खिलाड़ी बहुत से आते हैं और चले जाते हैं। लेकिन इतिहास के सफहों पर और लोगों की स्मृति में केवल वे ही अमिट रह पाते हैं जो ना केवल खेल को गहरे से प्रभावित करते हैं,बल्कि अपनी प्रतिभा की स्थायी छाप भी छोड़ जाते हैं।
'जेंटलमैन एलीट क्रिकेट' की शास्त्रीयता के सबसे बड़े नायक सुनील गावस्कर और 'मास क्रिकेट' के सबसे बड़े जननायक कपिलदेव ठहरते हैं, तो सचिन तेंदुलकर अपने संपूर्ण खेल से कपिल के 'मास क्रिकेट' को धर्म की ऊंचाइयों तक पहुंचाकर 'भगवान' कहलाने लगते हैं।
इतना होने पर भी भारतीय क्रिकेट दबा सहमा सा था, तो सौरव गांगुली ने उस पर ' किलिंग इंस्टिंक्ट' की सान चढ़ाई और प्रतिपक्ष की आंख में आंख डालने का हौसला रखने वाले 'दादा' कहाए। इस बीच वीरेंद्र सहवाग ने इसे नैसर्गिक स्वछंदता की खुशबू से महकाया, तो युवराज ने 'लेफ्टी एलिगेंस' की आब दी।
बुनियाद तैयार थी। एक ऐसे नायक की जरूरत अभी बाकी थी जिसे इसको शिखर तक पहुंचाना था। तब थाला 'कैप्टन कूल' आए। धोनी ने इसका परचम पूरी दुनिया में लहराया।
गुंजाइश अभी बाकी थी। तब किंग आया। बदलती दुनिया और बदलते क्रिकेट को अब कोहली जैसे ही खिलाड़ी की जरूरत थी। आधुनिक खेलों की सबसे बड़ी आवश्यकता है फिटनेस और प्रतिबद्धता। कोहली जैसा फिटनेस फ्रीक खेलों की दुनिया में और कौन दूजा था और प्रतिबद्धता का दूसरा नाम कोहली ना था तो और क्या था। वे अपनी फिटनेस और प्रतिबद्धता से केवल क्रिकेट को ही नहीं बल्कि पूरे भारतीय खेल परिदृश्य को प्रभावित करते हैं और खेल की दुनिया में नए प्रतिमान गढ़ते हैं। सुनील क्षेत्री इसका सबसे बड़ा प्रमाण हैं। बाकी उनका खेल और खेल से बने आंकड़े अपनी कहानी खुद कहते हैं।
हैरी केन,वीरेंद्र सहवाग और रिकी पोंटिंग उन्हें यूंही 'गोट' तो नहीं कहते। कोहली को सफेद शफ़्फाक पोशाक में देखना एक अद्भुत अनुभव था। अब इसकी कमी हमेशा खेलेगी।
कोहली क्रिकेट का 'खुदा' ना सही पर 'खुदा' से कम भी तो नहीं।
लव यू कोहली।
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