Tuesday, 23 December 2014



तेरी सांसें
सर्द रातों में
शोला बन
देह में कुछ पिघलाती रहीं

तेरी छुअन
तपती दोपहर में भी
बर्फ़ की मानिंद
मन में कुछ जमाती रही

ज़िंदगी बस यूँ ही
पिघलते और जमते
रफ्ता रफ्ता गुज़रती गई। 

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