Thursday, 22 September 2016

आज फिर जीने की तमन्ना है...




                         
(गूगल से साभार)
                                   

                                      बरसों पहले एक फिल्म देखी थी गाइड।बडी मकबूल फिल्म थी।अभिनय से लेकर संगीत तक हर लिहाज से शानदार फिल्म।इसमें एक गाना है "आज फिर जीने की तमन्ना है..."कभी इसको ध्यान से देखिए।एक स्त्री के लिए आजादी क्या होती है, बंधनों से मुक्त होकर वो कैसा महसूस करती है,इससे बेहतरीन अभिव्यक्ति मैंने नही देखी।बूढे बदमिजाज आर्कियोलोजिस्ट मार्को की युवा पत्नी रोजी उससे वैवाहिक संबंध खत्म कर राजू के साथ चल देती है।तब ये गाना फिल्माया गया है।हर बोझ,बंधन,वर्जनाओं से मुक्त।निर्द्वन्द।आजाद।आसमाँ में पंछी की सी।पानी में मीन सी।कल कल बहती पहाडी नदी सी।सरसराती हवा सी।स्त्री मुक्ति की इससे स्वाभाविक शानदार अभिव्यक्ति नहीं ही देखी पढी।इस एक गाने पर स्त्री विमर्श की कई पुस्तकें कुर्बान।


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