Saturday 21 September 2024

गति जमा फैशन फ्लो जो





 'हम उनकी नींद से हैरत में हैं,उनकी योग्यता के समक्ष विनत है और उनकी स्टाइल की गिरफ्त में हैं।' 

ऐसा अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन खेल की दुनिया की एक असाधारण प्रतिभा के बारे में कह रहे थे। उनके बारे में एक वाक्य में इससे बेहतर ढंग से नहीं कहा जा सकता।

दुनिया में कुछ ऐसी असाधारण खेल प्रतिभाएं हैं कि उनकी प्रतिभा की हदें मानवीय विश्वास की क्षमता को पार कर जाती हैं। लगने लगता है कि एक मानव के रूप में ऐसा कर पाना कहां संभव होता है। तब उसकी उसकी प्रतिभा के सामने या तो नतमस्तक हुआ जाता है या उस पर संदेह किया जाने लगता है या फिर दोनों ही।

हॉकी के जादूगर ध्यानचंद का स्टिक वर्क इतना शानदार था कि लोगों को संदेह होता था कि उनकी स्टिक में चुंबक लगी है। तभी वे इतनी शानदार ड्रिबलिंग को अंजाम दे पाते हैं कि गेंद उनकी स्टिक के ब्लेड से अलग ही नहीं होती। फिर उनकी स्टिक को तोड़ कर देखा जाता। पर ऐसे हर वाक्ये से उनकी विलक्षण प्रतिभा पर मुहर लगती जाती। खेलों की दुनिया के ऐसे प्रतिभावान वे इकलौते खिलाड़ी नहीं थे।

ये साल 1959 का 21 दिसंबर का दिन था। कैलिफोर्निया के लिटिल रॉक कस्बे में सिलाई का काम करने वाली एक महिला फ्लोरेंस ग्रिफ़िथ और इलेक्ट्रिशियन रॉबर्ट के 11 बच्चों में से सातवें नंबर के बच्चे के रूप में एक लड़की जन्म लेती है। इसे ही आगे चलकर एक महान एथलीट के रूप में जाना जाना था। 

वो लड़की अभी चार साल की ही हुई थी कि उसके माता पिता अलग हो जाते हैं और माता अपने बच्चों के साथ लिटिल रॉक छोड़कर कैलिफोर्निया के दक्षिणी हिस्से में बसे वॉट्स की सार्वजनिक आवास परियोजना में आ जाती है।

स लड़की को दौड़ने से प्रेम है और इस कदर प्रेम है कि वो बचपन में वो जैक रैबिट का पीछा करके दौड़ने के लिए खुद को तैयार करती हैं। वो केवल सात साल की उम्र में ही प्रतिस्पर्धात्मक रूप से दौड़ना शुरू कर देती है। उसके परिवार की संसाधनों की कमी और निर्धनता उसके लक्ष्य में बाधा नहीं ही बनने पाती। उसके उलट वो एक और प्रेम करने लगती है और प्रेम के द्वैत में जीने लगती है। उसका दूसरा प्रेम फैशन था। वो ना केवल दौड़ने के अपने पैशन को जीती है, बल्कि वो फैशन में भी कमाल की रुचि विकसित कर लेती है जिसे बाद में उसका ट्रेडमार्क बन जाना था। आगे के जीवन में उसकी एक प्रेम से दूसरे प्रेम में आवाजाही होती रहती है और धीमे धीमे समय की आंच में पकते प्रेम के दो रूप एकाकार हो जाते हैं।

ब वो प्राथमिक विद्यालय में थीं तो वह शुगर रे रॉबिन्सन संगठन में शामिल होती है और सप्ताहांत  ट्रैक मीट में भाग लेना शुरू कर देती है। जल्द ही अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करती है और 14 व 15 साल की उम्र में लगातार दो साल जेसी ओवेन्स नेशनल यूथ गेम्स में जीत हासिल करती है।


1978 में कैलिफ़ोर्निया स्टेट यूनिवर्सिटी में दाखिला लेती है, लेकिन 1979 में अपने परिवार की आर्थिक मदद करने के लिए पढ़ाई छोड़नी पड़ती है। 'पहले प्रेम' खेल का साथ भी उससे छूट जाता है। वो अब एक बैंक टेलर की नौकरी करने लगती है और 'दूसरे प्रेम' फैशन का हाथ पकड़ती है। पर भाग्य पलटा खाता है। उसकी प्रतिभा इसका निमित्त बनती है। कैलिफोर्निया विश्विद्यालय के उसके कोच बॉब केर्सी उसे  वित्तीय सहायता दिलाते हैं और वो फिर से विश्वविद्यालय में वापस आती है। वो अब ना केवल पढ़ाई बल्कि अपना पैशन भी जारी रख पाती है। वो अब ना केवल  1983 में मनोविज्ञान में स्नातक की डिग्री भी प्राप्त करती है बल्कि एक बेहतरीन धावक के रूप में अपनी प्रतिष्ठा भी प्राप्त करती है

सकी मेहनत रंग लाती है। 1984 के लॉस ऐंजिलिस ओलंपिक के लिए अमेरिका की एथलेटिक्स टीम में चुनी जाती है। लॉस एंजिल्स के ग्रीष्मकालीन ओलंपिक  खेलों में अपने गृहनगर में दौड़ते हुए 200 मीटर की दौड़ स्पर्धा में रजत पदक जीतती है। 

रिवार की आर्थिक स्थिति एक बार फिर  उसे खेल छोड़ने के लिए मजबूर करती है और वो 1984 के ओलंपिक के बाद दौड़ना छोड़कर फिर से बैंक की नौकरी करती है और ब्यूटीशियन के रूप में भी। 

मय बीतता जाता है। उसका दौड़ाने का जुनून एक बार फिर ज़ोर मारता है और 1987 में फिर से ट्रैक पर लौट आती है और फिर से प्रशिक्षण लेना शुरू करती है। इस बार उसका लक्ष्य दक्षिण कोरिया के सियोल में 1988 के ओलंपिक होता है। उसी साल वो सुप्रसिद्ध एथलीट जैकी जॉयनर कर्सी के भाई अल जॉयनर से शादी करती है जो स्वयं भी एक बेहतरीन एथलीट और कोच होता है और 1984 के ओलंपिक  खेलों में ट्रिपल जंप के लिए स्वर्ण पदक विजेता भी। अब वे बॉब केर्सी की जगह अपने पति अल जॉयनर से प्रशिक्षण प्राप्त करने लगती है।

र तब 16 जुलाई, 1988 को वो लड़की एक इतिहास रचती है। उस दिन इंडियानापोलिस में ओलंपिक के ट्रायल में 100 मीटर दौड़ में एक महिला के लिए सबसे तेज़ समय का विश्व रिकॉर्ड बनाती है। उसका समय 10.49 सेकंड था। उसने अपनी हमवतन एवलिन एशफ़ोर्ड के रिकॉर्ड को .27 सेकंड से पीछे छोड़ दिया था। एशफ़ोर्ड, जिसने 1984 में अपना रिकॉर्ड बनाया था, 1988 के ओलंपिक में 100 मीटर में ग्रिफ़िथ जॉयनर के बाद दूसरे स्थान पर रही। उस समय उस लड़की की उम्र 28 साल थी।

 वो यहीं नहीं रुकी। अब वो ओलंपिक में भाग लेने दक्षिण कोरिया की राजधानी सियोल आई। यहां उसने 10.54 सेकंड के समय के साथ 100 मीटर महिला स्पर्धा का स्वर्ण पदक जीता। और उसके बाद 200 मीटर स्पर्धा का 21.34 सेकंड का विश्व रिकॉर्ड के साथ स्वर्ण पदक जीता। उस ने उस ओलंपिक में 4×100 मीटर रिले में तीसरा स्वर्ण पदक जीता और 4×400 मीटर रिले में रजत पदक जीता। उसके 100 और 200 मीटर स्पर्धा के विश्व रिकॉर्ड बहुत सारे देशों के पुरुषों के रिकॉर्ड से बेहतर थे। कमालनये है कि ये दोनों रिकॉर्ड आज तक कायम हैं।

सा करने वाली उस असाधारण एथलीट का नाम फ्लोरेंस ग्रिफिथ जॉयनर था जिसे 'फ्लो जो' के नाम से भी जाना जाता है।

 ये कुछ ऐसा असाधारण और अविस्मरणीय था जिसे दुनिया सहज स्वीकार नहीं कर पा रही थी। उस ओलंपिक में पुरुषों की 100 मीटर स्पर्धा असाधारण गति का प्रदर्शन करते हुए कनाडा के बेन जॉनसन ने जीती थी। लेकिन वे डोप टेस्ट में फेल हो गए। इसलिए फ्लो जो का असाधारण करनामा भी संदेह के घेरे में आ गया। लोगों को लगा कि उनका ये प्रदर्शन भी स्वास्थ्यवर्धक दवाओं का परिणाम है। लेकिन उनके जितने भी परीक्षण हुए, उनमें से एक में भी वे फेल नहीं हुईं।

रअसल वे उम्र के उस पड़ाव पर ये कारनामा कर रहीं थीं जब बाकी एथलीट ट्रैक से विदा ले लेते हैं। विश्व रिकॉर्ड बनाते समय वे 28 साल की थीं। इसलिए उनके बारे में संदेह और अफवाहें ताउम्र उनके साथ रही। उनके पूरे करियर के दौरान उनसे इस बारे में पूछा जाता रहा और उन्होंने हमेशा इन अफवाहों का खंडन किया।

साल 1989 में एक पूर्व अमेरिकन एथलीट डेरेल रॉबिन्सन ने एक यूरोपीय पत्रिका को बताया कि ग्रिफ़िथ जॉयनर ने उसे ग्रोथ हॉरमोन खरीदने के लिए पैसे दिए थे। लेकिन वे कोई प्रमाण प्रस्तुत नहीं कर पाए। जबकि अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति के चिकित्सा आयोग का कहना था कि 'आयोग ने 1988 ओलंपिक के दौरान ग्रिफिथ जॉयनर पर कठोर दवा परीक्षण किए थे और उनका परीक्षण हमेशा नकारात्मक आया था।'

ग्रिफ़िथ जॉयनर ने सियोल ओलंपिक के बाद ट्रैक से संन्यास ले लिया। 22 फरवरी 1989 को सियोल ओलंपिक खेलों के पांच महीने बाद  जब उन्होंने सन्यास लेने की घोषणा की तो एक बार फिर वे लोगों के संदेह के घेरे में आ गई कि उन्होंने सन्यास  कुछ दिन बाद लागू होने वाले  कठोर परीक्षण के कारण लिया है।

लोगों के संदेह का आलम ये था कि उन्होंने उनकी मृत्यु को भी संदेह की दृष्टि से देखा गया। उनकी मृत्यु केवल 38 वर्ष की उम्र में 1998 में सोते हुए हुई। लोगों को लगा ये मृत्यु अस्वाभाविक है ओर स्वास्थ्यवर्धक दवाओं के कारण हुई है। उनके शव का परीक्षण हुआ। कुछ भी संदेहास्पद नहीं निकला। दरअसल उनकी मृत्यु मिर्गी के दौरे के कारण हुई थी। इससे पहले भी उन्हें हवाई यात्रा के दौरान ऐसा दौरा पड़ चुका था। आईओसी मेडिकल आयोग के अध्यक्ष प्रिंस एलेक्जेंडर डी मेरोड को फ्लोरेंस ग्रिफिथ जॉयनर की मृत्यु के बाद उनके बारे में एक बयान जारी करना पड़ा। उन्होंने अपने बयान में कहा "हमने उन पर सभी संभव और कल्पनीय विश्लेषण किए। हमें कभी कुछ नहीं मिला। इसमें जरा सा भी संदेह नहीं होना चाहिए।"

साधारण योग्यता संदेह और अविश्वास का बायस होती ही है। फ्लो जो कोई अपवाद ना बन सकीं। उनकी प्रतिभा भी अविश्वसनीय थी क्योंकि वो असाधारण थी।



लेकिन वे दुनिया भर में केवल अपनी गति भर के लिए ही नहीं जानी गईं बल्कि इसलिए भी जानी गईं कि उन्होंने उस गति को फैशन का आवरण पहनाया। उन्होंने गति को फैशनेबुल बना दिया। 'फैशन' उनका दूसरा प्रेम था। वे अपनी दौड़ की ड्रेस तक खुद डिजायन करती थीं। वे गति के साथ अपनी स्टाइल,अपनी फैशन शैली के लिए भी जानी जाती थीं। वे अपने लंबे चमकीले नाखूनों और रंग बिरंगे एक पैर वाले ट्रैक सूट के लिए भी दर्शकों में बेहद लोकप्रिय हो चली थीं।

जुलाई 1988 में जब वे अमेरिकी टीम ट्रायल में विश्व रिकॉर्ड बना रही थीं उस दिन उस रेस में उन्होंने  बैंगनी रंग का एक पैर वाला बॉडी सूट पहना था और उसके ऊपर रंगीन बिकनी बॉटम। ये एक पैर वाली ड्रेस आगे चलकर एक फैशन स्टेटमेंट बन जानी थी।

सके बाद जब उन्होंने सियोल ओलंपिक में 200 मीटर का विश्व रिकॉर्ड तोड़ा तो वे लाल और सफ़ेद रंग का  लियोटार्ड पहने हुए थीं। उनकी कलाइयों पर सोने का कंगन और कान में सोने की बालियाँ पहनी हुई थीं। वे रेस खत्म होने पर घुटनों के बल ट्रैक पर बैठ गईं। दुनिया भर के कैमरे उन पर फोकस कर रहे थे। और दुनिया उनके उसके लंबे लाल, सफेद, नीले और सुनहरे रंग के नाखून देख रही थी। उन्होंने गति को भी एक स्टाइल स्टेटमेंट दे दिया था।

नकी असाधारण सफलता और फैशन ने उन्हें दुनिया भर में लोकप्रिय बना दिया। लेकिन उनकी असाधारण प्रतिभा केवल ट्रैक तक सीमित नहीं रही। अब उन्होंने ट्रैक से बाहर दूसरे क्षेत्रों में भी अपनी रचनात्मक यात्रा आरंभ की। उन्होंने कपड़ों की एक सीरीज विकसित की, नेल प्रोडक्ट बनाए, अभिनय में हाथ आजमाया और बच्चों की किताबें लिखीं। 

न्हें खूब एंडोर्समेंट मिले। अमेरिकी टेलीविजन पर अभिनय और कैमियो भी किए जिसमें सोप ओपेरा "सांता बारबरा" और सिटकॉम "227" शामिल हैं । एलजेएन टॉयज़ के साथ काम किया जिसने लंबे रंगे हुए नाखून और एक पैर वाला रनिंग सूट पहने उनके जैसी गुड़िया का निर्माण किया। साथ ही 1990 में एनबीए की टीम इंडियाना पेसर्स टीम की ड्रेस भी डिज़ाइन की। अपने पति के साथ मिलकर वंचित युवाओं की सहायता के लिए 1992 में फ्लोरेंस ग्रिफ़िथ जॉयनर यूथ फ़ाउंडेशन की स्थापना की। 1993 में राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने उन्हें अमेरिकी कांग्रेस के टॉम मैकमिलन के साथ राष्ट्रपति की शारीरिक फिटनेस परिषद के सह-अध्यक्ष के पद पर नियुक्त किया।

 ट्रैक पर उनकी असाधारण उपलब्धियों ने ग्रिफ़िथ जॉयनर को ना केवल दुनिया भर में लोकप्रिय बना दिया बल्कि उनकी अनूठी शैली और ट्रैक रिकॉर्ड ने लड़कियों की एक पूरी पीढ़ी को प्रेरित किया।

 2024 के पेरिस ओलंपिक में जब उनकी हमवतन स्प्रिंटर शा'कैरी रिचर्डसन अपने हमेशा बदलते बालों के रंग से लेकर अपने अनगिनत टैटू, अपने छेदों और लंबे, चमकीले ऐक्रेलिक नाखूनों तक अपनी एक अलग स्टाइल गढ़ी तो 'फ्लो जो' याद आईं और समझ आया उनका प्रभाव नई पीढ़ी पर कितना गहरा है।

आज 21 सितंबर है। आज ही के दिन 1998 में केवल 38 वर्ष की उम्र में उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया था।

आज के दिन उस महान एथलीट को याद करना तो बनता है।

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