Friday, 25 September 2015

तुम्हारी आँखेँ



मैं जानता हूँ 
तुम्हारी ये छोटी छोटी गोल सी आँखे 
ना तो नीली झील सी गहरी  हैं 
कि इनमें डूब जाऊं मैं 
ना ही ये चंचल चितवन मृग नयन जैसी है 
जिनसे प्यार में डूब सकूँ मैं 
कमल दल जैसी भी नहीं हैं 
कि पूजा कर सकूँ मैं 
फिर भी बहुत खूबसूरत हैं तुम्हारी आँखें 
उतर आता है खूं  उनमें आज भी 
हर बेजा बात पर 
बचा हैं इनमें पानी 
नहीं मरा है अभी तक 
इन आँखों का पानी। 
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