI77g9zGq9ircjvVl6XpgKPJCNXxcjwR8JaLwIQjEk35tn2PUGeXdaecfg2qM5nt4wq036t8DlQXtnEwnRED8rZHt2eRXX8lREcr_r0YlVYz0ShjGXKX7AttSXyNON6EMuulqxt5dR3Z1GSd6MphL04iNt2IomF/s800/GettyImages-71024842_master-534x800.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="800" data-original-width="534" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEie7FL_C-jviAYXOmAqvIvuszvtauI77g9zGq9ircjvVl6XpgKPJCNXxcjwR8JaLwIQjEk35tn2PUGeXdaecfg2qM5nt4wq036t8DlQXtnEwnRED8rZHt2eRXX8lREcr_r0YlVYz0ShjGXKX7AttSXyNON6EMuulqxt5dR3Z1GSd6MphL04iNt2IomF/s320/GettyImages-71024842_master-534x800.jpg" width="214" /></a></div><br /></span></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;"><span style="color: #0000ee; font-size: medium;"><br /></span></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;"><span style="color: #0000ee; font-size: medium;"><b>उ</b>न्होंने खिलाड़ी के रूप में अपने कॅरियर की शुरुआत एरिज़ोना वाइल्डकैट्स के साथ किया। उसके बाद 1986 में वे फीबा विश्व कप जीतने वाली अमेरिकी टीम के सदस्य थे। इस उपलब्धि ने उनके लिए प्रोफेशनल बनने का रास्ता खोल दिया। उन्हें 1988 में सबसे पहले फीनिक्स संस ने ड्राफ्ट किया। लेकिन 26 मैचों के बाद वे क्लीवलैंड कैवेलियर्स को ट्रेड कर दिए गए। उनका खिलाड़ी के रूप में स्वर्णिम काल 1993 में उस समय शुरू हुआ जब वे शिकागो बुल्स में शामिल हुए। उस समय उस टीम में माइकेल जॉर्डन थे और कोच थे फिल जैक्सन। बुल्स के साथ उन्होंने 1996,1997 और 1998 में तीन रिंग जीती। उसके बाद वे सान एंटोनियो स्पर्स के साथ जुड़े और 1999 में चौथी रिंग जीती। उन्होंने खिलाड़ी के रूप में अपनी पांचवी रिंग 2003 में एक बार फिर स्पर्स के साथ जीती। </span></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;"><span style="color: #0000ee; font-size: medium;"><br /></span></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;"><span style="color: #0000ee; font-size: medium;"><b>जि</b>स समय 2003 में 15 सीजन के बाद उन्होंने खिलाड़ी के रूप में अपने कॅरियर का समापन किया उस समय वे एक हज़ार से ज़्यादा मैच खेल चुके थे। हालांकि उसमें से केवल 30 मैचों में उन्होंने फर्स्ट फाइव से शुरुआत की। वे थ्री पॉइंटर के चैंपियन थे। 1997 में उन्होंने थ्री पॉइंटर चैंपियनशिप जीती। उनका थ्री पॉइंटर का कॅरियर औसत 45.4 है जो एनबीए का अब तक का सर्वश्रेष्ठ औसत है। बाद में उनके प्रशिक्षण में स्टीफेन करी ने थ्री पॉइंटर में विशेषज्ञता हासिल की।</span></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgTloFc2lHgrhL8H0KnQKtNRwMAfoZ4QCHZvmp0I-mjlK-ODLClhCTDKxyM_FQq_zUN5pJF9E141pUTGMLUVhnmtVosCRFIK6UTlbZOxzomoC9ppt1ZzfDVfGmXsc13WdbBNdS1qqubINOQk7dWR7ZvYt4jakYkRIfSZ5aE_brVw4Pc8DDMdbPMbmMZ/s1040/70.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="760" data-original-width="1040" height="234" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgTloFc2lHgrhL8H0KnQKtNRwMAfoZ4QCHZvmp0I-mjlK-ODLClhCTDKxyM_FQq_zUN5pJF9E141pUTGMLUVhnmtVosCRFIK6UTlbZOxzomoC9ppt1ZzfDVfGmXsc13WdbBNdS1qqubINOQk7dWR7ZvYt4jakYkRIfSZ5aE_brVw4Pc8DDMdbPMbmMZ/s320/70.png" width="320" /></a></div><br /><span style="color: #0000ee; font-size: medium;"><br /></span></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;"><span style="color: #0000ee; font-size: medium;"><b>स्टी</b>फेन डगलस केर(स्टीव केर) का जन्म लेबनान की राजधानी में हुआ था। 1984 में जब उनके पिता मैल्कम एच केर बेरूत की अमेरिकन यूनिवर्सिटी के प्रेसिडेंट थे,चरमपंथी गुट ने उनकी हत्या कर दी। उस समय स्टीव केर 18 साल के थे। इस घटना ने उनकी जीवन और उनकी सोच पर गहरा प्रभाव डाला। एक साक्षात्कार में वे कह रहे थे 'पिता की हत्या से पहले मेरा जीवन अभेद्य था। बुरी घटनाएं दूसरों के जीवन मे घटित होती हैं। मैं सोचता था मैं ऐसी घटनाओं से परे हूँ और मेरा परिवार भी।' इस घटना ने उन्हें और अधिक मानवीय बना दिया और दूसरों के दुःख दर्द के प्रति अतिरिक्त संवेदनशील भी।</span></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;"><span style="color: #0000ee; font-size: medium;"><br /></span></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;"><span style="color: #0000ee; font-size: medium;"><b>इ</b>सीलिए वे अमेरिकी गन कल्चर के घोर विरोधी बने। उन्होंने अमेरिका में हुई हर गोलीबारी पर चिंता जाहिर करते और ऐसी हर घटना पर भावुक और विचलित हो जाते। अमेरिकी संसद में 'गन नियंत्रण विधेयक' पर रिपब्लिकंस के उसे रोकने के प्रयास को अमेरिकी जनता को बंधक बनाने का प्रयास कहा। उन्होंने 'ब्लैक लाइव्स मैटर्स'का भी समर्थन किया और शांतिपूर्ण विरोध का समर्थन भी। उन्होंने हमेशा'श्वेत सर्वोच्चता'का विरोध किया।</span></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;"><span style="color: #0000ee; font-size: medium;"><br /></span></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;"><span style="color: #0000ee; font-size: medium;"><b>ये</b> सही है कि महान खिलाड़ी बिल रसेल की तरह एक खिलाड़ी के रूप में वे 11 रिंग नहीं जीत सके और ना ही महानतम कोच फिल जैक्सन की तरह एक कोच के रूप में 11 रिंग जीती हैं,पर एक खिलाड़ी और कोच के रूप में संयुक्त रूप से अब तक 09 रिंग जीत चुके हैं और इस रूप में वे औरों से बहुत आगे हैं और अलग भी। कोई उनके आस पास भी नहीं टिकता। फिर उनका संवेदनशील व्यक्तित्व उन्हें असाधारण की श्रेणी में ला खड़ा करता है।</span></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;"><span style="color: #660000; font-size: medium;">°°°°°</span></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;"><span style="color: #660000; font-size: medium;"><b>बि</b>ला शक वे 'पारस' है। एक 'पारस प्रशिक्षक'।जिन्होंने गोल्डन स्टेट वरियर्स की टीम को छुआ और उसे सोने की टीम में बदल दिया। वे अभी 57 वर्ष के हैं और एक कोच के रूप में एक लंबा समय उनके पास है। आगे आगे देखिए होता है क्या।</span></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;"><span style="color: #660000;"><br /></span></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;"><br /></div></div>बात अपनीhttp://www.blogger.com/profile/05725525971715117550noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8465915453620131002.post-48353120490237957242023-01-15T15:53:00.001+05:302023-01-15T18:04:59.075+05:30विश्व कप हॉकी 2023 <p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"> </span></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEisKbvFjc-Pzn7ffd4MuW-0QQgOHZpQ52Z2g9HEtDInjdQwAByVe8gkLjD2LIuoVXWsSWDCiNbHGp5b9ohnfgIMdFoOmRTJhOK9IJoJswWZglgQfwgQ64SVkPvKSR8TiawathQQ8N-Tzfk4hn4wXGiTUPCzFzPuY7d0K7lJfXGLPeUsRzn6xkHLLCtg/s960/_5ad96962-9e84-11ea-88a1-96031f43cf2a.jpeg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="540" data-original-width="960" height="180" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEisKbvFjc-Pzn7ffd4MuW-0QQgOHZpQ52Z2g9HEtDInjdQwAByVe8gkLjD2LIuoVXWsSWDCiNbHGp5b9ohnfgIMdFoOmRTJhOK9IJoJswWZglgQfwgQ64SVkPvKSR8TiawathQQ8N-Tzfk4hn4wXGiTUPCzFzPuY7d0K7lJfXGLPeUsRzn6xkHLLCtg/s320/_5ad96962-9e84-11ea-88a1-96031f43cf2a.jpeg" width="320" /></a></span></div><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><br /></span><p></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><br /></span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>ये</b> साल 1975 था। तारीख 15 थी। और महीना मार्च का।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>भा</b>रत में अभी भी आपातकाल की घोषणा होने में तीन महीने का समय बाकी था। क्रिकेट के स्वरूप को बदल देने वाले प्रुडेंशियल क्रिकेट विश्व कप के शुरू होने में भी इतना ही समय शेष था। इतना ही नहीं भारत की हॉकी को श्री हीन कर देने वाले एस्ट्रोटर्फ को पहली बार इंट्रोड्यूस करने वाले मॉन्ट्रियल ओलंपिक के आयोजन में भी अभी साल भर का समय था।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>उ</b>स समय हमारी आमद बचपन और किशोरावस्था की संधि बेला में हो चुकी थी,लेकिन टीन ऐज अभी भी साल,दो साल की दूरी पर थी। क्रिकेट में हमारी थोड़ी रुचि बढ़ने लगी थी। दर्शकों की डिमांड पर छक्का लगाने वाले सलीम दुर्रानी,फॉरवर्ड शार्ट लेग पर फील्डिंग करने वाले असाधारण फील्डर एकनाथ सोलकर और फ्लाइट के जादूगर प्रसन्ना जैसे खिलाड़ियों के रास्ते क्रिकेट दिल में उतरने की जद्दोजहद करने लगा था। लेकिन दिल का बड़ा क्या लगभग सारा का सारा हिस्सा अभी भी हॉकी के हवाले ही होता था। ध्यानचंद,केडी सिंह बाबू,पृथ्वी सिंह,रूप सिंह,बलबीर सिंह सीनियर जैसे खिलाड़ियों के जादुई किस्सों को सुनते हुए हम बड़े हो रहे थे और अशोक कुमार,गोविंदा,सुरजीत,माईकेल किंडो,फिलिप्स गोविंदा और अजीतपाल सिंह जैसा खिलाड़ी बनने का सपना लेकर हॉकी हाथों में लिए रोज़ शाम को खेल मैदान में जाना शुरू हो गया था।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>ऐ</b>न उस समय भारतीय खेल इतिहास में एक स्वर्णिम अध्याय जुड़ रहा था। भारत किसी खेल में पहली बार विश्व चैंपियन बन रहा था। उसके सर हॉकी के विश्व चैंम्पियन का ताज जो सज रहा था। </span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>वो</b> साल 1975 के मार्च की 15वीं तारीख थी। मलेशिया की राजधानी कुआलालंपुर के मर्देका स्टेडियम में खेले गए तीसरे हॉकी विश्व कप के फाइनल में भारत अपने परंपरागत प्रतिद्वंदी पाकिस्तान को 2-1 से हराकर ना केवल अपना पहला और अब तक का अपना एकमात्र खिताब जीत रहा था बल्कि हॉकी के छीजते गौरव को पुनर्स्थापित भी कर रहा था। </span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>हॉ</b>की विश्व कप की ये जीत भारतीय खेल इतिहास का एक ऐसा स्वर्णिम पल था जो आवाज के जादूगर जसदेव सिंह के माध्यम से हमारे दिल पर कभी ना मिटने के लिए अंकित हो रहा था। आज भी ऐसा लगता है जैसे ये अभी कल की ही घटना है। क्या ही कमाल है जैसे जैसे हम उम्रदराज होते हैं हमें निकट भूत का बहुत कुछ याद नहीं रहता लेकिन दूर अतीत ऐसे याद आता है जैसे वो कल ही घटा हो। इस विश्व कप की जीत की यादें भी ऐसी ही यादें हैं।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>उ</b>स समय तक भारत में टीवी का आगमन तो हो चुका था। लेकिन उसका अस्तित्व आठ दस बड़े शहरों तक बहुत सीमित मात्रा में मौजूद था। उन दिनों खेलों को हम स्टेडियम के किसी कोने में उपस्थित कमेंटेटरों की आंख से देखा करते थे। उस पूरे टूनामेंट को भी हमने ऐसे ही देखा था।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>फा</b>इनल मैच हॉकी के परंपरागत प्रतिद्वंदियों भारत और पाकिस्तान के बीच था। उस समय ये दोनों टीमें हॉकी की सबसे बड़ी टीमें हुआ करती थीं। ऐसे में मैच में एक अतिरिक्त तनाव और उत्तेजना का होना स्वाभाविक था। उम्मीद के अनुरूप ही वो ऐतिहासिक फाइनल मैच बहुत तेज गति से खेला गया। पाकिस्तान ने शरूआत में कुछ बेहतरीन मूव बनाए। उसने दूसरे ही मिनट में पेनाल्टी कॉर्नर अर्जित किया और मंज़ूरुल हसन ने गेंद गोल में डाल दी। लेकिन रेफरी ने गोल नहीं माना क्योंकि गेंद डी पर स्टॉपर द्वारा ठीक से नहीं रोकी गई थी। मैच का पेस और पिच स्थापित हो चुका था। मैदान में जितनी उत्तेजना व्याप गई थी उससे कहीं अधिक उतेजना और तनाव हज़ारों किलोमीटर दूर बैठे मैच का आंखों देखा हाल सुन रहे सैकड़ों हॉकी प्रेमियों के दिलों में व्याप गया था।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>ए</b>क और फॉरवर्ड्स ताबड़तोड़ हमले कर रहे थे दूसरी और डिफेंडर हार्ड टैकल। छठवें मिनट में हीं मंज़ूरुल के टैकल से अशोक कुमार मैदान में पड़े कराह रहे थे और तेरहवें मिनट में पाकिस्तानी राइट इन समीउल्लाह वरिंदर की स्टिक से ज़मीन पर थे और दाहिने कंधे में चोट खाकर मैदान से और मैच से ही बाहर नहीं हो रहे थे बल्कि पाकिस्तान को को भी मैच से बाहर कर रहे थे। समीउल्लाह की जगह सफदर अब्बास आए। </span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>स</b>फदर अब्बास समीउल्लाह जितने प्रभावी भले ही ना हों, पर पाकिस्तान ने आक्रमण जारी रखे और अंततः 18वें मिनट में उसको पहला गोल करने में सफलता मिली। तेजतर्रार फारवर्ड लेफ्ट इन मोहम्मद सईद ने वरिंदर सिंह से गेंद छीनी और और गोली की गति से ड़ी में घुसे और भारतीय गोलकीपर अशोक दीवान को छकाते हुए पाकिस्तान को 1-0 से आगे कर दिया। भारतीय फैंस सकते में थे।। इससे पहले एक गोल अमान्य हो चुका था। उस पेनाल्टी को अर्जित करने वाले भी मोहम्मद सईद ही थे। </span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>इ</b>सके बाद भारत ने अपने आक्रमण को दाहिने छोर पर केंद्रित किया और गोल करने के कई मौके बनाए, लेकिन पहले हाफ गोल नहीं कर सके। पहला हाफ पाकिस्तान के पक्ष में 1-0 पर समाप्त हुआ। ये वो समय था जब मैच 35-35 मिनट के दो हाफ का हुआ करता था।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>दू</b>सरे हाफ में शुरुआती कुछ मौकों को छोड़कर भारत ने शानदार खेल दिखाया जिससे मैच धीरे धीरे पाकिस्तान के हाथों से छूटने लगा था। भारत के लिए बराबरी का गोल 46वें मिनट में उस समय आया जब फिलिप्स ने भारत के लिए चौथा पेनाल्टी कॉर्नर अर्जित किया जिसे सुरजीत सिंह ने गोल में बदल कर भारत को बराबरी पर ला दिया।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>ल</b>गभग आठ मिनट बाद ही अशोक कुमार ने लांग कॉर्नर पर गोल कर भारत को 2-1 से बढ़त दिला दी। ये गोल एक खूबसूरत टीम वर्क था। अजीतपाल ने शॉट लिया। अशोक ने वो शॉट रिसीव किया ड्रिबल कर डी के अंदर गए और पास फिलिप्स को दिया,फिलिप्स ने पास फिर अशोक को दिया और अशोक ने गोल दाग दिया। अंत तक ये स्कोर बना रहा। </span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>इ</b>स गोल की तुलना आप 1986 के माराडोना 'गोल्डन हैंड गोल'से कर सकते हैं। इसलिए नहीं कि ये गोल गलत था या गलत तरीके से किया गया था। बल्कि इसलिए कि ये भी उसी गोल की तरह विवादास्पद बना दिया गया और इसलिए भी इस गोल का परिणाम एक इतिहास रच रहा था।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>ये</b> एक विवादास्पद गोल था जिसका पाकिस्तान के खिलाड़ी ये कहकर विरोध कर रहे थे कि गेंद गोलपोस्ट से अंदर नहीं गई है। लेकिन उस मैच के रैफरी विजयनाथन बहुत बाद में भी उस गोल को याद करते हुए कहते हैं कि 'ये साफ गोल था। मैं गोलकीपर और स्ट्राइकर के एकदम पास खड़ा था। वीडियो से ये साफ हो जाता है कि वो स्पष्ट गोल था। फोटो और वीडियो झूठ नहीं बोलते। उस फ्रेम में मैं और नौ खिलाड़ी हैं लेकिन इस्लाउद्दीन कहीं आस पास भी नहीं हैं।' दरअसल वे उस पाकिस्तानी टीम के कप्तान इस्लाउद्दीन के उस दावे पर अपनी प्रतिक्रिया कर रहे थे कि अशोक कुमार द्वारा किया गया वो गोल स्पष्ट गोल नहीं था जिसे गलत तरीके से भारत को अवार्ड किया गया। बरसों बाद इस्लाउद्दीन ने अपनी आत्मकथा में भी एक अलग अध्याय 'गोल जो था ही नहीं' में भी अपना वही आरोप दोहराया था। वे एक सच को झूठ बनाने की लगातार कोशिश कर रहे थे।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>इ</b>स जीत के साथ भारत ने अपना पहला विश्व कप खिताब जीत लिया था और अपने खोए गौरव को पुनर्स्थापित भी कर दिया था। ये अलग बात है कि वो बहुत ज़्यादा दिनों तक रहा नहीं। ऐसा क्यों हुआ ये फिर कभी।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>भा</b>रतीय टीम के मैनेजर बलबीर सिंह सीनियर उस जीत के बाद कह रहे थे 'पिछले 10 वर्षों में ये भारत की पाकिस्तान पर सबसे शानदार जीत है।' दरअसल ये 1971 में पहले विश्व कप के समय फाइनल में भारत की पाकिस्तान के हाथों हार का स्वीट रिवेंज ही था। उस हार से भारत फाइनल में प्रवेश नहीं कर सका और अंततः केन्या को हराकर उसने कांस्य पदक जीता था। दूसरे विश्व कप में उसने फाइनल में प्रवेश किया। लेकिन वहां नीदरलैंड ने भारत को पेनाल्टी शूटआउट तक गए मैच में 4-2 से हरा दिया था।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>19</b>73 की भारतीय टीम बहुत मजबूत थी। शारीरिक रूप से भी और खेल कौशल की दृष्टि से भी। तभी तो जर्मन कोच ने कहा था 'यदि ये टीम मुझे मिल जाए तो इसे मैं इसे विश्व की होने वाली हर प्रतियोगिताओं का विजेता बना दूं।'</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>19</b>75 की भारतीय टीम भी वैसी ही थी। उसे ग्रुप बी में घाना, अर्जेंटीना,ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड और पश्चिम जर्मनी के साथ रखा गया था। तीन जीत, एक ड्रा और एक हार के साथ भारत अपने ग्रुप में प्रथम स्थान पर रहा था और सेमीफाइनल में भारत का मुकाबला मलेशिया से हुआ।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>इ</b>स प्रतियोगिता का 13 मार्च को भारत और मलेशिया के बीच खेला गया सेमी फाइनल भी एक क्लासिक मैच था जिसमें मलेशिया ने जीत के लिए अपना सब कुछ झोंक दिया था। उस भारतीय टीम के कप्तान अजीतपाल सिंह बताते हैं कि 'ये उनके लिए उस प्रतियोगिता का सबसे कठिन मैच था।'उस मैच में भारत खेल खत्म होने में लगभग पांच मिनट पहले तक 1-2 से पिछड़ रहा था। भारत का विश्व कप जीतने का सपना टूटने के कगार पर था। तभी कोच बलबीर सिंह सीनियर ने फुल बैक माइकेल किंडो की जगह असलम शेर खान को मैदान में उतारा। उसके कुछ क्षणों बाद ही भारत को पेनाल्टी कॉर्नर मिला। इसे असलम शेर खान ले रहे थे। आज भी याद आता है कमेंटेटर बता रहे थे हिट लेने से पहले उन्होंने गले में पड़े ताबीज को चूमा, उसके बाद हिट लिया, गेंद गोल में थी। स्कोर 2-2 हुआ। अतिरिक्त समय मे हरभजन गोल कर भारत को 3-2 से जिताकर फाइनल में पहुंचा दिया था। मलेशिया को ये हार अब तक सालती है। उस मैच में मलेशिया की ओर से पहला गोल करने वाले दातुन फूक लोक कहते हैं 'उस मैच की स्मृति को मिटाना असंभव है। वो हार अभी भी उदास करती है।'</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>द</b>रअसल ये जीत और विश्व विजेता बनना भारत की छीजती गौरवपूर्ण हॉकी परंपरा को रोककर पुनर्स्थापित करने का आखरी प्रयास था। 1928 से 1956 तक लगातार ओलंपिक में 6 स्वर्ण पदक जीत चुका। उसके बाद की भारत की हॉकी अधोगति की ओर जाती हॉकी थी। 1960 में वो रजत पदक जीत सका था। 1964 में एक बार फिर स्वर्ण पदक जीता,लेकिन उसके बाद 1968 और 1972 में उसे मात्र कांसे के पदक से संतोष करना पड़ा।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>उ</b>धर विश्व कप में भी 1971 के पहले संस्करण में तीसरे और 1973 के दूसरे संस्करण में दूसरे स्थान पर रहा था।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>19</b>75 के बाद हॉकी केवल एस्ट्रो टर्फ पर खेला गया। उसके बाद की हॉकी की कहानी एस्ट्रो टर्फ,नियमों में परिवर्त्तन, ऑफ साइड के नियम की समाप्ति, कलात्मकता को ताकत और गति द्वारा रिप्लेस करने और भारत व पूरे एशिया की हॉकी की अधोगति की कहानी है। भारत के लिए 1928 से शुरू हुआ एक चक्र 2008 में पूर्ण होता है जब वो ओलंपिक के लिए अहर्ता भी प्राप्त नहीं कर सका था।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>अ</b>ब एक बार फिर समय बदला है। धीरे धीरे हॉकी गति पकड़ रही है। पिछले मास्को ओलंपिक में कांस्य पदक जीता है। समय का चक्र फिर से घूम रहा है।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #741b47; font-size: medium;">--------------</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #741b47; font-size: medium;"><b>अ</b>ब जब 13 जनवरी 2023 से भारत में 15वां हॉकी विश्व कप आयोजित हो रहा है तो कुछ सपने देखने का और पुरानी ऊंचाइयों को महसूसने का अवसर तो बनता है ना।</span></p><p style="text-align: justify;"><br /></p><p style="text-align: justify;"><br /></p>बात अपनीhttp://www.blogger.com/profile/05725525971715117550noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8465915453620131002.post-403156055441746442022-12-30T23:23:00.003+05:302023-01-02T16:20:20.944+05:30 अलविदा 'द ओ री दो फ़ुतबाल'<p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><br /></span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"> </span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b></b></span></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgl4PwhTpFg-A8bSe-EYRdz90Cd6UWCX-bDbl8tzUhUTWgVM1F-hSEGnBrCq1sd3HAyFQrz-amqf1op1rnSbPtuBpFc6NYcO5JP41F4GOh7qM0JrMjc0Rt7Snm3vABB02HjEic8vkAh-rbekn3DjLVMgvwis119oRSlQZ8EJuJ381IF7XtW_5ymnNCE/s1336/FB_IMG_1672370924701.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1336" data-original-width="1080" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgl4PwhTpFg-A8bSe-EYRdz90Cd6UWCX-bDbl8tzUhUTWgVM1F-hSEGnBrCq1sd3HAyFQrz-amqf1op1rnSbPtuBpFc6NYcO5JP41F4GOh7qM0JrMjc0Rt7Snm3vABB02HjEic8vkAh-rbekn3DjLVMgvwis119oRSlQZ8EJuJ381IF7XtW_5ymnNCE/s320/FB_IMG_1672370924701.jpg" width="259" /></a></b></span></div><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b><div><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b><br /></b></span></div><u>अलविदा 'द ओ री दो फ़ुतबाल</u></b></span><div><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b><u>००००<br /></u></b><br /></span><div><span style="color: #2b00fe; font-size: large;"><b>जि</b>स व्यक्ति के बारे में हम कह सुन रहे हैं,इतना लिख पढ़ रहे हैं,दरअसल पहले जान तो लें वो है क्या!</span><p></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: large;"><b>पे</b>ले के समकालीन और दुनिया के महानतम फुटबॉलरों में शुमार हॉलैंड के जोहान क्रुयफ़ ने एक बार कहा था 'पेले एकमात्र ऐसे फुटबॉलर हैं जो तर्क की सारी सीमाओं को पार कर गए हैं।'</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: large;"><b>त</b>र्क की सीमा के पार मनुष्य होते हैं क्या! नहीं ना! तो क्या वे फुटबॉल के ईश्वर थे? शायद हाँ!</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="font-size: large;"><span style="color: #2b00fe;"><b>त</b>भी तो एक दूसरे महानतम फुटबॉलर हंगरी के फ्रेंक पुस्कास ने कहा था ' इतिहास का महानतम खिलाड़ी डी स्टिफानो था। मैं पेले को खिलाड़ी मानने से इनकार करता हूँ। वो इन सबसे ऊपर है।'</span><b style="color: #2b00fe;"> </b></span></p><p style="text-align: justify;"><span style="font-size: large;"><b style="color: #2b00fe;">ए</b><span style="color: #2b00fe;">क खिलाड़ी से ऊपर आखिर कौन हो सकता है! एक ईश्वर ही ना! यानी पेले एक ईश्वर ही थे ?</span><b style="color: #2b00fe;"> </b></span></p><p style="text-align: justify;"><span style="font-size: large;"><b style="color: #2b00fe;">19</b><span style="color: #2b00fe;">70 के विश्व कप फाइनल में ब्राज़ील ने इटली को 4-1 से हराया था। उस मैच में उन्हें मार्क कर रहे महान इतावली डिफेंडर तार्सीसिओ बर्गनिच कह रहे थे 'मैच से पहले मैंने स्वयं को समझाया आखिर है तो वो भी(पेले) औरों जैसा हाड़ मांस का बना व्यक्ति ही। पर मैं गलत था।'</span></span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: large;"><b>या</b>नी वो एक इंसान भी नहीं था। स्वाभाविक है ईश्वर ही होगा!</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: large;"><b>हां</b> याद आया दो बार खुद पेले ने भी कुछ ऐसा ही कहा था। 1970 के विश्व कप के दौरान मेनचेस्टर यूनाइटेड के डिफेंडर पैडी क्रेरंद ने एक टीवी शो में पेले से पूछा कि 'पेले के हिज्जे (spelling)क्या हैं।' पेले ने कहा 'बहुत ही आसान। जी ओ डी(G O D)।' एक अन्य बार ये पूछे जाने पर कि क्या उनकी शोहरत ईसा जितनी ही है,उन्होंने कहा था कि 'दुनिया के कुछ हिस्सों में ईसा को उतनी अच्छी तरह से नहीं जाना जाता है।'</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: large;"><b>तो</b> तय हुआ कि अगर वे तर्कातीत थे,एक खिलाड़ी से कहीं अधिक थे और हाड़ मास के इंसान भी नहीं थे,तो ईश्वर ही होंगे।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: large;"><b> आ</b>ज तक मैं भी उसे देव तुल्य ही जानता समझता था। मेरे तईं फुटबॉल का कुल इतिहास दो देवताओं का इतिहास था। जो पेले से शुरू होकर मैस्सी पर खत्म हो जाता है। मुझे उन दोनों के बीच माराडोना ही एक ऐसा इंसान नज़र आता था जो उन देवताओं के सामने ताल ठोंकता,उन्हें चुनौती देता नज़र आता था।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: large;"><b>ले</b>किन आज जब एडसन अरांतेस दो नेसीमेंतो नाम के शरीर ने पेले नाम की आत्मा को बेघर कर दिया है,तो कुछ अलग ही अहसास हुआ जाता है। दृष्टि है कि साफ हुई जाती है। मन का भ्रम है कि छंटा जाता है। मन में बनी एक मूर्ति है जो टूट टूट जाती है। और?</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: large;"><b>औ</b>र एक ईश्वर है कि जिसकी मौत हुई जाती है।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: large;"><b>अ</b>ब पेले नाम के किसी ईश्वर को मैं नहीं जानता। पेले हाड़ मांस का बना हम और आप जैसा ही एक व्यक्ति था,एक ऐसा व्यक्ति जिसकी मृत्यु भी होती है,जो खिलाड़ी था और जो फुटबॉल खेलता था। ऐसी फुटबॉल खेलता जैसी कोई दूसरा ना खेल पाता। एक ऐसा फुटबॉलर जैसा कोई दूसरा ना था। ठीक वैसा ही जैसे एक बीथोवन था,एक बाख था और माईकेल एंजेलो। और ये सब ईश्वर की अनुपम देन ना थीं, तो क्या थीं।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: large;"><b>द</b>रअसल ये इंसान की फितरत है कि वो इंसानी सीमाओं को पहचानता ही नहीं। वो नहीं जानता इंसान की क्षमताएं क्या और कितनी हैं। एक इंसान के वे कार्य जो उसके लिए जब तर्क से परे हो जाते हैं,तो उसमें देवत्व को आरोपित कर देता है।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: large;"><b>ले</b>किन इंसान की तर्कातीत उपलब्धियों में देवत्व का आरोपण मनुष्यता का और खुद मनुष्य का अपमान है। ये मनुष्य की उपलब्धियों को छोटा कर देना है। मनुष्य को रिड्यूस कर देना है। शायद पेले को देवता कहना, ईश्वर बनाना उसकी असाधारण क्षमताओं को रिड्यूस कर देना है। </span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: large;"><b>पे</b>ले हाड़ मांस का बना एक खूबसूरत इंसान था, और है और रहेगा। वो एक ऐसा इंसान था जो मानवीय गरिमा से ओतप्रोत था और जिसका चेहरा मानवीय करुणा दीप्त होता था।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="font-size: large;"><b style="color: #2b00fe;">वो</b><span style="color: #2b00fe;"> हाड़ मांस का बना एक ऐसा खिलाड़ी था जिसने 17 साल की उम्र में पहला विश्व कप जीत लिया था। जिसने एक नहीं, दो नहीं, तीन-तीन विश्व विश्व कप जीते थे। जिसने एक,दो या सौ, दो सौ नहीं बल्कि कुल 1283 गोल किए थे। एक ऐसा खिलाड़ी, फुटबॉल का ऐसा जादूगर था जिसके पैरों का जादू देखने भर को नाइजीरिया के सिविल वार में लड़ते दो पक्ष 48 घंटों का युद्ध विराम कर दिया था। ऐसा खिलाड़ी था जिसने खेल कौशल को उस सीमा तक पहुँचा दिया था वो तर्कातीत हो जाती थी।</span></span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: large;"><b>उ</b>सने एक ऐसी असाधारण उपलब्धि धारण की थी कि सिर्फ 29 साल की उम्र में 1000वां गोल कर सका और उसकी इस उपलब्धि को चांद पर जाकर सेलिब्रेट किया गया। आखिर क्या ही संयोग विधि द्वारा गढ़े जाते हैं कि ऐन 19 नवंबर 1969 के दिन जब वो वास्को डी गामा के विरुद्ध सांतोस के लिए खेलते हुए पेले अपना हजारवाँ गोल कर रहा था,तो मनुष्य अपोलो यान से चांद पर पहुंच कर इस क्षण को सेलिब्रेट करता है। ऐसा सम्मान और किसे मिल सकता था। आखिर कौन इसके काबिल हो सकता था।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: large;"><b>वो</b> क्या ही अद्भुत दृश्य रहा होगा जब उसने अपना हजारवाँ गोल किया तो कितने ही मिनटों तक खेल रोक दिया गया था और सांतोस और वास्को डी गामा,पक्ष और विपक्ष दोनों ही दलों के खिलाड़ी उस को अपने कांधे बिठाकर परेड कर रहे थे।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: large;"><b>कि</b>तना खूबसूरत वो खिलाड़ी रहा होगा और कितना खूबसूरत उसका मन कि वो अपने एक हजारवें गोल का जश्न मनाने के बजाए ब्राजील के हज़ारों गरीब बच्चों और उनके भविष्य की चिंता कर रहा था। आखिरकार मदर टेरेसा की तरह दुनिया भर की करुणा से भीग रहे चेहरे को देखकर ही तो सन 1966 में पेले से मुलाकात करते हुए पोप पॉल ने कहा होगा 'नर्वस मत होओ मेरे बेटे. मैं तुमसे ज्यादा नर्वस हूँ. बहुत लम्बे अरसे से ख़ुद तुम से मिलने का सपना देखता रहा हूँ।'</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: large;"><b>आ</b>खिर कितने खुशकिस्मत रहे होंगे वे लोग जिन्होंने उनके पैरों से होते 1283 गोल देखे होंगे। 91 हैट्रिक बनती देखी होंगी। कितने खूबसूरत रहे होंगे उनके बाइसिकल गोल। कितना खूबसूरत रहा होगा वो शॉट जब चेकोस्लोवाकिया के खिलाफ़ मध्य रेखा से लगभग गोल कर ही दिया था।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: large;"><b>कै</b>सा अनोखा और मूल्यवान रहा होगा वो खिलाड़ी जिसको खो देने के भय से राष्ट्रीय संपत्ति घोषित कर दिया गया हो।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="font-size: large;"><b style="color: #2b00fe;">ऐ</b><span style="color: #2b00fe;">सी खूबसूरत फुटबॉल जिसमें अद्भुत ड्रिबलिंग हो,शक्ति,गति और नियंत्रण हो,लय हो,देवताओं को कहां रुचती है। ये तो हाड़ मांस से बने मानुस को शोभती है, हां पेले को रुचती है। </span></span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: large;"><b>19</b>57 से 1974 के मध्य फुटबॉल के मैदान में एक खिलाड़ी द्वारा जो जादू बिखेरा गया, जो कीर्तिमान बने, वे देवताओं के बस की बात थोड़े ही ना थी। ये उन सीमाओं की बानगी भर है, जिन्हें एक मानव अपनी योग्यता से विस्तारित करता है,जिन्हें हम देख नहीं पाते,कल्पना नहीं कर पाते,हमें तर्कातीत लगने लगती हैं। दरअसल ये वो खूबसूरत नैरेटिव है जो ये बयान देता है कि मानव क्या कुछ कर सकता है। उसकी क्षमताओं की क्या सीमाएं हैं। पेले की कहानी एक ऐसी कहानी है,जो कहती है दुनिया में क्या संभव है और आदमी क्या कर सकता है। बाइडेन के शब्दों में पेले 'स्टोरी ऑफ व्हाट इस पॉसिबल' है।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: large;"><b>आ</b>ज अब जब पेले नहीं रहे तो कितने स्टेडियम उदास हो गए होंगे। कितने मैदान होंगे जो मन मसोसकर कर खेद जता रहे होंगे। कितने गोलपोस्ट होंगे जो गहन वेदना से गल रहे होंगे।कितनी फुटबॉल होंगी जो आंसू बहा रही होंगी। कितनी व्हिस्ल होंगी जो शोक गीत गा रही होंगी।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: large;"><b>औ</b>र हम में से ना जाने कितने लोग होंगे जिनके दिल जार जार करके रो रहे होंगे। ठीक ऐसे ही जैसे मेरा दिल रो रहा है। आज मन शिद्दत से चाह रहा है कि एक बार उसके शरीर से लिपटकर रो सकता। काश कि उसे एक बार अपनी आंखों से खेलते हुए देख पाता। काश एक पत्रकार के रूप में उससे एक साक्षात्कार ले पाता। उससे उसके खेल के संबंध में ढेर सारे प्रश्न पूछ पाता। एक दोस्त की तरह उसके गले मे हाथ डालकर सड़कों पर आवारागर्दी कर सकता। किसी नुक्कड़ की दुकान पर बैठकर चाय पी सकता। उसके साथ फुटबॉल खेल सकता। और फिर उसके उम्दा खेल पर ईर्ष्या करते हुए उससे कह पाता 'अबे तुझसे अच्छा खेलता हूँ मैं।'</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: large;"><b>औ</b>र ये सब इच्छाएं कोई देवता पूरी कहां पर पाते।एक इंसान ही पूरी कर पाता ना। </span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: large;"><b>औ</b>र हां पेले कभी कहां मर सकता है। वो हमारे दिलों में,मैदानों में ,फुटबॉल खेल में और हमारी बातों में,किस्से कहानियों में हमेशा ज़िंदा रहेगा। </span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #741b47; font-size: large;">------------------------</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #741b47; font-size: large;"><b>औ</b>र ये भी कि सुप्रसिद्ध फुटबॉलर बॉबी चार्लटन से खूबसूरत बात और कौन कह सकता है कि 'फुटबाल खेल का जन्म इसीलिए हुआ कि पेले खेल सके।'</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #741b47; font-size: large;"><b>अ</b>लविदा द पेले। द ओरी। द ब्लैक पर्ल।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><br /></span></p><p style="text-align: justify;"><br /></p></div></div>बात अपनीhttp://www.blogger.com/profile/05725525971715117550noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8465915453620131002.post-24570312369806142082022-12-22T10:12:00.001+05:302022-12-22T18:16:57.836+05:30विश्व कप फुटबॉल डायरी_08<p> <u style="color: #741b47; font-size: large; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhJHdUXsAtxMTxf0FUFFKjDl5NF02mKZAEX2zMgNJJN2yeWQUzTxitOXY9tHDOo2GjkTjMtlhJ7TnoTTTE3IW4uVlZOi1RhXDw4QAOIn5R-EgNMsIqLBFg8Fb9hl72MmgoeemmLzSwg4hbmQQ75KdGdFodOK-p_nh6bWwNN5SYpB7IDtvJBXduulB-7/s1200/messi-1.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="800" data-original-width="1200" height="213" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhJHdUXsAtxMTxf0FUFFKjDl5NF02mKZAEX2zMgNJJN2yeWQUzTxitOXY9tHDOo2GjkTjMtlhJ7TnoTTTE3IW4uVlZOi1RhXDw4QAOIn5R-EgNMsIqLBFg8Fb9hl72MmgoeemmLzSwg4hbmQQ75KdGdFodOK-p_nh6bWwNN5SYpB7IDtvJBXduulB-7/s320/messi-1.jpg" width="320" /></a></u></p><u style="color: #741b47; font-size: large;"><br /><b><br /></b></u><p></p><p style="text-align: justify;"><u style="color: #741b47; font-size: large;"><b>अस्सी मिनट बनाम चालीस मिनट बनाम पेनाल्टी शूट आउट</b></u></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #741b47; font-size: medium;"><u><b>००००</b></u></span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><br /></span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"> <b>अगर</b> मैं शिक्षक होता तो अपने विद्यार्थियों को सिखाता कि जीवन का एक पर्यायवाची 'फुटबॉल का खेल' होता है और एक फुटबॉल मैच वो बाइस्कोप होता है जिससे केवल उस जीवन को देखा भर नहीं जाता बल्कि उसे महसूस भी किया जाता है। हर वो आदमी जिसने कल लुसैल स्टेडियम में विश्व कप फुटबॉल का फाइनल देखा होगा,इस बात की ताईद करता पाया जाएगा।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"> <b>आखिर</b> ऐसा कौन सा संवेग बच रहा होगा जो इस मैच में दौरान देह मन ने अनुभव ना किया होगा, ज़िंदगी के वे कौन से पाठ रहे होंगे, जो ये एक मैच ना सिखा पाया होगा या वो कौन सा रंग होगा जो इस एक मैच ना बिखरा होगा। जिसने भी कल का फाइनल मैच देखा होगा,इससे अलग क्या सोच पा रहा होगा।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"> <b>बीती</b> रात फुटबॉल विश्व कप के बीच अर्जेंटीना और पिछली चैंपियन फ्रांस के बीच खेला गया मैच 120 मिनट के बाद भी 3-3 गोल की बराबरी पर छूटा,तो निर्णय पेनाल्टी शूट आउट से हुआ और अर्जेंटीना फ्रांस को 4-2 से हराकर विश्व चैंपियन बना। ये अर्जेंटीना का तीसरा विश्व खिताब था।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"> <b>दरअसल</b> इस मैच को तीन भागों में अलग करके देखा जा सकता है। एक,पहले 80 मिनट। दो, 30 अतिरिक्त मिनट सहित अंतिम 40 मिनट। तीन,पेनाल्टी शूटआउट। ये तीन भाग इस मैच के आरंभ, उत्कर्ष और समापन थे। </span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"> <b>ये</b> मैच दो अलग फुटबॉल शैलियों और तीन महाद्वीपों के बीच का मुकाबला था। एक तरफ दक्षिण अमेरिकी फुटबॉल की कलात्मकता थी। दूसरी तरफ यूरोप की गति और शक्ति थी। उस गति और शक्ति में अफ्रीकियों की किसी भी परिस्थिति से हार ना माने की अदम्य जिजीविषा और अंतिम समय तक संघर्ष करने के हौंसले का समावेश था।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"> <b>पहले</b> भाग में अर्जेंटीना किसी विश्व चैंपियन की तरह खेला। इस भाग में अर्जेंटीना का खेल कौशल अपने उठान पर था, जिसने यूरोपीय गति और शक्ति को हतप्रभ कर दिया। ये अर्जेंटीना का इस प्रतियोगिता का सबसे शानदार प्रदर्शन था। उनके मूव और उनके पासेस का खेल देखना अदभुत अनुभव था। गेंद पर नियंत्रण और पासेस की दिशा कमाल की थी। ऐसा लग रहा था मानो अर्जेंटीनी खिलाड़ी एक दूसरे के मष्तिष्क को पढ़ ले रहे हैं। वे किसी धुन पर थिरकते प्रतीत होते। एक लय में। एक अन्विति में। सम्मोहन बिखेरते हुए। सम्मोहित करते हुए। इस दौरान अगर अर्जेंटीना का आक्रमण धुन पर थिरक रहा था तो डिफेंस किसी चट्टान की तरह अडिग खड़ा था जिससे टकरा कर फ्रांसीसी गति और ताकत बेबस हुई जाती थी। इस भाग में अधिकांश समय खेल फ्रांस के हाफ और उसके बॉक्स के आसपास सिमट गया था। उनका कमिटमेंट अविश्वसनीय था। मानो वे ये दृढ़ प्रतिज्ञा करके आएं हों कि फीफा ट्रॉफी का अगला गंतव्य केवल और केवल ब्यूनस आयर्स ही होना है।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"> <b>अर्जेंटीना</b> के सामने फ्रांस की टीम दोयम दर्जे की प्रतीत हो रही थी। पहले 80 मिनट में एमबापे के केवल 11 टचेज जो अब तक का सबसे कम थे। वे खेल से अनुपस्थित से थे। फ्रांस की असहायता इस बात से समझी जा सकती हैं कि इन 80 मिनटों में फ्रांस की टीम केवल एक बार वो भी 71वें मिनट में गोल पर शॉट ले सकी और एमबापे का ये शॉट टारगेट से बहुत ऊपर से निकल गया।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"> <b>इस</b> प्रतियोगिता में अब तक फ्रांसीसी जीत के कर्णधार रहे ग्रीजमान,देम्बेले और थियो हर्नांडेज इस समय तक बाहर जा चुके थे और उनकी जगह थुरम, कोमेन और कमाविन्गा ले चुके थे। ये बदलाव दरअसल कलात्मकता और गति व ताकत के द्वंद्व में तीसरे आयाम का जुडना था। अब अफ्रीकी जज्बा और संघर्ष करने की अदम्य लालसा भी फ्रांसीसी टीम में समाविष्ट हो चुकी थी। मृतप्राय गति व ताकत में सब्सिट्यूशन से फिर से प्राण फूंके जा चुके थे। अब मुकाबला दक्षिण अमेरिका बनाम यूरोप से आगे बढ़कर दक्षिण अमेरिका बनाम यूरोप व अफ्रीका हो चुका था।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"> <b>अंतिम</b> 10 मिनट बचे थे। अर्जेंटीना दो गोल से आगे था। उस की जीत लगभग पक्की मानी जा रही थी कि समय चक्र ने पलटा खाया। क्या पता उस समय फ्रांस के खिलाड़ियों में मष्तिष्क में अपने महानायक नेपोलियन के वे शब्द भी गूंज रहे हों कि 'असंभव जैसा शब्द उनकी डिक्शनरी में नहीं होता।' जो भी हो 79वें मिनट में एक मौका मिला फ्रांस को। मौनी अर्जेंटीना के बॉक्स में अकेले गेंद के साथ थे। अर्जेंटीना के ओटामेंदी के पास गोल बचाने का उन्हें गिराने के अलावा कोई चारा नहीं था। फ्रांस को पेनाल्टी मिली और एमबापे का गोल नंबर 06 आया। मैच में जान आ गयी। एक मिनट बीतते बीतते एमबापे का गोल नंबर 07 आया और स्कोर 2-2 से बराबर।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"> <b>गति</b> और जोश ने अर्जेंटीना की लय को भंग कर दिया था। अगले 09 मिनट एक तरह से अफरा तफरी के थे। जो लय टूट चुकी थी,उसे फिर से बांधने में और गति ने जो लय पकड़ ली थी, उसे रोकने के लिए अर्जेंटीना को भी समय चाहिए था। इसी अफरा तफरी में रेगुलर समय समाप्त हुआ। दोनों टीमों को नए सिरे से रणनीति बनाने का मौका मिला।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"> <b>अतिरिक्त</b> समय का खेल अर्जेंटीना ने ठीक वहीं से शुरू किया जहां उन्होंने उसे 80वें मिनट में छोड़ा था। वे एक बार फिर लय में थे और फ्रांसीसी गति और ताकत कुछ हद तक दिशाहीन। 109वें मिनट में एक बार फिर मैस्सी ने गोल गेंद के अंदर की। ये मेसी का मैच का गोल नबर दो और प्रतियोगिता का गोल नंबर 07 था। एक बार फिर लगा अर्जेंटीना जीत चुका है। अब केवल 05 मिनट शेष थे। खेल खत्म हुआ ही चाहता था। पर नियति को ये मंजूर ना था। ये फ्रांस की किस्मत थी कि बॉक्स के अंदर मोन्टीएल की कोहनी में गेंद लगी और एक और पेनाल्टी फ्रांस को। एमबापे की हैट्रिक गोल नंबर 08 के साथ आई। अब स्कोर 3-3 बराबरी पर था। अगर 80 मिनट का पहला भाग इस मैच की प्रस्तावना थी तो 40 मिनट का ये भाग मैच का उत्कर्ष था जिसमें खेल का रुख दोनों और झुकता रहा।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"> <b>अब</b> इस मैच का उपसंहार लिखा जाना था। प्रस्तावना में पहले ही लिखा जा चुका था मैच अर्जेंटीना का है। निष्कर्ष इससे भिन्न कहां होना था। पेनाल्टी शूट आउट में एक बार फिर अर्जेंटीना ने फ्रांस को, उसके भाग्य को और फिर से चैंपियन बनने की उसकी किसी भी संभावना को शूटआउट कर दिया था। अब 4-2 जीतकर अर्जेंटीना नया चैंपियन था।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"> <b>याद</b> कीजिए 2018 के विश्व कप को। प्री क्वार्टर फाइनल में अर्जेंटीना का फ्रांस से खेलना तय पाया गया था। वो शनिवार का दिन था। तातारिस्तान की राजधानी कज़ान का कज़ान एरिना था। ये क़यामत की शाम थी जिसमें लोगों ने एक क्लासिक मैच देखा था। उन्होंने उम्मीदों के उफान को देखा था और उसे बहते हुए भी देखा था। ये भी दो महाद्वीपों के बीच मुकाबला था। ये फुटबाल की दो अलग शैलियों के बीच मुकाबला था। ये उम्मीदों की विश्वास से टकराहट थी। उम्रदराज़ों का युवाओं से सामना था। अनुभव जोश के मुक़ाबिल था। कलात्मकता रफ़्तार और शक्ति से रूबरू थी। जो मुकाबला मैदान में दो टीमों के बीच हो रहा था वो लाखों लोगों के लिए मेस्सी का फ्रांस से मुकाबला बन गया था। अगर लोग अर्जेंटीना को मेस्सी के लिए जीतता देखना चाहते थे तो खुद मेस्सी अर्जेंटीना के लिए जीतना चाहता था। मेस्सी ने अपना सब कुछ झोंक दिया। उसने कुल मिला कर दो असिस्ट किये। लेकिन अर्जेंटीना और जीत के बीच 19 साल का नौजवान एमबापा आ खड़ा हुआ। उसने केवल दो गोल ही नहीं दागे बल्कि एक पेनाल्टी भी अर्जित की। उसकी गति के तूफ़ान में अर्जेंटीना का रक्षण तिनके सा उड़ गया। मेस्सी का अर्जेंटीना 4 के मुकाबले 3 गोल से हार गया। लोगों की उम्मीदें हार गई। हताश निराश मेस्सी मैदान से बाहर निकले तो एक बार भी पीछे मुड़कर नहीं देखा। मानो वे इस असफलता को पलटकर देखना ही नहीं चाहते थे। </span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"> <b>लेकिन</b> क्या ही स्वीट रिवेंज था ये। एक बार फिर मानो वही मुकाबला दोहराया जा रहा हो। बिल्कुल उस जगह से शुरू हो रहा हो,जहां कजान में खत्म हुआ था। 19 साल का टीनएजर अब 23 साल का गबरू जवान हो चुका था। एक बार फिर वो फुटबॉल के देवता की राह में रोडा बनने का दुस्साहस कर रहा था। उसने अपनी टीम के 05 में से 04 गोल किए। लेकिन इस बार देवता से,अनुभव से,अदम्य चाहना से वो हार गया। इस बार समय और नियति मैस्सी के साथ थी। हुनर के साथ थी। इस बार एमबापे उदास थे। और मैस्सी अपने हाथों में फीफा कप उठाए उसे चूमते जाते थे। दोनों किरदारों के रोल बदल गए थे।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"> <b>कला</b> और क्लास के आगे ताकत और गति पस्त हो चुके थे। नियति अपना खेल दिखा चुकी थी। आप भले ही कहें नियति क्रूर होती है। लेकिन इतनी भी नहीं कि एक असाधारण प्रतिभा को, खेल के महानतम खिलाड़ी को और उसके जादूगर को उस सम्मान से,उस हक़ से महरूम रख सके जिस पर उसका हक बनता था। मैस्सी की झोली में अब एक विश्व कप ट्रॉफी थी। जिस कला का वो सर्वश्रेष्ठ व्याख्याता था,अब वो उसके शिखर पर था। अधूरी इच्छाओं का एक देवता पूर्णत्व को प्राप्त हो चुका था। वे हाथों में फीफा कप लेकर उसे चूम रहे थे। वे कह रहे थे 'मैं इसे बेइंतेहा चाहता था। मैं जानता था कि ईश्वर ये मुझे देंगे। ये लम्हा मेरा है।' सच में वो मैस्सी का लम्हा था।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #cc0000; font-size: medium;">-----------------------</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #cc0000; font-size: medium;"><b>दरअसल</b> यही फुटबॉल है। यही खेल है। यही जीवन है। </span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #cc0000; font-size: medium;"><b>और</b> हम हैं कि अर्जेंटीना के कुछ और ज़्यादा समर्थक हुए जाते हैं। कि मैस्सी को कुछ और ज़्यादा चाहने वाले हुए जाते हैं। कि फुटबॉल के कुछ और अधिक दीवाने हुए जाते हैं।</span></p><p style="text-align: justify;"><br /></p>बात अपनीhttp://www.blogger.com/profile/05725525971715117550noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8465915453620131002.post-6087087857503460952022-12-20T11:19:00.005+05:302022-12-22T18:18:25.850+05:30फुटबॉल विश्व कप 2022 डायरी_07 <p style="text-align: justify;"><u style="color: #741b47; font-size: large;"></u></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjuJDkYoW6qnIxFpsSeZW68sckIwI6P1JIC1XNmjmIyPpMhMI5oc3ye4dvJdf4VAskYEHIk6fD6Nxko3qHXhtySFCxe5ujAiBKWfZ2z0wFodwt8Bwu9w43m85cZoAHOciaF6iv0ZLxG6B6RL56tRwLQL6NrLeifa6c7Xsb8shMet3FZCvpzQnZyHRQG/s960/Argentina-vs-Croatia_11zon.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="502" data-original-width="960" height="167" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjuJDkYoW6qnIxFpsSeZW68sckIwI6P1JIC1XNmjmIyPpMhMI5oc3ye4dvJdf4VAskYEHIk6fD6Nxko3qHXhtySFCxe5ujAiBKWfZ2z0wFodwt8Bwu9w43m85cZoAHOciaF6iv0ZLxG6B6RL56tRwLQL6NrLeifa6c7Xsb8shMet3FZCvpzQnZyHRQG/s320/Argentina-vs-Croatia_11zon.jpg" width="320" /></a></div> <span style="color: #741b47; font-size: xx-small;"> (साभार गूगल)</span><br /><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"> </span></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;"><span style="color: #741b47; font-size: medium;"><b>अंतिम चार का द्वंद्व</b></span></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;"><span style="color: #741b47; font-size: medium;"><b>००००</b></span></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><br /></span></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>वि</b>श्व कप फुटबॉल के पहले सेमीफाइनल में अर्जेंटीना ने क्रोशिया को 3-0 से हराकर फाइनल में प्रवेश कर लिया है। निःसंदेह अर्जेंटीना की जीत महत्वपूर्ण है,लेकिन उससे भी महत्वपूर्ण मैच की स्कोरलाइन है।</span></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><br /></span></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>स्को</b>र लाइन देखकर ऐसा लगता है कि अर्जेंटीना ने किसी नौसिखिया टीम को हराया है। जबकि सारी दुनिया जानती है,वास्तविकता ये नहीं है। क्रोशिया की गणना फुटबॉल की दुनिया की सबसे ताकतवर टीमों में की जाती है। वो इस बार की संभावित विजेताओं में शुमार थी और पिछली बार की उपविजेता। जिस टीम का नेतृत्व दुनिया के सबसे शानदार मिडफील्डर लुका मोद्रीच कर रहे हों, जिसके पास दुनिया के सबसे बड़े डिफेंडरों में से एक, और प्रतियोगिता में सबसे शानदार खेल रहे जोस्को ग्वार्डिओल हों,और जिसके पास लिवकोविच जैसा बेहतरीन गोलकीपर हो जिसने इस विश्व कप में सबसे ज़्यादा 24 बचाव किए हों, वो टीम कमज़ोर हो भी कैसे सकती है।</span></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><br /></span></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>निः</b>संदेह क्रोशिया की टीम एक बहुत मजबूत और शानदार टीम है जो दुनिया की किसी भी टीम को हराने का माद्दा रखती है। लेकिन खेल का परिणाम केवल एक टीम के खिलाड़ियों के मैदान में खेल कौशल भर से निर्धारित नहीं होते। ये विपक्षी टीम के खिलाड़ियों के खेल कौशल,उसकी रणनीति,उसके द्वारा अपने सामने वाली टीम की रणनीति को समझने और उसमें छिद्र ढूंढ लेने के साथ साथ रैफरी के निर्णयों और अंततः नियति द्वारा भी निर्धारित होते हैं। </span></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><br /></span></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>अ</b>गर मैदान में कुछ अप्रत्याशित ना हो तो कवि केशव तिवारी के शब्दों में कहा जा सकता है 'काहे का खेल और काहे की फुटबॉल'। यही खेल है और यही फुटबॉल। </span></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><br /></span></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>मै</b>च के पहले हॉफ के आधे से अधिक समय तक गेंद पर नियंत्रण और खेल का नियंत्रण क्रोशिया के पास था। खेल अर्जेंटीना के हॉफ में खेला जा रहा था। पर मुकाबला फुटबॉल लीजेंड मैस्सी और चतुर रणनीतिकार लियोनेल स्कलोनी से था। वे खेल के इस क्रोशियाई अधिपत्य के बीच में अपनी टीम के लिए अवसर खोज रहे थे और वे उन्होंने ढूंढ निकाले। यही फुटबॉल की समझ है।फुटबॉल है।</span></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><br /></span></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>गें</b>द पर पूरी तरह नियंत्रण के अपने खतरे हैं। ऐसे में जब आप गेंद पर से नियंत्रण खोते हैं तो आप रक्षण के लिए उस तरह एकबद्ध नहीं हो पाते जिस तरह से होना चाहिए। नियंत्रण छूटने से आपकी लय टूट जाती है। आप अपने रक्षण में गैप छोड़ देते हो। मैस्सी और उनके साथियों ने वे गैप ढूंढ लिए।उन गैप से उन्होंने प्रतिआक्रमण किए, अपनी टीम के लिए मौके बनाए और विपक्षी टीम को तहस नहस कर दिया। मैच समाप्ति के बाद मैस्सी ऐसा ही कुछ कह रहे थे।</span></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><br /></span></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"> <b>क</b>ई प्रतिआक्रमणों में से ऐसा ही एक प्रतिआक्रमण अर्जेंटीना ने 34वें मिनट में किया। मैनचेस्टर सिटी के लिए खेलने अर्जेंटीना के नवोदित स्टार जूलियन अल्वारेज ने इतना तेज आक्रमण किया कि बाकि एक रक्षक को मात दी,उसे पीछे छोड़ा। अब वे बॉक्स में अकेले गोलकीपर के सामने थे। गोलकीपर डॉमिनिक लिवकोविच अल्वारेज को टैकल करने के लिए मजबूर हुए। रैफरी ने इसे खतरनाक माना। अर्जेंटीना को पेनाल्टी मिली। अब मैस्सी के बाएं पैर का जादू था। सही दिशा में छलांग लगाने के बाद भी गोलकीपर गति और ऊंचाई से मात खा गए। अर्जेंटीना 1-0 से आगे हो गया। अब मैच का रुख अर्जेंटीना के पक्ष में झुक गया। उनके पक्ष में मोमेंटम बन चुका था और क्रोशिया के हाथ से मैच फिसलने लगा था।</span></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><br /></span></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>पे</b>नाल्टी का निर्णय रैफरी का था। बहुत से लोगों का मानना था ये टैकल इतना खतरनाक नहीं था कि पेनाल्टी दी जाती। लेकिन रैफरी का निर्णय अर्जेंटीना के पक्ष में गया। यही भाग्य था,नियति थी और फुटबॉल भी।</span></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><br /></span></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>पां</b>च मिनट बाद अर्जेंटीना ने एक और प्रतिआक्रमण किया। 39वें मिनट में एक बार फिर अल्वारेज ने काउंटर अटैक पर शानदार मूव बनाया और लगभग अकेले दम पर गोल कर टीम को 2-0 से आगे कर दिया। ये युवा अल्वारेज की स्किल और गति हैं जिसने वन मैन आर्मी मैस्सी के बोझ को ना केवल कम किया है,बल्कि उन्हें आक्रमण और रणनीति बनाने के अतिरिक्त अवसर भी दिए हैं।</span></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><br /></span></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>क्रो</b>शिया एक फाइटर टीम है। उसने 2-0 से पिछड़ने के बाद भी हिम्मत नहीं हारी थी। क्वार्टर फाइनल में नीदरलैंड भी अर्जेंटीना के विरुद्ध 0-2 से पीछे थी और वो मैच को पेनाल्टी शूट तक ले गई थी। दूसरे हॉफ में भी क्रोशिया ने गेंद पर अपना नियंत्रण बनाए रखा। कुछ अच्छे मूव भी बनाए। पर मूव बनाना और उसे फिनिश करना दो बातें हैं। वे फिनिश करने में असफल रहे। इधर अर्जेंटीना ने क्रोशिया डिफेंस में छिद्र ढूंढ लिए थे। वे प्रतिआक्रमण करते रहे। इस बीच मैच के 69वें मिनट में क्रोशिया के हॉफ में लगभग मध्य रेखा से बॉल मैस्सी को मिली। दुनिया का एक बेहतरीन डिफेंडर ग्वार्डिओल,मैस्सी को मार्क कर रहा था। लेकिन यहां मैस्सी था,मैस्सी की ड्रिब्लिंग थी,मैस्सी के पैरों का जादू था। ग्वार्डिओल की मार्किंग के साथ ही मेसी गेंद को बॉक्स में ले गए,उसके बाद वे एक क्षण के लिए रुके,फिर दाएं गए, फिर बाएं गए और फिर दाएं गए, ग्वार्डिओल को पूरी तरह युक्तिहीन और असहाय छोड़ गेंद अल्वारेज को सरका दी। अल्वारेज ने गेंद आगे गोल में सरका दी। स्कोर अब 3-0 था और इसने क्रोशिया की किसी भी संभावना को खत्म कर दिया था।</span></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><br /></span></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>मै</b>स्सी का ये असिस्ट इस विश्व कप की सबसे खूबसूरत मूव था। इस मूव को देखना किसी खूबसूरत कविता को देखना,किसी बेहतरीन नृत्य को देखना और किसी उम्दा संगीत को सुनने जैसा था। ये मैस्सी की स्किल थी। उनके पैरों का जादू था। ये फुटबॉल का खेल था। फुटबॉल था।</span></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><br /></span></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>इ</b>स विश्व कप में मैस्सी क्या ही कमाल खेल रहे हैं। पहले मैच में हार के बाद पांच मैच और पांचों में मैन ऑफ द मैच। अविश्वसनीय प्रदर्शन। मैस्सी का दूसरा फाइनल पक्का हुआ। अर्जेंटीना तीसरे विश्व खिताब की और बढ़ी और निसंदेह मैस्सी सार्वकालिक महानतम खिलाड़ी। मैं जानता हूँ ,आप जानते हैं,सारी दुनिया जानती है,आखिर 'गोट' कौन है।</span></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><br /></span></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>तो</b> तय हुआ कि खिलाड़ियों की प्रतिभा और खेल कौशल में जब भाग्य और अनिश्चितता का तड़का लगता है,तो फुटबॉल के खेल में रोमांच पैदा होता है। फुटबॉल का खेल बनता है। फुटबॉल बनता है।</span></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;"><span style="color: #741b47; font-size: medium;">-----–---–-----</span></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;"><span style="color: #741b47; font-size: medium;"><b>तो</b> रविवार तक अनिश्चितता में झूलते रहिए और दिल को थामे रखिए। पिक्चर अभी बाकी है दोस्तों।</span></div></div>बात अपनीhttp://www.blogger.com/profile/05725525971715117550noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8465915453620131002.post-49006546258874516282022-12-13T21:00:00.002+05:302022-12-22T18:19:56.665+05:30फुटबॉल विश्व कप डायरी_06<p style="text-align: justify;"><span><span style="color: #2b00fe;"><span style="font-size: medium;"> </span></span></span></p><div class="separator" style="clear: both; font-size: large; text-align: center;"><span><span style="color: #2b00fe;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgJOtI7sGlvRHidLKj9iYy9pFu1jpD_AulVzDYpgPl-YljbzvKXlPMWs88KzFVzlaG4dMLmMrsTmebUjulzX-138sy8Wx6SxivzZX1NwI-gtXuAcGGzgOu0Qk3iK6nLj5WAUDUNXa7U97csjAKH7R5NMDpUlwoKsTUyADGU5TYosGq6RBSoHYm9VFal/s1280/95634515.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="720" data-original-width="1280" height="180" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgJOtI7sGlvRHidLKj9iYy9pFu1jpD_AulVzDYpgPl-YljbzvKXlPMWs88KzFVzlaG4dMLmMrsTmebUjulzX-138sy8Wx6SxivzZX1NwI-gtXuAcGGzgOu0Qk3iK6nLj5WAUDUNXa7U97csjAKH7R5NMDpUlwoKsTUyADGU5TYosGq6RBSoHYm9VFal/s320/95634515.jpg" width="320" /></a></span></span></div><span><span style="color: #2b00fe;"><span style="font-size: medium;"> </span><span style="font-size: xx-small;">(साभार गूगल)</span></span></span><p></p><p style="text-align: justify;"><span style="font-size: medium;"><b><u><span style="color: #741b47;">सेमीफाइनल :टीमें जो यहां हो सकती थीं, पर हैं नहीं</span></u></b></span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #741b47; font-size: medium;"><b><u>०००</u></b></span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><br /></span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"> <b>खेल</b> केवल खेल भर नहीं हैं। और फुटबॉल भी केवल खेल भर नहीं है। ये खिलाड़ियों का अथक परिश्रम भी है,उनका अदम्य होंसला भी है,उनका अद्भुत खेल कौशल और विस्फोटक प्रतिभा भी है,ये खेल मैनेजरों की नित नवीन रणनीतियां भी है,उनकी शतरंजी चालें भी हैं,विपक्षी टीम की चालबाजियों को समझने की उनकी गहन अंतर्दृष्टि और उसे भोथरा कर देने की अद्भुत समझ भी है। इतना ही नहीं,ये नियति भी है,भाग्य भी है और अनहोनियाँ भी हैं। इन सब के मिलने पर ही फुटबॉल जैसा खेल बनता है। और इसे समझना है तो फुटबॉल विश्व कप देखने से बेहतर और क्या हो सकता है।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b> जी हां</b> , क़तर फुटबॉल विश्व कप अब अपने अंतिम चरण में पहुंच चुका है। फुटबॉल का सरताज बनने के संघर्ष में अब केवल चार टीम बची हैं और तीन मैच। </span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b> और</b> इस बार बात बची चार टीमों के बारे में नहीं बल्कि बात उन तमाम टीमों की,जिन्हें यहाँ होना चाहिए था या जो यहां हो सकती थीं,पर हैं नहीं। </span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"> <b>सबसे</b> पहली टीम जिसे इस विश्व कप में होना चाहिए था और जो यहां हो सकती थी, पर है नहीं, वो इटली की टीम है। ये हम हम टूर्नामेंट शुरू होने से पहले ही जान गए थे कि इटली यहां नहीं होगी। तमाम जद्दोजहद के बाद भी चार बार की विश्व चैंपियन और वर्तमान यूरो चैंपियन टीम लगातार दूसरी बार विश्व कप में क्वालीफाई नहीं कर सकी। 'कैटेनेसियो' जैसी अभेद्य रक्षा पद्धति को ईजाद करने वाले और जीनो डोफ़ व बुफों जैसे गोलकीपर और बरेसी, पाओली माल्दिनी, फेबियो कैनावरो व चेलिनी जैसे डिफेंडर देने वाली इटली की टीम का यहां ना होना बहुत सारे खेल प्रेमियों के लिए गहन दुख का विषय हो सकता है और आश्चर्य का भी,पर ये बहुत पहले तय हो चुका था कि वो यहां नहीं ही होगी। यही नियति है। यही फुटबॉल है।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b> दूसरी</b> टीम जो यहां हो सकती थी और नहीं हैं वो जर्मनी की टीम है। चार बार की चैंपियन ये टीम सही मायने में यूरोपीय फुटबॉल का प्रतिनिधित्व करती है और अपनी शारीरिक श्रेष्ठता के बूते शारीरिक बल और गति से किसी भी टीम को मात देने की क्षमता रखने वाली टीम लगातार दूसरी बार पहले चरण से आगे बढ़ने में नाकामयाब रही है। पहले ही मैच में जापान ने हराकर उसके आगे बढ़ने की संभावना को क्षीण कर दिया था और स्पेन से ड्रा ने रही सही कसर पूरी कर दी। यही दुर्भाग्य है। यही फुटबॉल है।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b> एक</b> और टीम जो यहां हो सकती थी और नहीं है वो स्पेन की टीम है। जिसे प्री क्वार्टर फाइनल में मोरक्को ने हराकर आगे बढ़ने से रोक दिया। छोटे छोटे पासों वाली टिकी - टाका तकनीक वाले खूबसूरत खेल पद्धति को इज़ाद करने वाली स्पेन की टीम ने अपने पहले ही मैच में कोस्टारिका को 7-0 से हराकर अपने इरादे जाहिर कर दिए थे। लेकिन टीम उम्मीदों पर खरी नहीं उतर पाई। स्पेन की जो टीम सेमीफाइनल में हो सकती थी, वो क्वार्टर फाइनल में भी नहीं पहुंच सकी। क्वार्टर फाइनल में पहुंचने वाली मोरक्को के अलावा बाकी सातों टीमें उम्मीद के अनुरूप ही पहुंची। यही किस्मत है। यही फुटबॉल है।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b> इंग्लैंड</b> की टीम भी सेमीफाइनल में हो सकती थी और होना चाहिए था,पर दुख की बात है कि वो भी यहां नहीं है। 2018 में वो सेमीफाइनल तक पहुंची थी जहां क्रोशिया ने 2-1 से हरा कर उसके सफर को रोक दिया था और 1966 के बाद दूसरे विश्व कप को जीतने से भी। इस बार फ्रांस उसके रास्ते में आया और उसका भाग्य भी। इस बार उसका सफर क्वार्टर फाइनल में समाप्त हुआ। इस बार उसने शानदार फुटबॉल खेली। दरअसल शनिवार 10 दिसंबर की रात फ्रांस और इंग्लैंड के बीच खेला गया क्वार्टर फाइनल मैच इस विश्व कप का सबसे शानदार मैच था। निसंदेह खेल के आधार पर इंग्लैंड को आगे बढ़ना चाहिए था, लेकिन भाग्य फ्रांस के साथ था। फ्रांस के 43 प्रतिशत बॉल पजेशन के मुकाबले इंग्लैंड का बॉल पजेशन 57 प्रतिशत था। फ्रांस के गोल पर 08 शॉट के मुकाबले इंग्लैंड ने 16 शॉट लगाए जिनमें से इंग्लैंड के 05 के मुकाबले 08 शॉट टारगेट पर थे। इंग्लैंड ने 02 के मुकाबले 05 कॉर्नर अर्जित किए। इस सब के बावजूद इंग्लैंड हार गया। दरअसल ये मौके चूक जाने का मामला था। हैरी केन ने दूसरी पेनाल्टी मिस की और बराबरी का मौका ही नहीं खोया बल्कि आगे बढ़ने का रास्ता भी बंद कर लिया। यही भाग्य है। यही फुटबॉल है।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b> और</b> निःसंदेह विश्व नंबर एक नेमार की टीम ब्राजील को सेमीफाइनल में होना ही चाहिए था,पर घोर निराशा का सबब है कि वो भी नहीं है। उसका सफर पिछली उपविजेता क्रोशिया ने क्वार्टर फाइनल में खत्म किया। ये दोनों टीमों द्वारा शिद्दत से खेला गया मैच था जिसने पहले 90 मिनट में दोनों टीम ने गोल करने के मौके खोए। उसके बाद जैसे ही अतिरिक्त समय शुरू हुआ नेमार का जादू देखने को मिला। उसने अपने बॉक्स के पास से गेंद ली और तीन क्रोशियाई खिलाड़ियों को छकाते हुए ब्राजील को 1-0 की बढ़त दिला दी। ये गोल ऐसा शानदार ही होना चाहिए था क्योंकि ये नेमार का 77वां अंतर्राष्ट्रीय गोल था और पेले के ब्राजील की और से सर्वाधिक गोल करने के रिकॉर्ड की बराबरी वाला गोल भी। अब ब्राजील जीत जाने ही वाला था और अतिरिक्त समय खत्म ही हुआ चाहता था कि स्थानापन्न खिलाड़ी ब्रूनो पेतकोविच ने 3 मिनट शेष रहते बराबरी का गोल दाग दिया। अब मैच शूट आउट में गया। क्रोशिया शूटआउट में एक बेहतरीन टीम है और ये उसने एक बार फिर सिद्ध किया। 2018 में भी उसने शूटआउट में शानदार खेल दिखाया था और यहां भी प्री क्वार्टर फाइनल मैच में भी वो जापान को शूट आउट में हराकर आगे बढ़ी थी। इस बार उसने ब्राजील को 4-2 से हराया और उसे सेमीफाइनल में जाने से रोक दिया। ये पिछले पांच विश्व कप में चौथा अवसर था कि उसकी क्वार्टर फाइनल से विदाई हो रही थी। ये लाखों फुटबॉल प्रेमियों का दिल टूट जाना था। विश्व कप का अचानक खत्म हो जाना था। ये कोई अनहोनी थी। कोई गहरा आघात था जी हां ये फुटबॉल था। ये खेल था।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b> सीआर7</b> की टीम पुर्तगाल को भी सेमीफाइनल में होना चाहिए था और दुनिया ऐसी ख्वाहिश रखने वालों की कमी ना थी। अफसोस वे भी नहीं है। मोरक्को ने एक बार फिर असंभव को संभव कर दिखाया। इस बार पुर्तगाल शिकार बना। तीसरे क्वार्टर फाइनल में मोरक्को ने पुर्तगाल को 1-0 से हराकर बड़ा उलटफेर किया। पहले हाफ में खेल पुर्तगाल ने नियंत्रण अपने हाथ में रखा। जबकि मोरक्को कुछ काउंटर अटैक मूव ही बना सकने में समर्थ हुई। लेकिन मौका मोरक्को ने भुनाया और 44वें मिनट में डिफेंडर याह्या अत्तिअल्लाह के क्रॉस को सेविला के लिए खेलने वाले फारवर्ड एन नसीरी ने हैडर से गेंद गोल में डालकर मोरक्को को 1-0 की बढ़त दिला दी। इसके बाद पुर्तगाल ने गोल करने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी। दूसरे हाफ के 45 मिनट और 8 अतिरिक्त मिनट में अधिकांश समय खेल मोरक्को के बॉक्स के इर्द गिर्द हुआ। पर मोरक्को का डिफेंस और गोलकीपर बोनो की दीवार को पुर्तगाली खिलाड़ी नहीं भेद सके। यहां तक कि दूसरे हॉफ में बहुत जल्द ही सीआर7 को भी खिलाया गया। पर नतीजा वही ढाक के तीन पात। एक और बड़ा अपसेट हुआ। 2016 की यूरोपियन चैंपियन खेत रही। यही सपनों का टूट कर किरिच किरिच बिखर जाना था। इच्छाओं का गहन दुःख में विगलित हो जा एआ था। यही फुटबॉल है।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b> हां,</b> पिछली विजेता फ्रांस, पिछली उपविजेता क्रोशिया और दो बार की विश्व विजेता अर्जेंटीना की टीम को यहाँ होना था। और वो यहां हैं। लेकिन यहां मोरक्को भी है। तो क्या उसे यहाँ नहीं होना चाहिए था?</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b> निःसंदेह</b> विश्व कप शुरू होने से पहले शायद ही किसी ने इस बात की कल्पना की होगी कि मोरक्को सेमीफाइनल खेलेगा। लेकिन वो खेल रहा है। यही खुशकिस्मती है। यही किसी सपने का यथार्थ में तब्दील हो जाना है। यही हकीकत है। यही खेल है। यही फुटबॉल है।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b> मोरक्को</b> इस बार का जॉइंट किलर है। उसने इस विश्व कप में शानदार शुरुआत की। अपने पहले ही मैच में पिछली उपविजेता क्रोशिया से 0-0 से ड्रा खेला। उसके बाद विश्व नंबर दो टीम बेल्जियम को 2-0 से पीटा और फिर कनाडा को 2-1 से। प्री क्वार्टर फाइनल में स्पेन को शूटआउट में 3-0 और क्वार्टर फाइनल में पुर्तगाल को 1-0 से हराकर सेमीफाइनल में पहुंचने वाली पहली अफीकी टीम बनी। अपनी सेमी फाइनल तक की इस यात्रा में उसने तीन तीन बड़ी टीम को पराजित किया और एक बड़ी टीम को ड्रा के लिए मजबूर। उसने यूरोपीय दर्प का मानमर्दन किया और अफ़्रीकी गौरव को स्थापित भी। इस टीम का हीरो उनका गोलकीपर बोनो है। अफ्रीकी व अरब जगत का हीरो टीम मोरक्को।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b> अभी</b> तक जो भी हुआ वो भाग्य, नियति,और खेल के संयोग से बना फुटबॉल था,फुटबॉल का अद्भुत खेल था। आगे जो होगा वो भी नियति,भाग्य, होनी - अनहोनी के संयोग के आवरण में लिपटा और खिलाड़ियों के अद्भूत खेल कौशल व प्रतिभा और रणनीतियों से बना संवरा वो खेल होगा जिसके पीछे पूरी दुनिया दीवानी है, जिसे वो फुटबॉल के नाम से जानती है और जो उनके लिए खेल से बढ़कर जीवन मरण जैसी कोई भावना बन जाती है।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #cc0000; font-size: medium;">-----------------</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #cc0000; font-size: medium;"><b>हम</b> उत्कर्ष देख चुके हैं। चर्मोत्कर्ष देखना बाकी है।</span></p><p style="text-align: justify;"><br /></p>बात अपनीhttp://www.blogger.com/profile/05725525971715117550noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8465915453620131002.post-19947747082075328772022-12-12T22:59:00.011+05:302022-12-22T18:20:57.941+05:30अकारज _ 18<p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"> </span></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhIhkGQa65gxZDmSvY1VGwzHOuX-QidirAgIaY-4YTKhlpRC8iF7rLIG-2bzsOqMq8QMSa-IT01LUIqFzhKiGv5vDO1CK5Rsx8tjCo4XtPi6YrOOVdnDn9xUM-lOpQPZX07kid_kww97w682hAboUufUW8faGYPhxXcvbF5o1oIHw2slZS6sNEdIKmT/s500/Cartoon-Landscape-Nature-24.png" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="335" data-original-width="500" height="214" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhIhkGQa65gxZDmSvY1VGwzHOuX-QidirAgIaY-4YTKhlpRC8iF7rLIG-2bzsOqMq8QMSa-IT01LUIqFzhKiGv5vDO1CK5Rsx8tjCo4XtPi6YrOOVdnDn9xUM-lOpQPZX07kid_kww97w682hAboUufUW8faGYPhxXcvbF5o1oIHw2slZS6sNEdIKmT/s320/Cartoon-Landscape-Nature-24.png" width="320" /></a></span></div><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><br /></span><p></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #741b47; font-size: medium;"><b>अकारज_18</b></span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>दि</b>न भर की भाग दौड़ के बाद वो थकी सी क्लांत बैठी थी। दिन था कि अब सांझ हो चला था।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>कु</b>छ देर बाद उसने जुम्हाई ली और नींद में गुम हो गई। सांझ गहरी रात में बदल गई।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>उ</b>सकी आँखों में कुछ सपने आए। आसमां में तारे टिमटिमाने लगे।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>उ</b>सने नींद में करवट बदली। आसमां में चांद उग आया और आसमां चांदनी से भर उठा।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>वो</b> जगने ही वाली थी। उसने अंगड़ाई ली। रात सुब्ह में तब्दील हो गई।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>उ</b>सने आंखें खोली। सूरज उसकी खिड़की पर हाज़िर हुआ।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>उ</b>सने अब धीमे से मुझे पुकारा 'कहां हो तुम'। चिड़िया चहचहा उठीं।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>मैं</b>ने उसके माथे पर एक बोसा और हाथ पर चाय का प्याला धरा। स्मित मुस्कान उससे होंठों पर फैल गई। कमरा गुलाबी रंग से भर उठा। </span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>वो</b> थी। मैं था। मौन भंग करती चाय की चुस्कियां थीं।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>गु</b>लाबी रंग सुर्ख हुआ ही चाहता था कि उसके मन में दिन भर की जिम्मेदारियों का एक पहाड़ उग आया और उसका शरीर पहाड़ के बीच बहती नदी होने लगा।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><b>कि</b> मेरे मन की नीरवता उसके भीतर बहती नदी के शोर में घुल रही थी और उसके भीतर बहती नदी का शोर मेरी नीरवता में।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #741b47; font-size: medium;"><b>कि</b> दो मन अब एक दूसरे में घुले जाते थे।</span></p><p style="text-align: justify;"><br /></p>बात अपनीhttp://www.blogger.com/profile/05725525971715117550noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8465915453620131002.post-48880180208738763802022-12-04T11:10:00.003+05:302022-12-22T18:22:24.559+05:30फुटबॉल_विश्व_कप डायरी_5<p style="text-align: justify;"></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEis5yMoDF9JVNho0efgj3v13m_XGiMw7oR38ZMbMXpTH3qFb2D4suCTN8WOK0O3aVzOj1eeKjs8D7-MsANoYgEah1Re8it3N0cq2CDLr62Ob2Qj1Ly3zIY-IV5m1l__VxaYVqjOVJMbjpuXsdWrT9XjrW4I5Fl2RIdL6m-3-T3PNKQnK9rMNdsLECbM/s1200/ca1ea6456b213fe7.png" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><span style="font-size: medium;"><img border="0" data-original-height="630" data-original-width="1200" height="168" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEis5yMoDF9JVNho0efgj3v13m_XGiMw7oR38ZMbMXpTH3qFb2D4suCTN8WOK0O3aVzOj1eeKjs8D7-MsANoYgEah1Re8it3N0cq2CDLr62Ob2Qj1Ly3zIY-IV5m1l__VxaYVqjOVJMbjpuXsdWrT9XjrW4I5Fl2RIdL6m-3-T3PNKQnK9rMNdsLECbM/s320/ca1ea6456b213fe7.png" width="320" /></span></a></div><span style="font-size: medium;"><br /></span><p></p><p style="text-align: justify;"><span style="font-size: medium;"><b><span style="color: #741b47;">नॉक आउट की शुरुआत</span></b></span></p><p style="text-align: justify;"><span style="font-size: medium;"><b><span style="color: #741b47;">००००</span></b><span style="color: #2b00fe;"> </span></span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"> <b>क़</b>तर फुटबॉल विश्व कप 2022 के दूसरे यानी नॉक आउट चरण का पहला दिन। पहला दिन और दो मैच। एक, नीदरलैंड बनाम अमेरिका। दो, अर्जेंटीना बनाम ऑस्ट्रेलिया। यानी चार देशों के फुटबॉल प्रशंसकों के सपने और उनकी उम्मीदें ही दांव पर नहीं थी बल्कि चार अलग अलग महाद्वीपों की फुटबॉल और उनकी प्रतिष्ठा भी दांव पर।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"> <b>प</b>हला मैच तीन बार की फाइनलिस्ट नीदरलैंड और 2002 के बाद पहली बार क्वार्टर फाइनल में प्रवेश के लिए प्रयासरत अमेरिका की टीमों के बीच था। इस मैच में एक और युवा शक्ति और जोश से लबरेज अमेरिका की टीम थी जो अपने ग्रुप में इंग्लैंड के बाद नंबर दो पर थी। उसने अपने ग्रुप में ईरान को 1-0 से हराया था और इंग्लैंड से 0-0 से और वेल्स से 1-1 से ड्रा खेला था। दूसरी और नीदरलैंड एक अनुभवी टीम थी जो पिछले साल लुइस वान गाल के कोच बनने के बाद से 18 मैचों के अपराजित रिकॉर्ड के साथ मैदान में थी। </span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"> <b>मै</b>च में अनुभव जोश पर भारी पड़ा और अमेरिकी चपलता यूरोपीय शक्ति के सामने पस्त हो गई। नीदरलैंड ने अमेरिका को 3-1 से हरा दिया और विश्व कप के अंतिम आठ यानि क्वार्टर फाइनल में पहुंचने वाली पहली टीम बन गई।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"> <b>क</b>हावत है मिले मौकों को लपक लेना चाहिए,उन्हें गंवाना हमेशा भारी पड़ता है और उसका खामियाजा उठाना पड़ता है। इस बात को आज अमेरिका की टीम और उसके खिलाड़ियों से बेहतर कौन समझ सकता है।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"> <b>अ</b>मेरिका ने 4-3-3 के फॉर्मेशन के साथ मैच में तेज शुरुआत की। जबकि हॉलैंड की टीम 3-4-1-2 के फार्मेशन से खेल रही थी। पहले 09 मिनट का खेल हॉलैंड के हाफ में हुआ और तीसरे ही मिनट में अमेरिका को एक बहुत ही आसान मौका मिला मैच में बढ़त बनाने का। उसके शानदार फॉर्म में चल रहे फारवर्ड पुलिसिस को बॉक्स के अंदर केवल डच गोलकीपर को मात देनी थी। लेकिन वो शॉट सीधे गोली के हाथ में मार बैठे। इसके बाद भी कई अच्छे मूव अमेरिकी टीम ने बनाए लेकिन फिनिश नहीं कर पाए। 10वें मिनट में पहली बार हॉलैंड को मौका मिला। एक काउंटर अटैक किया और 20 पासों के बाद राइट विंग से देन्ज़ेल दम्फ्रीज़ ने एक शानदार क्रॉस दिया और एक ही टच में दीपे के बॉक्स के बाहर से शानदार शॉट से गेंद जाल में समा गई। मोमेंटम पाला बदलकर हॉलैंड के पक्ष में आ चुका था। अमेरिका ने मिले मौके को गंवाकर मोमेंटम खो दिया था।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"> <b>अ</b>ब हॉलैंड सुरक्षात्मक होकर काउंटर अटैक कर सकती थी और उसने ऐसा ही किया। उधर अमेरिका ने खेल की गति को धीमा किया और गेंद पर नियंत्रण रखा। लेकिन वे अच्छे मूव बनाने और फिनिश करने में सफल नहीं हुए। गेंद पर उनके नियंत्रण को इस बात से समझा जा सकता है कि उनका बॉल पजेशन पहले हॉफ में हॉलैंड के 37 प्रतिशत के मुकाबले 643 प्रतिशत रहा। अमेरिका ने एक अच्छा मूव 42वें मिनट में फिर बनाया और बॉक्स के बाहर से वेह ने एक करारा शॉट लगाया जिसे हॉलैंड के गोलकीपर ने आसानी से रोक लिया। पहला हाफ बहुत साफ सुथरे ढंग से खेला गया और केवल एक मिनट का अतिरिक्त समय दिया गया। इस एक मिनट में हॉलैंड की टीम ने एक बार फिर शानदार मूव बनाया। एक बार फिर राइट विंग से दम्फ्रीज़ ने क्रॉस दिया जिसे इस बार देले बलिंद गोल में डालकर हॉलैंड की बढ़त 2-0 की कर दी।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"> <b>दू</b>सरे हाफ में संघर्ष और सघन हो गया। अमेरिका ने दबाव बनाना शुरू किया और तीसरे मिनट में अमेरिका फिर आसान मौका चूका। हॉलैंड का गोलकीपर आगे आ चुका था और खाली गोल था,लेकिन दीपे ने गोल लाइन से गोल बचाया। </span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"> <b>अं</b>ततः 76 वें मिनट में अमेरिका को पहला गोल करने में सफलता मिली जब हाजी राइट ने गेंद गोल में डाल कर स्कोर 1-2 कर दिया। मैच एक बार फिर खुल गया। लेकिन 81 वें मिनट पर देले बलिंद के क्रॉस पर इस बार दम्फ्रीज़ ने गोल किया और मैच व अमेरिकी भाग्य को बंद कर दिया। मैच इस स्कोर पर खत्म हुआ।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"> <b>नि</b>संदेह ये दम्फ्रीज़ का मैच था जिसने दो असिस्ट और एक गोल किया। ये अमेरिका के लिए मिले अवसरों को गंवाने और हार जाने का मैच था। इस पूरे टूर्नामेंट में बार बार ये सिद्ध हुआ कि अवसर चूक जाने का मतलब हार है। आप अवसर चूक जाना नॉक आउट में अफोर्ड नहीं कर सकते।अमेरिका ने अवसर चूके,खामियाजा भुगता और विश्व कप 2022 से उसका सफर समाप्त हुआ।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"> <b>आ</b>ज का दूसरा मैच दो बार के विश्व चैंपियन अर्जेंटीना और दूसरी बार क्वार्टर फाइनल में पहुंचने के लिए आतुर ऑस्ट्रेलिया के बीच था। अर्जेंटीना के पास मैस्सी था। फुटबॉल का जादूगर। वो आज अपना एक हजारवाँ मैच खेल रहा था। जिस के 999 मैचों में 788 गोल और 348 असिस्ट थे। उसके पास दुनिया जहान की 41 ट्राफियां थीं। आज उसका प्रतिद्वन्दी नौसिखिया सरीखा था। वे अंतिम दो मैचों में मेक्सिको और पोलैंड को 2-0 से हराकर अपने ग्रुप में पहले स्थान पर थे। दूसरी और ऑस्ट्रेलिया केवल एक बार इससे पहले विश्व कप के इस स्टेज पर खेला था और पहले ही नॉकआउट मैच में हार गया था। इस बार के विश्व कप में उसने अपनी शुरुआत फ्रांस के हाथों 1-4 से हार के साथ की थी। लेकिन अगले दो मैचों में ट्यूनीशिया और डेनमार्क को 1-0 से हरा कर अगले चरण में प्रवेश किया था।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"> <b>ये</b> विश्व रैंकिंग में नंबर तीन बनाम नंबर अड़तीस का मुकाबला था। अर्जेंटीना के साथ उनका इतिहास,उनका खेल कौशल और मैस्सी था। दोनों टीमों के बीच खेले गए सात मैचों में पांच अर्जेंटीना ने जीते थे और एक ड्रा हुआ था। ऑस्ट्रेलिया केवल एक मैच जीत पाई थी, वो भी अरसे पहले 1988 में। लेकिन ऑस्ट्रेलिया के पास शारीरिक डील डौल, दमखम और ताकत थी जिसके बल पर वे किसी को भी धूल चटाने का माद्दा रखते हैं। उन्होंने क्रिकेट से लेकर हॉकी तक तमाम खेलों में अपना दबदबा कायम कायम कर सिद्ध भी किया है। लेकिन उनके पास सबसे बड़ी उम्मीद की किरण वो विश्वास था कि हर बड़ी टीम को हराया जा सकता है। लीग चरण के तमाम उदाहरण उसके सामने थे और पहले ही मैच में 51वीं रैंक वाली सऊदी अरब से उसकी आज की विपक्षी टीम अर्जेंटीना की 1-2 से हार का उदाहरण भी। बारीक ही सही उम्मीद की एक किरण उनके जेहन को रोशन कर रही होगी कि अर्जेंटीना की टीम में सेंध लगाई जा सकती है।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"> <b>अ</b>र्जेंटीना ने 4-3-3 के फार्मेशन से और ऑस्ट्रेलिया ने 4-4-2 के फार्मेशन से खेल की शुरुआत की। आरंभ में ही लग गया था कि ये मैच पहले मैच की तुलना में अधिक इन्टेन्सिटी से खेला जाएगा और ऐसा ही हुआ भी। ऑस्ट्रेलिया ने मैस्सी को शुरू में बांधकर रखा। जब उसके पास बॉल आती दो तीन खिलाड़ी उसपर टूट पड़ते। लेकिन शेर को कितनी देर बांध कर रखा जा सकता है। मैस्सी अपनी पोजीशन से हटकर पूरे मैदान में खेले और शीघ्र ही लय में आ गए और 35वें मिनट में बॉक्स के अंदर मिले पास को तीन खिलाड़ियों के बीच से निकालकर गेंद जाल में उलझा दी। ये मैस्सी के एक हजारवें मैच का 789 वां गोल था। उसके बाद भी मेसी ने अनेक शानदार मूव बनाये पर हॉफ टाइम तक स्कोर लाइन 1-0 अर्जेंटीना के पक्ष में रही। दूसरे हॉफ में अर्जेंटीना ने 57 वें मिनट में जूलियन अल्वारेज के गोल से 2-0 की बढ़त बना ली। लेकिन औस्ट्रेलिया ने हार नहीं मानी। उसने अंतिम समय तक संघर्ष किया और अर्जेंटीना को आखिरी सीटी बजाने तक निश्चिंत नहीं होने दिया। दोनों टीमों ने अच्छे मूव बनाये पर गोल करने के मौके बनाए। 77वें मिनट में ऑस्ट्रेलिया का गोल आया जब स्थानापन्न खिलाड़ी क्रेग गुडविन ने बॉक्स के बाहर से एक तेज़ तर्रार शॉट गोल की और लगाया और गेंद अर्जेंटीना के डिफेंडर फर्नान्डीज के सिर से लग कर अपने ही गोल के जाल में जा उलझी। अंततः अर्जेंटीना ने 2-1 से जीत दर्ज की और क्वार्टर फाइनल में प्रवेश किया।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"> <b>आ</b>ज के मैच दुनिया के दो गोलार्द्धों के अपने अपने मैच थे। पहला उत्तर बनाम उत्तर तो दूसरा दक्षिण बनाम दक्षिण। अपनी अपनी प्रकृति के हिसाब से ही मैच खेले गए। इस दोनों मैचों को देंखे तो लगेगा कि पहला मैच अपेक्षाकृत अधिक शांत,अनुशासित और कम इन्टेन्सिटी वाला था जबकि दूसरा अधिक फिजिकल,अधिक इन्टेन्सिटी, कड़े संघर्ष वाला और उग्र था। अर्जेंटीना के पास ऑस्ट्रेलिया के शारीरिक बल का बराबरी का और समुचित प्रत्युत्तर था।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"> <b>य</b>दि पहला मैच पूरी तरह से देन्ज़ेल दम्फ्रीज़ का था तो दूसरा मैच मैस्सी का। उन्होंने विश्व कप का कुल मिलाकर नवां और नॉक आउट दौर का पहला गोल किया। कड़ी मार्किंग और रफ टफ टेकलिंग के बावजूद शानदार मूव बनाए। अफसोस इस बात का मैस्सी को दो आसान अवसर मिस करते देखा।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"> <b> दो</b> क्षेत्रीय संघर्षों ने एक बड़े फलक अन्तरक्षेत्रीय संघर्ष की ज़मीन तैयार कर दी है। अब ये जो अगला संघर्ष होना है वो यूरोप बनाम दक्षिण अमेरिका का संघर्ष होगा। वो उत्तर बनाम दक्षिण का संघर्ष होगा। वो अर्जेंटीना बनाम नीदरलैंड का क्वार्टर फाइनल मैच होगा।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #cc0000; font-size: medium;">------------</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #cc0000; font-size: medium;"><b>पि</b>क्चर अभी बाकी है दोस्तों।</span></p><p style="text-align: justify;"><span style="color: #2b00fe; font-size: medium;"><br /></span></p><p style="text-align: justify;"><br /></p>बात अपनीhttp://www.blogger.com/profile/05725525971715117550noreply@blogger.com0