पिछले शुक्रवार को राकेश ढौंढियाल सर आकाशवाणी के अपने लंबे शानदार करियर का समापन कर रहे थे। वे सेवानिवृत हो रहे थे।
कोई एक संस्था और उससे संबद्ध लोग एक दूसरे के पूरक होते हैं। वे एक दूसरे को बहुत कुछ देते हैं और समृद्ध करते चलते हैं। लेकिन एक सच ये भी है कि इन्हीं लोगों में से कुछ ऐसे प्रतिभाशाली लोग होते हैं जो संस्था से लेते कम हैं और उसे देते बहुत हैं। राकेश सर उन चंद गिने चुने प्रोग्रामर में से हैं जिन्होंने अपनी प्रतिभा और योग्यता से आकाशवाणी को समृद्ध किया। उसे बलंदियों तक पहुंचाने में अवदान किया।
वे एक शानदार ब्रॉडकास्टर हैं। जो उन्हें शानदार बनाता है, वो है रेडियो के लिए उनका पैशन। परफेक्शनिस्ट। वे किसी प्रोग्राम को और उसके प्रसारण को पूरी तरह निर्दोष,त्रुटिरहित बनाना चाहते । इसके लिए किसी भी हद तक जाते। उस पर अंतिम समय तक काम करते। और छोटी छोटी डिटेल्स पर मेहनत करते। काम के प्रति उनकी प्रतिबद्धता बेमिसाल है।
आकाशवाणी की प्रसारण की अपनी कुछ विशिष्टता परंपराएं हैं जो रेडियो प्रसारण के क्षेत्र में आकाशवाणी को विशेष दर्जा प्रदान करती हैं। वे आकाशवाणी की उन परंपराओं को सहेजने वाले बब्रॉडकास्टर्स की जमात के हैं। लेकिन एक प्रसारक के रूप में उनकी विशिष्टता इस बात में है कि परंपराओं का अनुकरण करते हुए,उसे सहेजते हुए भी नित नवीन प्रयोग किए और बदलते समय में प्रसारण को और खुद को प्रासंगिक बनाए रखा।
वे एक शानदार फोटोग्राफर हैं। उन्होंने अपने कैमरे से शानदार तस्वीरें उतारी हैं। इसमें उन्हें महारत हासिल है। जिस तरह से कैमरे से वे अद्भुत चित्र बनाते हैं, ठीक वैसे ही सजीव दृश्य वे ध्वनियों से रचते। उन्होंने ध्वनियों साध जो लिया था। उनकी शब्दों से दोस्ती जो थी। वे आवाजों से खेलते और शानदार प्रोग्राम बनाते। उनको मिले तमाम राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार इस बात की ताईद करते हैं।
वे रेडियो फीचर्स के मास्टर थे। भोपाल में रहते हुए 'उज्जैन कुंभ' के अवसर पर 'पानी' पर एक अद्भुत सीरीज की थी। पानी के हर पहलू को उन्होंने पकड़ा था। उसके भौतिक पक्ष को, अध्यात्म पक्ष को,दर्शन को भी।
छोटे कद का ये पहाड़ी पहाड़ सी ऊंचाई से व्यक्तित्व का मालिक है। सहज और सरल। बहते झरने सा। देहरादून प्रवास को जिन दो व्यक्तियों ने आसान और आनन्ददायक बनाया उनमें अनिल भाई के अलावा वे ही थे। आकाशवाणी देहरादून में साथ काम करते वे अकसर कहते यार साथ साथ मकान बनाया जाए। मेरठ में रहते हुए पिछले एक साल से हर रोज उनकी ये बात याद आती है और बात ना माने का अफसोस भी। लेकिन जिंदगी में हर मुराद पूरी होने के लिए नहीं होती।
किसी की सेवानिवृति पर 'सरकारी बंधन से मुक्त होने' और 'अब अपने शौक पूरे करने' जैसे जुमले कह देना आसान होता है। लेकिन तीस पैंतीस सालों के पैशन,अनुशासन,आदत के एक लम्हे में खत्म हो जाने से सामंजस्य बैठाना उतना आसान भी नहीं होता। लेकिन हम जानते हैं कि वे बहुत ही क्रिएटिव हैं। घूमना उनका पैशन है। पहाड़ दर पहाड़ वे खाक छानते हैं। तस्वीरें उतारना उन्हें भाता है। उनका अपना एक लोकप्रिय यू ट्यूब चैनल है। निश्चित ही उन्हें अपने जीवन के इस दूसरे हिस्से से तादात्मय बैठाना अधिक सहज और सरल होगा। हमारी भी यही कामना है।
फ़िलवक्त तो एक शानदार ब्रॉडकास्टर,उम्दा अधिकारी और बहुत ही ज़हीन इंसान के आकाशवाणी के शानदार और सफल सफर के निर्बाध अंत पर हार्दिक बधाई और आगे के जीवन के लिए ढेरों शुभकामनाएं।
आपका आगामी समय शुभ हो।
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