Friday 14 December 2018

मृग मरीचिका



मृग मरीचिका
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इंग्लैंड ने विश्व कप फुटबॉल 1966 में जीता था।उसके बाद ये खिताब उसके लिए मृग मरीचिका बन गया।ठीक वैसे ही भारत ने हॉकी का विश्व कप 1975 में जीता था और उसके बाद भारत के लिए इस खिताब की चाहत किसी बच्चे की चाँद को पाने की चाहत सी हो गयी।मेज़बान होने के नाते जो विश्व खिताब इस बार कुछ करीब लग रहा था वो दरअसल मृगमरीचिका ही था।
आज शाम जब भुबनेश्वर के कलिंगा स्टेडियम में भारत की टीम डच टीम के विरुद्ध अपना क्वार्टर फाइनल मैच खेलने उतरी तो उम्मीद थी कि गहराती शाम के अन्धकार को भारतीय टीम अपनी जीत से रोशनी में तब्दील कर देगी और 43 सालों से जीत के सूखे को  कम से कम कुछ आर्द्रता से भर देगी।पर ऐसा हुआ नहीं।उलटे  गहराती शाम का ये अन्धेरा हार की निराशा से कुछ और गहरा गया और 1975 के कारनामे को दोहराए जाने इंतज़ार कुछ और लंबा हो गया।
निसंदेह भारत ने शानदार खेल दिखाया।उसने 57 प्रतिशत बॉल पर नियंत्रण रखा।12वें मिनट में आकाशदीप ने गोल करके उम्मीद की ज्योति बाली थी वो टूटे तारे की चमक सी क्षणिक साबित हुई।15वे मिनट में ही थियरी ब्रिंकमन ने गोल उतार दिया।अगले दो क्वार्टर में कई मौके बढ़त बनाने के भारत ने गवाएं और खेल बराबरी पर छूटा।लेकिन चौथे क्वार्टर में मिंक वान डेर ने गोल करके भारत के भाग्य को सील कर दिया।
भारत बिला शक बढ़िया खेला।पर कई बार बढ़िया खेल नहीं बल्कि 'जीत से कुछ भी कम नहीं' की ज़रुरत होती है।आज जब जीत की सबसे ज़्यादा चाहना थी तब हार हाथ आई।
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हार की इस निराशा से उबरने के लिए फिलहाल सिंधु की विश्व नंबर एक ताई जू यिंग पर 14-21,21-16,21-18से जीत को सेलिब्रेट करें।
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गुड लुक नेक्स्ट टाइम टीम इंडिया।

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