Saturday 11 August 2018

'कहाँ राजा भोज और कहाँ गंगू तेली'




कहाँ राजा भोज और कहाँ गंगू तेली
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                                               कपिल और हार्दिक की तुलना करना अभी ना केवल जल्दबाज़ी है, बल्कि बेमानी भी है। और ये तुलना किस हद तक बेमानी हो सकती है इसे गावस्कर की तल्खी और उनके बयान से समझा जा सकता है।ये सही है कि 2017 में हार्दिक ने शानदार प्रदर्शन किया है। लेकिन आज की तारीख में भी वे भरोसेमंद खिलाड़ी नहीं बन पाए हैं। आज भी यही है कि चल गए तो चल गए नहीं तो राम भरोसे। आज भी उनका स्थान टीम में पक्का नहीं है। जहां दो मैच में असफल हुए तो अगले मैच में या उससे अगले मैच में टीम से बाहर नज़र आएंगे। कपिल लगातार 131 टेस्ट मैच खेले,केवल एक बार राजनीति के चलते बाहर हुए। वे अभी भी कपिल के पासंग भी नहीं हैं। कपिल की उपलब्धियों को छूना तो दूर अभी तो कहीं आस पास भी नज़र नहीं आते। कपिल टीम के लीड बॉलर होते थे जो शानदार इन कटर और बेहतरीन आउट स्विंगर के लिए जाने जाते थे। जबकि हार्दिक आज भी चेंज बॉलर के रूप में आते हैं। क्या उनकी बॉलिंग की कोई खासियत है। अगर बैटिंग और फील्डिंग की भी बात करें  तो 1983 के विश्व कप में ज़िम्बाब्वे के खिलाफ 17 रन पर 5 विकेट गिर जाने के बाद 175 रनों की पारी और उसके बाद फाइनल में 30 गज़ पीछे भाग कर उनके द्वारा लिए गए कैच की क़्वालिटी बताती है कि वे किस स्तर के खिलाड़ी थे। यहां ये भी बात ध्यान में रखनी चाहिए कि हार्दिक अपना ये प्रदर्शन उस समय कर रहे हैं  भारतीय विश्व की सर्वश्रेष्ठ टीमों में शुमार होती है और कपिल उस समय खेल रहे थे जब भारतीय टीम विश्व की सबसे फिसड्डी टीमों में गिनी जाती थी।  दरअसल हार्दिक को कपिल की छाया बनने के लिए भी अभी नर्मदा में असीमित पानी को बहते देखना होगा।
                                                                             सच तो ये है कि कपिल  शानदार आल राउंडर थे और भारतीय क्रिकेट को उनका इतना ज़्यादा योगदान है कि हार्दिक को छोड़िये किसी भी खिलाड़ी से उनकी तुलना नहीं की जा सकती।भारतीय क्रिकेट के दो प्रकाश स्तम्भ हैं गावस्कर और कपिल देव। भारतीय क्रिकेट के अप्रतिम प्रतिमान हैं।रतीय क्रिकेट के  दो स्वरूपों के प्रतिनिधि आइकॉन हैं। ये दोनों भारतीय क्रिकेट के दो प्रस्थान बिंदु हैं। गावस्कर उस युग के सबसे शानदार खिलाड़ी हैं जब क्रिकेट एलीट और जेंटलमैन खेल होता था। उन्होंने दुनिया भर की सबसे खतरनाक बॉलिंग के खिलाफ बैटिंग को नयी ऊंचाइयों तक पहुंचाया था। वे क्रिकेट के क्लासिक स्वरुप के सबसे बेहतरीन व्याख्याता थे। कमज़ोर टीम मानी जाने के बाद भी भारतीय क्रिकेट को एक पहचान दिलाई थी। जहां गावस्कर ने छोड़ा वहां से कपिल ने शुरू किया। यदि गावस्कर ने भारतीय क्रिकेट को पहचान दिलाई तो कपिल ने भारतीय क्रिकेट को नयी ऊंचाइयां प्रदान की। कपिल ने टीम को संगठित किया,नेतृत्व प्रदान किया और विश्व विजेता बनाया। दरअसल 1983 की जीत भारतीय क्रिकेट का सर्वोच्च बिंदु नहीं बल्कि वो प्रस्थान बिंदु था जहां से वो सर्वोच्चता की ओर प्रस्थान करती है। कपिल स्वयं निम्न मध्यम वर्ग से आते थे और वे क्रिकेट के मास स्वरुप का प्रतिनिधित्व करते थे। उनके समय में ही क्रिकेट का स्वरुप अधिक जनतांत्रिक हुआ। गावस्कर से हाथों से क्रिकेट की बागडोर कपिल के हाथों में जाना दरअसल क्रिकेट के एलीट खेल के जन साधारण के खेल में तब्दील होने का रूपक है। कपिल क्रिकेट के संक्रमण काल के खिलाड़ी थे। ये वो समय था जब एलीट खेल मास के खेल में रूपांतरित हो रहा था। उसकी क्लासिक विशेषताएं लोकप्रिय भंगिमाओं में बदल रही थीं। सुस्त रफ़्तार वाला खेल तेजी का रुख कर रहा था। नफासत रफ टफ क्रियाओं में क्रियान्वित हो रही थी। और अपेक्षाकृत असीमित समय वाले खेल का समय सीमित हो रहा था। इस संक्रमण काल में ना केवल सरवाइव करना बल्कि उसे सर्वोच्च स्तर पर ले जाना सबसे कठिन होता है।और कपिल एकदम यही करते हैं। यही कपिल की महानता है। और इसी कारण कोई और खिलाड़ी उनकी समानता नहीं कर सकता। हाँ उनके बाद पहले गांगुली और फिर धोनी उनके काम को आगे बढ़ाते हैं। 
                                                       
         इसीलिये मैं कहता हूँ कि भारतीय क्रिकेट में कपिल की कोई बराबरी नहीं कर सकता। कोई भी नहीं। ये कहना निसंदेह कठोर होगा लेकिन इससे बेहतर कोई मुहावरा याद नहीं पड़ रहा कि 'कहाँ राजा भोज और कहाँ गंगू तेली'। 
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ये आलेख मूलतः एक फेसबुक पोस्ट पर टिप्पणी थी। 



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