Wednesday 12 June 2024

हसबैंड ऑन ड्यूटी'




 दो महीने पहले खरीदी गई विपिन भाई की किताब 'हाउस हसबैंड ऑन ड्यूटी'आज पढ़ी जा सकी। अब दो बातें - एक लेखक के बारे में। दूसरी किताब के बारे में।


एक,लेखक उस समाज और  वर्ग से आता है जहां पितृसत्ता की जड़ें बहुत गहरी और मजबूत हैं। जहां एक ग्लास पानी स्वयं से लेकर पीना मर्द के लिए अपमानजनक होता है। जहां लड़कों के लिए 'लड़की की तरह रोता है' एक शर्मनाक वाक्य है और 'घर जवांई' शब्द एक गाली। ऐसे में एक लड़के के लिए अपनी नौकरी छोड़कर घर की जिम्मेदारी ओढ़ लेना और पत्नी को नौकरी करने देना कितनी बड़ी और साहस की बात उनके लिए रही होगी इसे समझा जा सकता है। विपिन धनकड़ ने ना केवल हाउस हसबैंड होना चुना बल्कि उससे उपजे अनुभव सबसे साझा किए। ये इतनी ख़ूबसूरत  बात है कि उनके इस जैस्चर पर कई स्त्री विमर्श फीके पड़ सकते हैं।


दो,जब किताब पढ़ेंगे तो एक बारगी को लगेगा कि अरे इतने साधारण से किस्से। लेकिन ये साधारणता ही इस पुस्तक की असाधारणता है। ये किस्से हमारी रोजमर्रा जिंदगी के वे खूबसूरत क्षण हैं जिन्हें हम अक्सर पकड़ नहीं पाते। महसूस नहीं कर पाते। जी नहीं पाते। जबकि होते सबके पास हैं। लेकिन विपिन ने उन लम्हों को भोगा, महसूस किया, जिया और फिर हूबहू कागजों पर उतार दिया। वे बढ़िया किस्सागो हैं। कहन की रोचक शैली है। साथ ही आसपास के घटित होने पर एक पत्रकार की सूक्ष्म दृष्टि भी।  यहां वे नाममात्र के हाउस हसबैंड नहीं होते बल्कि वास्तविक रूप से घर की सारी जिम्मेदारी उसी निष्ठा और ईमानदारी से निभाते हैं जितना कि एक स्त्री। ये सुंदर बात है कि वे उन जिम्मेदारियों को निभाते हुए  लगातार इस बात को महसूस करते हैं और अभिव्यक्त करते हैं कि एक स्त्री के लिए हाउसवाइफ का किरदार कितना कठिन और जिम्मेदारी का होता है और फिर भी वे उसे कितनी सहजता से निभाती जाती हैं। उनके सूक्ष्म से सूक्ष्मतर ब्यौरे उनकी बात को प्रामाणिक बनाते हैं।


एक साधारण गृहस्थ के साधारण जीवन के साधारण लेकिन रोचक किस्सों की एक उम्दा पुस्तक है 'हाउस हसबैंड ऑन ड्यूटी'।

ज़रूर पढ़ें।



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