Monday 25 March 2019

'ये वो कतई नहीं था जो हम चाहते थे'



'ये वो कतई नहीं था जो हम चाहते थे'
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कल रात लॉस एंजिल्स लेकर्स के ब्रुकलिन नेट्स से 111-106 से हारने के बाद लेब्रोन जेम्स कह रहे थे "ये वो नही थP जिसके लिए हमें अनुबंधित किया गया था"और निसंदेह उनके चाहने वाले उनके इन्हीं शब्दों को अपने मन में दोहरा रहे होंगे "हाँ बिल्कुल, ये वो नहीं था जो हम चाहते थे"। क्या कोई भी विश्व कप फुटबॉल फाइनल्स की मेस्सी के बिना कल्पना कर सकता है। क्या किसी क्रिकेट विश्व कप की बिना सचिन के कल्पना की जा सकती थी। बिना राफेल नडाल के फ्रेंच ओपन की कल्पना की जा सकती है क्या। नहीं ना। तो फिर एनबीए पोस्ट सेशन की बिना लेब्रोन के कैसे कल्पना की जा सकती है। लेकिन यथार्थ कल्पना की तरह रंगीन और कोमल नहीं होता। यथार्थ का रंग धूसर और प्रकृति रूक्ष होती है। और यथार्थ यही है कि 2004-5 के बाद फाइनल्स की तो बात ही छोड़िए लेब्रोन जेम्स पोस्ट सेशन में भी नहीं दिखाई देंगे क्योंकि इस हार के बाद लेकर्स टीम की नॉकआउट में पहुंचने की कोई भी संभावना खत्म हो गई है।

दरअसल कुछ खिलाड़ी खेल का पर्याय बन जाते हैं। हॉकी की ध्यानचंद के बिना,क्रिकेट की ब्रैडमैन के बिना,फुटबॉल की पेले और माराडोना के बिना,बैडमिंटन की रूडी हार्तोनो और लिम स्वी किंग के बिना,टेनिस की रॉड लेबर के बिना या बास्केटबॉल की माइकेल जॉर्डन के बिना कल्पना की जा सकती है क्या। हां कालांतर में  खिलाड़ी उन्हें चुनौती देते  हैं और वे उनके समकक्ष आकर खुद भी लीजेंड बन जाते हैं। सचिन या मेस्सी और रोनाल्डो या रोजर फेडरर या लिन डान और ली चोंग वेई  या बोवलेंडर ऐसे ही लीजेंड हैं और ठीक इनकी तरह बास्केटबॉल में लेब्रोन जेम्स भी।
लेब्रोन ने पिछले चार सालों तक अकेले दम पर क्लीवलैंड केवलियर्स को फाइनल्स तक पहुंचाया और एक खिताब दिलाया। इस बार जब उन्होंने लेकर्स को जॉइन किया तो लगा कि लेकर्स के दिन बहुरने वाले हैं और कोबे ब्रायंट व शकील ओ नील वाले दिन लौटने वाले हैं। पर ऐसा हुआ नहीं। दरअसल लेब्रोन के कंधे अब झुकने लगे हैं और सांस उखड़ने।

जो भी हो इन गर्मियों में जब आप स्टीफेन करी,जेम्स हार्डन,केविन डुरंट, अन्थोनी डेविस से लेकर रसेल वेस्टब्रूक,क्वाहि लियोनार्ड और जोएल एम्बिड के खेल से रोमांचित हो रहे होंगे आपके दिल का एक कोना लेब्रोन की अनुपस्थिति के  उदासी भरे अहसास से जार जार हो रहा होगा।

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