Saturday 3 October 2015

प्रेम


प्रेम 
मन में समाया 
ठहरा 
और चला गया। 

नहीं बचा कुछ भी 

कोई याद 
कोई सपना  
कोई उम्मीद 
कोई बिछोह 
कोई दुःख 
कोई अवसाद 
कोई राग द्वेष 
कुछ भी तो नहीं।

फिर इक दिन पता चला 

इक टुकड़ा प्रेम बचा रह गया 
मन में किसी फाँस की तरह 
इक बूँद प्रेम बचा रह गया
घास पर ओस की तरह
इक पल प्रेम बचा रह गया
कहीं ठहरे हुए समय की तरह।  
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