Monday 5 March 2018

ऐसा भी कहीं होता है क्या ?

                 
                            
ऐसा भी कहीं होता है क्या ? 
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                                       अगर ऊंचा उठने के लिए ऊंचाई अनंत है तो गिरने के लिए अतल गहराई भी है। ये बात वेस्टइंडीज क्रिकेट टीम से बेहतर कौन समझ सकता है। किसी समय में अजेय समझी जाने वाली 'महान टीम' आज अपने पराभव के चरम पर है।ये टीम और कितने रसातल में जाएगी इसका अनुमान लगाना कठिन है।  दो बार की विश्व चैम्पियन वेस्ट इंडीज की क्रिकेट टीम को आईसीसी विश्व कप के लिए अहर्ता पाने के लिए अब क्रिकेट का ककहरा सीखने वाली टीमों के साथ दो दो हाथ करने होंगे। 
                       
                इस टीम का पराभव कोई एक दो दिन की परिघटना नहीं है। ये एक लम्बी प्रक्रिया है। शायद 1983 के विश्व कप के फाइनल में भारत के हाथों हार वो बिंदु है जहां से इस टीम की प्रगति का ग्राफ नीचे की दिशा में मुड़ता है। पर कहते हैं ना मरा हाथी भी सवा लाख का होता है। अगले एक दशक तक उस टीम का कोई सानी नहीं था।लेकिन उसकी श्रेष्ठता में जो सेंध लग चुकी थी उसे रोका नहीं जा सकता था।उसका पराभव निश्चित था और हुआ। लेकिन ये इस हद तक होगा इसकी कल्पना भी नहीं की थी और सच तो ये है कि इस पर आज भी विश्वास नहीं होता। दरअसल इस टीम की सफलता के चरमोत्कर्ष के समय की स्मृतियाँ मेरे दिमाग पर इस कदर हावी हैं और जड़ हो चुकी हैं कि आज की दुर्दशा भी उनको रिप्लेस नहीं कर पातीं।
                            जब भी क्रिकेट में वेस्टइंडीज का नाम आता है तो ज़ेहन में क्वींस पार्क ओवल त्रिनिदाद , किंग्स्टन ओवल बारबोदास,जार्जटाउन गुयाना ,सबीना पार्क किंग्स्टन जमैका, एंटीगुआ के उन मैदानों का अक्स उभरता है जिनमे 22 गज़ की एक खेल पट्टी होती थी जिससे दुनिया भर के बल्लेबाज़ खौफ खाते थे और ये मैदान खेल के मैदान कम और युद्ध के मैदान अधिक लगते थे। तेज़ रफ़्तार और उछाल भरी गेंदों से विपक्षी टीम के बल्लेबाज़ों का शरीर ही घायल नहीं होता बल्कि उनकी रूह भी काँप उठती। तो दूसरी ओर विपक्षी गेंदबाज़ों पर इस कदर प्रहार होता कि वे त्राहीमाम त्राहीमाम कर उठते।
                              वेस्टइंडीज क्रिकेट का मतलब मेरे लिए आज भी एंडी रॉबर्ट्स,माइकेल होल्डिंग,जोएल गार्नर,मेलकॉम मार्शल,कॉलिन क्राफ्ट,कोर्टने वाल्श होता है और इसका मतलब क्लाइव लॉयड,गॉर्डन ग्रीनिज,विवियन रिचर्ड्स,गारफील्ड सोबर्स,एल्विन कालीचरण,डेस्मंड हेंस,रिची रिचर्डसन होता है और इसका मतलब जीत और सिर्फ जीत होता है।  ये निसंदेह आश्चर्य की बात है कि जहाँ के लोगों के खून में क्रिकेट रचा बसा हो,क्रिकेट जीवन का अभिन्न अंग हो वहाँ क्रिकेट की ऐसी दुर्दशा। उफ़्फ़ कितना दुःखद और अवसाद का वायस है ये सब। जब ये सब मेरे लिए इतना पीड़ादायक है तो ज़रा सोचिये उन लोगों की जिनके जीवन में क्रिकेट इतने गहरे उतरा है कि उन्होंने 1962 में 5 साल में ही वेस्टइंडीज की 'पोलिटिकल आइडेंटिटी' के ख़त्म होने के बावजूद आज तक वेस्टइंडीज को 'क्रिकेट आइडेंटिटी' बनाये रखा है।   

  
             

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