Sunday 7 June 2015

एक कहानी अधूरी सी



क्लासरूम में
कभी ख़त्म ना होने वाली 
हमारी बातों के बीच 
वो अनकहा
और पलास के सिंदूरी दहकते फूलों से लदे पेड़ों के नीचे टहलते हुए
हमारी लम्बी खामोशियों के बीच 
बहुत कुछ कहा गया

सीनेट हाल के कॉरीडोर में तैरती हमारी फुसफुसाहटें

और चबूतरे पर बैठकर गाये गीतों की हमारी गुनगुनाहटें

आनंद भवन के सीढ़ीनुमा लॉन पर 

गूंजती हमारी खिलखिलाहटों से
मिलकर बनी 

गुलाब के अनगिनत रंगों की मौज़ूदगी में

अनजाने लोगों के होठों पर तैरती रहस्यमयी मुस्कान
और उनकी आँखों की चमक से
साहस पाती हमारी कहानी

बन चुकी थी प्रतिरोध का दस्तावेज

जिसे जाना था संगम की ओर
मिलन के लिए
पर पता नहीं
क्या हुआ
क्यों बहक गए तुम्हारे कदम 
और चल पड़े कंपनी बाग़ की तरफ
जहाँ ब्रिटेन की महारानी की तरह
तुम्हें करनी थी घोषणा
एक युग के अंत की
ताकि सध सके तिज़ारत का बड़ा मुक़ाम।



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