Thursday, 29 November 2018



सुख दुःख से बनी
इस उबड़ खाबड़ दुनिया के
ठीक ऊपर
ख्वाबों  के आसमान में
खुशियों का जो चाँद लटका है
वो 
हाड तोड़ मेहनत की डोर के सहारे
शर्मसार सा होकर
इतना सा नीचे आए
कि हमारे भीतर कुछ उजास हो
कि औरों के हिस्से के दुःख का एक टुकड़ा
हमारा हो और
हमारे हिस्से के सुख का
एक टुकड़ा औरों का
कि हमारे भीतर का जानवर कुछ मर सके 
हम कुछ थोड़ा और मानुस बन सकें। 

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